नर्मदा - एक परिचय

Narmada
Narmada
नर्मदा नदीअमृतमयी पुण्य सलिला नर्मदा की गणना देश की प्रमुख नदियों में की जाती है। पवित्रता में इसका स्थान गंगा के तुरन्त बाद है कहा जो यह जाता है कि गंगा में स्नान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है वह नर्मदा के दर्शन मात्र से ही प्राप्त हो जाता है।

यदि हम तर्क की नाव पर सवार हों तो नर्मदा मध्यप्रदेश के शहडोल जिले में अमरकंटक नामक स्थान से निकलने वाली एक बारहमासी नदी है जो पश्चिम की ओर बहती हुई गुजरात राज्य में जाकर खम्बात की खाडी में समुद्र में विलीन हो जाती है। सतपुडा और विंध्याचल की पर्वत श्रेणियों के संधि स्थल पर एक छोटे से कुंड के रूप में अवतरित इस नदी का स्वरूप यात्रा के अंत में समुद्र से मिलन के समय घाट लगभग 24 किलोमीटर हो जाता है, परन्तु यह भी सत्य है कि हमारे देश में नदियों को केवल बहते हुये जल के रूप में ही नहीं देखा जाता है। वे जीवनदायिनी मां के रूप में पूज्य होती है। नर्मदा में भी अपार आस्था समाई हुई है। इसे ’मइया‘ और देवी होने का गौरव प्राप्त है। पुरातन काल से ऋषि मुनियों की तपस्या स्थली रही नर्मदा आज भी धार्मिक अनुष्ठानों का गढ है। पूरे देश म यही एक मात्र ऐसी नदी है कि जिसकी परिक्रमा की जाती है। मन में अपार श्रद्धा लिये हुये सैकडों पदयात्री पैरों के छालों की परवाह किए बगैर 2600 कि.मी. की यात्रा में 3 वर्ष 3 महीने और 13 में पूरी करके अपने जीवन को धन्य मानते हैं।

नर्मदा के किनारे सैकडों तीर्थस्थल और मंदिर तो हैं ही साथ ही अनेक स्थानों पर इसका सदर्य देखते ही बनता है। असंख्या जडी बूटियों और वृक्षों के बीच से बहती हुई नर्मदा को मध्यप्रदेश की जीवन रेखा भी कहा जाता है। सैकडों छोटी-मोटी नदियों को अपने में समेटती हुई यह नदी कमी इठलाती हुई चलती है, कभी शांत बहती है तो कभी सहस्त्र धाराओं में विभाजित हो जाती है। संगमरमरी दूधिया चट्टानों को चीर कर इसको बहता देख दर्शक को अलौकिक सुख की प्राप्ति होती है। नर्मदा को निर्मल जल में स्नान से जो सुख प्राप्त होता है वह अवर्णनीय है। आराम देती है इसी से इसका नाम ’नर्मदा‘ है और चुलबुली शरारती भी है और इसी कारण इसे ’रेवा‘ कहा गया है।

पुराणों में नर्मदा को शंकर जी की पुत्री कहा गया है, इसका प्रत्येक कंकर शंकर माना जाता है। जन मानस ने इसे ’मइया‘ का गौरव दिया है। ’देवी‘ मानकर पूजा है। अपनी हजारों मन्नते पूरी की हैं। नर्मदा ने भी अनादि काल से अनगिनत रेखों को सींचा है। करोडों प्यासों की प्यास बुझाई है। आस्था के समुद्र में गोते लगाकर जिसने जो मांगा है उसे निराश नहीं किया है। पर आइए हम भी जरा सोचें कि हमने अपनी ’मां‘ के लिए क्या किया हैघ् क्या हमारा कोई कर्तव्य नहीं है अपनी नर्मदा ’मइया‘ के प्रतिघ् मात्र पवित्रता करने से या स्तुतिगान से काम नहीं चलता। सेवा भाव से इसकी परिक्रमा को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए हम सबको जागरूक रहकर इसके संरक्षण के लिए प्रयास करना होगा ताकि आने वाली पीढयां भी लाभान्वित हो सके।

 

 

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