कचरा: अब हमारी पैतृक सम्पत्ति

अमेरिका में 40 प्रतिशत भोजन की कीमत करीब 165 अरब डॉलर बैठती है। वैसे सामान्य भाषा में कहें तो 4 लोगों का अमेरिकी परिवार प्रतिवर्ष करीब 1,18,000 रुपए का खाना कचरे में फेंकता है। इस प्रवृत्ति ने पूरी मानव सभ्यता के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है। कचरे के हमारी पैतृक सम्पत्ति में परिवर्तित हो जाने की गाथा को दोहराता महत्वपूर्ण आलेख। बचपन में मैं सुपर बाजार के कूड़ेदान से उठाया गया खाना खाता था। 70 के दशक के मध्य में हम पहली बार एक शरणार्थी की तरह वियतनाम से अमेरिका में प्रविष्ठ हुए थे और मेरे सबसे बड़े भाई को घर के पास एक सुपर बाजार में काम मिल गया था। उसे दिए गए कई कामों में से एक, जो उसे विशेष रूप से अरुचिकर लगता था। वह था रात में ऐसे भोज्य पदार्थों को कूड़ेदान में फेंकना, जिनकी खाने की तिथि निकल गई हो और इसके बाद उन पर क्लोरॉक्स नामक एक रसायन का छिड़काव करना, जिससे कि कचरा बीनने वाले एवं गरीब निराश हो। बिना भूले वह अपने साथियों को रात के अंधेरे में बुलाता था और उस बचे हुए खाने- जिनमें बिस्कुटों के सीलबंद डिब्बे, खाने की जमी हुई ट्रे, टूना मछली के डिब्बे, आटे की थैलियां और खाने की नाना प्रकार की वस्तुएं शामिल थीं, को हमारे द्वारा निकाल लिए जाने के बाद वह उन पर रसायन डाल देता था। एक दिन सुपर बाजार के प्रबंधक ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया और वहां पर एक ताला बंद कचरा पेटी लगा दी। इसके बाद मेरे भाई को नौकरी से हाथ धोना पड़ा।

बदस्तूर जारी


जहां तक कचरे की बात है तब से अब तक स्थिति में अधिक परिवर्तन नहीं आया है। बल्कि स्थितियां और बदतर हुई हैं। यह सच है कि अमेरिकी वस्तुओं का पुर्नउत्पाद (रिसायकिलिंग) करते हैं। हम हरियाली और ध्रुवीय भालुओं को बचाने की बात भी करते हैं। लेकिन अमेरिकी पहले की तरह बर्बादी करने वाले बने हुए हैं। प्राकृतिक संसाधन रक्षा परिषद (एनआरडीसी) द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार औसत अमेरिकी नागरिक दक्षिण पूर्व एशिया के नागरिकों के मुकाबले 10 गुना ज्यादा भोजन की बर्बादी करते हैं। यह 1970 के दशक में अमेरिकी नागरिकों द्वारा की जा रही बर्बादी से 50 प्रतिशत अधिक है। शोध में पाया गया कि हम हमारे भोजन का 40 प्रतिशत फेंक देते हैं। इसकी प्रतिवर्ष की अनुमानित कीमत करीब 165 अरब डॉलर (एक डॉलर = 53 रु.) होती है। इस लंबी मंदी के दौर में भी गणना करें तो औसतन चार लोगों का परिवार प्रतिवर्ष 2200 डॉलर (1,16,000 रु.) मूल्य के बराबर का भोजन फेंक देता है। इसके अन्य विपरीत प्रभाव भी हैं। जैसे कि अमेरिका में गत तीस वर्षों में कचरे की मात्रा दुगनी हुई है। अनुमानतः अमेरिका के 80 प्रतिशत उत्पादों को एक बार प्रयोग करने के बाद फेंक दिया जाता है, जबकि सभी प्रकार के प्लास्टिक के 95 प्रतिशत, कांच के बर्तनों के 75 प्रतिशत एवं एल्यूमिनियम पेय पदार्थ डिब्बों के 50 प्रतिशत का पुनर्चक्रण (रिसायकिलिंग) होता ही नहीं है। इसके बजाय या तो इन्हें जला दिया जाता है या गाड़ दिया जाता है।

