क्षिप्रा की सहायक नदी खान इतनी बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी है कि इसका पानी जहरीला हो गया है। अब इसके पानी के उपयोग पर भी पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई है। दरअसल कई गंदे नालों का पानी और कुछ उद्योगों का हानिकारक अपशिष्ट रसायन मिलने से इस नदी की यह हालत हुई है। यह नदी उज्जैन से पहले क्षिप्रा नदी में मिलती है। उज्जैन में अप्रैल 2016 में क्षिप्रा नदी के किनारे सिंहस्थ का मेला लगना है और लाखों की तादाद में लोग यहाँ जुटने वाले हैं, ऐसे में प्रशासन ने खान नदी को पहले से लेकर उज्जैन के बाहर तक नदी के लिए वैकल्पिक रास्ता पाइपलाइन के जरिये बनाया है। इस पर सरकार 75 करोड़ रूपये खर्च कर रही है।
उज्जैन के जिला कलेक्टर कविन्द्र कियावत इन दिनों खान नदी के किनारों पर बसे गाँवों में जा–जाकर किसानों को इस बात के लिए समझा रहे हैं कि वे किसी भी सूरत में खान नदी के पानी का सिंचाई के रूप में इस्तेमाल खाद्य पदार्थों और सब्जियों आदि के लिए नहीं करें। उन्होंने बताया कि खान नदी के पानी को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने जहरीला बताया है और इसके पानी के उपयोग पर पाबंदी लगाई है। इसके पानी का उपयोग खाद्य पदार्थों की खेती और पेयजल के लिए करने से यह मानव स्वास्थ्य पर विपरीत असर डाल सकता है। उन्होंने ग्रामीणों से आग्रह किया है कि वे किसी भी स्थिति में इस पानी का उपयोग न करें, यहाँ तक कि यह पानी मवेशियों के लिए भी नुक़सानदेह है। इसलिए उन्हें भी इससे दूर ही रखें। उज्जैन उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों के मुताबिक खान नदी के किनारे किसान फूलों की खेती कर सकते हैं। यहाँ किसानों को कलकत्ता गेंदिया, मोगरा और गुलाब के फूलों की खेती पर जोर दिया जा रहा है वहीं कपास की खेती भी की जा सकती है।
उज्जैन में 9 महीने बाद क्षिप्रा नदी के किनारे हर बारह साल में एक बार भरने वाला सिंहस्थ का मेला आयोजित है। इसका अत्यधिक धार्मिक महत्व होने से देशभर से करीब एक करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं के यहाँ पहुँचने का अनुमान है। ऐसे में सरकार और प्रशासन के लिए खान नदी का पानी मुसीबत बन गया है। इसके लिए मध्यप्रदेश सरकार ने एक महती योजना बनाई है तथा उस पर काम भी शुरू हो गया है। सरकार ने इसके लिए 75 करोड़ रूपये खर्च कर करीब 1700 मीटर तक खान नदी को क्षिप्रा में मिलने से रोकने की रणनीति बनाई है। इसके लिए बकायदा खान नदी का रास्ता बदलकर इसे पाइपलाइन के रास्ते ले जाया जा रहा है। उज्जैन से पहले ही राघोपीपल्या से बदलकर उसे उज्जैन के बाहर कालियादेह गाँव के आगे छोड़ा जाना है ताकि सिंहस्थ क्षेत्र में त्रिवेणी से मंगलनाथ, सिद्धनाथ तक क्षिप्रा को बचाया जा सके। इस पर काम भी शुरू हो चुका है।
