1. नेपाल में हनुमान नगर से 4.8 कि.मी. उत्तर नदी में 1,150 मीटर लम्बा एक बराज बनाना जिसके पूर्वी छोर पर 1890 मीटर लम्बे तथा पश्चिमी छोर पर 3811 मीटर लम्बे मिट्टी के तटबंध बना कर क्रमशः पूर्वी और पश्चिमी उभार बाँधों (Afflux-Bunds) से जोड़ देने का प्रस्ताव था। इन दोनों उभार बाँधों की लम्बाई 12.8 कि.मी. अनुमानित थी। इस योजना के इस अंश पर 13.27 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान था।
2. कोसी नदी की धारा को सीमित करने के लिए बराज के नीचे दोनों किनारों पर बाढ़ सुरक्षा तटबन्धों के निर्माण का प्रस्ताव किया गया। पश्चिमी तट पर यह तटबंध भारदह से भन्थी तक 112 कि.मी. तथा पूर्वी तट पर यह भीमनगर से बनगाँव तक 99.20 कि.मी लम्बा बनाया जाने वाला था। इसके साथ ही निर्मली तथा महादेव मठ गाँवों की सुरक्षा के लिए उनके चारों ओर रिंग बाँध प्रस्तावित था। बलान और तिलयुगा नदियों पर सुरक्षा तटबंध तथा पूर्वी उभार बाँध के ऊपर 19.2 कि.मी. लम्बा बाढ़ सुरक्षा तटबंध भी इस योजना का अंग था। इस पूरे काम की लागत 10.67 करोड़ रुपये आँकी गई और इससे 2.14 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को बाढ़ से सुरक्षित किये जाने का अनुमान था।
3. सहरसा तथा पूर्णियाँ जिले की 5.47 लाख हेक्टेयर जमीन में पूर्वी कोसी नहर प्रणाली द्वारा सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराना जिस पर 13.37 करोड़ रुपये का खर्च अनुमानित था।
इस प्रकार मुख्य कार्य कुल 37.31 करोड़ रुपये की लागत पर प्रस्तावित हुआ। इसके साथ ही नेपाल में चतरा नहर से 73 हजार हेक्टेयर जमीन में सिंचाई की व्यवस्था भी करनी थी पर इसके लिए निर्माण कार्य नेपाल पर ही छोड़ दिया गया था। इस नहर का अनुमानित व्यय 3 करोड़ रुपये था। विद्युत उत्पादन के लिए भविष्य में प्रावधान होना था और इसका प्राक्कलन 1953 वाली योजना में शामिल नहीं किया गया था।
इस योजना को यदि भाभा के 6 अप्रैल 1947 वाले भाषण से मिला कर देखा जाय तो स्पष्ट होता है जिस पुरानी और बेकार तकनीक (Outdated Technology) को नमस्कार करके बराहक्षेत्र बाँध की बात की गई थी, 8 वर्ष का समय और लगभग एक करोड़ रुपये से अधिक अनुसंधान पर खर्च करने के बाद हम वहीं के वहीं खड़े थे।
समिति ने इंजीनियरों के बचाव के लिए एक शोशा अपनी सिफारिशों में जरूर छोड़ दिया था। उसने यह कहा था कि, “...इस परियोजना रिपोर्ट के प्रस्तावों से एक वाजिब समय तक के लिए बाढ़ से होने वाले नुकसान से बचाव होगा। इसलिए यह जरूरी है कि नदी में आने वाले बालू के स्रोत और मात्रा का अध्ययन जारी रखा जाय और उसे कम करने के लिए खोलाओं में चेक डैम बनाये जायें, जलग्रहण क्षेत्रों में भूमि संरक्षण का काम किया जाय या फिर नदी और उसकी सहायक धाराओं पर जलाशय बनाये जायें।’’
वास्तव में पं. नेहरू ने जब कोसी क्षेत्र का दौरा किया था तो लोगों की बदहाली देख कर उनका दिल इतना पसीज गया कि उन्होंने बाढ़ पीड़ितों की तकलीफों को तुरन्त दूर करने के लिए जोर दिया। दुर्भाग्यवश बाढ़ से तुरन्त मुकाबला केवल स्थानीय स्तर पर किया जा सकता है और उसका इंजीनियरिंग के अनुसार एक ही समाधान है कि नदी और लोगों के बीच तटबंध की शक्ल में एक दीवार खड़ी कर दी जाये। यह एक अलग बात है कि इससे तुरन्त फायदा तो जरूर होता है मगर लम्बे समय पर इसके नतीजे खतरनाक होते हैं और यह बात किसी से छिपी नहीं है।
