निर्मल भारत अभियान की कमान अब स्वयं महिलाओं को अपने हाथ में ले लेनी चाहिये। भारत के प्रत्येक गांव को निर्मल गांव बनाना महिलाओं के हाथ लगाये बगैर असंभव है, क्योंकि यह हमारे मर्यादा का सवाल है। सरकार के इस अभियान को समाज में मान-प्रतिष्ठा से जोड़ा जाना चाहिए। केन्द्रीय ग्रामीण मंत्री ने महिलाओं से हरियाणा में इस समय पॉपुलर हुए उस संकल्प को अपनाने की अपील की जिसमें वहां की बेटियों के लिये धक्काड़े के साथ कहा जा रहा है कि ‘शौचालय नहीं तो दुल्हन नहीं।’ सांगोद (कोटा)। महिलाएं, निर्मल गांव और जयराम रमेश, क्या इन तीनों में कोई साम्यता हो सकती है। यदि केंद्रीय ग्रामीण एवं पेयजल मंत्री जयराम रमेश की सुने तो, हां। इतना ही नहीं इस त्रिकोणमिती में तो उनको चमत्कार का भी दीदार हो रहा है। पहले इन्दौर में उन्होंने पत्रकारों से कहा था कि पानी के बिना निर्मल गांव बनाना असंभव है। लेकिन भारत निर्मल यात्रा के कोटा राजस्थान पहुंचने पर जब ग्रामीण मंत्री ने मंच के सामने महिलाओं की अपार भीड़ देखी तो उनके स्वर बदल गए।अति उत्साह से लबरेज उन्होंने कहा कि महिलाओं के सहयोग के बिना निर्मल गांवों की हम कल्पना ही नहीं कर सकते। 8,40,000 आशा बहनें और 25 लाख स्वयं सहायता समूहों से जुड़कर काम कर रहीं तीन करोड़ महिलाओं का आकड़ा प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा कि यह सभी निर्मल भारत का सपना साकार कर सकती हैं। वह देश भर की महिला पंचायत प्रतिनिधियों से भी उम्मीद लगाए बैठे हैं।
इसके पहले राजस्थान सरकार के एक मंत्री महेन्द्र सिंह मालवीय ने मसखरी के अंदाज में ही सही किन्तु एक ऐसे अभियान का जिक्र कर डाला, जिसमें निर्मल भारत अभियान की सफलता का भविष्य छुपा हुआ था। उन्होंने कहा कि जब इन्दिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं तो बेतहासा बढ़ती देश की जनसंख्या एक बहुत बड़ी समस्या थी, जिसे नियंत्रित करने के लिये इन्दिरा जी ने पुरुष नसबंदी शुरू की थी। लेकिन मजे की बात देखिये जब नसबंदी के लिये गाड़ी आती तो महिलायें पुरुषों को घरों के भीतर छुपा दिया करती थीं। बाद में समय ने करवट बदला और एक या दो बच्चे के बाद यही महिलायें नसबंदी कराने के लिये पुरुषों से लड़ने लगीं। इसके बाद नसबंदी इतनी सफल हुई कि किसी बड़े जन-जागरूकता अभियान की जरूरत ही नहीं पड़ी। ऐसे ही एक दिन निर्मल भारत अभियान सफल होगा और पूरा भारत खुले में शौच मुक्त होगा, स्वच्छ होगा, सुन्दर होगा।
केन्द्रीय मंत्री जयराम के इस त्रिकोणात्मक गठजोड़ से गांवों को अब स्वच्छ, निर्मल बनाने के लिये पानी और महिला दोनों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई लगती है। वैसे भी पानी और महिलाओं में एक बात तो कामन है ही। वह यह कि दोनों का संबंध मर्यादा से है, रहीमदास भी यही कहते हैं कि ‘पानी गए न उबरे मोती मानस चून।’ मध्य प्रदेश सरकार ने तो बाकायदे इसका नाम ही मर्यादा अभियान रख दिया है। जयराम रमेश ने तो यहां तक कहा कि महिलाएं यदि खुले में शौच जाती हैं तो यह हम सबके लिये शर्म की बात होनी चाहिए। इसलिए निर्मल भारत अभियान की कमान अब स्वयं महिलाओं को अपने हाथ में ले लेनी चाहिये। भारत के प्रत्येक गांव को निर्मल गांव बनाना महिलाओं के हाथ लगाये बगैर असंभव है, क्योंकि यह हमारे मर्यादा का सवाल है। सरकार के इस अभियान को समाज में मान-प्रतिष्ठा से जोड़ा जाना चाहिए।
केन्द्रीय ग्रामीण मंत्री ने महिलाओं से हरियाणा में इस समय पापुलर हुए उस संकल्प को अपनाने की अपील की जिसमें वहां की बेटियों के लिये धक्काड़े के साथ कहा जा रहा है कि ‘शौचालय नहीं तो दुल्हन नहीं।’ उन्होंने बैतूल जिले की अनीता नारे का भी जिक्र किया, कहा कि जैसे ससुराल में शौचालय न होने पर अनीता मायके लौट आयी थी और दुबारा तब गई जब शौचालय बन गया, उसी तरह अब हमारे बहू-बेटियों को भी फैसला करना होगा। इन संकल्पों से उम्मीद जगी है और यही सच्चाई भी है कि बिना महिलाओं के योगदान के निर्मल भारत अभियान को हम सफल नहीं बना सकते।
श्री रमेश ने आगे कहा कि आज देश बड़ी तेजी के साथ तरक्की कर रहा है। आर्थिक प्रभुत्वशालियों में हम पूरी दुनिया-अमेरीका, चीन के बाद तीसरे नम्बर पर हैं। आज भारत में ज्यादतर महिलाओं के हाथ में मोबाइल फोन है, लेकिन बात जब साफ-सफाई और शौचालय की आती है तो फिर पूरी दुनिया के सामने हमें सिर झुकाना पड़ता है, जो कि यह बात ठीक नहीं है। समूचे भारत में कार्यरत करीब 8,40,000 आशा बहनों और 25 लाख स्वयं सहायता समूहों से जुड़कर काम कर रहीं तीन करोड़ महिलाओं के सहारे उन्होंने कहा कि अब यही सब मिलकर भारत को खुले में शौचमुक्त बनायेंगी।
इन आंकड़ों को गिनाते समय केन्द्रीय ग्रामीण मंत्री के चेहरे पर आशा की किरणें थीं और वह मंच के सामने हजारों की संख्या में उपस्थित महिलाओं की तरफ इशारा कर मानों बार-बार संकेत दे रहे थे- अब इन आशाओं से ही कुछ आशा है। उन्होंने यहां तक कहा कि यदि महिलायें इसे अपना संकल्प बना लें तो वह इस अभियान को हर हाल में सफल बना के छोड़ेंगे। दो घंटे के इस कार्यक्रम में महिलाएं, निर्मल गांव और जयराम रमेश छाये रहे।
लेखक इंडिया वाटर पोर्टल के फेलो हैं
इसके पहले राजस्थान सरकार के एक मंत्री महेन्द्र सिंह मालवीय ने मसखरी के अंदाज में ही सही किन्तु एक ऐसे अभियान का जिक्र कर डाला, जिसमें निर्मल भारत अभियान की सफलता का भविष्य छुपा हुआ था। उन्होंने कहा कि जब इन्दिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं तो बेतहासा बढ़ती देश की जनसंख्या एक बहुत बड़ी समस्या थी, जिसे नियंत्रित करने के लिये इन्दिरा जी ने पुरुष नसबंदी शुरू की थी। लेकिन मजे की बात देखिये जब नसबंदी के लिये गाड़ी आती तो महिलायें पुरुषों को घरों के भीतर छुपा दिया करती थीं। बाद में समय ने करवट बदला और एक या दो बच्चे के बाद यही महिलायें नसबंदी कराने के लिये पुरुषों से लड़ने लगीं। इसके बाद नसबंदी इतनी सफल हुई कि किसी बड़े जन-जागरूकता अभियान की जरूरत ही नहीं पड़ी। ऐसे ही एक दिन निर्मल भारत अभियान सफल होगा और पूरा भारत खुले में शौच मुक्त होगा, स्वच्छ होगा, सुन्दर होगा।
