मैंग्रोव वन विभिन्न प्रकार के जीवों और वनस्पतियों के लिए अद्वितीय पारिस्थितिक पर्यावरण उपलब्ध कराते हैं । यह आवास स्थल वैश्विक कार्बन चक्र में अहम् योगदान देते हैं। बहुत से जीव मैंग्रोव का विविध प्रकार से उपयोग करते हैं, चाहे वहा जीवन के कुछ भाग में हो। उष्णकटिबन्धीय तटों पर जैव विविधता को बनाये रखने में मैंग्रोव क्षेत्रों का महत्वपूर्ण योगदान है। मैंग्रोव पौधों की पत्तियां टूटी शाखाएं, बीज तथा फल विभिन्न प्रकार के जीवों के लिये भोजन उपलब्ध कराते हैं। ये क्षेत्र मूंगे की चट्टानों में तथा उनके आस-पास रहने वाले जीवों के छोटे बच्चों के लिये आदर्श शरणस्थल उपलब्ध कराते हैं। मैंग्रोव पौधें की आपस में गुंथी हुई जल मग्न जड़े अनेक प्रकार की मछलियों, झींगे, पपड़ी वाले जीवों तथा कछुओं के लिये परभक्षियों से सुरक्षित आश्रय तथा प्रजनन स्थल का कार्य करती हैं।
मैंग्रोव वन, अन्य ज्वारीय दलदली क्षेत्रों की तरह पोषक तत्वों जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, भारी धातुओं तथा सूक्ष्म तत्वों जो स्थलीय क्षेत्रों से नदियों के साथ बहाकर लाये जाते हैं, के भंडारण स्थल के रूप में भी कार्य करते हैं। सड़ती-गलती वनस्पतियों तथा अन्य जीव-जन्तुओं से निकलने वाले तत्वों जैसे कार्बन, फास्फोरस तथा अन्य तत्वों के पुनः चक्रण में मैंग्रोव वनों का महत्वपूर्ण योगदान है। ज्वार-भाटे के साथ ये तत्व समुद्र में ले जाये जाते हैं जहां अन्य प्राणियों द्वारा इनका उपयोग होता है।
मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र में प्राथमिक मुख्य उत्पादन वृक्षों द्वारा होता है। पेड़ से टूट कर गिरने वाले भागों को करकट पात (लिटर फाल) कहते हैं जिसमें मुख्यतः पत्ते, तने, जड़ें, फूल तथा फल होते हैं। इसका अधिकतर भाग लिटर फाल के रूप में पानी में गिरता है। पेड़ों से गिरने वाले कुछ कार्बनिक पदार्थ का 25 प्रतिशत भाग केवल ऐविसेनिया जर्मिनियस तथा राइजोफोरा प्रजाति के बीजों के रूप में होता है। गर्मियों की ऋतु में पत्तियों का गिरना अधिकतम होता है। यह एक विशेष प्रक्रिया है जिसके द्वारा पौधे गर्मियों में होने वाले वाष्पोत्सर्जन को कम करते हैं। भारी पतझड़ तथा बाद में वर्षा ऋतु में ताजे पानी की उपलब्धता के कारण पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है।
वृक्षों से गिरने वाली पत्तियों, शाखाओं आदि का जीवाणुओं द्वारा अपघटन होता है। इस प्रक्रिया में पोषक तत्व निकलते हैं जो आस-पास के पानी को उपजाऊ बनाते हैं। अपघटित कार्बनिक पदार्थ तथा जीवाणु जैवद्रव्यमान (बायोमास) को संयुक्त रूप से अपरद (डेट्रिटस) में परिवर्तित करते हैं, यह मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र में पैदा होने वाला यह एक मुख्य उत्पाद है। इसमें प्रोटीन का स्तर अधिक होता है और यह जीव-जन्तुओं की एक बड़ी संख्या के लिए भोजन प्रदान करता है जो पानी में से इस अपरद को छान कर अलग कर लेते हैं। इस अपरद को खाने वाली छोटी मछलियों का शिकार बड़ी मांसभक्षी मछलियों द्वारा किया जाता है। मैंग्रोव वनों द्वारा उत्पन्न पोषक तत्व अन्य कोमल पारिस्थितिकी तंत्रों जैसे प्रवाल भित्तियों, समुद्री शैवालों तथा समुद्री घास आदि को पोषण उपलब्ध कराते हैं।
