संदर्भ: यूपी के लोगों के पलायन संबंधी राहुल गांधी का बयान
यूपी के लोगों के भीख मांगने महाराष्ट्र जाने संबंघी राहुल गांधी के बयान पर राजनेताओं ने खूब बयानबाजी की। विकास के नाम पर सुश्री मायावती ने भी प्रदेश के बंटवारे का सुर्रा छोडकर खूब प्रचार बटोरा। किंतु उन्हें हकीकत बताने की पुरजोर कोशिश किसी तरफ से नहीं हो रही। राहुल जी ने पूछा था- कब तक महाराष्ट्र में भीख मांगोगे? शायद वह भूल गये कि संसद में उन्होंने जिस कलावती की गरीबी का किस्सा सुनाकर गरीब-परवर होने का ताज हासिल किया था, वह यूपी की नहीं, बल्कि महाराष्ट्र के ही विदर्भ इलाके की थी।
बहरहाल लोग भीख मांगने नहीं, आर्थिक विकास के अपने सपने सच करने अथवा रोजगार के अवसर की तलाश में अपनी जड़ों से दूर जाते हैं। किसी ने कहा है कि शहरों में अवसर व पैसा उड़ता है। पकड़ने वाला चाहिए। मतलब कि बड़े शहरों में अवसर भी बड़े ही होते है; और फिर मुंबई तो आर्थिक राजधानी है। अमिताभ बच्चन इलाहाबाद या दिल्ली की गलियों से निकलकर मुंबई भीख मांगने नहीं गये। जाहिर है कि अपना जुनून पूरा करने ही गये होंगे। आज वह सदी के सुपरस्टार हैं।
मुझे याद है कि एक्सप्रेस वे के संभावित नुकसान संबंधी मसलों पर ज्ञापन देने गये जलबिरादरी के प्रतिनिधिमंडल से मायावती जी के एक बुंदेलखण्डवासी विशेष कार्याधिकारी ने कहा था- ’’मेरे बाप-दादा चमड़ा काटते थे। मैं आज इस कुर्सी पर हूं। लोग गांवों से पलायित होकर शहर नहीं जायेंगे, तो उनका विकास कैसे होगा ?’’ पलायन को जायज ठहराने वाला यह तर्क है अजीबोगरीब... कटु, किंतु जमीनी हकीकत के करीब हो सकता है। कह सकते हैं कि जरूरत अविष्कार की जननी होती है। जिसके सपने को सच करने का अवसर जहां होगा, लोग पलायन करते रहेंगे। हां! जब तक यूपी अपने प्रदेशवासियों की जिंदगी की न्यूनतम जरूरतें पूरा करने के अवसर देने लायक नहीं बना लेता; राहुल जी के सवाल के जवाब है कि तब तक लोग महाराष्ट्र्र या कहीं और जाते रहेंगे। हालांकि उन्हें यह प्रश्न पूछने का हक तब था, जब उन्होंने कम से कम अपने लोकसभा क्षेत्र - अमेठी को तो इस लायक बना ही दिया होता।
खैर! मैं पानी का कार्यकर्ता हूं। बता सकता हूं कि पानी का प्रकोप भी लोगों को अपनी जडों से उखाड़कर शहरों की सड़कों पर सोने पर मजबूर कर रहा है। देश ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है। ऐसे उदाहरण यूपी में भी खूब हैं। इतना ही नहीं मायावती जी तो उत्तर प्रदेश की गंगा -यमुना की जमीनों को बेचकर यूपी का पानी व खेती दोनों को तबाह करने पर लगी है। उन्होंने तो गंगनहर तक को नहीं छोडा। उनका प्रशासन गाजियाबाद में हिंडन के एक छोटे से टुकड़े तक को नदी के प्रवाह के लिए छोडने को राजी नहीं है। वह तो बसी-बसाई आबादी को उजाड़ने का काम कर रही हैं। लोगों के विकास के लिए मायावती जी की चिंता सिर्फ उनके निजी विकास तक ही सीमित मालूम होती है। नये प्रदेशों मे प्राकृतिक संसाधनों की जो लूट हुई है। उसे देखते हुए बंटवारे को फिलहाल चुनाव के अलावा प्राकृतिक संसाधनों की लूट का ही एजेंडा कहा जा सकता है। यह जानबूझकर उठाया मुद्दा है। सो, इस पर बहस बेकार है।
लेकिन देश के भावी प्रधानमंत्री कहे जा रहे राहुल गांधी जी को कौन बताये कि उत्तर प्रदेश के जाने कितने इलाकों के परिवार मुबंई में भीख मांगने नहीं, बल्कि मात्र पानी के प्रकोप के कारण गये हैं ? यदि पानी की मात्रा व गुणवत्ता का संकट न होता, तो महोबा, हमीरपुर, बांदा से लेकर आगरा, उन्नाव, प्रतापगढ., बलिया तक जाने कितने इलाके ऐसे हैं, जहां के कदम यूपी में ही रुक जाते। उत्तर प्रदेश में नित नये इलाके पानी की कमी की सूची में शामिल हो रहे हैं। जहां-जहां मायावती जी का एक्सप्रेस वे जा रहा है; ये सभी इलाके जल्द ही पानी की कमी की चपेट में होंगे। परिणामस्वरूप खेती पर भी ग्रहण लगेगा ही। लोग पलायित होकर कहीं तो जायेंगे ही!
