कहीं गुम न हो जाए गंगा की गाय

‘गंगा की गाय’ कही जाने वाली गांगेय डॉल्फिन चौतरफा मार झेल रही हैं। संकट जितना प्राकृतिक है उससे कहीं ज्यादा मानव निर्मित है। केंद्र ने इसे राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित कर रखा है मगर समुचित प्रयासों के अभाव में इसके अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है।

पिछले कुछ वर्षों में मछुआरों द्वारा इनका अंधाधुंध शिकार किया गया है। दुनिया भर में दुर्लभ जीवों के संरक्षण के लिए कार्यरत संस्था वर्ल्ड कंजरवेशन यूनियन ने तो 1996 में ही इसे विलुप्तप्राय प्राणी का दर्जा देते हुए ‘रेड डाटा बुक’ में शामिल कर लिया था। कंवेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एनडेनर्जड स्पीशिज ऑफ वाइल्ड फौना एंड फ्लोरा (साइट्स), कंजरवेशन ऑफ माइग्रेटरी स्पीशिज (सीएमएस) और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने भी डॉल्फिन की घटती संख्या को लेकर से विलुप्त हो रहे जीव की सूची में रखा है। चीन छह साल पहले यांगत्सी नदी की डॉल्फिन और अपनी प्यारी ‘बैजी’ को खो चुका है। चीन की यांगत्सी नदी में पाई जाने वाली डॉल्फिन का वैज्ञानिक नाम लिपोटिस वेक्सीलाइफर है और यह विलुप्त हो चुकी है। लेखक सैमुअल टर्वी ने बैजी के विलुप्त होने के लिए जिन परिस्थितियों को जिम्मेदार ठहराया था, अब वही गंगा डॉल्फिन के लिए भी उत्पन्न हो गई है यानी ‘गंगा की गाय’ का भी वजूद संकट में है। अगर त्वरित उपाय नहीं हुए तो गांगेय डॉल्फिन भी तस्वीरों की शोभा बन कर रह जाएंगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर गंगा की इस गाय को तीन वर्ष पहले राष्ट्रीय जलीय जीव तो घोषित का गया लेकिन संरक्षण के उपाय नहीं हुए। वहीं, गंगा में घटते जलस्तर के मद्देनजर ‘अविरल धारा मिशन’ का गठन किया गया था लेकिन इस मिशन का बिहार पर ज्यादा जोर नहीं है। इसी साल फरवरी में बिहार दौरे पर आए योजना आयोग के अध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने पटना में डॉल्फिन अनुसंधान केंद्र खोलने की घोषणा की थी जो अब तक आकार नहीं ले पाई है।

इधर, बिहार सरकार ने निगरानी के लिए टॉस्क फोर्स गठित है जिसमें वन्य जीव संरक्षण से जुड़े लोग हैं मगर उन्हें डॉल्फिन के बारे में ज्यादा अनुभव नहीं है। फिलहाल गांगेय डॉल्फिन चौतरफा मार झेल रही है। दरअसल, विकास की रफ्तार तेज हुई तो गंगा में वाटर स्पोर्ट्स शुरू किए गए। तेज रफ्तार से चलने वाली मोटर बोट, जेटस्की और वाटर स्कूटर के चलने से पर्यटकों के साथ-साथ स्थानीय लोगों को भी मनोरंजन का एक नया जरिया मिला लेकिन गांगेय डॉल्फिन के लिए खतरा और बढ़ गया है। सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् और डॉल्फिन मैन के रूप से ख्याति अर्जित कर चुके प्रो. आर. के. सिन्हा ने इस बाबत पर्यावरण एवं वन विभाग को आगाह किया है। डॉल्फिन संरक्षण के लिए भारत सरकार द्वारा गठित सलाहकार समिति के अध्यक्ष एवं पटना विश्वविद्यालय के जीव विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर सिन्हा का मानना है कि गांगेय डॉल्फिन के ठिकाने यानी गंगा में तेज रफ्तार मोटर बोट के परिचालन पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। उनका कहना है कि गंगा का जलस्तर कम हो रहा है। इसका फायदा शिकारी उठा रहे हैं।

