जल-संसाधन विषयक भारत-नेपाल की संयुक्त समिति की पाँचवीं बैठक पोखरा (नेपाल) में 20-22 नवम्बर 2009 को सम्पन्न हुई और उसमें बहुत से अन्य मुद्दों के साथ इस बात पर सन्तोष व्यक्त किया गया कि कुसहा के बीच क्लोजर का काम सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया तथा 2009 के बरसात के मौसम में दोनों तटबन्धों के बीच तीन लाख क्यूसेक से अधिक प्रवाह बिना किसी नुकसान के बहाया जा सका। भारतीय पक्ष ने नेपाली सहयोगियों को आश्वस्त किया कि इस से संबंधित जो कुछ भी बचा-खुचा काम है वह जून 2010 के पहले पूरा कर लिया जायेगा।
चार साल के अन्तराल के बाद 29 सितम्बर से 1 अक्टूबर 2008 के बीच जल-संसाधन विषयक संयुक्त समिति की तीसरी बैठक काठमाण्डू में आयोजित की गयी। लगभग चार साल के इतने लम्बे समय तक यह मीटिंग नहीं हुई मगर 18 अगस्त 2008 के दिन कुसहा में कोसी के पूर्वी एफ्लक्स बांध में पड़ी दरार ने ऐसी असाधारण परिस्थितियाँ पैदा कर दी थीं जिनकी वजह से वार्ता का दौर फिर से चलाना जरूरी हो गया। इस मीटिंग में दोनों देशों के बीच गठित विभिन्न संयुक्त समितियों के कामों की समीक्षा और कुसहा दरार पाटने की अद्यतन रिपोर्ट पर विचार विमर्श के साथ-साथ यह भी तय हुआ कि सप्त-कोसी बांध और सुन-कोसी डाइवर्शन की परियोजना पर काम कर रहे बिराटनगर के संयुक्त परियोजना कार्यालय का कार्यकाल दिसम्बर 2009 तक बढ़ाया जाय। इस बात की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि स्थानीय जन-विक्षोभ के कारण इन कार्यालयों को काम में बाधा पड़ रही थी। भारतीय पक्ष की यह मांग थी कि इन कार्यालयों में काम कर रहे अधिकारियों तथा कर्मियों की सुरक्षा बढ़ायी जाए जिसका आश्वासन नेपाल के अधिकारियों ने दिया। इस समिति के सदस्य 30 सितम्बर 2008 के दिन कुसहा में दरार की मरम्मत का काम देखने के लिए भी गए थे। ऐसा लगता है कि इन तीन दिनों में बागमती और कमला परियोजनाओं पर कोई चर्चा नहीं हुई क्योंकि इस मीटिंग की कार्यवाही रपट में कहीं इनका जिक्र नहीं है।मार्च 12-13, 2009 को जल-संसाधन विषयक संयुक्त समिति की चौथी बैठक नई दिल्ली में हुई। इस बार समिति ने कुसहा में पिछले वर्ष पड़ी कोसी पूर्व एफ्लक्स बांध मरम्मत के कार्य की प्रगति पर संतोष तो जरूर व्यक्त किया मगर भारतीय पक्ष द्वारा उनके नेपाली सहयोगियों को यह इशारा किया गया कि इस तटबन्ध का उच्चीकरण, मजबूतीकरण तथा उसके सारे स्परों का निर्माण आदि काम जून 2009 के मध्य तक पूरा कर लिया जाना है बशर्ते स्थानीय लोग इस काम में व्यवधान न पैदा करें जिस पर नेपाली पक्ष ने अपनी तरफ से पूर्ण सहयोग की पेशकश की। सप्त-कोसी बांध की परियोजना रिपोर्ट की प्रगति के बारे में भारत की तरफ से कहा गया कि इन कार्यालयों में काम मई 2007 से बन्द है। जनवरी 2009 में चतरा और बराहक्षेत्र के पास काम को फिर शुरू करने का प्रयास किया गया मगर वहाँ स्थानीय जन-विक्षोभ के कारण फिर गड़बड़ी पैदा हुई और काम बन्द कर देना पड़ा।
भारतीय पक्ष ने अपने नेपाली सहयोगियों से निवेदन किया कि वे अधिकारियों/कर्मचारियों को तुरन्त पूर्ण सुरक्षा प्रदान करने का प्रबन्ध करें ताकि इस काम को जून 2010 तक पूरा किया जा सके। नेपाली पक्ष का कहना था कि नेपाल सरकार ने मंत्री तथा जिला स्तर पर सुरक्षा समितियाँ बना रखी हैं और सुरक्षित वातावरण तैयार करने के लिए राजनैतिक प्रयास जारी हैं ताकि सर्वेक्षण के काम को फिर से गति दी जा सके। इस पर भारतीय पक्ष का निवेदन था कि वह काम समयबद्ध कार्यक्रम के अधीन होना चाहिये। उनका यह भी कहना था कि अगर तीन महीने के अन्दर स्थिति सामान्य नहीं होती है तो खर्च और अकार्यरत कर्मचारियों का ध्यान रखते हुए संयुक्त परियोजना कार्यालय के आकार को घटाना पड़ जायेगा। 