उत्तराखण्ड में पिछले दिनों आयी भयानक प्राकृतिक आपदा में सैकड़ों लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी और हजारों लोग प्रभावित हुए। शुरुआत में इसका कारण बादल फटना बताया गया लेकिन बाद में भारतीय मौसम विभाग ने यह स्पष्ट किया कि यह आपदा बादल फटने से नहीं बल्कि सामान्य से अधिक वर्षा होने के कारण हुई। सामान्यतया बादल फटने की घटनायें पर्वतीय इलाकों में होती हैं। मौसम विभाग के अनुसार 16 जून, 2013 की रात लगभग 09:00 बजे केदारनाथ और बद्रीनाथ के पहाड़ों पर तेज वर्षा दो कारणों से हुई। पहला कारण था बंगाल की खाड़ी से आये बादलों का वहाँ रुक जाना तथा दूसरा कारण ठीक उसी समय भूमध्य सागर के ऊपर चक्रवाती तूफान के बनने से भारी वर्षा का होना। चूँकि पूर्व और पश्चिम दोनों तरफ के बादल केदारनाथ-बद्रीनाथ क्षेत्र में जमा हो गये इसलिये तेज बारिश हुई, जिससे वहाँ भूस्खलन और भयंकर तबाही मची। इस घटना से न केवल सिर्फ जान-माल की भारी क्षति हुई बल्कि आस-पास का प्राकृतिक संतुलन भी बिगड़ गया।
उत्तराखण्ड राज्य का क्षेत्रफल 53,484 वर्ग किमी, और सन 2011 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या 1,01,16,752 है। उत्तराखण्ड भारत के उत्तर-मध्य भाग में स्थित है। यह पूर्वोत्तर में तिब्बत, पश्चिमोत्तर में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण-पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण-पूर्व में नेपाल से घिरा है। उत्तराखण्ड का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 280 43I उ. से 310 27I उ. और रेखांश 770 34I पू. से 810 02I पू. के बीच में 53, 484 वर्ग किमी है, जिसमें से 43,035 किमी. पर्वतीय है और 7,448 किमी. मैदानी है तथा 34,651 किमी भूभाग वनाच्छादित है। राज्य का अधिकांश उत्तरी भाग वृहद्तर हिमालय शृंखला का भाग है जो ऊँची हिमालयी चोटियों और हिमनदियों से ढका हुआ है, जबकि निम्न तलहटियाँ सघन वनों से ढकी हुई हैं। यद्यपि उत्तराखण्ड में धूलयुक्त मैदान जगह-जगह छाए हुए हैं, फिर भी यह क्षेत्र खासा वनाच्छादित और अत्यधिक पहाड़ी वाला है। बर्फ से ढकी चोटियों, गहरी खाइयों, हरहराती जल धाराओं और सुंदर झीलों से युक्त इस क्षेत्र की भू-आकृति अत्यंत विविधतापूर्ण है। ऊँचे पहाड़ों के हिमनद गंगा और यमुना नदी के स्रोत हैं। देश के सबसे ऊँचे पर्वत शिखरों में से कुछ उत्तरांचल में स्थित हैं, जैसे- नंदा देवी - 7,817 मीटर, बद्रीनाथ - 7,138 मीटर, सतोपंथ - 7,075 मीटर, त्रिशूल - 7,120 मीटर, केदारनाथ - 6,940 मीटर, कामेट - 7,756 मीटर, नीलकंठ - 6,596
कैसे बनते हैं बादल
धरती पर उपस्थित जल वाष्पित होकर आसमान में पहुँचता है और वहाँ संघनित होकर बादल बनता है। ये बादल दो प्रकार के होते हैं - धनावेशित और ऋणावेशित। चूँकि बादल जल का ही संघनित रूप होते हैं इसलिये उनमें नमी होती है। जब हवा और बादलों के जलकणों के बीच घर्षण होता है तो जलकण आवेशित हो जाते हैं। ये आवेश कभी धनात्मक और कभी ऋणात्मक होते हैं। इन दोनों तरह के बादलों के आपस में टकराने से बिजली कड़कती है और इनमें रुका हुआ पानी बारिश की बूँदों के रूप में धरती पर गिरता है। लेकिन जब यही बादल इकट्ठा होकर एक जगह बरस जाते हैं तो उसे बादल फटना कहते हैं। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार जब 100 मिलीमीटर (3.94 इंच) प्रति घण्टा या इससे अधिक बारिश हो तो यह बादल फटना कहलाता है। इससे जमीन खिसक जाती है और बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है। इस प्रकार के बाढ़ जिनमें पानी व मलबा बहकर आते हैं, जान-माल को काफी क्षति पहुँचाते हैं।
दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि अचानक ही आए तूफान और भीषण गर्जना के साथ तीव्र गति से होने वाली वर्षा को बादल फटना कहा जाता है। जब वातावरण में अधिक नमी हो जाती है और हवा का रुख कुछ ऐसा होता है कि बादल दबाव से ऊपर की ओर उठते हैं और पहाड़ से टकराते हैं, इस स्थिति में पानी एक साथ बरस जाता है। इन बादलों को ‘क्यूलोनिवस’ कहा जाता है। मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा पहाड़ी क्षेत्रों में बादल अधिक फटते हैं। सर्द-गर्म हवाओं का विपरीत दिशा में टकराना भी बादल फटने का मुख्य कारण माना जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस प्रक्रिया में पानी असामान्य तेजी से गिरता है, जिसे जमीन सोख नहीं पाती। वर्षा की गति बहुत तेज होती है, जो भूमि को नम नहीं बनाती, बल्कि मिट्टी को बहा देती है। वर्षा की तीव्रता इतनी अधिक होती है कि वह दो फुट के किसी नाले को पानी के 50 फुट के नाले में तब्दील कर देती है। बादलों की आकृति व ऊँचाई के आधार पर इन्हें तीन मुख्य वर्गों में बाँटा गया है और इन वर्गों में कुल दस तरह के बादल होते हैं।1. पहला वर्ग निम्न मेघ का है। इनकी ऊँचाई ढाई किलोमीटर तक होती है। इनमें एक जैसे दिखने वाले भूरे रंग के स्तरी या स्ट्रेटस बादल, कपास के ढेर जैसे कपासी, गरजने वाले काले रंग के कपासी वर्षी (क्यूमलोनिंबस), भूरे काले वर्षा स्तरी (निम्बोस्ट्रेटस) और भूरे सफेद रंग के स्तरी-कपासी (स्ट्रेटोक्यूमलस) बादल आते हैं।
2. बादलों का दूसरा वर्ग मध्य मेघ का है। इनकी ऊँचाई ढाई से साढ़े चार किलोमीटर तक होती है। इस वर्ग में दो तरह के बादल हैं, अल्टोस्ट्रेटस और अल्टोक्यूमलस।
3. तीसरा वर्ग उच्च मेघों का है। इनकी ऊँचाई साढ़े चार किलोमीटर से ज्यादा रहती है। इस वर्ग में सफेद रंग के छोटे-छोटे साइरस बादल, लहरदार साइरोक्यूमलस और पारदर्शक रेशेयुक्त साइरोस्ट्रेटस बादल आते हैं। इन बादलों में से कुछ हमारे लिये फायदेमंद बारिश लाते हैं तो कुछ प्राकृतिक विनाश।
बादल फटने की घटना के लिये क्यूमलोनिंबस बादल जिम्मेदार हैं। ये बादल देखने में गोभी की शक्ल के लगते हैं। ऐसा लगता है कि आकाश में कोई बहुत बड़ा गोभी का फूल तैर रहा हो। इनकी लंबाई 14 किलोमीटर तक हो सकती है। ये बादल कैसे इतनी बारिश एक साथ कर देते हैं? वस्तुत: जब क्यूमलोनिंबस बादलों में एकाएक नमी पहुँचनी बंद हो जाती है या कोई बहुत ठंडी हवा का झोंका उनमें प्रवेश कर जाता है, तो ये सफेद बादल गहरे काले रंग में बदल जाते हैं और तेज गरज के साथ उसी जगह के ऊपर अचानक बरस पड़ते हैं। ऐसी बारिशें ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्रों में ही होती हैं। क्यूमलोनिंबस बादलों के बरसने की रफ्तार इतनी तेज होती है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। ऐसा समझ लें कि कुछ ही देर में आसमान से एक पूरी की पूरी नदी जमीन पर उतर आती है। उत्तराखण्ड राज्य के नैनीताल शहर में बादल फटने से अभी तक की अधिकतम बारिश होने का रिकॉर्ड 24 घंटों में 509.3 मिलीमीटर दर्ज किया गया है।
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