लोक स्मृति से प्रकट होती सरस्वती

जब ऐतिहासिक साक्ष्यों की समीक्षा राजनीतिक विचारधारा के आधार पर होती है तो भ्रामक स्थिति पैदा हो जाती है। सरस्वती नदी की खोज को लेकर यही होता रहा है। पिछले दिनों हरियाणा के मुगलवाली गाँव में सरस्वती नदी की धारा के प्रकट होने की खबर आई तो एक बार फिर बहस जिन्दा हो गई है। यहाँ मुगलवाली गाँव और सरस्वती नदी का उद्गम स्थल माने जाने वाले आदिबद्री से लौटकर आये ब्रजेश कुमार की रिपोर्ट।

इन दिनों मुगलवाली के साथ-साथ निकटवर्ती गाँवों में कौतुहल का वातावरण है। गाँव के लोग भजन-कीर्तन और भण्डारा आयोजित कर रहे हैं। केवल मुगलवाली गाँव के लोग भक्ति-भाव से ओत-प्रोत नहीं है, बल्कि यमुनानगर जिले में जिस किसी से पूछ लीजिए, वही यह बताने को लालायित है कि उनके जिले में सरस्वती नदी की धारा प्रकट हुई है। अब वे इस रहस्य को भी जानने के लिये आतुर हैं कि आखिर इस स्थान का नाम यमुनानगर कैसे पड़ा? मुगलवाली गाँव की कुछ दिन पहले तक कोई पहचान नहीं थी। आज हरियाणा का यह गाँव दुनिया भर के लोगों की जिज्ञासा का केन्द्र बना हुआ है। स्थानीय लोग बताते हैं, “लोगों का एक जत्था गया नहीं कि दूसरा पहुँच जाता है।” वजह एक ही है। जिस सरस्वती नदी के अस्तित्व को खारिज कर दिया गया था, वह यहाँ प्रकट हो गई है।

खुदाई स्थल पर रूलदा खान से मुलाकात हुई तो उन्होंने ठेठ हरियाणवी में जो कहा, उसका आशय था- “इन दिनों मुगलवाली की पूछ बढ़ गई है।” अपनी बात को स्पष्ट करते हुए रूलदा आगे कहते हैं, “हमारी उम्र 48 साल है। हमें याद नहीं कि कभी कोई मन्त्री या अफसर इतनी मर्तबा इलाके में आया हो। अब देखो, हर दिन कोई-न-कोई आ-जा रहा है।” बीते 28 जून की बात है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर स्वयं मुगलवाली आए। यहाँ उन्होंने कई घोषणाएँ भी कीं।

खैर, आदिबद्री से मुगलवाली की दूरी करीब सात किलोमीटर है। आदिबद्री ही वह स्थान है, जहाँ सरस्वती नदी की पतली धारा पहाड़ी से उतरती है। फिर यहीं सरस्वती कुंड में लुप्त हो जाती है। बीते पाँच मई की बात है, वह धारा सात किमी दूर मुगलवाली में अवतरित हुई है। स्थानीय लोगों का यही विश्वास है। भारतीय पुरातत्व विभाग के अधिकारी और भू-वैज्ञानिक भी यही दावा कर रहे हैं। इससे हरियाणा का मुगलवाली गाँव सुर्खियों में न आता, इसका सवाल ही नहीं था।