वर्षा ऋतु के दौरान अधिक शुद्धजल और अधिक करकट पात के परिणामस्वरूप पोषक तत्वों की आपूर्ति बढ़ जाती है। करकट पात के अपघटन से अपरद बनता है। अपरद पर सूक्ष्मजीवों की क्रिया से छोटे झींगो और मछलियों के लिए पोषक तत्व बढ़ जाते हैं। पेड़ से गिरने वाली पत्तियों में जीवाणुओं की गतिविधियों के कारण अनेक जीवों जैसे मछलियांे तथा झीगों के लिये भोजन की व्यवस्था होती है। किसी मैंग्रोव क्षेत्र में इस रूप में प्राप्त होने वाले कार्बनिक पदार्थ की मात्रा स्थानीय पारिस्थितियों, वहां पायी जाने वाली प्रजातियों तथा प्रत्येक क्षेत्र की उत्पादकता पर निर्भर करती है।
किसी मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र में प्राथमिक उत्पादन मुख्यतः फूलों वाले पौधों तथा समुद्री शैवालों द्वारा होता है। जन्तु प्लवक (जू प्लेन्कटोन्स) द्वितीय उत्पादक के रूप में कार्य करते हैं। जीवाणु तथा शैवाल अपघटकों के रूप में कार्य करते हैं। एक सटीक क्रमबद्ध शृंखला के रूप में ऊर्जा का प्रवाह (उत्पादक से अपघटक तक) होता है। पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का संतुलित आदान-प्रदान ही उस पारिस्थितिकी तंत्र को स्थिरता प्रदान करता है।
मैंग्रोव वनों में पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं इसलिये इन क्षेत्रों में अनेक प्रकार के छोटे जीव जैसे मोलस्क, झींगे, चपटे कृमि, सूत्र कृमि तथा अट कृमि बहुतायत में पाये जाते हैं। इन क्षेत्रों में सड़ते-गलते कार्बनिक पदार्थों की अधिकता के कारण मृतोपजीवी मछलियों, केकड़ो तथा घोघों आदि की कई प्रजातियां पायी जाती हैं। एक अनुमान के अनुसार भारतीय समुद्री तटों पर पायी जाने वाली मछलियों के भोजन का 60 प्रतिशत भाग मैंग्रोव वनों से प्राप्त होता है।
मैंग्रोव वन अनेक जीवों के लिये भोजन उपलब्ध कराते हैं, ये पोषक तत्वों का प्रभावी पुनः चक्रण करते हैं तथा पारिस्थितिकी तंत्र को स्थिरता प्रदान करते हैं और संतुलन बनाये रखते हैं। ये धरती तथा समुद्र के बीच बफर (प्रतिरोधक) क्षेत्र की तरह कार्य करते हैं। मैंग्रोव वन पानी से तलछट तथा प्रदूषक तत्वों को अलग कर मूंगे की वृद्धि के लिये आवश्यक वातावरण निर्मित करते हैं। यदि मैंग्रोव नहीं होते तो मूंगे की चट्टानें आज की अपेक्षा और अधिक कठिन परिस्थितियों में होती। तटीय क्षेत्रों में मृदा क्षरण को रोक कर मैंग्रोव वन प्रतिवर्ष लाखों डालर की बचत करते हैं।
मैंग्रोव वन, अन्य ज्वारीय दलदली क्षेत्रों की तरह पोषक तत्वों जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, भारी धातुओं तथा सूक्ष्म तत्वों जो स्थलीय क्षेत्रों से नदियों के साथ बहाकर लाये जाते हैं, के भंडारण स्थल के रूप में भी कार्य करते हैं। सड़ती-गलती वनस्पतियों तथा अन्य जीव-जन्तुओं से निकलने वाले तत्वों जैसे कार्बन, फास्फोरस तथा अन्य तत्वों के पुनः चक्रण में मैंग्रोव वनों का महत्वपूर्ण योगदान है। ज्वार-भाटे के साथ ये तत्व समुद्र में ले जाये जाते हैं जहां अन्य प्राणियों द्वारा इनका उपयोग होता है।
मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र में प्राथमिक मुख्य उत्पादन वृक्षों द्वारा होता है। पेड़ से टूट कर गिरने वाले भागों को करकट पात (लिटर फाल) कहते हैं जिसमें मुख्यतः पत्ते, तने, जड़ें, फूल तथा फल होते हैं। इसका अधिकतर भाग लिटर फाल के रूप में पानी में गिरता है। पेड़ों से गिरने वाले कुछ कार्बनिक पदार्थ का 25 प्रतिशत भाग केवल ऐविसेनिया जर्मिनियस तथा राइजोफोरा प्रजाति के बीजों के रूप में होता है। गर्मियों की ऋतु में पत्तियों का गिरना अधिकतम होता है। यह एक विशेष प्रक्रिया है जिसके द्वारा पौधे गर्मियों में होने वाले वाष्पोत्सर्जन को कम करते हैं। भारी पतझड़ तथा बाद में वर्षा ऋतु में ताजे पानी की उपलब्धता के कारण पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है।
