ऑस्ट्रेलिया की बाढ़ के सबक

‘इंटरनेशनल रिवर’ नामक विख्यात विशेषज्ञ संस्थान के कार्यकारी निदेशक पैट्रिक मैक्कली ने कहा है कि जहां छोटे व मध्यम स्तर की बाढ़ को बांधों व तटबंधों से कुछ कम किया गया है, इस प्रक्रिया में बड़े स्तर के बाढ़ से होने वाली क्षति और बढ़ गई है।
ब्रिसबेन शहर का नाम अब तक हमने क्रिकेट के मैचों के शानदार आयोजन के संदर्भ में ज्यादा सुना था, पर आज वह प्रलयंकारी बाढ़ संकट के कारण दुनिया भर की सुर्खियों में है। केवल यह शहर ही नहीं, ऑस्ट्रेलिया जैसे बहुत सुरक्षित क्षेत्र माने जाने वाले देश का एक बड़ा हिस्सा आज उग्र बाढ़ की चपेट में है। ऑस्ट्रेलिया के जितने इलाके में बाढ़ का पानी इस बार फैला है, उसका क्षेत्रफल जर्मनी और फ्रांस के संयुक्त क्षेत्रफल से भी अधिक है। पिछले एक वर्ष में वैसे तो विश्व के अनेक देशों में बाढ़ आई, पर पहले पाकिस्तान और फिर ऑस्ट्रेलिया की बाढ़ सर्वाधिक चर्चा में रही। इस तरह की बाढ़ इन दोनों देशों में पहले नहीं देखी गई। पाकिस्तान का हर पांच में से एक परिवार बाढ़ की चपेट में आया और कुल मिलाकर यहां 70 लाख परिवारों को बाढ़ का संकट सहना पड़ा।

इन दोनों देशों के संदर्भ में विश्व स्तर पर इस चर्चा ने जोर पकड़ा है कि जलवायु बदलाव के दौर में आपदाओं के पहले से कहीं अधिक उग्र और विनाशक होने की जो संभावना व्यक्त की गई थी वह सच सिद्ध हो रही है। साथ ही विशेषज्ञ यह बता रहे हैं कि इस बाढ़ के उग्र होने के दौर में बाढ़ नियंत्रण संबंधी पहले की गलतियों से बचना बहुत जरूरी हो गया है।

ऑस्ट्रेलिया हो या पाकिस्तान या दुनिया के अधिकांश अन्य देश, प्रायः बाढ़ नियंत्रण का कार्य बांधों और तटबंधों के माध्यम से किया गया है। इनका निर्माण एक विशेष सीमा की वर्षा को सहने के आधार पर होता है, जो पिछले वर्षों के उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर तय की जाती है। पर यदि कम समय में इतनी अधिक वर्षा हो जाए तो पिछले अनुभवों व औसतों से कहीं अधिक वर्षा हो जाए जो पिछले अनुभवों व औसतों से कहीं अधिक हो, तो बाढ़ सुरक्षा के लिए बनाए गए तटबंध व बांध सहायक होने के स्थान पर नुकसानदायक भी हो सकते हैं क्योंकि तटबंधों व बांधों के क्षतिग्रस्त होने से या बांधों से अचानक बड़ी मात्रा में पानी छोड़ दिए जाने के कारण जो प्रलयंकारी बाढ़ आती है, वह कहीं अधिक उग्र व विनाशकारी होती है।

ऑस्ट्रेलिया व उससे पहले पाकिस्तान में वर्षा की अधिकता के दौर में यही देखा गया है कि तटबंधों के बल पर बड़े शहरों व अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों की सुरक्षा होती थी वही टूटने लगे। इस्लामाबाद के विशेषज्ञ मुश्ताक गादी ने कुछ समय पहले कहा था, ‘बाढ़ नियंत्रण के लिए किए गए निर्माण ही बाढ़ को और उग्र करने का कारण बने।’ ‘इंटरनेशनल रिवर’ नामक विख्यात विशेषज्ञ संस्थान के कार्यकारी निदेशक पैट्रिक मैक्कली ने कहा है कि जहां छोटे व मध्यम स्तर की बाढ़ को बांधों व तटबंधों से कुछ कम किया गया है, इस प्रक्रिया में बड़े स्तर को बाढ़ से होने वाली क्षति और बढ़ गई है। उन्होंने कहा है कि जलवायु बदलाव के इस दौर में आप पिछली जानकारी के आधार पर ही नई चुनौतियों का सामना नहीं कर सकते हैं व नए सिरे से नई संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए नदी-प्रबंधन करना पड़ेगा।

ये सब मुद्दे भारत के लिए और भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यहां तटबंधों व बांध से बाढ़ के और विकट होने की आलोचना समय-समय पर होती रही है। यह तो सब देख ही रहे हैं कि तटबंध टुटने से जो बाढ़ आती है, वह अधिक उग्र होती है। यह भी स्पष्ट है कि जो गांव नदियों व तटबंधों के बीच फंस जाते हैं, वे जैसे सदा के लिए अभिशप्त हो जाते हैं पर इसके अतिरिक्त हिमालय से मैदानों में अधिक गाद-मिट्टी लेकर आने वाली अनेक नदियों की कुछ अन्य विशेषताओं पर भी ध्यान देना जरूरी है।

पहले जब तटबंध नहीं बने थे और बाढ़ के पानी के सामान्य फैलाव में यह उपजाऊ मिट्टी-गाद एक बड़े क्षेत्र में फैल जाती थी व इन खेतों का प्राकृतिक उपजाऊपन बिना किसी खर्च के बहुत बढ़ जाता था। इस तरह खरीफ की फसल बाढ़ से नष्ट हो भी जाए तो रबी की फसल में अच्छी उत्पादकता कम खर्च पर आसानी से मिल जाती थी। पर तटबंध बनने के बाद इस उपजाऊ मिट्टी-गाद का बड़े क्षेत्र में फैलना रुक गया तथा यह नदी के जल-स्तर को निरंतर ऊंचा करने लगे। कुछ वर्षों में यह संभावना उत्पन्न हो जाती है कि नदी तटबंध जितनी ऊंचाई प्राप्त कर लेगी। तटबंध को और ऊंचा किया जा सकता है, पर नदी भी और ऊंची हो सकती है। कुल मिलाकर यह स्थिति उत्पन्न होती है कि नदी का जल-स्तर सामान्य भूमि से काफी ऊपर हो जाता है यदि ऐसे में तटबंध टूटता है तो ऊपर से नीचे की ओर बहने वाली बाढ़ कहीं अधिक प्रलयंकारी सिद्ध हो सकती है।

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