जल संसाधन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक 1700 मीटर की दूरी के लिए नदी को करीब 7500 पाइपों में से गुजारा जाएगा। इन्हें जमीन में बिछाने का काम चल रहा है इसमें अब तक केवल 725 पाइप ही बिछाए गए हैं। अभी 6775 पाइप और बिछाए जाना बाक़ी है। समय बहुत कम बचा है उस पर भी बीते दिनों क्षिप्रा में आई भयावह बाढ़ ने इस काम को ख़ासा प्रभावित किया है। पाइप बिछाने के लिए जो जमीन खोदी गई थी उसमें कीचड़ और मिटटी भर जाने से काम और भी बढ़ गया है। अधिकारी बताते हैं कि यह काम कुछ तकनीकी दिक्कतों की वजह से बहुत बाद में शुरू हो सका। फिर भी इसे हर हाल में अगले साल फरवरी से पहले पूरा कर लिया जाएगा। सरकार ने भी इसके लिए फरवरी 16 तक की डेडलाइन तय की है। अब समस्या यह है कि बरसात यदि अगस्त में भी इसी तरह होती रही तो यह काम फरवरी तक पूरा नहीं हो सकेगा और यदि समयावधि में खान का रास्ता नहीं बदला गया तो यह सिंहस्थ के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है। मालवा क्षेत्र में कभी-कभी सितम्बर तक भी बारिश होती है तब क्या होगा कहना मुश्किल है।
इस प्रोजेक्ट में एक बड़ी अड़चन यह भी है कि परियोजना के लिए जिन किसानों की जमीन अधिग्रहित की जा रही है, उनमें से कुछ ने इसे लेकर आपत्ति दर्ज करायी है और उन्होंने अब तक इसका मुआवजा भी नहीं लिया है। अब भी कई किसानों को मुआवजा नहीं दिया जा सका है। ऐसे में इस काम में और भी विलम्ब होने की आशंका बढ़ गई है।
किसानों ने बताया कि वे लोग बरसों से यहाँ खेती करते हैं हर बार सिंहस्थ से पहले प्रशासन ऐसी कई योजनाएँ क्षणिक लाभ और सिर्फ सिंहस्थ को ध्यान में रखकर बनाता है। इनमें से अधिकांश सिंहस्थ गुजरते ही हवा हो जाती है और सरकारी खजाने का करोड़ों रुपया भी खर्च हो जाता है। हमें हर-बार परेशान किया जाता है। सिंहस्थ में आने वालों के स्वागत के लिए हम भी तैयार हैं और हरसम्भव मदद करना चाहते हैं पर अधिकारी अपने स्वार्थ के लिए हमारा नुकसान करते हैं, दूसरी योजनाएँ बनाने से पहले उसके बारे में स्थानीय लोगों से किसी तरह की राय-मशविरा तक नहीं ली जाती है।
दरअसल खान नदी मध्यप्रदेश के मिनी मुंबई कहे जाने वाले इंदौर महानगर के बीचो-बीच से गुजरती है और यहीं से शुरू होता है इस नदी के गंदले नाले में तब्दील होने का सिलसिला। कभी यह नदी इंदौर के प्राकृतिक सौन्दर्य वैभव के लिए पहचानी जाती थी। यहाँ तक कि इस रियासत के राजा – महाराजाओं का अंतिम संस्कार भी इसी नदी के तट पर किया जाता रहा। यहाँ आज भी इसके किनारे पर इंदौर रियासत के राजाओं की सुंदर स्थापत्य में समाधि की छतरियाँ देखी जा सकती है। ये छतरियाँ आज भी इस नदी के वैभव की कहानी सुनाती खड़ी है पर बीते 30–40 सालों में जिस गति से अनियोजित कथित विकास हुआ उसने इस नदी के अस्तित्व पर ही गहरा संकट खड़ा कर दिया है। पूरे शहर की गंदगी से लबरेज गंदे नालों का रूख इस नदी की ओर कर दिया गया। लोगों ने इसे गंदगी और पुराने मकानों के मलबों से पाटना शुरू कर दिया। धीरे–धीरे यह नदी कब गंदले नाले में तब्दील हो गई, किसी को पता ही नहीं चला।