लोक-स्मृति में जीवित सरस्वती की धारा को देखने हर पीढ़ी के लोग आ-जा रहे हैं। यह बताना भी उचित होगा कि यमुनानगर जिले के बिलासपुर खण्ड होती हुई एक पतली सड़क आदिबद्री की तरफ जाती है। बिलासपुर से 12 किलोमीटर आगे कच्ची सड़क पर आते ही लिखा दिखाई देता है- ‘माँ सरस्वती मार्ग।’ उसके ठीक नीचे तीर के निशान बने हैं। उस निशान को देख-समझकर कोई भी वहाँ पहुँच सकता है, जहाँ सरस्वती नदी की धारा प्रकट हुई है। यह मुगलवाली गाँव का मुहाना है और जहाँ खुदाई हो रही है, वह गाँव की जमीन है। खुदाई स्थल पर ही रूलदा से मुलाकात हुई। साथ बैठे एक बुजुर्ग ने कहा, “हमारे पुरखे जिन बातों को कह गए हैं, आज गाँव के लोग वही दृश्य प्रत्यक्ष देख रहे हैं।”इन दिनों खुदाई स्थल पर आने वालों को सरस्वती नदी के जल का आचमन कराना रूलदा की दिनचर्या में शामिल है। हालांकि, यहाँ वे अकेले नहीं हैं, बल्कि कई और लोग हैं। उन सभी को यह बात पसन्द नहीं है कि सरस्वती नदी के जल को पानी बोलकर सम्बोधित किया जाए। कोई ऐसा करे तो वे टोकते हैं। विनम्रता के साथ अपनी आपत्ति दर्ज कराते दिखाई देते हैं। इनकी बातों को देख-सुनकर कोई भी समझ जाएगा कि सरस्वती नदी का सवाल गाँव के लोगों की आस्था से गहरे जुड़ा हुआ है।

यह दावा किया जा रहा है कि खुदाई के दौरान पानी का जो अंश ऊपर आया है, दरअसल वह सरस्वती नदी की जलधारा है। रूलदा खान ने बताया कि नीली बजरी और चमकदार रेत वाला वह पानी हू-ब-हू नदियों में बहने वाले पानी की तरह दिख रहा है। खुदाई के महीने भर बाद यथावत टीम मौके पर पहुँची तो कई खड्डे बालू से भर गए थे। हालांकि, दो-तीन खड्डे ऐसे थे, जहाँ पानी साफ दिखाई दे रहा था और श्रद्धा भाव से लोग उसका आचमन कर रहे थे।

स्थानीय लोगों ने बताया कि एक दिन पहले ही भारतीय पुरातत्व विभाग की एक टीम मुगलवाली और रूलाहेड़ी गाँव में खुदाई स्थल का निरीक्षण करने आई थी। निरीक्षण के बाद पुरातत्व विभाग ने यह स्वीकार किया है कि इन स्थलों पर ज़मीन से निकले पानी में हिमालय के पत्थर मिले हैं। इस आधार पर इन गाँवों में निकले पानी को हिमालय का पानी माना जा रहा है। इससे भी सरस्वती नदी होने की धारणा प्रबल हुई है।

इन दिनों मुगलवाली के साथ-साथ निकटवर्ती गाँवों में कौतुहल का वातावरण है। गाँव के लोग भजन-कीर्तन और भण्डारा आयोजित कर रहे हैं। केवल मुगलवाली गाँव के लोग भक्ति-भाव से ओत-प्रोत नहीं है, बल्कि यमुनानगर जिले में जिस किसी से पूछ लीजिए, वही यह बताने को लालायित है कि उनके जिले में सरस्वती नदी की धारा प्रकट हुई है। अब वे इस रहस्य को भी जानने के लिये आतुर हैं कि आखिर इस स्थान का नाम यमुनानगर कैसे पड़ा?

हालांकि वे इस बात को दुर्भाग्यपूर्ण मानते हैं कि कांग्रेस नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (सप्रंग) सरकार ने 11 साल पहले संसद में जानकारी दी थी कि इस बात का कोई मूर्त प्रमाण नहीं है कि सरस्वती नदी का कभी अस्तित्व था। पर आज परिस्थिति भिन्न है, जो तथ्य सामने आए हैं, उससे लोगों की आस्था पक्की हुई है। जिला मुख्यालय यमुनानगर से मुगलवाली की दूरी करीब 32 किलोमीटर है।

जिले के बिलासपुर खण्ड के कार्यक्रम अधिकारी दिलावर सिंह ने बताया, “अब तक बिलासपुर खण्ड के 24 गाँवों में खुदाई हुई है।” सिंह ने बातचीत के दौरान एक महत्त्वपूर्ण जानकारी दी। उन्होंने बताया कि खुदाई के दौरान 14 स्थलों से पानी होने के स्पष्ट प्रमाण तो मिले हैं, लेकिन 10 स्थान ऐसे भी हैं, जहाँ पानी का अंश नहीं मिला है। वे मानते हैं कि यह शोध का विषय है कि 14 स्थल एक दूसरे से कैसे जुड़े हैं।

