Oct 10, 08
सोनभद्र । जनपद में जल संरक्षण के लिए विगत दो वर्ष से बेहतर कार्य हो रहा है। इसका खासा असर भी देखने को मिल रहा है। हाल के वर्षों में यहां का भूगर्भजल जिस तेजी से नीचे खिसक रहा था उसे देख सभी चिन्तित हो उठे थे लेकिन पहाड़ी इस जिले में नरेगा काफी कारगर साबित हुई है। वर्षा के जल को संचित करने से अब भूगर्भजल तेजी से ऊपर की तरफ आ गया है।
गौरतलब है कि इस जनपद में शायद ही ऐसा कोई गांव हो जहां पर पोखरा व तालाब न हों। उनके अनुरक्षण के प्रति कोई संजीदा नहीं रहा। इसके लिए लोग धनकी कमी को जिम्मेदार मानते रहे। केंद्र सरकार ने जब रोजगारगारण्टी योजना इस जनपद में शुरू की तो धन की कमी जिला प्रशासन के पास नहीं रही। अधिकारियों ने इस योजना के धन के एक बड़े हिस्से को वर्षा का जल संचित करने पर व्यय किये। हर गांव में पुराने पोखरे व तालाब की खुदाई करा दी गयी है। जिससे जरूरत के हिसाब से यहां के हर गांव में पानी तालाबों व पोखरे में मौजूद है। इस वजह से भूगर्भ का जल काफी ऊपर आ गया है और कूप में खासा पानी नजर आने लगा है। इसके अलावा गर्मी में इस पहाड़ी जनपद के अधिकांश हैण्डपंप सूख जाते रहे। लोगों को उम्मीद है कि अबकी गर्मी में हैण्डपंप नहीं सूखेंगे। उधर जिन कृषकों ने बोरिंग करा ली है वे भी आशान्वित हैं कि अब उनको सिचाई के लिए पर्याप्त पानी मिलेगा।
गौरतलब है कि जनपद के प्राचीन तालाबों की उपेक्षा हो रही थी। कहते है कभी इन्हीं 'पनघटों' पर चौपाल लगती थी। 'पनिहारिनों' के बीच सुखा-दुखा होता था। पंच फैसलों, कर्मकांड, धार्मिक अनुष्ठान व संस्कारों को पूरा करने का एक मात्र स्थान 'पोखरे का भीट' ही हुआ करता था। मसलन पानी पीने व स्नान करने लायक व्यवस्था की जिम्मेदारी सामूहिक तौर पर रहती थी। तालाब में पानी भरने की चिंता सभी को रहती थी। वर्ष भर गड़हियों, पोखरों व तालों के भरे रहने से भूगर्भ जल का स्तर औसत स्तर पर बना रहता था। 'जल संरक्षण' के लिए सभी जिम्मेदार थे लेकिन कालांतर में यह सब बातें कहावत बन कर रह गयी थी। जो जमीन सरकारी है वह जमीन हमारी है. जैसे नारों के साथ पोखरों के भीटों पर मड़हे तक तान दिये गये थे। जेसीबी मशीनों से भीटों को जमींदोज किया जा रहा था। तेजी से खिसक रहे भूजल स्तर को रोकने की सारी कोशिशें बेकार साबित हो गई थीं। स्थापित हैडपंपों को वर्ष भर चालू रखने में प्रशासनिक तंत्र के पसीने छूट जा रहे थे और पेयजल समेत सिंचाई के लिए मारामारी तक की नौबत आ जाया करती थी।विजयगढ़ दुर्ग : कैमूर विंध्य श्रृंखला में चतरा क्षेत्र में स्थित इस दुर्ग पर कभी न सूखने वाले सात तालाबों का उल्लेख है। जिसमें दो तालाब अब भी अस्तित्व में है। उनमें वर्ष भर लबालब पानी हर किसी के लिए कौतूहल बना रहता है। इन सभी तालाबों की खुदाई करा दी जाय तो उनके अस्तित्व को भी बचाया जा सकता है।
लोगों का कहना है कि असुरायन ताल घोरावल क्षेत्र में है। इस तालाब की खुदाई की भी लोगों ने मांग की है।
पुरखास तालाब, तिलौली ताल
भड़रा ताल,गोरारी गांव के छह, तरावां गांव के चार प्राचीन तालाब अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे है। पन्नूगंज मार्ग से सटे सजौर व मझिगांव के तालाब की भी इसी तरह की बदहाली नजर आती है। इनमें कई के भीटों पर कब्जा भी जमाया जा चुका है। बताते है कि सन् 66 के सूखे में ममुआ, बुड़हर व मझिगांव के निर्माणाधीन तालों का जायजा लेने तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी स्वयं यहां आयी थीं। कमोवेश यही स्थिति पसही, बभनौली, तेंदू, अमोखर, सेमरी, बावन, कूसरी, कैथी आदि गांवों के भी तालाबों की बतायी जा रही है। चोपन का पश्चिमांचल : सोनघाटी के दायरे में करीब 30 ग्राम पंचायतों में लगभग 80 ताल सिंचाई पेयजल के लिए उपयुक्त थे लेकिन पट्टों व कब्जों की कवायद जलस्त्रोतों के लिए भारी साबित होने लगी है। नगवां क्षेत्र : चिचलिक, सोमा, सथारी, बैजनाथे, केवटम, दरमा, पलपल ढोसरा आदि गांवों के पुराने भूतल जल संरक्षण के इन माध्यमों के भीटों पर अब दूर से ही आवास बने नजर आते है। कमोवेश यही हाल जनपद के कई तालाबों का भी है। लोगों ने जिला प्रशासन से उक्त तालाबों की भी खुदाई कराने की मांग की है।
जारी है जल संरक्षण का प्रयास : सीडीओ
मुख्य विकास अधिकारी डा. केडी राम कहते है कि जलसंरक्षण के लिए शासन-प्रशासन स्तर से प्रयास तेज कर दिये गए है। नरेगा से हर गांव में बावलियों का निर्माण कराया जा रहा है। तालाबों से अवैध कब्जे हटाए जा रहे है। खेत का पानी खेत में योजना को और सशक्त करने की दिशा में पहल शुरू कर दी गयी है।
दाखिल होगी जनहित याचिका : ब्रह्मशाह
पूर्व बड़हर स्टेट के सिरमौर आभूषण ब्रह्मशाह ने कहा कि जलसंरक्षण के पुराने स्त्रोतों की उपेक्षा से भला होने वाला नहीं है। जल्द ही नष्ट हो चुके पुराने तालाबों की सूची तैयार कर इनके जीर्णोद्धार के लिये एक जनहित याचिका दाखिल की जाएगी कि प्राकृतिक रूप से धरातल पर वर्ष भर पानी उपलब्ध कराने की व्यवस्था तो हो ही संरक्षण का दायित्व भी सामूहिक रूप से गांव के लोगों को सौंप दिया जाय।
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