इंदौर की रहवासी 70 वर्षीया अरुणा जोशी बताती हैं कि हमने अपने बचपन में यहाँ साफ–सुथरी नदी बहते देखी है। उन्होंने बताया कि उनके पिता उन्हें लोधीपुरा के अपने घर से गर्मियों के दिनों में शाम के समय नदी किनारे घुमने ले जाया करते थे। तब नदी का पाट भी बहुत चौड़े और खूबसूरत हुआ करते थे पर अब खान नदी की हालत देखी नहीं जाती। भाषाविद बताते हैं कि इस नदी का नाम पहले कृष्णा या कान्हा हुआ करता था लेकिन बाद में कान्ह ही रह गया इसे भी लोगों ने बोलते–बोलते खान कर दिया। खान नदी इंदौर के पास रालामंडल की पहाड़ियों से निकलती है और 11 किमी का सफ़र तय करते हुए इंदौर के कृष्णपुरा पुल के पास शहर के बीचो-बीच पहुँचती है। यहाँ एक और नदी सरस्वती से इसका मिलन होता है। सरस्वती नदी भी इंदौर से करीब 35 किमी दूर माचल गाँव के जंगलों से निकलती हुई यहाँ पहुँचती है। इन दोनों नदियों के केचमेंट क्षेत्र में ही बिलावली, पिपल्या हाना, पीपल्या पाला, सिरपुर तथा लिम्बोदी के बड़े–बड़े तालाब बने हुए हैं जो हर साल हजारों हेक्टेयर में सिंचाई करते हैं। अब सरकार इसे साफ़ सुथरा बनाकर 2719 करोड़ लागत से अहमदाबाद के साबरमती की तर्ज पर विकसित करने की एक बड़ी योजना को मूर्त रूप देने जा रहा हैं। इसे गंगा एक्शन प्लान में भी शामिल करने की कवायद की जा रही है।
अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इसे साफ़ रखने और इसके आस-पास हुए अतिक्रमण हटाने के निर्देश इंदौर नगर निगम को दिए हैं। ट्रिब्यूनल में पिछले दिनों हुई एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान खान नदी की सफाई और अतिक्रमण नहीं हटाने पर खेद जताया है। ट्रिब्यूनल ने माना कि समय–समय पर इसके लिए ट्रिब्यूनल ने निर्देश दिए हैं पर अब तक इसमें निर्देशों का पालन नहीं हो पा रहा है। यहाँ तक कि इसके लिए जिम्मेदार नगर निगम ने अपने बजट में खान नदी की सफाई और अतिक्रमण हटाने के लिए कोई प्रावधान तक नहीं किया है। ट्रिब्यूनल के सख्त निर्देश के बाद अब नगर निगम ने भी कुछ सख्त निर्णय लेकर उनपर अमल शुरू कर दिया है। खान नदी या उसमें मिलने वाले नालों में अब कचरा या मलबा डालने वालों को बख्शा नहीं जायेगा। इंदौर निगमायुक्त मनीष सिंह ने बताया कि शहर के बीच से गुजरने वाले नदी क्षेत्र में इस तरह की परेशानी सबसे ज्यादा है इसलिए अब ऐसे लोगों से सख्ती से निपटा जाएगा। उन्होंने बताया कि खान नदी या उसके सहायक नालों में बिल्डिंग मटेरियल, मिटटी, कचरा या मलबा डालने वाले लोगों का चालान काटा जायेगा। इतना ही नहीं इनके खिलाफ पुलिस थाने में आपराधिक मामला भी दर्ज कराया जाएगा। इस पर सतत निगरानी के लिए भी अधिकारियों के तीन दल तैनात किये गये हैं।
इंदौर कलेक्टर पी नरहरी भी मानते हैं कि खान नदी को 6 गंदे नाले प्रदूषित करते हैं। हमारा फोकस है कि रिवर और सीवर आपस में न मिल सके। इसके लिए नालों के किनारे लाइन बिछायी जा रही है और यह काम प्राथमिकता के आधार पर सिंहस्थ से पहले पूरा कर लिया जाएगा। सीवरेज को सीधे ट्रीटमेंट प्लांट में पहुँचाया जायेगा। खान नदी पर केन्द्र सरकार से भी कॉरिडोर प्रोजेक्ट के लिए धनराशि की माँग कर रहे हैं।
