इन परियोजनाओं से दोगुना नुकसान होना अभी शेष है। प्रदेश में अभी तक बिजली परियोजनाओं के कारण जितने पेड़ कट चुके हैं उनसे 18 हजार मीट्रिक टन कार्बन सोखी जा सकती थी जो शायद सरकार के कार्बन न्यूट्रल राज्य बनाने के लक्ष्य को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते थे। अभी तो लाखों पेड़ और काटे जाने हैं।
शिमला। राज्य में बिजली परियोजनाओं की रफ्तार के आगे अब प्रदेश की नदियों के बहते पानी की रफ्तार धीमी पड़ने लगी हैं। बिजली परियोजनाओं को धड़ल्ले से दी जा रही मंजूरी का सिलसिला अगर यूं ही जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब राज्य की सभी नदियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो जाएगा। प्रदेश में जब 20 हजार मेगावॉट बिजली का उत्पादन किया जाएगा तो प्रदेश की कोई भी नदी ऐसी नहीं बचेगी जिसमें पानी बिना रुके आठ किलोमीटर की दूरी से अधिक बह पाएगा। सरकार की योजना के मुताबिक 2020 तक प्रदेश की बड़ी नदियों पर ही बनने वाली विभिन्न बिजली परियोनाओं की संख्या लगभग 115 तक पहुंच जाएगी जबकि छोटे प्रोजेक्टों की संख्या अतिरिक्त होगी। विदित रहे कि प्रदेश में बहने वाली सभी नदियों की कुल लंबाई इस समय 900 किलोमीटर से अधिक नहीं है जिनमें सतलुज, ब्यास ,रावी ,चेनाब और यमुना मुख्य नदियां हैं। राज्य में बहने वाली इन नदियों में सतलुज की लंबाई सबसे अधिक 320 किलोमीटर, ब्यास 256, चेनाब122 , रावी 158 किलोमीटर है।
इसी तरह यमुना नदी की लंबाई प्रदेश में मात्र 30 किलोमीटर तक है। सरकार की योजना के मुताबिक अगर प्रस्तावित परियोजनाएँ अगर पूरी कर ली जाती हैं तो अकेले सतलुज नदी पर बनने वाली परियोजनाओं की कुल संख्या 37 हो जाएगी, जो अन्य नदियों पर बनने वाली परियोजनाओं की संख्या के मुकाबले में सबसे अधिक होगी। इसी तरह ब्यास नदी पर बनने वाली परियोजनाओं की संख्या 32, रावी पर 20, चेनाब पर 9 और युमना पर 14 हो जाएगी। यानि की हर नदी पर औसतन आठ किलोमीटर की दूरी पर एक बड़ी बिजली परियोजना निर्मित होगी। प्रदेश में इस समय दर्जनों ऐसी बड़ी परियोजनाएं कतार में है जो 12वीं पंचवर्षीय योजना में कमीशन हो जाएंगी। हाइकोर्ट के निर्देशों पर गठित एक सदस्यीय शुक्ला कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट में नदियों का अस्तित्व मिटने के खतरे की तरफ इशारा किया है।
इस रिपोर्ट में बिजली परियोजनाओं के कारण रावी नदी का लगभग 70 किलोमीटर का वजूद मिटने का उदाहरण दिया गया है। सारी परियोजनाओं का निर्माण पूरा होने के बाद बाकी नदियों पर भी इस तरह के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। जहां तक निकट भविष्य की बात है बारहवीं पंचवर्षीय योजना में प्रदेश में लगभग 35 बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं प्रस्तावित हैं। इन परियोजनाओं से लगभग 5600 मेगावॉट अतिरिक्त बिजली का उत्पादन होगा। केंद्र के साथ साझेदारी में बनने वाले इन बड़ी बिजली परियोजनाओं में चार बड़े प्रोजेक्ट शामिल हैं जो कुल 2136 मेगावॉट बिजली का उत्पादन करेंगे। इन चारों बड़े प्रोजेक्टों की अलॉटमेंट भी कर दी गई है। इसी तरह प्राइवेट सेक्टर में 31बड़ी बिजली परियोजनाओं का निर्माण किया जाना प्रस्तावित है जिनसे लगभग 3400 मेगावॉट बिजली का उत्पादन किया जाएगा। इनमें भी लगभग दस परियोजनाओं की अलॉटमेंट की जा चुकी है और 17 प्रोजेक्टों की अलॉटमेंट किए जाने की प्रकिया जारी है। अधिकतर बिजली परियोजनाएं किन्नौर, शिमला, कुल्लू, सिरमौर, चंबा और लाहौल स्पीति में बनाई जा रही हैं।
सतलुज नदी बेसिन पर बनने वाली बिजली परियोजनाओं की संख्या सबसे अधिक है । 15 जलविद्युत परियोजनाएं अकेले सतलुज नदी बेसिन पर ही बन रही हैं जबकि 9 चेनाब नदी के बेसिन में, 7 परियोजनाएँ रावी नदी के बेसिन पर, 3 ब्यास नदी और दो यमुना नदी के बेसिन पर प्रस्तावित हैं। इन परियोजनाओं के टनल में नदियों का पानी विभिन्न टनल के माध्यम से चले जाने से इनके अस्तित्व पर संकट पैदा कर देगा। राज्य सरकार ने जहां 20 हजार मेगावाट विद्युत उत्पादन करने का लक्ष्य निर्धारित किया है तो इसमें बिजली परियोजनाओं की संख्या वर्तमान के मुकाबले में कई गुणा और बढ़ जाएगी।
एक लाख हेक्टेयर उपजाऊ भूमि को निगल चुकी हैं बिजली परियोजनाएं
बिजली परियोजनाओं के निर्माण और पावर लाइनों को बिछाने के लिए अभी तक प्रदेश में आठ लाख से अधिक पेड़ों को काटा जा चुका है। पूर्व में निर्मित भाखड़ा बांध, पौंग बांध जैसी बड़ी परियोजनाओं के कारण हजारों परिवारों को विस्थापित होना पड़ा है जिसका दुख दर्द आज तक इनके परिवार नहीं भूले हैं। यही नहीं आठ हजार हेक्टेयर से अधिक जंगल फॉरेस्ट लैंड डाइवर्जन के कारण समाप्त हो चुका है। एक लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि विभिन्न प्रोजेक्टों के बांधों से बने जलाशयों में समा चुकी है। अभी तक सरकार ने एक तिहाई बिजली का दोहन किया है तो उस समय क्या होगा जब 20 हजार मेगावाट बिजली का दोहन किया जाएगा। सीधी सी बात यह है कि इन परियोजनाओं से दोगुना नुकसान होना अभी शेष है। प्रदेश में अभी तक बिजली परियोजनाओं के कारण जितने पेड़ कट चुके हैं उनसे 18 हजार मीट्रिक टन कार्बन सोखी जा सकती थी जो शायद सरकार के कार्बन न्यूट्रल राज्य बनाने के लक्ष्य को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते थे। अभी तो लाखों पेड़ और काटे जाने हैं।
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