गौर कीजिए हर घर में शौचालय हो; गाँव-गाँव सफाई हो; सभी को स्वच्छ-सुरक्षित पीने का पानी मिले; हर शहर में ठोस-द्रव अपशिष्ट निपटान की व्यवस्था हो - इन्हीं उद्देश्यों को लेकर दो अक्तूबर, 2014 को स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की गई थी। कहा गया कि जब दो अक्तूबर, 2019 को महात्मा गाँधी जी का 150वां जन्म दिवस मनाया जाये, तब तक स्वच्छ भारत अभियान अपना लक्ष्य हासिल कर ले; राष्ट्रपिता को राष्ट्र की ओर से यही सबसे अच्छी और सच्ची श्रृद्धांजलि होगी। इस लक्ष्य प्राप्ति के लिये 62,009 करोड़ का पंचवर्षीय अनुमानित बजट भी तय किया गया था। अब हम मई, 2017 में हैं। अभियान की शुरुआत हुए ढाई वर्ष यानी आधा समय बीत चुका है। लक्ष्य का आधा हासिल हो जाना चाहिए था। खर्च तो आधे से अधिक का आंकड़ा पार करता दिखाई दे रहा है। कितने करोड़ तो विज्ञापन पर ही खर्च हो गये। इस कोशिश में शौचालय तो बढ़े, लेकिन क्या स्वच्छता बढ़ी?
कितना स्वच्छ हुआ भारत?
एक आंकड़े के मुताबिक, भारत में हर रोज कुल मिलाकर करीब 1.60 लाख मीट्रिक टन कचरा पैदा होता है। यदि कचरे की उक्त मात्रा का ठीक से निष्पादन किया जाये तो इतने कचरे से 27 हजार करोड़ रुपये की खाद पैदा की जा सकती है; 45 लाख एकड़ बंजर भूमि को उपजाऊ बनाई जा सकती है; 50 लाख टन अतिरिक्त अनाज पैदा किया जा सकता है और दो लाख सिलेंडरों हेतु अतिरिक्त गैस हासिल की जा सकती है। इस तथ्य को ध्यान मे रखते हुए ‘स्वच्छ भारत अभियान’ ने नगरों में कूड़ा प्रबंधन, शौचालय निर्माण, कचरा जलाने पर रोक जैसे कदम तय किए हैं। नगरों में चल रहे स्वच्छ भारत अभियान अब तक 42,948 वार्डों में सौ फीसदी घरों से कूड़ा एकत्र करने का दावा है। दावा है कि कचरे से 88.4 मेगावाट बिजली बनाई जा रही है। अभियान के तहत 1,64,891.6 मीट्रिक टन कम्पोस्ट बनाया जा चुके हैं। अप्रैल, 2017 के अंत में दर्ज शासकीय आंकड़ों के मुताबिक, अभियान के तहत 31,14,24 निजी शौचालय तथा 1,15,786 शौचालयों का निर्माण कर 619 नगरों को खुले में शौच से मुक्त किया जा चुका है। नगरों की दृष्टि से आंध्र प्रदेश और गुजरात के खुले में शौच से 100 फीसदी मुक्त राज्य का दर्जा हासिल कर चुके हैं। कर्नाटक के मैसूर को भारत के सबसे स्वच्छ नगर, सिक्किम के गंगटोक को सबसे स्वच्छ हिल स्टेशन और मेघालय के मावलीन्नाग को सबसे स्वच्छ गाँव का दर्जा हासिल है।
पोल खोलता नमूना सर्वेक्षण
अक्तूबर, 2016 को पेश आंकड़ों के मुताबिक ढाई लाख ग्राम पंचायतों में से मात्र 28 हजार ही निर्मल ग्राम पंचायत बन पाई हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय का सर्वेक्षण खासकर, नगरीय स्वच्छता के दावों की पोल खोलता है। सर्वे में धनबाद सबसे गंदा शहर पाया गया। कोलकोता, आसनसोल, धनबाद, मेहसाणा, नारनौल, इंदौर, पटना, वाराणसी, लखनऊ, कानपुर, रायगढ़, रायपुर, जगदलपुर जैसे अनेक नगरों की हालत पस्त पाई गई।
