भारत को क्या दुनिया भर में बढ़ते कबाड़ और जहरीले कचरे के ढेर का आयात करना चाहिए और उसे पुन:चक्रित कर इस्तेमाल में लाना चाहिए? क्या यह हमारे लिए एक कारोबारी संभावना के रूप में उभर सकता है? क्या इस अवसर का फायदा उठाना चाहिए क्योंकि धनी देशों को इलेक्ट्रॉनिक से लेकर चिकित्सा उत्पादों तक के कचरे का निस्तारण करने के लिए सस्ते और प्रभावी साधन की जरूरत है? हालांकि सवाल यह है कि क्या हम दूसरों के कचरे का प्रबंधन कर सकते हैं, खासतौर से तब जबकि हम खुद अपने कचरे का निस्तारण करने में असफल रहे हैं।
इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि फिर से इस्तेमाल के लिए पुन:चक्रण का कारोबार पर्यावरण के लिए अच्छा है। भारतीय सीमेंट उद्योग राख और फ्लाईऐश का उपयोग बढ़ाकर ऊर्जा की लागत और कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती करता है, जो तापबिजली संयंत्र से कचरे के रूप में निकलता है।
वैश्विक इस्पात उद्योग ने विनिर्माण की प्रक्रिया के दौरान पुराने इस्पात का इस्तेमाल कर उत्सर्जन में कटौती की है। ठीक इसी तरह कागज उद्योग नया कागज बनाने के लिए पुराने कागज का इस्तेमाल कर रहा है। इससे उत्सर्जन में कमी आई है। हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं जहां कच्चे माल और ऊर्जा की किल्लत दिन-प्रति-दिन बढ़ रही है। ऐसे में पदार्थों का फिर से इस्तेमाल महत्त्वपूर्ण है और वास्तव में अनिवार्य है।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस पुन:चक्रण कारोबार का संचालन किस तरह किया जाएगा। गुजरात स्थित पानी के जहाजों के कब्रगाह अलंग में काम करने की दशाएं भयावह हैं। दिल्ली के मायापुरी में रेडियोधर्मी कचरे से हुई दुर्घटना भी इस कारोबार से जुड़े खतरों के बारे में हमें आगाह करती है।
ऐसे में सवाल यह है कि क्या इस समस्या का समाधान पूरे कारोबार को सुगठित करने और नियंत्रित करने में है। क्या इससे फायदा मिलेगा? आखिरकार दुनिया के गरीब देशों द्वारा कचरे के पुन:चक्रण की वजह यह है कि यह सस्ता होता है और गरीब कम लागत में और अधिक कुशलता के साथ पुन:चक्रण कर सकते हैं। क्या इस काम को सफलता के साथ पूरा किया जा सकता है?
कचरे के लिए दुनिया का सबसे अनुकूल गंतव्य बनने से पहले हमें इन मुद्दों पर चर्चा कर लेनी चाहिए और समाधान खोज लेने चाहिए। इलेक्ट्रॉनिक कचरे की बात ही लीजिए। उद्योग के अनुमानों के मुताबिक भारत में हर साल करीब 4 लाख टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा निकलता है। इसमें कंप्यूटर से लेकर फैक्स मशीन और मोबाइल फोन तक शामिल हैं। लेकिन इससे हम दूसरे के कचरे के आयात को रोक नहीं सकते हैं। इस विषय पर शोध कर रहे मेरे साथियों ने पाया है कि यूरोपीय संघ और जापान के साथ अभी जिस मुक्त व्यापार समझौते पर चर्चा जारी है उसमें इस बात का प्रावधान भी है कि ये देश अपने इलेक्ट्रॉनिक कचरे को हमारे ऊपर थोप सकते हैं। और यह सब व्यापार के नाम पर किया जाएगा।
फिलहाल इस बाजार में छोटे और असंगठित कारोबारी ही शामिल हैं। वे प्रत्येक ग्राहक को कुछ फायदा दे सकते हैं, इसलिए कचरा एक संसाधन है, लेकिन वे ऐसा इसलिए भी कर पाते हैं क्योंकि वे बुरी पर्यावरणीय और सुरक्षा दशाओं में काम करते हैं। ऐसे में सरकार को आगे आकर इस कारोबार को नियमित करना चाहिए और इसे एक आधुनिक और स्वच्छ परिचालन में तब्दील करना चाहिए।
