मौत के मुंह से बचे फौजी अफसर ने बदली एक गांव की तकदीर

कर्नल डीके पिल्लई (दाएं से दूसरे) लांगदाईपबरम में
कर्नल डीके पिल्लई (दाएं से दूसरे) लांगदाईपबरम में
कर्नल डीके पिल्लई (दाएं से दूसरे) लांगदाईपबरम मेंमणिपुर के दूरदराज और दुर्गम गांव लांगदाईपबरम में पिछले हफ्ते जब जनता को आत्मावलंबी बनाने वाली एक परियोजना का उद्घाटन किया गया तो इसमें सेना के एक अधिकारी और गांव के बीच एक नए बंधन की नजीर पेश की। यह गांव राज्य के सबसे समस्याग्रस्त गांवों में है। अठारह साल पहले भारतीय सेना के युवा कैप्टन डीपीके पिल्लई लांगदाईपबरम में बागियों के खिलाफ एक फौजी दबिश के दौरान बुरी तरह घायल हो गए थे। यह 1994 की बात है। पहले राज्य से हटाए जाने के बाद सेना ने अभी यहा दोबारा प्रवेश ही किया था। उग्रवादी संगठन एनएससीएन-आईएम ने राज्य पर अपनी पकड़ बना ली थी। तमांगलांग जिला भी ऐसे ही इलाकों में था।

इसी दौरान लांगदाईपबरम इलाके से आतंकवादियों को निकालने के अभियान के दौरान पिल्लई को छह गोलियां मारी गईं। हथगोले के हमले में उनका एक पैर उड़ गया। उन्हें विमान से ले जाने की तैयारी थी। लेकिन उन्होंने यहां रुकने का फैसला किया। अपनी जगह उन्होंने उन दो बच्चों को विमान से ले जाने के लिए जोर दिया जो गोलाबारी में फंस गए थे। इसके बाद मौत के मुंह से बचे कैप्टन को इलाज के लिए लंबे समय तक अस्पताल में रहना पड़ा। लेकिन लांगदाईपबरम कभी भी जांबाज फौजी पिल्लई की जीदारी और सद्भावना को बिसरा नहीं सका। पिल्लई अब कर्नल हैं। वे कहते हैं, ‘कई सालों बाद इस इलाके में मेरे एक मित्र की तैनाती थी। वह जानता था कि यहां मुठभेड़ के दौरान मैं जख्मी हो गया था। उसने लांगदाईपबरम का दौरा भी किया। यहां के लोगों को मैं याद था। मार्च, 2010 में मैं यहां लोगों से मिलने के लिए आया। यह उस हादसे के बाद मेरा पहला दौरा था।’

इसके बाद पिल्लई ने इस क्षेत्र का कई बार दौरा किया। यहां के हालात देखकर पिल्लई ने उस गांव की तकदीर बदलने का फैसला कर लिया, जहां उन्होंने मौत की आहट सुनी थी। पिल्लई ने गांव वालों का जीवन बदलने के लिए दो परियोजनाएं शुरू करने में मदद की। अगले माह रक्षा राज्य मंत्री पलाम राजू इस गांव का दौरा करेंगे और इन परियोजनाओं का मुआयना करेंगे। इन परियोजनाओं में एक राष्ट्रीय बांस मिशन के सहयोग से शुरू की गई है। इसके तहत ग्रामीणों को मशीनें दी जाएंगी जो बांस उत्पादों को बनाने में सहायक सिद्ध होंगी। एक अन्य परियोजना के तहत ग्रामीणों को एक सहकारी संस्था बनाने में मदद दी गई है, ताकि वे सामूहिक रूप से संतरा वृक्षारोपण कर सकें।

गांव के मुखिया अतोउनबो पेनमे का कहना है कि ये परियोजना लोगों के लिए वरदान की तरह हैं। घने जंगलों-पहाड़ों के बीच बसे यहां के लोगों को जीविका के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ती है। बहरहाल यहां के लोगों की समस्याओं और विकट हालात पर अफसोस जताते हुए पिल्लई कहते हैं कि अगर मेरा जैसा इंसान भी ऐसे हालात में रह रहा होता, तो बगावत का रास्ता अपना लेता। अमन-चैन के लिए यहां सक्रिय प्रक्रिया की दरकार है।

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