कूड़े के ढेर पर बनाया नेचर पार्क

मौहल नेचर पार्क कुल्लू, हिमाचल प्रदेश।
मौहल नेचर पार्क कुल्लू, हिमाचल प्रदेश।

कुल्लू, हिमाचल प्रदेश का मौहल इलाका कुल्लू के उपायुक्त रहे आइएएस राकेश कंवर की सोच को सलाम कर रहा है। ब्यास के किनारे मौजूद डंपिंग साइट न केवल नदी के लिए खतरा बन गई थी बल्कि स्थानीय लोगों का जीना दूभर था। आज उसी जगह पर खुशहाली के फूल खिलखिला रहे हैं। लो यूं ही नहीं कहते कि मौहल के नेचर पार्क में फूल नहीं राकेश कंवर की सोच महकती है। डंपिंग साइट से नदी, पर्यावरण और लोगों की सेहत को पहुंच रहा नुकसान काफी हद तक नियंत्रण में आ चुका है। 

राकेश 2014 से 2016 तक कुल्लू के उपायुक्त रहे। उन्होंने डंपिंग साइट के कूड़ें से नदी के पर्यावरण को पहुंच रहे गंभीर खतरे को भांपा और इसके समाधान का जतन शुरू किया। डंपिंग साइट के कारण आसपास के लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ने लगा था। राकेश ने तय किया कि वे यहां उद्यान का निर्माण कराएंगे। राकेश ने जल्द ही इस काम में सफलता भी पाई। उन्होंने समस्या बन चुके उस क्षेत्र को प्रकृति से जोड़ा और फिर जिस सुंदर पार्क ने यहां आकार लिया उसे आज नेचर पार्क के रूप में ख्याति हासिल हुई है। राकेश ने नेचर पार्क के जरिये लोगों की भी प्रकृति से दोस्ती करवाई। 

मौहल नेचर पार्क कुल्लू, हिमाचल प्रदेश।

तीन साल के कार्यकाल में इस युवा अधिकारी ने कुल्लू में सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ विकास कार्यों को भी तरजीह दी। ब्यास नदी के किनारे चार हेक्टेयर में बनाए नेचर पार्क की विशेषता है कि यहां बच्चों और बड़ों के लिए आकर्षण की विभिन्न चीजें मौजूद हैं। सैर के अलावा खेलने और खाने के लिए भी पूरी व्यवस्था है। सबसे बड़ी खूबी नदी किनारे बनाया गया करीब तीन किलोमीटर का ट्रैफिक है, जो पर्यटकों को रोमांचित करता है। राकेश कहते हैं, वर्ष 2015 में डंपिंग साइट से लोगों को हो रही दिक्कत और ब्यास नदी को हो रहे नुकसान का आकलन किया गया। आज जहां नेचर पार्क है, यह जगह जब डंपिंग एरिया का ही हिस्सा थी। बगल से नेशनल हाईवे गुजरता है। दूसरी ओर ब्यास नदी है। हमने तय किया कि यहां पर हराभरा और सभी के लिए सुविधाजनक पार्क बना देने से समस्या का समाधान हो सकता है। प्रोजेक्ट शुरू किया और स्थानीय पंचायतों सहित लोगों को भी साथ जोड़ा गया। वन विभाग के सहयोग से करीब 60 लाख रुपये की लागत से यह पार्क बनकर तैयार हुआ। ब्यास किनारे बैठने या घूमने के लिए सुंदर गलियारे, बच्चों के लिए सांप-सीढ़ी सहित खेलकूद और व्यायाम के साधन-संसाधन और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती अनेक कलाकृतियां भी लगाई गई। इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में सात महीने लगे थे। पंचायत को भागीदारी दी गई और महिला मंडल की सदस्यों को पार्क में दुकाने दी गई ताकि आय का साधन बन सके। नेचर पार्क में टिकट 20 रुपये रखी गई। पर्यावरण संरक्षण के लिए एनजीटी के सभी आदेशों को लागू किया गया और लोगो को जागरुक करने के लिए वेबसाइट बनाई गई।

मौहल नेचर पार्क कुल्लू, हिमाचल प्रदेश।

अब अन्य जिलों में भी बनाए जा रहे नेचर पार्क

वर्तमान में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के सचिव और कुल्लू के पूर्व उपायुक्त राकेश कंवर ने कहा कि कुल्लू के मौहल में बना चेर पार्क अन्य जिलों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गए हैं। इस पहल का यह असर हुआ कि अब अन्य जिलों में भी ऐसे पार्क बनाए जा रहे हैं। पार्क पर्यावरण संरक्षण के साथ ही यह स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य और आय का भी जरिया बना। पार्क के भीतर न केवल दुकाने दी गई बल्कि वन विभाग ने भी साहसिक गतिविधियों से जुड़े सशुल्क आयोजन शुरू किए। वन विभाग को हर महीने एक लाख रुपये की आमदनी होने लगी। महिला मंडल अपने विभिन्न उत्पाद बेचकर 25 हजार रुपये प्रतिमाह तक कमाने लगे।

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Post By: Shivendra
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