वहीं सेवा भारती के इतिहास संकलन समिति से जुड़ी रही स्वाति कहती हैं, “स्थान के अनुसार नदी अपनी प्रकृति बदल लेती है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कुछ स्थानों पर पानी के अंश नहीं मिले हैं। इस बात की अधिक सम्भावना है कि थोड़ी गहराई पर या फिर उसके आस-पास नदी धारा के अंश मिल जाएँ।” खुदाई स्थल का निरीक्षण करते हुए उन्होंने कहा, “अभी महत्त्वपूर्ण बात यही है कि सरस्वती नदी का अस्तित्त्व था और यहाँ उसके प्रमाण ढूँढ लिये गए हैं।”

वहीं कुरुक्षेत्र से आई ज्ञान देवी से मुलाकात हुई तो उन्होंने सवालिया अन्दाज में कहा, “आखिर खेती की जमीन पर इतनी पतली-पतली बलुई मिट्टी की परतें कैसे पड़ सकती हैं? मेरी समझ यही कहती है कि इसका निर्माण नदी धारा से ही सम्भव है। वैसे भी जो लोग हमारे वैदिक साहित्य को खारिज करने पर तुले हैं, वे अपनी जिद पर हैं।

वहाँ तथ्य और तर्क का कोई स्थान नहीं है।”
इस बीच अम्बाला से आये सोनू धिमान भी बोल पड़े। उन्होंने कहा, “यहाँ जिन पत्थरों को आप देख रहे हैं, वे हिमालयी पत्थर हैं। दो या तीन फसल देने वाली जमीन पर नहीं मिलते। निश्चय ही पहाड़ से कोई धारा निकलकर यहाँ आई है। तभी ये पत्थर यहाँ जमीन के नीचे दिख रहे हैं।” धिमान ने कहा, “किताबों में हमलोगों ने सरस्वती नदी के बारे में पढ़ा है। अखबार से मालूम हुआ कि नदी दिख रही है तो हमलोग आ गए।” एकबारगी यह देखकर आश्चर्य हुआ कि खुदाई स्थल से लौटते वक्त उनमें से कोई जल लेकर जाना नहीं भूल रहे थे। स्थानीय निवासी महिंदर सिंह ने बताया, “अब तक सैकड़ों लोग यहाँ से जल लेकर जा चुके हैं। इसके बावजूद कुंड में जल कम नहीं हुआ है। पहले दिन जितना था, अब भी उतना ही है।”

पौराणिक कथाओं का हवाला देकर अब तक कहा जाता रहा है कि सरस्वती नदी करीब चार हजार साल पहले विलुप्त हो गई थी। पर 5 मई, 2015 को जो हुआ, वह आश्चर्यजनक घटना थी। स्थानीय लोगों के अनुसार उस दिन मुगलवाली में मनरेगा के तहत करीब 80 मजदूर सरस्वती नदी की खुदाई के काम में जुटे थे। तभी इसकी एक धारा प्रकट हो गई। यह खबर आग की तरह फैल गई।

उस दिन को याद करते हुए छलोड़ गाँव के निवासी महिंदर कहते हैं, “दोपहर का वक्त था, सलमा और खलील अहमद एक ही जगह फावड़ा चला रहे थे। इसी बीच सरस्वती की धारा निकल आई।” मुगलवाली के सरपंच सोमनाथ आगे बताते हैं, “अचानक खुदाई स्थल पर शोर मचा, जिसके बाद कई मजदूर वहाँ इकट्ठा हो गए और सभी मिलकर खुदाई करने लगे। सात-आठ फुट नीचे आते-आते पानी की पूरी धारा निकल आई।” वे आगे कहते हैं, “इसके बाद मजदूरों ने जहाँ-जहाँ गहरी खुदाई की वहाँ-वहाँ सरस्वती की धारा निकल आई। इसकी सूचना मिलने पर जिले के बड़े अफ़सर तो आये ही। मुगलवाली में लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई। सभी खुदाई के दौरान निकले जल को देखने को आतुर थे।” सोमनाथ एक साँस में पूरी कहानी बता देना चाह रहे थे। उन्होंने आगे कहा कि इसके बाद तो श्रमदान के लिये लोगों का ताँता लग गया। इनमें स्कूली छात्रों ने भी हिस्सा लिया। ‘जानकी विद्या मन्दिर’ के छात्रों ने एक दिन मुझसे कहा कि सरस्वती ज्ञान की देवी है, इसलिये वे भी श्रमदान करना चाहते हैं। इसके बाद वे श्रमदान करने आए और एक कुंड बनाया।