काश कि इन सब प्रयासों के चलते खान नदी एक बार फिर जीवित हो सके, अपने पुराने स्वरूप में। सरकारी प्रयास तो अपनी जगह है पर लोगों को भी अब जागरूक होना पड़ेगा अपनी प्राकृतिक संसाधनों और नदियों को बचाने के लिए।
उज्जैन के जिला कलेक्टर कविन्द्र कियावत इन दिनों खान नदी के किनारों पर बसे गाँवों में जा–जाकर किसानों को इस बात के लिए समझा रहे हैं कि वे किसी भी सूरत में खान नदी के पानी का सिंचाई के रूप में इस्तेमाल खाद्य पदार्थों और सब्जियों आदि के लिए नहीं करें। उन्होंने बताया कि खान नदी के पानी को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने जहरीला बताया है और इसके पानी के उपयोग पर पाबंदी लगाई है। इसके पानी का उपयोग खाद्य पदार्थों की खेती और पेयजल के लिए करने से यह मानव स्वास्थ्य पर विपरीत असर डाल सकता है। उन्होंने ग्रामीणों से आग्रह किया है कि वे किसी भी स्थिति में इस पानी का उपयोग न करें, यहाँ तक कि यह पानी मवेशियों के लिए भी नुक़सानदेह है। इसलिए उन्हें भी इससे दूर ही रखें। उज्जैन उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों के मुताबिक खान नदी के किनारे किसान फूलों की खेती कर सकते हैं। यहाँ किसानों को कलकत्ता गेंदिया, मोगरा और गुलाब के फूलों की खेती पर जोर दिया जा रहा है वहीं कपास की खेती भी की जा सकती है।
उज्जैन में 9 महीने बाद क्षिप्रा नदी के किनारे हर बारह साल में एक बार भरने वाला सिंहस्थ का मेला आयोजित है। इसका अत्यधिक धार्मिक महत्व होने से देशभर से करीब एक करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं के यहाँ पहुँचने का अनुमान है। ऐसे में सरकार और प्रशासन के लिए खान नदी का पानी मुसीबत बन गया है। इसके लिए मध्यप्रदेश सरकार ने एक महती योजना बनाई है तथा उस पर काम भी शुरू हो गया है। सरकार ने इसके लिए 75 करोड़ रूपये खर्च कर करीब 1700 मीटर तक खान नदी को क्षिप्रा में मिलने से रोकने की रणनीति बनाई है। इसके लिए बकायदा खान नदी का रास्ता बदलकर इसे पाइपलाइन के रास्ते ले जाया जा रहा है। उज्जैन से पहले ही राघोपीपल्या से बदलकर उसे उज्जैन के बाहर कालियादेह गाँव के आगे छोड़ा जाना है ताकि सिंहस्थ क्षेत्र में त्रिवेणी से मंगलनाथ, सिद्धनाथ तक क्षिप्रा को बचाया जा सके। इस पर काम भी शुरू हो चुका है।
जल संसाधन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक 1700 मीटर की दूरी के लिए नदी को करीब 7500 पाइपों में से गुजारा जाएगा। इन्हें जमीन में बिछाने का काम चल रहा है इसमें अब तक केवल 725 पाइप ही बिछाए गए हैं। अभी 6775 पाइप और बिछाए जाना बाक़ी है। समय बहुत कम बचा है उस पर भी बीते दिनों क्षिप्रा में आई भयावह बाढ़ ने इस काम को ख़ासा प्रभावित किया है। पाइप बिछाने के लिए जो जमीन खोदी गई थी उसमें कीचड़ और मिटटी भर जाने से काम और भी बढ़ गया है। अधिकारी बताते हैं कि यह काम कुछ तकनीकी दिक्कतों की वजह से बहुत बाद में शुरू हो सका। फिर भी इसे हर हाल में अगले साल फरवरी से पहले पूरा कर लिया जाएगा। सरकार ने भी इसके लिए फरवरी 16 तक की डेडलाइन तय की है। अब समस्या यह है कि बरसात यदि अगस्त में भी इसी तरह होती रही तो यह काम फरवरी तक पूरा नहीं हो सकेगा और यदि समयावधि में खान का रास्ता नहीं बदला गया तो यह सिंहस्थ के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है। मालवा क्षेत्र में कभी-कभी सितम्बर तक भी बारिश होती है तब क्या होगा कहना मुश्किल है।
इस प्रोजेक्ट में एक बड़ी अड़चन यह भी है कि परियोजना के लिए जिन किसानों की जमीन अधिग्रहित की जा रही है, उनमें से कुछ ने इसे लेकर आपत्ति दर्ज करायी है और उन्होंने अब तक इसका मुआवजा भी नहीं लिया है। अब भी कई किसानों को मुआवजा नहीं दिया जा सका है। ऐसे में इस काम में और भी विलम्ब होने की आशंका बढ़ गई है।
किसानों ने बताया कि वे लोग बरसों से यहाँ खेती करते हैं हर बार सिंहस्थ से पहले प्रशासन ऐसी कई योजनाएँ क्षणिक लाभ और सिर्फ सिंहस्थ को ध्यान में रखकर बनाता है। इनमें से अधिकांश सिंहस्थ गुजरते ही हवा हो जाती है और सरकारी खजाने का करोड़ों रुपया भी खर्च हो जाता है। हमें हर-बार परेशान किया जाता है। सिंहस्थ में आने वालों के स्वागत के लिए हम भी तैयार हैं और हरसम्भव मदद करना चाहते हैं पर अधिकारी अपने स्वार्थ के लिए हमारा नुकसान करते हैं, दूसरी योजनाएँ बनाने से पहले उसके बारे में स्थानीय लोगों से किसी तरह की राय-मशविरा तक नहीं ली जाती है।
दरअसल खान नदी मध्यप्रदेश के मिनी मुंबई कहे जाने वाले इंदौर महानगर के बीचो-बीच से गुजरती है और यहीं से शुरू होता है इस नदी के गंदले नाले में तब्दील होने का सिलसिला। कभी यह नदी इंदौर के प्राकृतिक सौन्दर्य वैभव के लिए पहचानी जाती थी। यहाँ तक कि इस रियासत के राजा – महाराजाओं का अंतिम संस्कार भी इसी नदी के तट पर किया जाता रहा। यहाँ आज भी इसके किनारे पर इंदौर रियासत के राजाओं की सुंदर स्थापत्य में समाधि की छतरियाँ देखी जा सकती है। ये छतरियाँ आज भी इस नदी के वैभव की कहानी सुनाती खड़ी है पर बीते 30–40 सालों में जिस गति से अनियोजित कथित विकास हुआ उसने इस नदी के अस्तित्व पर ही गहरा संकट खड़ा कर दिया है। पूरे शहर की गंदगी से लबरेज गंदे नालों का रूख इस नदी की ओर कर दिया गया। लोगों ने इसे गंदगी और पुराने मकानों के मलबों से पाटना शुरू कर दिया। धीरे–धीरे यह नदी कब गंदले नाले में तब्दील हो गई, किसी को पता ही नहीं चला।
इंदौर की रहवासी 70 वर्षीया अरुणा जोशी बताती हैं कि हमने अपने बचपन में यहाँ साफ–सुथरी नदी बहते देखी है। उन्होंने बताया कि उनके पिता उन्हें लोधीपुरा के अपने घर से गर्मियों के दिनों में शाम के समय नदी किनारे घुमने ले जाया करते थे। तब नदी का पाट भी बहुत चौड़े और खूबसूरत हुआ करते थे पर अब खान नदी की हालत देखी नहीं जाती। भाषाविद बताते हैं कि इस नदी का नाम पहले कृष्णा या कान्हा हुआ करता था लेकिन