इस योजना का प्रारूप किस गंभीरता से और कितनी जल्दबाजी में तैयार किया गया था उसके बारे में कोसी परियोजना के भूतपूर्व चीफ इंजीनियर अखौरी परमेश्वर प्रसाद का बयान गौर करने के काबिल है। देखें बॉक्स- कोसी प्रोजेक्ट की कहानी मैं आप को बताता हूँ।
2. कोसी नदी की धारा को सीमित करने के लिए बराज के नीचे दोनों किनारों पर बाढ़ सुरक्षा तटबन्धों के निर्माण का प्रस्ताव किया गया। पश्चिमी तट पर यह तटबंध भारदह से भन्थी तक 112 कि.मी. तथा पूर्वी तट पर यह भीमनगर से बनगाँव तक 99.20 कि.मी लम्बा बनाया जाने वाला था। इसके साथ ही निर्मली तथा महादेव मठ गाँवों की सुरक्षा के लिए उनके चारों ओर रिंग बाँध प्रस्तावित था। बलान और तिलयुगा नदियों पर सुरक्षा तटबंध तथा पूर्वी उभार बाँध के ऊपर 19.2 कि.मी. लम्बा बाढ़ सुरक्षा तटबंध भी इस योजना का अंग था। इस पूरे काम की लागत 10.67 करोड़ रुपये आँकी गई और इससे 2.14 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को बाढ़ से सुरक्षित किये जाने का अनुमान था।
3. सहरसा तथा पूर्णियाँ जिले की 5.47 लाख हेक्टेयर जमीन में पूर्वी कोसी नहर प्रणाली द्वारा सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराना जिस पर 13.37 करोड़ रुपये का खर्च अनुमानित था।
इस प्रकार मुख्य कार्य कुल 37.31 करोड़ रुपये की लागत पर प्रस्तावित हुआ। इसके साथ ही नेपाल में चतरा नहर से 73 हजार हेक्टेयर जमीन में सिंचाई की व्यवस्था भी करनी थी पर इसके लिए निर्माण कार्य नेपाल पर ही छोड़ दिया गया था। इस नहर का अनुमानित व्यय 3 करोड़ रुपये था। विद्युत उत्पादन के लिए भविष्य में प्रावधान होना था और इसका प्राक्कलन 1953 वाली योजना में शामिल नहीं किया गया था।
इस योजना को यदि भाभा के 6 अप्रैल 1947 वाले भाषण से मिला कर देखा जाय तो स्पष्ट होता है जिस पुरानी और बेकार तकनीक (Outdated Technology) को नमस्कार करके बराहक्षेत्र बाँध की बात की गई थी, 8 वर्ष का समय और लगभग एक करोड़ रुपये से अधिक अनुसंधान पर खर्च करने के बाद हम वहीं के वहीं खड़े थे।
समिति ने इंजीनियरों के बचाव के लिए एक शोशा अपनी सिफारिशों में जरूर छोड़ दिया था। उसने यह कहा था कि, “...इस परियोजना रिपोर्ट के प्रस्तावों से एक वाजिब समय तक के लिए बाढ़ से होने वाले नुकसान से बचाव होगा। इसलिए यह जरूरी है कि नदी में आने वाले बालू के स्रोत और मात्रा का अध्ययन जारी रखा जाय और उसे कम करने के लिए खोलाओं में चेक डैम बनाये जायें, जलग्रहण क्षेत्रों में भूमि संरक्षण का काम किया जाय या फिर नदी और उसकी सहायक धाराओं पर जलाशय बनाये जायें।’’
वास्तव में पं. नेहरू ने जब कोसी क्षेत्र का दौरा किया था तो लोगों की बदहाली देख कर उनका दिल इतना पसीज गया कि उन्होंने बाढ़ पीड़ितों की तकलीफों को तुरन्त दूर करने के लिए जोर दिया। दुर्भाग्यवश बाढ़ से तुरन्त मुकाबला केवल स्थानीय स्तर पर किया जा सकता है और उसका इंजीनियरिंग के अनुसार एक ही समाधान है कि नदी और लोगों के बीच तटबंध की शक्ल में एक दीवार खड़ी कर दी जाये। यह एक अलग बात है कि इससे तुरन्त फायदा तो जरूर होता है मगर लम्बे समय पर इसके नतीजे खतरनाक होते हैं और यह बात किसी से छिपी नहीं है।
इस योजना का प्रारूप किस गंभीरता से और कितनी जल्दबाजी में तैयार किया गया था उसके बारे में कोसी परियोजना के भूतपूर्व चीफ इंजीनियर अखौरी परमेश्वर प्रसाद का बयान गौर करने के काबिल है। देखें बॉक्स- कोसी प्रोजेक्ट की कहानी मैं आप को बताता हूँ।
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