फिलहाल गाँव के लोगों ने पक्की ईटों के सहारे जल-कुंड को घेर दिया है, ताकि तेज आँधी में उसे भरने से रोका जा सके। स्थानीय लोग बताते हैं कि रात में गाँव की महिलाएँ कुंड के जल से स्नान करने आती हैं और पूजा-पाठ में इस जल का उपयोग करती हैं। रविवार को यहाँ भण्डारा भी लगता है। मुगलवाली के सरपंच ने इन बातों को सही बताया। हालांकि, छलोड़ गाँव की एक वृद्ध महिला की चिन्ता दूसरी है। वे जो कथा सुनाती हैं, वह दिलचस्प है। उन्होंने कहा, “महाभारत काल में यहाँ बहुत अन्याय हुआ रहा, इसलिये माता नाराज होकर चली गई। अब जब पुण्य का काम होगा, तब प्रकट होंगी।” तो क्या हरियाणा में कलियुग समाप्त होने वाला है?

खैर, जितने लोग उतनी बातें। लेकिन पूरे बिलासपुर खण्ड में घूमते समय जो जानकारी मिली, उसके अनुसार करीब सात किलोमीटर लम्बे क्षेत्र में पाँच फुट गहरी और दस फुट चौड़ी खुदाई हुई है। खुदाई स्थल को देखकर ऐसा मालूम होता है कि किसी नहर की खुदाई हो रही है। वैसे, जिस ज़मीन पर खुदाई हुई है, सरकारी दस्तावेज में उसकी पहचान ‘सरस्वती नदी क्षेत्र’ की है। आखिर किस आधार पर इसे सरस्वती नदी क्षेत्र घोषित किया गया?

इस सवाल का जवाब खंड के अधिकारी तो नहीं दे पाए। हाँ, गाँव के लोग अपने-अपने तरीके से देते हैं, लेकिन उसका जमा अर्थ यही है कि पहले यहाँ सरस्वती नदी बहती थी, जिसमें उनके पुरखे स्नान करते थे। नदी सूख गई तो उसकी पहचान सरस्वती क्षेत्र के रूप में हो गई।

मुगलवाली से आदिबद्री की ओर बढ़ने पर रूलाहेड़ी गाँव आता है। यहाँ एक शिलालेख लगा है। उस पर तारीखें दर्ज हैं, 21 अप्रैल 2015। शिलालेख के अनुसार इसी तारीख के मनरेगा तहत सरस्वती नदी की खुदाई का काम शुरू हुआ है। इससे यह जानकारी भी मिली कि खुदाई के लिये अनुमानित लागत 6,41,285 रुपए रखी गई है। वैसे रूलाहेड़ी के सरपंच रमेश चंद्र बताते हैं, “यह सच है कि महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना के तहत खुदाई हुई, लेकिन खुदाई के तत्काल बाद मजदूरों को उनकी मजदूरी नहीं मिली।” मुगलवाली गाँव के सरपंच सोमनाथ ने भी इस बात की पुष्टि की। वे कहते हैं, “माँ सरस्वती तो आ गईं, लेकिन लक्ष्मी माता को आने में देरी हुई।” वहीं खण्ड के एक अधिकारी ने बताया कि भुगतान की एक प्रक्रिया है, उसमें थोड़ी देरी जरूर हुई है, लेकिन अब मजदूरी का पूरा भुगतान किया जा चुका है। कुछेक मजदूरों से बात हुई तो पता चला कि खण्ड के अधिकारी सही बता रहे हैं।