22 अगस्त 2009 को नेपाली प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल की भारत यात्रा के बाद दोनों सरकारों का जो संयुक्त वक्तव्य आया उसमें सप्त-कोसी बांध तथा सुन-कोसी डाइवर्शन की चर्चा तो जरूर थी मगर बागमती और कमला बहुद्देशीय परियोजनाओं का कोई जिक्र नहीं था। बागमती नदी के प्रवाह को स्वच्छ और सुरक्षित बनाये रखने के लिए इस संयुक्त वक्तव्य में एक बागमती सिविलाइजेशन प्रोजेक्ट चलाने की बात जरूर कही गयी थी जिसका नुनथर बांध से कोई लेना देना नहीं है।
जल-संसाधन विषयक भारत-नेपाल की संयुक्त समिति की पाँचवीं बैठक पोखरा (नेपाल) में 20-22 नवम्बर 2009 को सम्पन्न हुई और उसमें बहुत से अन्य मुद्दों के साथ इस बात पर सन्तोष व्यक्त किया गया कि कुसहा के बीच क्लोजर का काम सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया तथा 2009 के बरसात के मौसम में दोनों तटबन्धों के बीच तीन लाख क्यूसेक से अधिक प्रवाह बिना किसी नुकसान के बहाया जा सका। भारतीय पक्ष ने नेपाली सहयोगियों को आश्वस्त किया कि इस से संबंधित जो कुछ भी बचा-खुचा काम है वह जून 2010 के पहले पूरा कर लिया जायेगा। मगर नेपाली पक्ष ने समिति को सूचित किया कि सप्त-कोसी बांध और सुन-कोसी डाइवर्शन की परियोजना रिपोर्ट तैयार करने वाले संयुक्त परियोजना कार्यालय का काम जो मई 2007 में जन-विक्षोभ के कारण बन्द हो गया था उसे तमाम कोशिशों के बावजूद दुबारा शुरू नहीं किया जा सका और सप्त-कोसी बांध की साइट पर काम करने का माहौल ऐसा नहीं है कि वहाँ जमीन के नीचे ड्रिलिंग आदि जैसे काम सुचारु रूप से किये जा सकें।
चतरा और बराहक्षेत्र की साइटों पर दो सशस्त्र पुलिस बल की चौकियाँ स्थापित करने के प्रयास किये जा रहे हैं ताकि परियोजना कर्मियों को आवश्यक सुरक्षा प्रदान की जा सके। भारतीय पक्ष का कहना था कि मात्र दो चौकियों से काम नहीं चलेगा और इसके लिए चलन्त सुरक्षा दलों की व्यवस्था करनी पड़ेगी ताकि कार्य क्षेत्रों में सुरक्षा व्यवस्था मजबूत रहे। उन्होंने याद दिलाया कि पिछली मीटिंग में यह प्रस्ताव किया गया था कि अगर तीन महीनें के अन्दर भूगर्भीय सर्वेक्षण का काम शुरू नहीं हो पाता है तो संयुक्त परियोजना कार्यालय के कर्मियों की संख्या घटा देनी पड़ेगी और उन्हें दूसरे-दूसरे स्थानों पर काम में लगा दिया जायेगा। उन्होंने दुःख व्यक्त किया कि छः महीनें बीत जाने पर भी परिस्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। समिति ने तब तय किया कि मार्च 2010 तक अगर हालात नहीं सुधरते हैं तो परियोजना कार्यालय के आकार को छोटा करने के इस प्रस्ताव पर अमल किया जायेगा।
इसके बाद मार्च 30-31, 2010 को काठमाण्डू में भारत-नेपाल संयुक्त स्थाई टेक्निकल समिति की मीटिंग हुई जिसमें नवम्बर 2009 में जल-संसाधन विषयक संयुक्त समिति के हवाले से सवाल उठा कि अगर मार्च 2010 के पहले सप्त-कोसी बांध और सुन-कोसी डाइवर्शन के तकनीकी कर्मियों की सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त नहीं की जाती है तो इस कार्यालय में कर्मियों की संख्या घटायी जायेगी और इन लोगों को दूसरे कामों में लगाया जायेगा। नेपाली पक्ष का अभी भी कहना था कि प्रस्तावित कोसी बांध की साइट पर अब तक काम शुरू नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा कि बराहक्षेत्र और चतरा में पुलिस चौकी स्थापित करने की प्रक्रिया काफी आगे बढ़ चुकी है और नेपाल सरकार ने चलन्त पुलिस व्यवस्था के लिए भी आवश्यक निर्देश दे दिये हैं और आशा व्यक्त की कि सुरक्षा के इस माहौल में इन स्थानों पर शीघ्र ही काम शुरू हो जायेगा।
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