ग्रहीय कचरा


अमेरिका में विश्व की कुल जनसंख्या का महज 5 प्रतिशत ही निवास करता है जबकि वह विश्व ऊर्जा संसाधनों के 30 प्रतिशत से ज्यादा का उपभोग करता है और विश्व में पैदा होने वाले जहरीले कचरे में से 70 प्रतिशत अमेरिका में ही उत्सर्जित होता है। ग्लोबल अलायंस फॉर इनसिनेरेटर ऑल्टरनेटिव (वैकल्पिक भस्मक का वैश्विक संगठन) का कहना है कि ‘यदि हमारे ग्रह पर रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति अमेरिका की दर से उपभोग करने लगे तो हमें अपने उपभोग को पूरा करने के लिए 3 से 5 अतिरिक्त ग्रहों की आवश्यकता पड़ेगी।

अधिक समय नहीं बीता है जबकि मितव्ययता एक नैतिक कार्य माना जाता था। लेकिन अब हमारी दो तिहाई अर्थव्यवस्था उपभोग पर आधारित है। हम ऐसे युग में रह रहे है, जिसमें ग्लेशियर पिघल रहे है एवं बढ़ता समुद्री जलस्तर, ध्रुवीय भालू डूब रहे हैं, मेंढक महामारी की रफ्तार से खत्म हो रहे हैं, कोरल गायब हो रहे हैं और वनों के साथ-साथ हमारी जैव विविधता भी लुप्त हो रही है। हम बढ़ते वैश्विक तापमान के युग में रह रहे हैं। जहां तूफान हमारे शहरों और नगरों को तहस-नहस कर रहे हैं और हमारा जीवन रहने लायक ही नहीं बच पा रहा है। इसने हमारे ग्रह पर एक अभूतपूर्व संकट खड़ा कर दिया है।

प्रसिद्ध लेखक डेविड सुजुकी का कहना है कि ‘जब अर्थव्यवस्था का अस्तित्व उपभोग पर आश्रित हो जाता है तो हम कभी नहीं पूछते कि इसकी अधिकतम सीमा क्या है? हमें इन सबकी आवश्यकता क्यों है? और क्या यह हमें और आनंदित कर रही है? हमारे व्यक्तिगत उपभोग के पर्यावरणीय, सामाजिक एवं आध्यात्मिक परिणाम सामने आते हैं। अब हमारी जीवनशैली संबंधी धारणाओं के पुनः परीक्षण का समय आ गया है। तूफान ‘केटरीना’ के बाद अमेरिकियों ने अधिक संख्या में इन सवालों को पूछना आरंभ कर दिया है। लेकिन उपभोक्तावाद एक ताकतवर शक्ति है और इसने अत्यधिक कुशाग्रता से इसे विज्ञापन के माध्यम से ‘अमेरिकी सपने’ की संज्ञा दे दी है, जिससे बहुत कम लोग उबर पाते हैं। उपभोक्ताओं द्वारा ही हमारी अर्थव्यवस्था के 70 प्रतिशत से अधिक व्यय किया जाता है। हम जानते हैं कि परिवर्तन की आवश्यकता है। परंतु मोटापे के शिकार अनेक व्यक्तियों की तरह जो कि डाइटिंग एवं कसरत तो करना चाहते हैं ठीक उसी तरह एक देश की तरह हम भी इस आदत को छोड़ नहीं पा रहे हैं।

कचरा हमारे युग की पैतृक सम्पत्ति बन गया है। यह सबसे बड़ा मानव निर्मित ढांचा है। यह चीन की दीवार की तरह है। वर्तमान में सबसे बड़ा मानव निर्मित ढांचा, पूर्वी महान कचरा क्षेत्र (ईस्टर्न ग्रेट गारबेज पेच) है। इसमें केलिफोर्निया एवं हवाई के मध्य समुद्र में प्लास्टिक का विशाल वलयाकार बना हुआ है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका आकार टेक्सास प्रांत के बराबर है।

