ऋषिकेश पौराणिक ‘केदारखंड’ का भाग है। ये प्रसिद्ध संत रिहाना ऋषि का निवास स्थान भी था। ऋषि ने यहीं गंगा किनारे भगवान विष्णु की तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने इसी स्थान पर रिहाना ऋषि को दर्शन दिए थे। तभी से इस स्थान का नाम ‘ऋषिकेश’ पड़ा। 1960 के दशक में बीटल्स ऋषिकेश में योग करने के लिए आया था। जिसके बाद से अध्यात्म और योग की तलाश में हजारों विदेशी यहां खींचे चले आते हैं और धीरे-धीरे फिर ऋषिकेश को विश्व की योग राजधानी के रूप से भी जाना जाने लगा। चारधाम यात्रा का मुख्य पड़ाव/मार्ग भी ऋषिकेश ही है। प्रकृति की गोद में राफ्टिंग जैसे सहासिक पर्यटन के लिए भी ऋषिकेश आकर्षण का केंद्र है। जिस कारण हर साल यहां पर्यटकों की संख्या में इजाफा हो रहा है। देश विदेश से आकर ऋषिकेश में बसने वाले लोगों व योगियों से यहां की आबादी में भी भारी इजाफा हुआ है, जो कि अभी भी निरंतर जारी है। इससे प्राकृतिक परिवेश में बसे ऋषिकेश में वाहनों और उद्योगों का संख्या काफी बढ़ने से वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की हाल में आयी एक रिपोर्ट के अनुसार ऋषिकेश में पीएम-10 (पार्टिकुलेट मैटर) 140 पहुंच गया है, जो कि पिछले पांच सालों से लगातार बढ़ रहा है।
हर व्यक्ति सुविधायुक्त होने के लिए पब्लिक वाहन का उपयोग करने के बजाये अपने निजी वाहन खरीदने लगा। नतीजतन ऋषिकेश एआरटीओ में जनवरी वर्ष 2000 से एक जुलाई 2019 तक 1 लाख 23 हजार 289 वाहन पंजीकृत कराए गए, जिनमें 31 हजार 186 तीन पहिया, चोपहिया और भारी वाहन आदि हैं, जबकि 92 हजार 103 दोपहिया वाहन हैं। हर साल ऋषिकेश में 16 हजार से अधिक वाहन पंजीकृत होते हैं, साथ ही देश भर से आने वाले पर्यटकों के लाखों वाहनों से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि योग के माध्यम से लोगों को स्वस्थ रहने का मार्ग दिखाने वाला ऋषिकेश आज किस स्थिति में है
हर साल चारधाम यात्रा पर दस लाख से अधिक श्रद्धालु जाते हैं। चारधाम यात्रा का मुख्य पड़ाव होने के कारण चारधाम जाने वाले सभी वाहन ऋषिकेश से होकर ही जाते हैं। जिससे यहां की सड़कों पर रोजाना वाहनों का दबाव अधिक होने से जाम लगता है। वहीं वीकेंड पर भीषण गर्मी से राहत पाने और दो पल सुकून से जीने के लिए दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और यूपी के अन्य शहरों से भारी संख्या में पर्यटक यहां आते हैं, जो दो दिन ऋषिकेश में ही रुकते हैं। हालाकि ऋषिकेश में पर्यटकों की संख्या बढ़ने से लोगों के लिए आय के साधन विकसित हुए हैं और लगभग सभी के पास कुछ न कुछ रोजगार है, लेकिन वाहनों का दबाव बढ़ने से प्रदूषण में भी वृद्धि हुई है। बढ़ती आबादी को छत मुहैया कराने कि लिए पहाड़ों को तोड़ा गया और बड़े स्तर पर पेड़ों को कटा गया। जिससे ऋषिकेश का शीतल वातावरण आग की भट्टी में तब्दील होता जा रहा है। विकास के नाम पर आईडीपीएल और हिंदुस्तान नेशनल ग्लास इंटस्ट्री जैसे उद्योगों और कईं ईंट की भट्टियों को खोला गया। हर व्यक्ति सुविधायुक्त होने के लिए पब्लिक वाहन का उपयोग करने के बजाये अपने निजी वाहन खरीदने लगा। नतीजतन ऋषिकेश एआरटीओ में जनवरी वर्ष 2000 से एक जुलाई 2019 तक 1 लाख 23 हजार 289 वाहन पंजीकृत कराए गए, जिनमें 31 हजार 186 तीन पहिया, चोपहिया और भारी वाहन आदि हैं, जबकि 92 हजार 103 दोपहिया वाहन हैं। हर साल ऋषिकेश में 16 हजार से अधिक वाहन पंजीकृत होते हैं, साथ ही देश भर से आने वाले पर्यटकों के लाखों वाहनों से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि योग के माध्यम से लोगों को स्वस्थ रहने का मार्ग दिखाने वाला ऋषिकेश आज किस स्थिति में है, लेकिन पर्यटन से आए बढ़ाते-बढ़ाते सरकार ने पर्यावरण को नजर अंदाज कर दिया, जिस कारण ऋषिकेश में पीएम-10 (पार्टिकुलेट मैटर) निर्धारित मानक (100) से बढ़कर 140 पहुंच गया है, जिससे ऋषिकेश वासियों को विभिन्न प्रकार की बीमारियां होने का खतरा बना हुआ है। हालाकि पीसीबी ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार को रिपोर्ट के साथ कई सिफारिशें भेजी हैं। जिसमें डीजल की जगह सीएनजी वाहनों को चलाने, लकड़ी या कोयले पर आधारित कोई भी उद्योग न संचालित न करने, नए उद्योगों को इजाजत न देने, कूड़े को न जलाने, रोजाना कूड़ा उठाने, रेत बजरी जैसी निर्माण सामग्री ढक कर रखने और वाहनों के प्रदूषण की नियमित चेकिंग करने की सिफारिश की है। मुख्य पर्यावरण अधिकारी एसएस पाल का कहना है कि ऋषिकेश में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। जो चिंताजनक है। वाहनों का धुआं इसका मुख्य कारण है, क्योंकि ये चारधाम का मुख्य मार्ग है। इसके रोकने के लिए एक्शन प्लान तैयार किया है। जिस पर केंद्र की मंजूरी से काम होना है।
ऑक्सीजन की मात्रा को कम करता है पीएम-10
पीएम-10 एक तरह से पार्टिकल पाॅल्यूशन है। ये ठोस और तरल रूप में मौजूद रहता है। कई मायनों में इसे पीएम 2.5 से ज्यादा खतरनाक भी माना जाता है, क्योंकि पीएम-10 हवा में ऑक्सीजन की मात्रा को कम कर देता है। जिस कारण घुटन होने लगती है और शहरी को गहरा नुकसान पहुंचता है। पीएम-10 को रेस्पायरेबल पर्टिकुलेट मैटर भी कहते हैं। इन कणों का आकार 10 माइक्रो मीटर होता है। जिसमें धूल, गर्द और धातु आदि के सूक्ष्म कण शामिल होते हैं। ये कण इतने छोटे होते हैं कि इन्हें नग्न आंखों से नहीं देखा जा सकता। सांस लेने पर ये कण फेफड़ों में चले जाते हैं, जिससे खांसी और अस्थमा के दौरे पड़ सकते हैं। उक्त रक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर), दिल का दौरा, स्ट्रोक, सांस लेने में दिक्कत, आंख, नाक और गले में जलन, छाती में खिंचाव, फेफड़ों का सही से काम न कर पाना, गंभीर सांस की बीमारी और अनियमित दिल की धड़कन आदि बीमारियां हो सकती है।
बच्चों और बुजुर्गों को अधिक खतरा
बच्चों और वृद्धों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। साथ ही इनकी शरीर के आंतरिक अंग भी व्यस्कों की अपेक्षा काफी संवेदनशील होते हैं, जिससे बीमारी लगने का खतरा अधिक होता है। यही कारण है कि प्रदूषित वायु का सबसे ज्यादा प्रभाव बच्चों और वृद्धों पर ही पड़ता है। एक अध्ययन में कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी और औद्योगिक क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का खतरा अधिक होता है। इसके अलावा, वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों को बुरी तरह प्रभावित होने की संभावना रहती है। दिल और फेफड़ों की बिमारी वाले लोगों को वायु प्रदूषण से काफी खतरा हो सकता है। वायु प्रदूषण मौत का भी कारण बन सकता है।
वायु प्रदूषण को कम करने के उपाय
1. मानव जनसंख्या वृद्धि को रोकने का प्रयास करना चाहिए।
2. नागरिकों या आम जनता को वायु प्रदूषण के कुप्रभावों का ज्ञान कराना चाहिए।
3. धुम्रपान पर नियंत्रण लगा देना चाहिए।
4. कारखानों के चिमनियों की ऊंचाई अधिक रखना चाहिए।
5. कारखानों के चिमनियों में फिल्टरों का उपयोग करना चाहिए।
6. मोटरकारों और स्वचालित वाहनों को ट्यूनिंग करवाना चाहिए ताकि अधजला धुआं बाहर नहीं निकल सकें।
7. अधिक-से-अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए।
8. उद्योगों की स्थापना शहरों एवं गांवों से दूर करनी चाहिए।
9. अधिक धुआं देने वाले स्वचालितों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
10. सरकार द्वारा प्रतिबंधात्मक कानून बनाकर उल्लंघन करने वालों पर कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए।
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