कहाँ से लाऊँ दो बूँद जिन्दगी की

प्रकृति ने हमें कई अनमोल तोहफों से नवाज़ा है इनमें से पानी भी एक है। कोई खाना खाए बगैर तो दो-तीन दिन गुज़ार सकता है लेकिन पानी के बगैर जिन्दगी गुज़ारना असम्भव है। इन्सान हो या जानवर कोई भी पानी के बिना जिन्दा नहीं रह सकता। देश के दूर-दराज़ क्षेत्रों में लोगों को खाना-बनाने, पीने, कपड़े-धोने, नहाने और दैनिक जीवन की दूसरी आवश्यकताओं के लिए साफ पानी नहीं मिल पाता है। कहने को तो जल ही जीवन है लेकिन जहाँ पर जल ही नहीं, वहाँ जीवन कैसा होगा, इसका अनुमान आप स्वयं लगा सकते हैं।

जम्मू-कश्मीर के पुंछ ज़िले में भी साफ पानी की समस्या एक विकराल रूप लिए हुए है। 21वीं सदी के इस दौर में भी तहसील मेंढ़र के नाड़बलनोई के लोग आज भी पानी की सुविधा से वंचित हैं। पानी की समस्या के बारे में यहाँ की स्थानीय निवासी नसीम अख्तर का कहना है कि - ‘‘हमारे गाँव में सबसे बड़ी परेशानी पानी की है। हमें पानी घर से कई किलोमीटर दूर, नदी से भरकर लाना पड़ता है जिसमें तकरीबन तीन घण्टे लग जाते हैं। इसकी वजह से हमारे साथ-साथ हमारे बच्चों का भी भविष्य बर्बाद हो रहा है। अब आप ही बताएं कि 9:00 बजे से पहले बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करें या नदी से पानी लेकर आएं। पानी की वजह से बच्चे स्कूल जाने के लिए समय से तैयार नहीं हो पाते हैं जिसकी वजह से उनकी पढ़ाई भी ठीक से नहीं हो पाती है।’’ पानी की समस्या के बारे में गाँव की स्थानीय महिला शकीना बी कहती हैं कि- ‘‘जो पानी लोगों को जिन्दगी देता है कहीं वही पानी लोगों की जिन्दगी लेने का कारण न बन जाए। उन्होंने बताया कि मेरा आॅपेरशन हुए अभी पाँच महीने ही हुए थे मगर तकलीफ होने के बावजूद भी मुझे पानी लाना पड़ा। पानी लाने की वजह से मेरी तकलीफ बढ़ गयी जिसकी वजह से मेरे साथ-साथ मेरे घर वालों को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। मेरे ऑपरेशन को एक साल हो चुका है लेकिन मेरी तकलीफ में अभी भी कोई कमी नहीं आयी है। ऑपरेशन के दर्द की वजह से मैं अपने बच्चों को खाना भी समय से नहीं दे पाती हूँ और मैं इलाज के लिए दोबारा अस्पताल भी नहीं जा सकती हूँ क्योंकि मेरे पास इलाज के लिए पैसा नहीं हैं। बड़ी मुश्किल से घर का खर्चा चलता है, मैं इसके लिए किसको ज़िम्मेदार ठहराऊँ स्वास्थ्य विभाग को या फिर अपनी किस्मत को।’’

इसी गाँव के रहने वाले एक छात्र मुख्तार अहमद ने बताया कि -‘‘पानी सारी परेशानियों की जड़ है। पानी की समस्या की वजह से मैं दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से अपनी पढ़ाई कर रहा हूँ। घर पर काम करने वाला मेरे सिवा और कोई नहीं है। जिसकी वजह से पानी भी मुझे ही लाना पड़ता है। इसकी वजह से मैं शिक्षा ग्रहण करने के लिए कहीं बाहर नहीं जा सकता। यही कारण है कि मैं दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से ही घर पर रहकर शिक्षा ग्रहण कर रहा हूँ। इसके अलावा मेरे घर की आर्थिक स्थिति भी मेरे बाहर जाकर शिक्षा ग्रहण करने में एक बड़ी रूकावट है। फिर भी अगर यहाँ पानी की समस्या न होती तो शायद बाहर जाकर नियमित शिक्षा ग्रहण कर सकता था।’’ ज़रा सोचिए कि मुख्तार के अलावा गाँव में ऐसे न जाने कितने लोग होंगे जो पानी की समस्या की वजह से दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से शिक्षा हासिल कर रहे होंगे या उन्होंने बीच मे ही पढ़ाई छोड़ दी होगी।