बाद में कान्ह ही रह गया इसे भी लोगों ने बोलते–बोलते खान कर दिया। खान नदी इंदौर के पास रालामंडल की पहाड़ियों से निकलती है और 11 किमी का सफ़र तय करते हुए इंदौर के कृष्णपुरा पुल के पास शहर के बीचो-बीच पहुँचती है। यहाँ एक और नदी सरस्वती से इसका मिलन होता है। सरस्वती नदी भी इंदौर से करीब 35 किमी दूर माचल गाँव के जंगलों से निकलती हुई यहाँ पहुँचती है। इन दोनों नदियों के केचमेंट क्षेत्र में ही बिलावली, पिपल्या हाना, पीपल्या पाला, सिरपुर तथा लिम्बोदी के बड़े–बड़े तालाब बने हुए हैं जो हर साल हजारों हेक्टेयर में सिंचाई करते हैं। अब सरकार इसे साफ़ सुथरा बनाकर 2719 करोड़ लागत से अहमदाबाद के साबरमती की तर्ज पर विकसित करने की एक बड़ी योजना को मूर्त रूप देने जा रहा हैं। इसे गंगा एक्शन प्लान में भी शामिल करने की कवायद की जा रही है।
अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इसे साफ़ रखने और इसके आस-पास हुए अतिक्रमण हटाने के निर्देश इंदौर नगर निगम को दिए हैं। ट्रिब्यूनल में पिछले दिनों हुई एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान खान नदी की सफाई और अतिक्रमण नहीं हटाने पर खेद जताया है। ट्रिब्यूनल ने माना कि समय–समय पर इसके लिए ट्रिब्यूनल ने निर्देश दिए हैं पर अब तक इसमें निर्देशों का पालन नहीं हो पा रहा है। यहाँ तक कि इसके लिए जिम्मेदार नगर निगम ने अपने बजट में खान नदी की सफाई और अतिक्रमण हटाने के लिए कोई प्रावधान तक नहीं किया है। ट्रिब्यूनल के सख्त निर्देश के बाद अब नगर निगम ने भी कुछ सख्त निर्णय लेकर उनपर अमल शुरू कर दिया है। खान नदी या उसमें मिलने वाले नालों में अब कचरा या मलबा डालने वालों को बख्शा नहीं जायेगा। इंदौर निगमायुक्त मनीष सिंह ने बताया कि शहर के बीच से गुजरने वाले नदी क्षेत्र में इस तरह की परेशानी सबसे ज्यादा है इसलिए अब ऐसे लोगों से सख्ती से निपटा जाएगा। उन्होंने बताया कि खान नदी या उसके सहायक नालों में बिल्डिंग मटेरियल, मिटटी, कचरा या मलबा डालने वाले लोगों का चालान काटा जायेगा। इतना ही नहीं इनके खिलाफ पुलिस थाने में आपराधिक मामला भी दर्ज कराया जाएगा। इस पर सतत निगरानी के लिए भी अधिकारियों के तीन दल तैनात किये गये हैं।
इंदौर कलेक्टर पी नरहरी भी मानते हैं कि खान नदी को 6 गंदे नाले प्रदूषित करते हैं। हमारा फोकस है कि रिवर और सीवर आपस में न मिल सके। इसके लिए नालों के किनारे लाइन बिछायी जा रही है और यह काम प्राथमिकता के आधार पर सिंहस्थ से पहले पूरा कर लिया जाएगा। सीवरेज को सीधे ट्रीटमेंट प्लांट में पहुँचाया जायेगा। खान नदी पर केन्द्र सरकार से भी कॉरिडोर प्रोजेक्ट के लिए धनराशि की माँग कर रहे हैं।
काश कि इन सब प्रयासों के चलते खान नदी एक बार फिर जीवित हो सके, अपने पुराने स्वरूप में। सरकारी प्रयास तो अपनी जगह है पर लोगों को भी अब जागरूक होना पड़ेगा अपनी प्राकृतिक संसाधनों और नदियों को बचाने के लिए।
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