स्वामी ज्ञानस्वरूप के जल त्याग को व्यापक समर्थन की अपील
मित्रों! क्या किसी की मृत्यु पर शोक जताने की रस्म अदायगी मात्र से हमारा दायित्व पूरा हो जाता है? गंगा के लिए प्राण देने वाले युवा संत स्व. स्वामी निगमानंद उनके बलिदान पर शोक जताने वालों की बाढ़ सी आ गई थी। समाचार पत्रों ने संपादकीय लिखे। चैनलों ने विशेष रिपोर्ट दिखाई। स्वयंसेवी जगत ने भी बाद में बहुत हाय-तौबा मचाई। गंगा एक्सप्रेसवे भूमि अधिग्रहण के विरोध में रायबरेली और प्रतापगढ़ में मौतें हुईं। मिर्जापुर में किसानों पर लाठियां बरसी। मंदाकिनी के लिए गंगापुत्री बहन सुशीला भंडारी जेल में ठूंस दी गईं। राजेंद्र सिंह जी के उत्तराखंड प्रवेश पर उत्तराखंड क्रांति दल ने उत्पात मचाया। हम तब भी चुप्पी मारे बैठे रहे। क्या यह जरूरी नहीं हैं कि राष्ट्र के लिए.. हमारी साझी विरासत को जिंदा बनाये रखने के लिए अपना जीवन दांव पर लगाने वालों के जीते - जी हम उनके साथ खड़े दिखाई दें?
मित्रों! संत स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के नये नामकरण वाले प्रो. जीडी अग्रवाल का जीवन एक बार फिर संकट में है। गंगा की अविरलता और नरोरा से प्रयाग तक न्यूनतम प्रवाह की मांग को लेकर वह मकर संक्रान्ति से अनशन पर हैं। माघ मेला, प्रयाग में एक महीने के अन्न त्याग, मातृ सदन- हरिद्वार में पूरे फागुन फल त्याग के बाद अब चैत्र के माह का प्रारंभ होते ही 9 मार्च से उन्होंने जल भी त्याग दिया है। उनकी सेहत लगातार नाजुक हो रही है। चुनावी शोर में मीडिया ने भी उनकी महा-तपस्या की आवाज को नहीं सुनी। बीते दो माह के दौरान शासन ने भी जाकर कभी उनकी व्यथा जानने की कोशिश नहीं की। शासन तो अब भी नहीं चेता है। प्रशासन ने जरूर तपस्वी की आवाज बंद करने के लिए 10 मार्च की रात उन्हें जबरन उठाकर कबीर चौरा अस्पताल, वाराणसी पहुंचा दिया गया है। हालांकि स्वामी ज्ञानस्वरूप जी को गंगा के लिए प्राण देने में तनिक भी हिचक नहीं है। उनकी प्रतिज्ञा दृढ़ है। लेकिन क्या हम उनके प्राण यूं ही जाने दें?
आखिर हम कब तक गंगा के लिए बलिदान होते देखते रहेंगे? क्या हम इतने निकम्मे हैं कि बहरी सरकार को सुनने को भी बाध्य नहीं कर सकते? हम हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध... किसी भी धर्म या संप्रदाय के हों। हो सकता है कि स्वामी ज्ञानस्वरूप से हमारे वैचारिक या मानसिक मतभेद हों। लेकिन क्या गंगा से किसी का मतभेद हो सकता है। वह गंगा की अविरलता - निर्मलता हासिल करने के लिए जीवन होम करने पर लगे हैं। गंगा हम सभी की है। हम सभी गंगा की संतान हैं। क्या हमारा दायित्व नहीं बनता कि गंगा और गंगा रक्षा के लिए निरंतर मृत्यु की ओर बढ़ रहे गंगापुत्र की रक्षा के समर्थन में कुछ करें।
ऐसे हालात और सरकार की संवेदना शून्यता से व्यथित होकर जलपुरुष राजेन्द्र सिंह के साथ-साथ लोक विज्ञान संस्थान, देहरादून के प्रमुख रवि चोपड़ा और अलीगढ़ विश्वविद्यालय के पूर्व प्रो. आर.एच. सिद्दिकी ने राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया है। हम भी अपना दायित्व निभायें। हम जहां हैं, वहीं रहकर अहिंसा व सत्य के बल पर आज से ही धरना, यात्रा, अनशन, प्रदर्शन... जो कुछ भी उचित लगे, शुरू कर दें। हस्ताक्षर अभियान चलायें। ज्ञापन दें। सरकारों को लिखें। वाराणसी पहुंचें। इस निवेदन को अपने नाम से दूसरों तक पहुंचाएं। संघर्ष को प्रचारित करने से शक्ति का संगठन होता है। प्रचारित करें। प्रेरित करें। हमें भी बतायें। सरकारों को दिखा दें कि गंगा अनाथ नहीं है। गंगा की संतान अभी मरी नहीं है। क्या आप करेंगें? कुछ कीजिए। वरना! हमारा नाम गंगा बचाने वालों में नहीं, गंगा बचाने वालों का साथ न देने वालों में होगा। क्या यह अपने साथ ही अन्याय नहीं होगा??
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