केन्द्रीय मंत्री जयराम के इस त्रिकोणात्मक गठजोड़ से गांवों को अब स्वच्छ, निर्मल बनाने के लिये पानी और महिला दोनों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई लगती है। वैसे भी पानी और महिलाओं में एक बात तो कामन है ही। वह यह कि दोनों का संबंध मर्यादा से है, रहीमदास भी यही कहते हैं कि ‘पानी गए न उबरे मोती मानस चून।’ मध्य प्रदेश सरकार ने तो बाकायदे इसका नाम ही मर्यादा अभियान रख दिया है। जयराम रमेश ने तो यहां तक कहा कि महिलाएं यदि खुले में शौच जाती हैं तो यह हम सबके लिये शर्म की बात होनी चाहिए। इसलिए निर्मल भारत अभियान की कमान अब स्वयं महिलाओं को अपने हाथ में ले लेनी चाहिये। भारत के प्रत्येक गांव को निर्मल गांव बनाना महिलाओं के हाथ लगाये बगैर असंभव है, क्योंकि यह हमारे मर्यादा का सवाल है। सरकार के इस अभियान को समाज में मान-प्रतिष्ठा से जोड़ा जाना चाहिए।
केन्द्रीय ग्रामीण मंत्री ने महिलाओं से हरियाणा में इस समय पापुलर हुए उस संकल्प को अपनाने की अपील की जिसमें वहां की बेटियों के लिये धक्काड़े के साथ कहा जा रहा है कि ‘शौचालय नहीं तो दुल्हन नहीं।’ उन्होंने बैतूल जिले की अनीता नारे का भी जिक्र किया, कहा कि जैसे ससुराल में शौचालय न होने पर अनीता मायके लौट आयी थी और दुबारा तब गई जब शौचालय बन गया, उसी तरह अब हमारे बहू-बेटियों को भी फैसला करना होगा। इन संकल्पों से उम्मीद जगी है और यही सच्चाई भी है कि बिना महिलाओं के योगदान के निर्मल भारत अभियान को हम सफल नहीं बना सकते।
श्री रमेश ने आगे कहा कि आज देश बड़ी तेजी के साथ तरक्की कर रहा है। आर्थिक प्रभुत्वशालियों में हम पूरी दुनिया-अमेरीका, चीन के बाद तीसरे नम्बर पर हैं। आज भारत में ज्यादतर महिलाओं के हाथ में मोबाइल फोन है, लेकिन बात जब साफ-सफाई और शौचालय की आती है तो फिर पूरी दुनिया के सामने हमें सिर झुकाना पड़ता है, जो कि यह बात ठीक नहीं है। समूचे भारत में कार्यरत करीब 8,40,000 आशा बहनों और 25 लाख स्वयं सहायता समूहों से जुड़कर काम कर रहीं तीन करोड़ महिलाओं के सहारे उन्होंने कहा कि अब यही सब मिलकर भारत को खुले में शौचमुक्त बनायेंगी।
इन आंकड़ों को गिनाते समय केन्द्रीय ग्रामीण मंत्री के चेहरे पर आशा की किरणें थीं और वह मंच के सामने हजारों की संख्या में उपस्थित महिलाओं की तरफ इशारा कर मानों बार-बार संकेत दे रहे थे- अब इन आशाओं से ही कुछ आशा है। उन्होंने यहां तक कहा कि यदि महिलायें इसे अपना संकल्प बना लें तो वह इस अभियान को हर हाल में सफल बना के छोड़ेंगे। दो घंटे के इस कार्यक्रम में महिलाएं, निर्मल गांव और जयराम रमेश छाये रहे।
लेखक इंडिया वाटर पोर्टल के फेलो हैं
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