गाजीपुर-बलिया गंगा का कटान बढ़ गया है। प्रदूषण के नये प्रभावित मानव, मवेशी, मिट्टी, वनस्पति, जलीय जीवों की संख्या अब आंकडों में बांधने की हद से बाहर है। पूरा पश्चिम उत्तर प्रदेश, कन्नौज से वाराणसी तक गंगा का किनारा, गोमती, सई से लेकर गोरखपुर की आमी नदी के किनारे तक प्रदूषण के शिकार हैं। खेती की कमाई अब उनकी बीमारी का इलाज कराने में सक्षम नहीं है। लोग या तो मरें या पलायन करें। पानी के इस प्रकोप में लोगों से ज्यादा केंद्र व राज्य की सरकार, नेता और अफसरों का योगदान है।पानी के प्रकोप के निदान के लिए प्रदेश के बंटवारे की मांग, नई पार्टी की सरकार का आह्वान या मेहनतकश न होने का ताना देने की नहीं, बल्कि पलायन के उचित कारणों की तलाश की जरूरत है।राहुल जी को कोई बताये कि यदि वह चाहते हैं कि यूपी वाले महाराष्ट्र जाने को मजबूर न हों, तो उन्हें चाहिए कि वह यूपी को पानीदार बनाने के काम में लगें। अपनी पार्टी के नीति निर्धारकों का कहें कि मुआवजा बढ़ाने वाली नीति बनाने की बजाय नदी, तालाब तथा अन्य सामुदायिक भूमि बचाने वाली नीति बनाने का काम करें। बाजार को गांवों तक सरकार की सड़कों ने पहुंचाया है। गांवों को विकास का शहरी सपना सरकारी व कारपोरेट विज्ञापनों ने दिखाया है। अब सपने दिखायें हैं, तो उसकी पूर्ति में सहयोगी भी सरकार व कारपोरेट सेक्टर बने।
गांवों में सिर्फ मनरेगा से रोजगार पाने वाले अकुशल मजदूर ही नहीं बसते। वहां कौशल की धनी आबादी भी बसती है। गांवों की पढ़ी-लिखी ऐसी लड़कियां भी काम की मांग कर रही हैं, जो फावड़ा नहीं चला सकतीं..जिनके मन कुछ कर गुजरने वाले अरमानों से भरे है। उनके अरमान पूरे करने का ढांचा उनके गांव में बनाइये। फिर वे बाहर क्यों जायेंगी?
अमेठी - रायबरेली की तरह स्टील, सीमेंट, उर्वरक, पेटो्रलियम, साईकिल, हवाई-जहाज, और रेलकोच की बजाय स्थानीय कौशल, उपज व जरूरतों के अनुरूप ग्रामोद्योग विकास का मॉडल बनाइये। इसके लिए राज्य की सरकार की प्रतीक्षा करने की जरूरत नहीं। मनरेगा और औद्योगिक नीति में ही बदलाव कर बहुत कुछ किया जा सकता है।
शुद्धि के नाम पर गंगा-यमुना में धन तो बहुत लगा दिया, अब कुछ धुन लगाइए। भारत सरकार के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सुधारिये कि वह ’’प्रदूषण नियंत्रण में है’’ का प्रमाण पत्र बांटने की बजाय प्रदूषकों को नियंत्रित करने के काम में लगे। रायबरेली शहर और वहां का औद्योगिक कचरा सई में जाने से रोक सकें, तो ही बड़ी शुरुआत हो जायेगी। उन्नाव में कांग्रेस की सांसद और विधायकों से कहें कि वे कभी फुर्सत निकाल कर अपने जिले के फ्लोरोसिस प्रभावित गांवों की दुर्दशा देख आयें। प्रतापगढ से आने वाले उनके नेता विपक्ष प्रमोद तिवारी तथा सांसद रत्ना सिंह प्रतापगढ़ के जिलाधिकारी एके. बरनवाल द्वारा इन गांवों की समस्या के निदान की बाबत आयुक्त-इलाहाबाद, निदेशक -पी जी आई., लखनऊ तथा सचिव-पर्यावरण विभाग को भेजे अनुरोध पर उचित कार्रवाई सुनिश्चित करायें। अमेठी में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, टिप्रलआईटी तथा स्वयं राहुल जी के ट्रस्ट द्वारा संचालित संजय गांधी मेमोरियल हॉस्पीटल के कचरे से त्रस्त उज्जयिनी नदी व इसके किनारे के लोगों को प्राणदान दें। वरना एक दिन ये भी परेशान होकर मुंबई, अहमदाबाद, दिल्ली चले जायेंगे। फिर उन पर आरोप लगाने का अधिकार न रहेगा।
राहुल जी, आप इसी साल एक बार अमेठी के लोगों को भी कह चुके हैं कि काम नहीं करना चाहतें। बेचारे आपके युवराज होने का लिहाज करते हैं। कुछ नहीं बोले। यदि आप इसी तरह बोलते रहे। किया कुछ नहीं, तो शायद यही लोग अगले चुनाव में कुछ बोल जायें। इसलिए पानी का काम करिये। खुद भी पानीदार होइए और यूपी को भी पानीदार बनाइए। विश्वास मानिये, तब न यूपी की जनता को और न यूपी के लिए आप जैसे प्रतिनिधियों को ’भीख मांगने’ बाहर जाने की जरूरत पड़ेगी।
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