रोक के बावजूद कचरा जलाने का काम जारी है। नये मल शोधन संयंत्रों को लगाने पर ज़ोर है। किंतु राष्ट्रीय हरित पंचाट की तमाम फटकार के बावजूद मल शोधन संयंत्र ठीक से काम नहीं कर रहे। इस बात पर कोई ज़ोर नहीं है कि कचरा कम से कम पैदा हो। उद्योगों को 'ज़ीरो पाॅल्युशन' लक्ष्य की तरफ ले जाने के लिये कोई सख्ती और सुविधा योजना ज़मीन पर काम नहीं कर रही है। स्वच्छ भारत अभियान के लिये जनसामान्य द्वारा 12,57,265 घंटों का श्रमदान भी जागृति से आगे बढ़कर हमारी आदत नहीं बन सका है।
एक दावा शौचालय
स्वच्छ भारत अभियान के ग्रामीण लक्ष्य के तहत 23 अप्रैल, 2017 तक 3,95,51,025 शौचालय बनाये गये। 192,403 गाँव और 134 ज़िलों को खुले में शौच से पूरी तरह मुक्त बनाया गया। नमामि गंगे अभियान के तहत 3,818 गाँवों को खुले में शौच मुक्त बनाया गया है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम और केरल के सभी गाँव खुले में शौच से मुक्त राज्य किए जा चुके हैं। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना अभी 50 फीसदी के आस-पास लटके हैं; वहीं बिहार , उड़ीसा, जम्मू-कश्मीर अन्य राज्यों से काफी पीछे हैं। मात्र 29.01 प्रतिशत के आंकड़े के साथ बिहार ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय निर्माण में सबसे फिसड्डी राज्य है।
प्रगति का आकलन करना हो, तो जरा और पीछे निगाह डालें। वर्ष 1992-93 में भारत के 70 प्रतिशत लोगों के पास शौचालय की सुविधा नहीं थी। 2007-08 में यह आंकड़ा 51 फीसदी पर आया। विश्व बैंक द्वारा अक्तूबर, 2015 में पेश आंकड़ों के अनुसार, गाँवों में 66 प्रतिशत और नगरों में 19 प्रतिशत लोग शौचालय सुविधा से वंचित बताये गये थे। भारत सरकार के मुताबिक, ग्रामीण भारत में दो अक्तूबर, 2014 को जहाँ लक्ष्य का 41.92 फीसदी हासिल हुआ था। वहीं 23 अप्रैल, 2017 को शौचालय निर्माण का हासिल लक्ष्य 63.72 प्रतिशत दर्शाया गया।
घर-घर शौचालय का राज्यवार हासिल ग्रामीण लक्ष्य |
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राज्य |
02 अक्तूबर, 2014 |
23 अप्रैल, 2017 |
जम्मू कश्मीर |
28.25 |
38.14 |
हिमाचल प्रदेश |
88.64 |
100 |
पंजाब |
75.39 |
81.30 |
हरियाणा |
80.59 |
90.94 |
उत्तराखण्ड |
74.34 |
100 |
राजस्थान |
30.55 |
78. 61 |
मध्य प्रदेश |
31.79 |
58.09 |
छत्तीसगढ़ |
41.64 |
81.13 |
गुजरात |
55.96 |
95.18 |
उड़ीसा |
12.12 |
42.10 |
बिहार |
22.35 |
29.01 |
झारखण्ड |
30.08 |
53.93 |
पश्चिम बंगाल |
60.21 |
89.67 |
असम |
43.80 |
73.00 |
अरुणाचल प्रदेश |
52.44 |
93.10 |
सिक्किम |
92.52 |
100 |
मेघालय |
61.67 |
91.36 |
मणिपुर |
86.40 |
86.40 |
नगालैण्ड |
57.43 |
80.52 |
मिज़ोरम |
78.08 |
85.92 |
त्रिपुरा |
63.21 |
79.39 |
महाराष्ट्र |
52.58 |
79.23 |
आंध्र प्रदेश |
36.11 |
53.82 |
तेलंगाना |
30.89 |
49.74 |
कर्नाटक |
41.23 |
65.65 |
तमिलनाडु |
49.45 |
73.92 |
केरल |
95.67 |
100 |
दूसरा पक्ष