शरणार्थी से खरीदी की सनक तक


मुझे याद है जब 70 के दशक में मेरा भाई सुपर बाजार में काम करता था तब मैं बाजार से अवधिपूर्ण (एक्सपायरी) हो चुके भोजन को लादकर अपने परिवार में लाता था। अमेरिका जो भी आहार फेंक देता था वियतनाम में उसमें से जो कुछ भी बचा हुआ होता था कचरा बीनने वाले बच्चे निकाल लेते थे। लोग पड़ोसियों से पुराने अखबार एवं पत्रिकाओं को रिसायकल करने के लिए खरीदने का प्रयास करते थे या अपने सुअरों को तरल खाद्य पदार्थ खिलाने के लिए भीख मांगते थे। मेरा परिवार एवं रिश्तेदारों ने स्वयं शरणार्थी के रूप में शुरुआत की थी और आज ऐसा मध्यमवर्गीय अमेरिकी बन गये हैं और कई बार प्रतीत होता है कि उनका ध्येय भी सनक तक खरीददारी का हो गया है।

नवीनतम तकनीक, फैशन की नवीनतम धारा, नई से नई कारें, सर्वश्रेष्ठ लैपटॉप, नवीनतम आई पैड एवं आई फोन, हमारे पास ये सबकुछ हैं और हां, हालांकि मैं मितव्ययी होने का प्रयास करता हूं लेकिन मैं उसी समीकरण का हिस्सा हूं। डिनर पार्टी में यदि जितना मैं खा सकता हूं उससे ज्यादा परोस दिया जाता है तो मैं अच्छा खाना भी फेंक देता हूं। मेरे पास भी नवीनतम तकनीकें हैं और मैं इन्हीं आंकड़ों का हिस्सा हूं। वैसे मैं इस तथ्य से वाकिफ हूं कि आज मुख्यधारा के अमेरिकी ने सोचना प्रारंभ कर दिया है कि यदि सभी हमारे तरह का बनना चाहेंगे तो मौसम पर इसके क्या सीधे परिणाम पड़ेंगे? चीन से लेकर मुंबई, केपटाउन से लेकर रियो डी जेनेरियो तक सभी अमेरिकी शैली का बेहतर जीवन चाहते हैं। हमारी सामूहिक इच्छाएं धराशायी होने के कगार पर पहुंचकर पारिस्थितिकी पर और अधिक दबाव डाल रहीं हैं।

सेनफ्रांसिस्को में अपने घर वापस लौटते हुए मैंने देखा कि दो बूढ़ी चीनी महिलाएं मेरे घर के पास स्थित रेस्टारेंट में पड़े एल्युमिनियम के डब्बों एवं प्लास्टिक की बोतलों को तलाश रहीं थीं। एकाएक एक कर्मचारी बाहर आया और उसने चिल्लाकर बूढ़ी महिलाओं को ऐसा करने से रोका। मैं गाली देती उन दोनों महिलाओं को आड़ में छुपते देखता रहा और मुझे अपना दीन-हीन अतीत याद हो आया। मुझे भय है कि जिस तरह से सब कुछ घटित हो रहा है और वैश्विक तापमान वृद्धि से हमारी सभ्यता खतरे में पड़ गई है, ऐसे में ये दो बूढ़ी कचरा बीनने वाली हमारे अपने पूर्व भविष्य का ही प्रतिनिधित्व कर रही हैं।

एंड्रयु लाम न्यू अमेरिका मीडिया के सम्पादक हैं। ‘परफ्यूम ड्रीम्स: रिफ्लेक्शन्स ऑन द वियतनामी डिस्पोरा’ सहित अनेक पुस्तकों के लेखक हैं।

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