लूट मची है सरयू नहर परियोजना के निर्माण में

अधूरी पड़ी नहर की पटरियों की मिट्टी तक अवैध रूप से बेची जा रही है। पटरियों के दोनों ओर लगाए गए पेड़ों को वन माफियाओं और ईंट भट्ठा संचालकों के हाथों बेचा जा रहा है। परियोजना से जुड़े कर्मियों ने इसे लूट खसोट का जरिया बना लिया है।

बहराइच, 1 मई (जनसत्ता)। भारत नेपाल सीमावर्ती बहराइच जनपद में प्रवाहित सरयू नदी पर बहुद्देशीय सरयू नहर परियोजना का निर्माण लागत से बीस गुना ज्यादा रकम खर्च करने के बाद भी अधूरा ही है। सिंचाई विभाग के अधिकारियों के लिए तो यह परियोजना कामधेनु बन गई है लेकिन प्रभावित जिलों के किसानों के लिए स्थायी मुसीबत से कम नहीं है। योजना के तहत घाघरा, सरयू और ताप्ती नदियों के पानी से बहराइच सहित श्रावस्ती, सिद्धार्थ नगर, गोंडा, बलरामपुर, बस्ती, संत कबीर नगर और गोरखपुर जिलों के करीब बारह लाख हेक्टेयर खेतों की सिंचाई होनी थी।

लगभग तीस साल पहले तत्कालीन कांग्रेस सरकार की पहल पर‘सरयू नहर परियोजना’ ने साकार मूर्त रूप लेना शुरू किया था। योजना के तहत लगभग 9200 किलोमीटर नहर का निर्माण होना था। इसके अलावा संवर्धन नलकूप योजना में 100 (सौ) नलकूपों के निर्माण का लक्ष्य रखा गया था लेकिन तीस साल पूरे होने के बाद भी लक्ष्य के विपरीत बहराइच जिले में ही उद्गम स्थल गिरिजा बैराज के निकट अतिरिक्त रेगूलेटर का निर्माण अधूरा पड़ा है। सरयू वैराज अप्लेक्स बांध का निर्माण नहीं हो सका है। राप्ती योजक नहर के पास दो अदद गैप्स एक साइफन का निर्माण अधूरा पड़ा है। राप्ती मुख्य नहर क्षमता बिस्तार अधूरा पड़ा है। इमामगंज शाखा-कैडा की इकाई व गुल का निर्माण अधूरा है। जिले में संवर्धन नलकूप गुलों का निर्माण कार्य भी अधूरा पड़ा है। जबकि परियोजना को पूरा करने के लिए सभी सरकारों ने बजट मुहैय्या कराया है और योजना बनाते समय अनुमानित लागत से बीस गुना ज्यादा धनराशि व्यय की जा चुकी है और अभी भारी भरकम धनराशि की दरकार विभाग को बनी हुई है।

विभागीय जानकारों का कहना है कि सरयू नहर परियोजना में गिरिजा बैराज पर सरयू योजक नहर में परियोजना का स्कोप बढ़ने के फलस्वरूप 435 क्यूमेक्स क्षमता की हेड रेगूलेटर की जरूरत पड़ रही है इसलिए इस परियोजना में 240 क्यूमेक्स क्षमता के लिए एक अतिरिक्त रेगूलेटर का निर्माण प्रस्तावित किया गया है। सरयू योजक नहर द्वारा घाघरा नदी का पानी सरयू नदी में डालने का प्रस्ताव लंबित चल रहा है। गोपिया गांव के पास सरयू नदी पर बैराज तथा एक इनलैट व एक आउटलेट रेगुलेटर का प्रस्ताव निर्माण भी प्रस्तावित है। बैराज के दोनों तटों पर आप्लेक्स बांध का निर्माण अधूरा पड़ा है। 95 क्यूमेक्स क्षमता की 21.40 किमी. लंबी राप्ती योजक नहर का निर्माण कार्य पूर्ण कर लिया गया है लेकिन गैप्स तथा साइफन निर्माण कार्य अधूरा पड़ा है। लगभग 150 किमी लंबे राप्ती मुख्य नहर के तीसरे चरण का कार्य अधूरा पड़ा है। जनपद के इमामगंज शाखा में कुल 531.80 किमी में वितरण का लक्ष्य था अब तक महज 485 किमी. में ही वितरण पूरा हो पा रहा है। जनपद में तमाम इकाइयों के मूल का निर्माण कार्य भी अभी अधूरा पड़ा है।

राप्ती व घाघरा के पानी को टेल तक पहुंचाने के लिए 9205 किमी. नहर बनाई गई हैं लेकिन जिले में सिंचाई धेला भर क्षेत्रफल में नहीं हो पा रही है। तीस सालों में कुल छत्तीस सौ नलकूप लगाने व नौ हजार किलोमीटर कुलावों का निर्माण कार्य भी पूरा हो चुका है लेकिन जिले के किसानों के लिए यह महज सफेद हाथी भर है। खंड-खंड में बनी सरयू नहर परियोजना की नहरें कहीं सड़कों के कारण अलग-थलग हैं तो कहीं रेल पटरियां व्यवधान बनी हुई हैं। विभागीय सूत्रों का कहना है कि जिले में बीस फीसद काम अधूरा पड़ा है जिसके लिए भारी भरकम धनराशि की जरूरत है।

‘सरयू नहर परियोजना’ जनपद के किसानों के लिए महज छलावा साबित हुई हैं। जिले में खेतों की बेहतर सिंचाई व्यवस्था के लिए सालों से संघर्ष कर रहे जिला पंचायत सदस्य भोलानाथ गिरि व सरदार गुरुनाम सिंह बताते हैं कि परियोजना में पलीता लगाने के लिए सिंचाई विभाग से जुड़े कर्मचारी व अधिकारी रात दिन एक किए हुए हैं। अधूरी पड़ी नहर की पटरियों की मिट्टी तक अवैध रूप से बेची जा रही है। पटरियों के दोनों ओर लगाए गए पेड़ों को वन माफियाओं और ईंट भट्ठा संचालकों के हाथों बेचा जा रहा है। परियोजना से जुड़े कर्मियों ने इसे लूट खसोट का जरिया बना लिया है। नानपारा कैम्प कार्यालय व भंडार घर के टीन शेडों तक को बेचा जा चुका है। कालोनियों को अवैध तरीकों से अवांछनीय तत्वों को किराए पर दिए गए हैं। जबकि बहुउद्देशीय सरयू नहर परियोजना की खुदाई से जिले के हजारों किसान भूमिहीन हो चुके हैं। ऐसे में सफेद हाथी बने नहर की सार्थकता एवं उपयोगिता पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया है। यहां के किसानों में परियोजना को लेकर खासी निराशा है।

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