शौचालय में स्वच्छता देखने वालों के लिये स्वच्छता निर्माण के ये कागज़ी आंकड़े आशा जगा सकते हैं। वे खुश हो सकते हैं कि भारत के हजारों गाँव आज 'ओडीएफ' यानी ‘खुले में शौच से मुक्त’ की श्रेणी में शामिल हो चुके हैं। वे खुश हो सकते हैं कि भारत में स्वच्छता भी अब एक राष्ट्रीय मुद्दा है; यह इन आंकड़ों का दूसरा सकरात्मक पहलू है। लेकिन निराश करने वाला पहलू यह है कि स्वच्छ भारत अभियान, सिर्फ और सिर्फ शौचालय निर्माण करने वाला अभियान बनकर रहता दिखाई पड़ रहा है। जल्दी लक्ष्य प्राप्ति के चक्कर में शौचालय निर्माण में घोटाले, घटिया गुणवत्ता और अनियमितता के मामले सामने आ रहे हैं, सो अलग।
घोटालों में सिमटती शौचालय स्वच्छता
स्वयं प्रधानमंत्री जी के लोकसभा क्षेत्र से आ रही खबरें बता रही हैं कि ज्यादा से ज्यादा गाँवों को खुले में शौचमुक्त दिखाने की हड़बड़ी में आधे-अधूरे शौचालयों का निर्माण व घोटाला..दोनों हुए हैं। अमर उजाला में छपी खबरों के अनुसार चोलपुर ब्लाॅक बाबतपुर, रजला, महदा और लटौनी गाँव में शौचालय घोटाला इसका एक प्रमाण है। विकास अधिकारी की जाँच में गाँव लटौनी अकेले में 71 शौचालय अधूरे पाये; 51 लाभार्थियों को मिलने वाले अनुदान की दूसरी किस्त पंचायत सचिव व प्रधान मिलकर खा गये। 14 शौचालयों का निर्माण कराये बगैर ही 64,400 रुपये की बंदरबांट कर ली गई।
छत्तीसगढ़ में तो यह सब बड़े पैमाने पर होने की ख़बरे हैं। एबीपी चैनल पर दिखाई रिपोर्ट में कहीं बिना दीवार, कहीं अधूरी दीवार, तो कहीं बिना कमोड, कहीं बिना टैंक और बिना दरवाजे के शौचालय निर्माण के वीडियो फुटेज ने बताया कि शौचालयों के नाम पर गड़बड़ी व्यापक है। जैसे-जैसे जाँच का दायरा बढ़ेगा, यकीन मानिए कि और बड़े पैमाने पर गड़बड़ियाँ सामने आयेंगी। कारण कि गाँव-गाँव शौचालय बिना मांग की आपूर्ति का कार्यक्रम है। बिना रुचि सुनिश्चित किया गया निर्माण न उपयोगी होता है और न ही सहभागी। यही कारण है कि ‘निर्मल भारत अभियान’ के तहत बनाये गये शौचालयों का इस्तेमाल बकरी बांधने अथवा भूसा भरने में होते देखा गया।
संकल्प की कमी
पाॅली कचरा और इलेक्ट्रॉनिक कचरे में कमी कैसे आये? इनका प्रकृति अनुकूल निष्पादन करने में निष्पादन एजेंसियाँ/विभाग रुचि कैसे दिखायें? स्वच्छता और पर्यावरण..दोनों की दृष्टि से आज इन दोनो चुनौतियों के समाधानों को ज़मीन पर उतारने की जरूरत है। नगरीय जैविक कचरे को कंपोस्ट में तब्दील करने में अभिरुचि का न होना तीसरा चुनौती है। गंदे रास्ते, गंदे परिसर चुनौती हैं ही। दुखद है कि स्वच्छता के ऐसे अन्य पैमानों पर हमारी सरकारों, नगर निकायों, पंचायतों और खुद हमारा कोई संकल्प दिखाई नहीं देता।
स्वच्छता को संस्कार की दरकार
मेरा विचार है कि स्वच्छता को जन-जन की आदत बनाये बिना किए गये प्रयास स्वच्छता को महज एक उद्योग बनाकर रख देंगे; जिसका लाभ सिर्फ और सिर्फ बाज़ार, ठेेकेदार और दलालों को होगा। इसलिये ज़रूरी है कि स्वच्छता को संस्कार बनाने के प्रयास हम खुद अपने घर से शुरू करें।
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