सरस्वती नदी शोध संस्थान के अध्यक्ष दर्शन लाल जैन कहते हैं, “लगातार इसके प्रमाण मिल रहे हैं कि सरस्वती नदी की धारा आदिबद्री से निकलकर इसी रास्ते आगे जाती थी। अभी बिलापुर खण्ड में खुदाई का काम चल रहा है। जिले के सरस्वती खण्ड (मुस्तफाबाद खण्ड) में खुदाई का काम होना है। इसके बाद और भी साक्ष्य सामने आएँगे।” उन्होंने कहा कि सरस्वती नदी परियोजना को आदिबद्री से लेकर पिहोवा तक विकसित किया जाये, ताकि इस क्षेत्र में सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा मिले। मुख्यमंत्री ने इसकी घोषणा की है। वहीं दर्शन लाल जैन ने कहा, “हमारा लक्ष्य सरस्वती की धारा को एक बार फिर पुनर्जीवित करना है।”

आदिबद्री के एक किलोमीटर ऊपर शिवालिक की पहाड़ी पर आदि केदारनाथ का मन्दिर है। इस मन्दिर के प्रधान पुजारी राजेश्वर शास्त्री कहते हैं, “धार्मिक दृष्टि से इस क्षेत्र का पौराणिक महत्त्व है, लेकिन अब तक इसके पौराणिक महत्त्व को नहीं समझा गया। यहाँ आवा-जाही के अच्छे साधन नहीं हैं। लोगों के ठहरने की भी व्यवस्था नहीं है।” वैसे राजेश्वर शास्त्री निराश नही हैं। वे कहते हैं, “समय आने पर रास्ते अपने-आप खुलते जाते हैं। सरस्वती नदी का प्रकट होना शुभ संकेत है।” मुगलवाली से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर सोम नदी बहती है। हालांकि, इन दिनों वह सूखी हुई है।

स्थानीय लोगों के बीच इसकी पहचान बरसाती नदी की है। कुछ लोगों का तर्क है कि नदी क्षेत्र से घिरे होने के कारण ही मुगलवाली में सात-आठ फुट की गहराई पर पानी निकल आया है। हालांकि, बारीकी से देखने पर साफ हो जाता है कि सोम नदी की प्रकृति भिन्न है। वह बारहमासी नदी नहीं है, जिससे भू-जल स्तर ऊपर बना रहे। वहीं दर्शन लाल जैन दावा करते हैं कि आदीबद्री सरस्वती और सोम का संगम स्थल रहा है।

बहरहाल, खुदाई का काम अभी रुका हुआ है। अब तक मनरेगा के तहत मजदूरों से खुदाई कराई जा रही थी। आगे की खुदाई का काम सिंचाई विभाग से करवाने की बात कही जा रही है। मुगलवाली के सरपंच बताते हैं कि अभी तीन फुट की खुदाई और होनी है, लेकिन वह काम शुरू नहीं हुआ है। दूसरी तरफ खट्टर सरकार का दावा है कि सरस्वती नदी परियोजना को सिरे चढ़ाने के लिये ‘हरियाणा सरस्वती हैरिटेज विकास बोर्ड’ का गठन करने का निर्णय लिया जा चुका है। बोर्ड के गठन के बाद इस प्रोजेक्ट पर काम और तेजी से होगा।

राज्य सरकार की सक्रियता देखकर सरस्वती शोध संस्थान से जुड़े लोगों की उम्मीदें बढ़ी हैं। उनका कहना है कि पूर्व केन्द्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री जगमोहन ने भी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन (राजग) सरकार में सरस्वती नदी के प्रवाह मार्ग की खुदाई और सिन्धु-सरस्वती सभ्यता के अनुसन्धान की महत्त्वपूर्ण परियोजना शुरू की थी, लेकिन संप्रग सरकार के इसे भाजपा का एजेंडा बताकर परियोजना को विराम दे दिया था। इस बार किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकेगा या फिर सरस्वती विचारधारा की राजनीतिक आँच पर तपती रहेगी?

सरस्वती को लेकर यहाँ कई कथाएँ हैं- सोमनाथ


क्या आपको इस बात का अन्दाजा था कि मुगलवाली में अब भी सरस्वती नदी की भू-जल धारा का अस्तित्व है?