वृक्षों से गिरने वाली पत्तियों, शाखाओं आदि का जीवाणुओं द्वारा अपघटन होता है। इस प्रक्रिया में पोषक तत्व निकलते हैं जो आस-पास के पानी को उपजाऊ बनाते हैं। अपघटित कार्बनिक पदार्थ तथा जीवाणु जैवद्रव्यमान (बायोमास) को संयुक्त रूप से अपरद (डेट्रिटस) में परिवर्तित करते हैं, यह मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र में पैदा होने वाला यह एक मुख्य उत्पाद है। इसमें प्रोटीन का स्तर अधिक होता है और यह जीव-जन्तुओं की एक बड़ी संख्या के लिए भोजन प्रदान करता है जो पानी में से इस अपरद को छान कर अलग कर लेते हैं। इस अपरद को खाने वाली छोटी मछलियों का शिकार बड़ी मांसभक्षी मछलियों द्वारा किया जाता है। मैंग्रोव वनों द्वारा उत्पन्न पोषक तत्व अन्य कोमल पारिस्थितिकी तंत्रों जैसे प्रवाल भित्तियों, समुद्री शैवालों तथा समुद्री घास आदि को पोषण उपलब्ध कराते हैं।
वर्षा ऋतु के दौरान अधिक शुद्धजल और अधिक करकट पात के परिणामस्वरूप पोषक तत्वों की आपूर्ति बढ़ जाती है। करकट पात के अपघटन से अपरद बनता है। अपरद पर सूक्ष्मजीवों की क्रिया से छोटे झींगो और मछलियों के लिए पोषक तत्व बढ़ जाते हैं। पेड़ से गिरने वाली पत्तियों में जीवाणुओं की गतिविधियों के कारण अनेक जीवों जैसे मछलियांे तथा झीगों के लिये भोजन की व्यवस्था होती है। किसी मैंग्रोव क्षेत्र में इस रूप में प्राप्त होने वाले कार्बनिक पदार्थ की मात्रा स्थानीय पारिस्थितियों, वहां पायी जाने वाली प्रजातियों तथा प्रत्येक क्षेत्र की उत्पादकता पर निर्भर करती है।
मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र में भोजन चक्र
किसी मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र में प्राथमिक उत्पादन मुख्यतः फूलों वाले पौधों तथा समुद्री शैवालों द्वारा होता है। जन्तु प्लवक (जू प्लेन्कटोन्स) द्वितीय उत्पादक के रूप में कार्य करते हैं। जीवाणु तथा शैवाल अपघटकों के रूप में कार्य करते हैं। एक सटीक क्रमबद्ध शृंखला के रूप में ऊर्जा का प्रवाह (उत्पादक से अपघटक तक) होता है। पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का संतुलित आदान-प्रदान ही उस पारिस्थितिकी तंत्र को स्थिरता प्रदान करता है।
मैंग्रोव वनों में पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं इसलिये इन क्षेत्रों में अनेक प्रकार के छोटे जीव जैसे मोलस्क, झींगे, चपटे कृमि, सूत्र कृमि तथा अट कृमि बहुतायत में पाये जाते हैं। इन क्षेत्रों में सड़ते-गलते कार्बनिक पदार्थों की अधिकता के कारण मृतोपजीवी मछलियों, केकड़ो तथा घोघों आदि की कई प्रजातियां पायी जाती हैं। एक अनुमान के अनुसार भारतीय समुद्री तटों पर पायी जाने वाली मछलियों के भोजन का 60 प्रतिशत भाग मैंग्रोव वनों से प्राप्त होता है।
मैंग्रोव वन अनेक जीवों के लिये भोजन उपलब्ध कराते हैं, ये पोषक तत्वों का प्रभावी पुनः चक्रण करते हैं तथा पारिस्थितिकी तंत्र को स्थिरता प्रदान करते हैं और संतुलन बनाये रखते हैं। ये धरती तथा समुद्र के बीच बफर (प्रतिरोधक) क्षेत्र की तरह कार्य करते हैं। मैंग्रोव वन पानी से तलछट तथा प्रदूषक तत्वों को अलग कर मूंगे की वृद्धि के लिये आवश्यक वातावरण निर्मित करते हैं। यदि मैंग्रोव नहीं होते तो मूंगे की चट्टानें आज की अपेक्षा और अधिक कठिन परिस्थितियों में होती। तटीय क्षेत्रों में मृदा क्षरण को रोक कर मैंग्रोव वन प्रतिवर्ष लाखों डालर की बचत करते हैं।
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