प्रोफेसर सिन्हा ने बताया कि डॉल्फिनों में एक विशेष प्रकार का तेल पाया जाता है। यह तेल किसी भी डॉल्फिन के वजन का 30 प्रतिशत होता है। इसी तेल की गंध से अन्य मछलियां उसकी ओर आकर्षित होती हैं। मछुआरे अपने जाल में इसी तेल का प्रयोग करते हैं जिस कारण वे डॉल्फिन का शिकार करते हैं। इसके अलावा गंगा में बढ़ते मानव हस्तक्षेप तथा प्रदूषण की वजह से भी डॉल्फिन की संख्या लगातार कम हो रही है। दूसरी ओर शहर भर का गंदा पानी लगातार गंगा में बहाया जा रहा है जो डॉल्फिन के लिए मुसीबत का सबब बनता जा रहा। जानकारों के अनुसार भारतीय अंतरदेशीय जलमार्ग प्राधिकरण का बिहार में जलीय यातायात का प्रस्ताव भी डॉल्फिन के लिए खतरनाक हो सकता है। कुल मिलाकर डॉल्फिन के लिए हालात मुश्किल होते जा रहे हैं। प्रो. अरुण वर्षों से गंगा के डॉल्फिन के संरक्षण कार्य में लगे हैं। जलीय जीव के संरक्षण में उनके योगदान के लिए नीदरलैंड सरकार 1999 में उन्हें ‘द ऑर्डर गोल्डन आर्क’ से सम्मानित कर चुकी है।

सिन्हा के योगदान पर पेरिस में दो फिल्में भी बनी हैं। इस फिल्म में डॉल्फिन के सूंस से राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित होने तक की कहानी है। फिल्म फ्रांस के पत्रकार क्रिस्टियन गलिशिना ने बनाई है। 1995 में फिल्म की शूटिंग शुरू हुई और 2007 में समाप्त यानी बारह साल के प्रयास के बाद फिल्म तैयार हुई है। उनका कहना है कि जब देश में बाघों की संख्या घटी तो केंद्र से लेकर राज्य सरकारें तक उनके संरक्षण के लिए सक्रिय हुईं। अब उसी स्तर का प्रयास गांगेय डॉल्फिन के लिए भी जरूरी हो गया है क्योंकि डॉल्फिन को भी शिकारियों से उसी तरह का खतरा है जैसा बाघ को है। पिछले कुछ वर्षों में मछुआरों द्वारा इनका अंधाधुंध शिकार किया गया है। दुनिया भर में दुर्लभ जीवों के संरक्षण के लिए कार्यरत संस्था वर्ल्ड कंजरवेशन यूनियन ने तो 1996 में ही इसे विलुप्तप्राय प्राणी का दर्जा देते हुए ‘रेड डाटा बुक’ में शामिल कर लिया था। कंवेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एनडेनर्जड स्पीशिज ऑफ वाइल्ड फौना एंड फ्लोरा (साइट्स), कंजरवेशन ऑफ माइग्रेटरी स्पीशिज (सीएमएस) और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने भी डॉल्फिन की घटती संख्या को लेकर से विलुप्त हो रहे जीव की सूची में रखा है।

राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित होने के बावजूद मुश्किल में हैं डॉल्फिनराष्ट्रीय जलीय जीव घोषित होने के बावजूद मुश्किल में हैं डॉल्फिनदेश भर में मौजूद गांगेय डॉल्फिन में से 60 प्रतिशत डॉल्फिन अकेले बिहार में है। बिहार में इनकी संख्या 1300 से अधिक बताई जाती है। देश में फिलहाल लगभग अठारह सौ डॉल्फिन हैं। बिहार में गंगा में 900 और गंडक में लगभग चार सौ डॉल्फिन हैं। उत्तर प्रदेश, असम के ब्रह्मपुत्र और पश्चिम बंगाल में भी नदीय डॉल्फिन होने का अनुमान है। पटना में गांगेय डॉल्फिन की संख्या सैंकड़ों में है। लिहाजा, इस क्षेत्र को डॉल्फिन वाच सेंटर के रूप में विकसित करने की योजना है। इसे कनाडा और जापान के व्हेल और डॉल्फिन दर्शन केंद्रों की तर्ज पर विकसित किया जाएगा। इससे पहले 1991 में डॉल्फिन को सुरक्षा प्रदान करने के लिए बिहार के सुल्तानगंज से लेकर कहलगांव तक के लगभग 60 किलोमीटर क्षेत्र को ‘विक्रमशीला अभ्यारण्य’ घोषित किया जा चुका है। यह अलग बात है कि उसका कोई खास प्रभाव होता नजर नहीं आ रहा। शिकार बदस्तूर जारी है।

