अधिक ऊंचाई पर स्थित भारतीय झीलों के सर्वेक्षण से यह स्पष्ट होता है कि ये झीलें भी प्रदूषण की चपेट में आ गयी हैं। इन झीलों के आवाह क्षेत्र में अधिक से अधिक भूमि को कृषि योग्य बनाने से मिट्टी का कटान काफी बढ़ गया है जिसके फलस्वरूप झीलों में गाद जमाव की गति तीव्र हो गई है। इन झीलों में पानी आवाह क्षेत्र से बहकर पहले झील में आता है तथा अपने द्वारा लाया गाद झील में जमाकर नदी या झीलों के आस-पास के छोटे नालियों में जाते हैं। इसके फलस्वरुप झील में यूट्रोफीकेसन की प्रक्रिया और तेज हो जाती है। झील से अधिक से अधिक मछली पकड़ने की होड़ ने उस क्षेत्र के पर्यावरण को असंतुलित कर दिया है। झीलों के चारों तरफ शहरीकरण औद्योगिकरण भी बढ़ता जा रहा है जिससे झील में आने वाले नगर के कचरे तथा औद्योगिक मल झील में प्रदूषण को बढ़ाते जा रहा है। इन सभी कारणों से झील भरता जा रहा है तथा दिनों-दिन झील का आकार घटता जा रहा है। इसके पहले कि ये सभी झील दलदल भूमि में बदलकर अपनी मृत्यु को प्राप्त कर लें, सरकारी तथा गैर सरकारी संगठन, व्यवसायिक एवं स्थानीय समुदाय को एकजुट होकर झील को प्रदूषण से बचाने के कदम उठाने चाहिए।
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