भारत में महासीर की तकरीबन सात प्रजातियाँ पायी जाती हैं जो देश के अलग-अलग हिस्सों में उपलब्ध हैं। इन सभी प्रजातियों को वैज्ञानिकों ने उनके शारीरिक बनावट एवं संरचना के आधार पर वर्गीकृत किया है। किन्तु निरंतर पर्यावरणीय परिवर्तनों के वजह से इनके शारीरिक बनावट एवं संरचना में कुछ बदलाव आया है जिसके कारण ठीक प्रकार से इनकी पहचान एवं उसके फलस्वरूप पारिस्थितिकी सन्तुलन हेतु इनका संरक्षण करना कठिन होता जा रहा है।
आनुवंशिक स्तर पर महासीर की प्रजातियों को पहचानने के लिये गुणसूत्रों के आकार एवं सूत्र का प्रयोग किया जाता है। किन्तु सभी प्रजातियों में गुणसूत्रों की संख्या (2N) 100 पायी जाती हैं। अन्य कोशिका आनुवंशिक चिन्हकों में Ag-NOR और CMA3 चिन्हक प्रयोग किए जाते रहे हैं। लेकिन इन चिन्हकों की अपनी मर्यादाएं हैं। इसके फलस्वरूप अभी भी कई प्रजातियों के आनुवंशिक चरित्र निर्धारण में अनिश्चितता बरकरार है।
आजकल जैव-विज्ञानियों ने राइबोसोमल जीन अनुक्रमों में पायी जाने वाली भिन्नता का उपयोग आनुवंशिक चरित्र निर्धारण हेतु किया जा रहा है। राइबोसोमल जीन से 18S, 5.8S, 28S, आई.टी.एस. एवं ई.टी.एस. अनुक्रम ट्रान्सक्राइब्ड होते हैं तथा एन.टी.एस. अनुक्रम ट्रान्सक्राइब्ड नहीं होते हैं। इन अनुक्रमों में प्रजाति एवं जीव विशेष भिन्नता पायी जाती है जिनका इस्तेमाल मत्स्य की कई प्रजातियों/स्टॉक को पहचानने में किया गया है। इसी प्रकार राइबोसोमल जीन अनुक्रमों का उपयोग महासीर प्रजातियों के आनुवंशिक चरित्र-चित्रण में उपयोग किया जा सकता है।
वैज्ञानिकों द्वारा संस्थान में चल रही परियोजना में इन अनुक्रमों में पायी जाने वाली भिन्नता पर कार्य किया है। यह अनुक्रमों को पी.सी.आर. द्वारा अधिक मात्रा में बनाने के लिये, विभिन्न प्राइमर का इस्तेमाल किया और यह पाया गया कि अलग-अलग प्रजातियों में इनके आकार में भिन्नता है। इन अनुक्रमों को प्रोब के तौर पर विकसित करके वर्णसंकरी (फ्लोरोसेन्स इन सीटू हाब्ररीडाइजेशन) तकनीक द्वारा इन्हें गुणसूत्रों पर दर्शाने का कार्य हो रहा है जिससे महासीर की प्रजातियों का सही और अचूक तरीके से आनुवंशिक चरित्र निर्धारण किया जा सके।
लेखक परिचय
रविन्द्र कुमार, एन.एस. नागपुरे, बासदेव कुशवाहा, पूनम जयंत सिंह, एस.के. श्रीवास्तव एवं वजीर एस. लाकडा
राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, कैनाल रिंग रोड, पो.-दिलकुशा, लखनऊ
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