मसौदा ई-कचरा प्रबंधन नियम इस सिद्धांत पर तैयार हुए हैं- कंप्यूटर और अन्य ई-कचरे के निर्माताओं को इन उत्पादों का जीवन खत्म होने के बाद ई-कचरे को वापस लेना होगा और पुन:चक्रण करने वाले का सरकार के पास पंजीकरण जरूरी है ताकि नियमों का पालन सुनिश्चित किया जा सके। मेरे साथियों ने पाया है कि गंदगी के संगठित कारोबार का यह मॉडल जैसा दिखता है वैसा है नहीं।
जांच से पता चला कि ई-कचरे के आयात का लाइसेंस हासिल करने वाली पहली कंपनी का संयंत्र रुड़की में है। उन्होंने खुफिया जांच अभियान के दौरान पाया कि यह कंपनी दरअसल फ्लरिशिंग के कारोबार से संबंधित है, न कि आयातित कचरे के पुन:चक्रण से, लेकिन वह इस कचरे को भारतीय बाजार में किसी और को बेच देती है। यहां कंप्यूटर से लेकर फैक्स मशीन तक सब कुछ हासिल किया जा सकता है।
यह दलील दी जा सकती है कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। हम एक ऐसे देश में रह रहे हैं जहां पुरानी वस्तुओं का कारोबार काफी समृद्ध है, और इसलिए हम ऐसी वस्तुओं के लिए काफी अच्छा बाजार हैं, जिन्हें दूसरों ने नकार दिया है। पर्यावरणीय लिहाज से किसी उत्पाद के जीवन को बढ़ावा किसी भी दशा में बुरा नहीं होता है।
लेकिन यह वह शर्त नहीं है जिसके तहत कंपनी को परिचालन के लिए लाइसेंस दिया गया है। सच्चाई यह है कि यह संगठित कारोबार तभी बढ़ सकता है और अधिक मात्रा में कचरा भारत में आयात किया जा सकता है और उन्हें पुन:चक्रण के लिए गरीब और सर्वाधिक असंगठित कारोबारियों को दे दिया जाए।
आखिरकार अगर हम कचरे के कारोबार में अपनी प्रतिस्पर्धी बढ़त को बनाए रखना चाहते हैं तो प्रदूषण की लागत को भी कम करना होगा। दूसरे शब्दों में कहें तो दुनिया भर के कचरे को अपने यहां जमा करने से पहले हमें कचरा उद्योग के मॉडल पर एक बार फिर विचार करना चाहिए।
हमें सोचना होगा कि हम नया कचरा प्रबंधन मॉडल कैसे तैयार कर सकते हैं। हमें सोचना होगा कि छोटे और लागत-प्रभावी कचरा कारोबारियों को हटाकर बड़े कारोबारियों को स्थापित करने के बजाए नीति पूरे कारोबार को कैसे वैध बना सकती है और नियमित कर सकती है। इस कारोबार को महत्त्वपूर्ण स्थान देने के लिए ऐसा करना जरूरी है। लेकिन अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि प्रत्येक कंपनी और प्रत्येक ग्राहक पुन:चक्रण और निस्तारण की कीमत कैसे चुकाएगा। ऐसा करना इसलिए जरूरी है क्योंकि जिस कचरे को हम तैयार कर रहे हैं, उसे साफ करने की जिम्मेदारी भी हमारी ही है।
ऐसे में हम कचरा निस्तारण के लिए वास्तविक कीमत चुकाने पर फोकस कर सकेंगे। अगर हमें अधिक कचरा पैदा करने की कीमत चुकानी होगी तो हम कम कचरा पैदा करने का सबक सीख सकेंगे। इस रास्ते पर आगे बढ़कर भविष्य में इस कारोबार को आकार दिया जा सकता है।
“ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और रखरखाव) मसौदा नियम 2010’’ का मूल ड्राफ्ट यहां उपलब्ध है।
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