दैनिक अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के 1823 गाँव ऐसे हैं जहाँ पर हर किसी को पानी की सुविधा उपलब्ध नहीं है। यह संख्या 13 प्रतिशत है। इसके अलावा सात प्रतिशत अर्थात 950 गाँव ऐसे हैं जहाँ पानी की सुविधा अभी भी उपलब्ध नहीं है। इन आँकड़ों से आप अन्दाज़ा लगा सकते हैं कि राज्य में पानी की समस्या आज भी मुँह बाए खड़ी है। पानी की समस्या के बारे में गाँव की स्थानीय निवासी सीसीबी कहती हैं कि- ‘‘हमारे गाँव में सबसे बड़ी परेशानी पानी की है। हमें पानी लाने में तीन घण्टे का समय लगता है। दिन में कम से कम दो बार पानी लाना पड़ता है जिससे हमारा काफी समय पानी लाने में ही बर्बाद हो जाता है। अगर हमें सड़क, बिजली की सुविधा न मिले तो हम किसी तरह काम चला सकते हैं लेकिन पानी के बगैर हमारी जिन्दगी आगे नहीं बढ़ सकती। सरकार के खज़ाने में पैसे खत्म हो गए हैं या उन्हें हमारी परवाह नहीं रही। चुनाव के दौरान राजनेता यहाँ वोट माँगने आते हैं और बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य सुविधाएँ देने का वादा करते हैं। लेकिन चुनाव के बाद फिर अगले चुनाव में ही अपना चेहरा दिखाते हैं।’’

गाँव की स्थानीय निवासी खतीजा का कहना है कि- ‘‘हम गाँव वालों की माँग पर पाइपें तो आ जाती हैं लेकिन हम तक नहीं पहुँचती, आखिर वह पाइपें जाती कहाँ हैं? हमारी कोई सुनता ही नहीं है। इससे सिर्फ हमें ही परेशानियाँ नहीं हैं बल्कि इस सबका असर अब हमारे बच्चों के भविष्य पर पड़ रहा है। पानी की समस्या की वजह से वह रोज़ाना स्कूल नहीं जा पाते हैं अगर जाते भी तो घर वापस आकर उन्हें इतना समय नहीं मिलता कि वह स्कूल का काम कर सकें। इतनी मुश्किलों से दो-चार होकर हम अपनी जिन्दगी गुज़र बसर कर रहे हैं।’’

इस गाँव के रहने वाले मोहम्मद रशीद का कहना है कि- ‘‘हम सरहद पर रहने वाले लोग इसे अपनी मजबूरी और बेबसी समझकर अपनी जिन्दगी गुज़ार रहे हैं। सरहद के बहुत करीब होने के बावजूद भी हमारा कोई हाल पूछने वाला नहीं है। आखिर सरकार हमें कब तक बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखेगी और कब हमारी परेशानियों का हल निकलेगा। हमें नई सरकार से बहुत उम्मीदें हैं, अब देखना यह है कि नई सरकार हमारी समस्या का कोई हल निकालती है या फिर हमें हमारे हाल पर छोड़ देती है।’’

गाँव के स्थानीय निवासी मोहम्मद आज़िम कहते हैं कि- ‘‘सरहद पर बसे लोग तो रात को चैन की नींद भी नहीं सो सकते। सरहद पार से आने वाला कौन सा गोला हमारे मकान को कब बर्बाद करके हमें और उनके मवेशियों को मौत की नींद सुला देगा, इसका भी पता नहीं। यही कारण है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में से आपको ऐसे लोग भी मिल जाएँगे जिनमें से किसी की टांग नहीं तो किसी का बाज़ू नहीं है। क्या यह परेशानियाँ हमारे लिए काफी नहीं जो हमें तमाम मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा जा रहा है और इनका असर हमारे बच्चों के भविष्य पर पड़ रहा है। बच्चे समय पर पढ़ नहीं पाते क्योंकि उनका सारा समय पानी लाने में ही बर्बाद हो जाता है। इसलिए मैं पीएचई विभाग के अधिकारियों से आग्रह करता हूँ कि हमारी परेशानियों का जल्द से जल्द कोई हल निकाला जाए ताकि हम भी एक अच्छी जिन्दगी गुज़ार सकें। मैं मौजूदा सरकार से आग्रह करता हूँ जल्द से जल्द यहाँ की जनता की परेशानियों का हल निकाला जाए क्योंकि सरहद पर होने की वजह से पहले ही यहाँ मुश्किलें बहुत ज़्यादा हैं। अगर यहाँ लोगों को बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखा गया तो यह इनके साथ नाइन्साफी होगी।’’

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