मत कहो मुझे निर्मल ग्राम

Nirmal gram
Nirmal gram

मुजफ्फरपुर [राजीव रंजन]। जी हा, मैं ही हूं लदौरा पंचायत। सूबे के सबसे बड़े कुढ़नी प्रखंड का एक हिस्सा। बिल्कुल सही सुना है आपने। भारत के बहुचर्चित राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने मुझे ही वर्ष 2008 में 'निर्मल ग्राम पुरस्कार' से नवाजा था। क्योंकि उस समय मैं स्वच्छता के मानक पर पूरी तरह खरी थी, लेकिन अब मुझे यह कहने में कोई गुरेज या शर्म नहीं है, कि अब मैं निर्मल नहीं रही हूं।

मेरी इस दशा पर न तो शासन/ प्रसाशन की नजर है और ना ही जनप्रतिनिधियों की। इनकी यही अनदेखी मुझे हर दिन रोने को विवश कर रही है। मेरी सबसे बड़ी पीड़ा तो यह है कि मुजफ्फरपुर शहर से करीब होने के बावजूद मेरे आगन में सिर्फ गंदगी ही गंदगी है।मेरा वजूद जानना चाहते हो तो सुनो, मेरा वजूद लदौरा और सुमेरा नूर गावों के एक होने से सामने आया था। करीब 10 हजार की आबादी मेरे आचल में बसी है। इनमें एक हजार बीपीएल परिवार भी हैं। यही नहीं मेरे हिस्से में एक अस्पताल और चार स्कूल भी हैं।अगर, शौचालय की बात करूं तो दो ही स्कूलों में बच्चों के लिए कामचलाऊ व्यवस्था है, बाकी सब भगवान भरोसे है। इतना ही नहीं दस आगनबाड़ी केंद्र भी हैं। पर वषरें से सभी किराये के मकान में चल रहे हैं। उनकी बदहाली देखकर निर्मल ग्राम होने पर अब मुझे खुद शर्म आती है। यहा मासूमों के लिए शौचालय और मूत्रालय की कोई व्यवस्था नहीं है। और तो और मेरे यहा एक भी सामुदायिक शौचालय नहीं है। तो स्वाभाविक है अधिकाश महिला-पुरुष खुले में ही शौच के लिए मजबूर हैं। तीन साल पहले सरकारी अनुदान से घरों में बनाए गए अधिकतर शौचालयों के अब अवशेष ही बचे हैं।मेरे आचल में महादलितों की एक बस्ती भी है बस्ती के रामाशीष मल्ली समेत दर्जनों लोगों को इंदिरा आवास मुहैया कराये गए थे। तब उनके यहा भी शौचालय थे, लेकिन अब सिर्फ ढाचे बचे हैं। अगर बात वकील मल्ली, मटूकी देवी, मंजू देवी की करें तो अब तक इन्हें न तो इंदिरा आवास मिला है और ना ही इनके लिए यहा कोई शौचालय है।

हा, कुछ ऐसे ग्रामीण भी हैं जिन्होंने अपने पैसे से घरों में शौचालय बना रखे हैं। क्यों कहा, मेरे यहा शुद्ध पेयजल। अजी छोड़िए, शुद्ध पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं है। हर कोई दूषित पानी पीने को मजबूर है। आप खुद ही देख लीजिए, जलजमाव और नालों के बीच खड़े इन्हीं चापाकलों से ये बेचारे पानी भरते हैं। चापाकलों के आसपास आपको कोई चबूतरा दिख रहा है क्या, नहीं ना। हा, गड्ढ़ों में एकत्र पानी में उछलते-कूदते मच्छर के लार्वा को जरूर देख सकते हैं आप।

अब और क्या कहूं, यहा स्वच्छता के प्रति कोई जागरुकता नहीं है। साफ-सफाई की कोई व्यवस्था नहीं है, इस कारण घरों के आस-पास गंदगी का अंबार है। जलनिकासी की समस्या यथावत है। बारिश के दिनों में तो मेरी सूरत ही बिगड़ जाती है। अब आप ही बताइए, ऐसे में कोई मुझे निर्मल ग्राम कहकर पुकारे तो गुस्सा आना स्वाभाविक है कि नहीं।
 

Path Alias

/articles/mata-kahao-maujhae-nairamala-garaama

Post By: admin
×