ईमानदारी से कहूँ तो इसका अन्दाजा तो बिल्कुल भी नहीं था। लेकिन ऐसी कई लोक मान्यताएँ हैं, जिसे यहाँ सभी मानते आए हैं। मैं भी मानता हूँ कि यहाँ सरस्वती नदी बहती थी और उसका अंश अब भी मौजूद है। अब देखो, खुदाई हुई तो बात सही निकली।

आपने लोक मान्यताओं की बात की। सरस्वती नदी को लेकर कैसी मान्यताएँ हैं? इस बारे में कुछ बताएँगे?

यहाँ व्यक्ति का स्वर्गवास हो जाता है तो उसके पार्थिव शरीर को लेकर लोग गंगाजी नहीं जाते हैं। यह मान्यता है कि यहाँ सरस्वती के अंश हैं और वह गंगा से कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। इसलिये शव का यहीं दाह-संस्कार करते हैं। इस भूमि को उतनी ही पवित्र और शुभ मानते हैं, जितनी हरिद्वार की भूमि को मानते हैं।

जिस जमीन पर खुदाई हुई है, वह खेतिहर जमीन है। जो लोग इस जमीन पर खेती कर रहे थे, क्या उन्होंने खुदाई का विरोध नहीं किया?

नहीं जी, किसी ने खुदाई का विरोध नहीं किया। वैसे भी जहाँ-जहाँ खुदाई हुई है, वह सरस्वती नदी की ही ज़मीन है। सरकारी खाते में यही नाम दर्ज है। यह किसी की निजी सम्पत्ति नहीं है। हाँ, जो लोग इस ज़मीन पर थोड़ी-बहुत खेती करते थे, उन्हें जब बताया गया कि सरस्वती नदी की खुदाई होनी है तो वे बगैर किसी विरोध के तैयार हो गए। वैसे भी, इस विषय पर हमलोगों ने गाँव में एक पंचायत की थी। उस पंचायत में सभी ने खुदाई के पक्ष में अपना मत दिया। ज्यादातर पंचायतों में यही हुआ। कहीं किसी ने विरोध नहीं किया।

कुछ लोगों का कहना है कि इतनी खुदाई पर कहीं भी पानी निकल सकता है?

भाई साहब, हमलोग किसान हैं। बेशक आदमी को न पहचान पाएँ, जमीन पहचान लेते हैं। आप खुद बताएँ कि सात-आठ फुट पर पानी कहाँ निकल सकता है? अगर ऐसा होता तो कहीं पानी की दिक्कत नहीं होती। मेरी मानो तो वह नदी तल हो तभी सात-आठ फुट पर पानी निकलेगा। यह मई-जून का महीना है। इस वक्त पानी का स्तर और घट जाता है। यहाँ से थोड़ी दूरी पर सोम बहती है। वह सूखी हुई है और यहाँ पानी निकल आया। आखिर कोई वजह तो होगी।

आगे की योजना के बारे में बताएँ। क्या आप लोगों ने सरकार से कोई माँग की है?

हम चाहते हैं कि सरकार इस क्षेत्र का विकास करे। यहाँ के लोग अब तक अपनी मेहनत से गुजर-बसर करते आए हैं। सरकार की तरफ से कोई विकास कार्य नहीं हुआ है। अब सरस्वती नदी के होने का साफ-साफ प्रमाण मिल गया है। सरकार इस क्षेत्र को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करे। खुदाई का काम पूरा हो।

गाँव के लोगों की इच्छा है कि जहाँ सबसे पहले सरस्वती की जलधारा निकली है, वहाँ पौड़ी का निर्माण कराया जाए। गाँव की महिलाएँ यहाँ आकर स्नान करती हैं। पूजा-पाठ करती हैं। उन्हें कोई परेशानी न हो, इसके लिये एक मन्दिर का निर्माण कराया जाए। अब देखें सरकार क्या करती है! लेकिन, एक बात समझ लो कि यह भूमि पहले भी हमारे लिये पवित्र थी। अब भी पवित्र है।

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