इस बीच अब बिहार सरकार ने हर साल पांच अक्टूबर को डॉल्फिन दिवस मनाने का फैसला भी लिया है लेकिन इससे संरक्षण में फायदा होगा या फिर यह सिर्फ रस्मी आयोजन बनकर रह जाएगा, इसका पता आने वाले वर्षों में ही लगेगा। वैसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर डॉल्फिन को बचाने के लिए पटना में एशिया का पहला डॉल्फिन अनुसंधान केंद्र खोलने का फैसला हुआ है। नदीय डॉल्फिन के संरक्षण के लिए यह एशिया ही नहीं, पूरी दुनिया में अकेला अभ्यारण्य होगा जिस पर पूरे विश्व के पर्यावरण विशेषज्ञों एवं प्रकृतिप्रेमियों की नजरें टिकी हैं। डॉल्फिन मैन प्रो. आर.के. सिन्हा ही यह जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। उनका कहना है कि 2013 तक यह कार्ययोजना बन जाएगी। इस तरह अगर संरक्षण से गंगा की डॉल्फिन की संख्या में बढ़ोतरी होती है तो यह गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के लिए भी उपलब्धि मानी जाएगी।

गांगेय डॉल्फिन बिहार के लिए पर्यटन के हिसाब से भी वरदान है। यह एक नेत्रहीन जलीय जीव है जिसको सुनने की क्षमता तीव्र होती है। जानकारों की मानें तो यह जीव एक बार में एक बच्चा देता है इसलिए भी इसकी आबादी कम है। डॉल्फिन के बच्चे छह माह तक दूध पीते हैं। बच्चे करीब नौ माह तक गर्भ में रहते हैं। डॉल्फिन दो-तीन साल के अंतराल पर एक बच्चे को जन्म देती है। यह दुनिया का एक अजूबा जलीय प्राणी है। यह स्तनधारी जीव है जो सिटेसिया ग्रुप का एक सदस्य है। आम बोलचाल की भाषा में इसे सोंस या सूंस कहते हैं। भारत में इसे ‘गंगा की गाय’ के नाम से भी जाना जाता है। एक पूर्ण वयस्क सोंस की लंबाई 2 से 2.70 मीटर तक होती है। मादा डॉल्फिन नर की अपेक्षा बड़ी होती है तथा इसका वजन करीब 100 से 150 किलोग्राम तक होता है।

आमतौर पर यह गहरे भूरे रंग की होती है और इसका मुंह काफी लंबा एवं चोंचनुमा होता है। निचला जबड़ा ऊपरी जबड़े की तुलना में थोड़ा बड़ा होता है तथा दोनों जबड़ों में करीब 130 से 150 दांत होते हैं। आंखों में लेंस न होने के कारण यह देख नहीं सकती है। विकास के क्रम में इनमें चमगादड़ों की तरह बहुत ही सूक्ष्म ‘इको-लोकेशन’ सिस्टम का विकास जरूर हुआ है। यह साउंड वेव के आधार पर दिशा का अनुमान लगाती है और भोजन के लिए अपना शिकार खोजती है। सांस लेने के लिए यह जल की सतह से बाहर आती है तब क्षण भर के लिए दिखाई पड़ती है। हालांकि डॉल्फिन के प्रयोगशाला प्रजनन में सफलता नहीं मिलने के कारण इस पर अनुसंधान बहुत कठिन है। डॉल्फिन की चालीस से अधिक प्रजातियां समुद्र के खारे पानी में भी पाई जाती हैं। नदियों के मीठे जल में केवल इसकी चार प्रजातियां ही मिलती हैं। उपमुख्यमंत्री और वन एवं पर्यावरण मंत्री सुशील कुमार मोदी कहते हैं की बिहार सरकार डॉल्फिन को लेकर संवेदनशील है। पर्यटकों को गंगा नदी में डॉल्फिन दिखाने के लिए डॉल्फिन दर्शन नामक पर्यटन योजना की शीघ्र ही शुरुआत होगी। इसके अलावा जनजागरण के लिए स्लाइड शो दिखाए जाएंगे।

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