गंगा हमारी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान। करोड़ों भारतवासियों को जीवनदान देने वाली माँ के समान है। वाराणसी के इस पावन क्षेत्र से ही प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने गंगा रक्षा अभियान की घोषणा कर गंगा के लिए एक नए मन्त्रालय की संरचना की है। किन्तु ‘राष्ट्रीय नदी’ की घोषणा के समान यह घोषणा भी केवल शाब्दिक उपलब्धि ही रह गयी है, क्योंकि गंगा रक्षा हेतु गंगा के अविरल प्रवाह की मूल आवश्यकता को दरकिनार कर केवल गंगा सफाई पर ही चर्चा की जाती रही है। आज गंगा जी के उद्गम क्षेत्र में ही विकास के नाम पर ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा रहा है जिससे गंगा जी के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है।
वर्षों से चली आ रही हमारी परम्पराएँ, रीति रिवाज गंगा की धारा और प्रवाह से जुड़े हैं। आज पहाड़ी क्षेत्रों में गंगा और हिमालय पर चल रही विद्युत परियोजनाओं के कारण जहाँ एक ओर हिमालय पर्वतों को छलनी किया जा रहा है वहीं दूसरी ओर गंगा जी के प्रवाह को बड़े-बड़े जलाशय व टनेल में डाल कर के गंगा के मूल स्वरूप को उद्गम क्षेत्र में ही समाप्त कर दिया गया है।
जब गंगा जी का मूल प्रवाह ही नहीं रहेगा तो निर्मल गंगा के यह प्रयास किस काम के? इसी परिप्रेक्ष्य में गंगा के अविरल प्रवाह हेतू धर्म संघ सभागार, दुर्गाकुंड वाराणसी में 19 से 20 सितम्बर को आयोजित होने वाला “भागीरथ प्रयास:एक बार फिर” कार्यक्रम ऐसे बहुत से प्रयासों की ओर एक पहल है।
मैदागिन स्थित पराड़कर स्मृति भवन में आयोजित पत्रकार वार्ता को डॉ मीता खिलनानी, मल्लिका भनोट, डॉ आनंद प्रकाश तिवारी, वल्लभाचार्य पाण्डेय और कपीन्द्र तिवारी ने सम्बोधित करते हुए कहा कि ‘गंगा आह्वान’ उत्तराखंड, ‘साझा संस्कृति मंच’ और ‘गंगा रक्षा आन्दोलन’ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में गंगा किनारे बसे तटवासियों की पीड़ा और परेशानियों का लेखा जोखा प्रस्तुतीकरण के साथ ही गंगा के मूल प्रवाह की वैज्ञानिक, सांस्कृतिक व सामाजिक आवश्यकताओं के बारे में विस्तार से चर्चा की जाएगी। इस मंच के माध्यम से केन्द्र सरकार को मांगपत्र भेजा जाएगा जिसके द्वारा गंगा जी के मूल स्वरूप की रक्षा हेतु कुछ आवयशक मांगे की जा रही हैं। सभा में उपस्थित सभी लोग प्रधानमन्त्री मोदी जी को वस्तुस्थिति का बोध कराते हुए अपना पत्र भेजेंगे।
प्रथम दिन कुँवर रेवती रमन सिंह जी (पूर्व सांसद-इलाहाबाद) एवं स्वामी शिवानंद जी महाराज (मातृ सदन, हरिद्वार) द्वारा दीप प्रज्वलन व कलश की स्थापना की जाएगी। काशी के विद्वानों द्वारा गंगा व हिमालय क्षेत्र की महत्वता का विस्तार किया जाएगा व उत्तराखंड से लेकर उत्तर प्रदेश, बिहार व बंगाल में बसे गंगा तटवासियों की व्यथा-कथा की चर्चा की जाएगी।
20 सितम्बर को गंगा के मूल प्रवाह की वैज्ञानिक, सामाजिक व सांस्कृतिक महत्व पर विस्तार में चर्चा की जाएगी व गंगा के प्रवाह हेतु सभी लोगों से परामर्श लेकर मांगपत्र को तैयार कर प्रधानमन्त्री कार्यालय में भेजा जाएगा। सायं 4.30 बजे के पश्चात, सभी लोग कॉन्फ्रेंस हाल से लेकर बनारस के घाट तक का पैदल मार्च किया जाएगा व कार्यक्रम का समापन समारोह अस्सी घाट से ही किया जाएगा, जिसमे सायं 5 बजे से सुविख्यात सांकृतिक दल ‘प्रेरणा कला मंच’ द्वारा नदी और नारी को व्यथा पर केन्द्रित नाटक ‘गंगा हो या गांगी’ का मंचन किया जायेगा।
भागीरथ प्रयास के आयोजन में मुख्य मेहमान कुँवर रेवती रमन सिंह जी, स्वामी शिवानंद जी महाराज, श्री शतरुद्र प्रकाश पूर्व मन्त्री, प्रो विश्वंभर नाथ मिश्र महंत जी (संकट मोचन फाउंडेशन), प्रो. यूके चौधरी, प्रो. एस.एन उपाध्याय, प्रो. के चन्द्र मौली, प्रो प्रदीप कुमार मिश्र, श्री अरुण गुप्ता होंगे।
इसके अतिरिक्त उत्तराखंड से श्री हेमंत ध्यानी , डॉ. मीता खिलनानी, मल्लिका भानोट, दीपक रमोला; उत्तराखंड से श्रीमति सुशीला भण्डारी, बसंती देवी, बचन सिंह जी, सुरेशी दुमंगा जी, श्री कुलदीप रावत, श्रीमति सावित्री देवी, नगेंद्र जागुड़ी जोधपुर व दिल्ली से- रिंकू सहगल, आशा जी, पुरोहित जी, स्वामी संवेदानन्द जी, साझा संस्कृति मंच के श्री वल्लभाचार्य पाण्डेय, श्री त्रिलोचन शास्त्री जी, श्री कपींद्रनाथ तिवारी, श्री आनंद प्रकाश तिवारी, श्री धनंजय त्रिपाठी, जागृति राही व विनय सिंह आदि कार्यकर्ता भाग लेंगे।
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