मंच से खदेड़े गए अफसर

रामपुर बुशहर। सतलुज नदी पर प्रस्तावित 775 मेगावाट क्षमता की लूहरी परियोजना के लिए मंडी के परलोग गांव में आयोजित जन सुनवाई शनिवार को जन विरोध के चलते रद्द करनी पड़ी। जन सुनवाई में करीब 500 स्थानीय लोग परियोजना के विरोध में नारे लगाते हुए पहुंचे। महिलाओं ने अधिकारियों को मंच से उतरवा कर विरोध किया। इसके चलते, तीन घंटे की जद्दोजहद के बाद अधिकारियों को आखिर सुनवाई रद्द करनी ही पड़ी। हिमाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से आयोजित परियोजना के लिए यह तीसरी सुनवाई थी।

पिछले दिनों में लगातार दो जन सुनवाइयां शिमला के नीरथ और कुल्लू के खेग्सू गांवों में की गई थी। इस दौरान भी अधिकारियों को जनता के रोष का सामना करना पड़ा था। सतलुज जल विद्युत निगम की ओर से प्रस्तावित इस परियोजना के तहत सतलुज नदी पर लूहरी के नजदीक 86 मीटर ऊंचा बांध बनाकर नदी का जल 9 मीटर व्यास की दो सुरंगों के माध्यम से 40 किलोमीटर दूर पावर हाउस में गिराया जाना है।

पर्यावरण एवं ग्रामीण विकास संस्था से जुड़े कई नेताओं का मानना है कि जब एक ओर सभी परियोजनाओं के लिए यह आकलन की प्रक्रिया जारी है तो लूहरी जैसी अकेली परियोजनाओं के लिए जन सुनवाई का कोई तर्क नहीं है। इस अवसर पर सतलुज बचाओ अभियान के समन्वयक अतुल शर्मा और देव बड़योगी संघर्ष समिति के अध्यक्ष गंगा राम ने इस बारे में अपने विचार रखे।

 

 

सतलुज का वजूद नहीं मिटने देंगे


हिमालय नीति अभियान समिति के समन्वयक गुमान सिंह ने कहा है कि सतलुज का वजूद मिटने नहीं देंगे इसके लिए हिमालय नीति सतलुज बचाओ अभियान चलाएंगे। उन्होंने कहा कि परियोजना को लेकर इन दिनों जन सुनवाई चल रही है। सुनवाई के लिए न तो जनता को सूचना दी गई और न ही पूर्ण पर्यावरण प्रभाव अंकेक्षण रिपोर्ट उपलब्ध की गई। ग्राम पंचायत प्रधानों को ही केवल पर्यावरण प्रभाव अंकेक्षण की एडजेक्टिव समरी दी गई, इसमें भी अपूर्ण जानकारी थी।

 

 

 

 

सुरंगों में बहेगी नदी


परियोजना में सतलुज का 38,138 किमी. हिस्सा सुरंग में और 6.8 किमी. हिस्सा जलाशय में होगा जबकि 40 किमी. नदी तट सूख जाएगा। गुमान सिंह ने बताया कि लूहरी जल विद्युत परियोजना की सुनवाई स्थगित की जाएं और सुनवाई के लिए जनता को पूरी जानकारी दी जाएं। शुक्ला कमेटी को अमल में लाई जाएं। भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई को रोका जाएं, तमाम मंजूरी के बाद ही कार्य शुरू किया जाएं।

 

 

 

 

ग्राम सभा की मंजूरी जरूरी


वन अधिकार अधिनियम, 2006 के चलते किसी भी प्रोजेक्ट के लिए वन भूमि के हस्तांतरण से पहले ग्राम सभाओं की अनुमति की आवश्यकता होती है। तुंदल गांव के संजय ने कहा, इस कानून को हमारे इलाके में लागू करने से पहले सरकार का लूहरी परियोजना के बारे में सोचना उसकी जन विरोधी नीतियों का प्रमाण है। लोगों ने इतनी भारी संख्या में उपस्थित हो कर अपना रोष प्रकट किया।

 

 

 

 

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