गंगा हर भारतीय की आस्था का प्रतीक है। गंगा के जल को अमृत तथा गंगा नदी को मां के समान माना जाता है, लेकिन भारत में जिसे भी राष्ट्रीय स्तर का दर्जा दिया जाता है, उसके अस्तित्व पर संकट मंडराने लगता है। ऐसा ही गंगा नदी के साथ भी हुआ। सरकार की लापरवाही और जनता की अज्ञानत के कारण गंगा का जल प्रदूषित होकर विषैला हो गया है। गंगा के जल को स्वच्छ करने के लिए गंगा एक्शन प्लान, जेएनएनयूआरएम, अमृत योजना और नमामि गंगे योजना के नाम पर 30 वर्षो में लगभग 1500 करोड़ रुपय खर्च किए गए। करोड़ों रुपया खर्च करने के बाद भी गंगा जल की निर्मलता में कोई सुधार नहीं आया, अपितु नालोें और सीवर का गंदा पानी गिरने से गंगा जल और प्रदूषित हो गया है। स्वच्छ भारत अभियान भी गंगा की स्वच्छता के नाम पर योजना के साथ ही सरकार को भी पलीता लगा रहा है। इसके बारे में नमामि गंगे योजना की शुरूआत करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को या तो पता नहीं है, या वे सब कुछ जानकर भी अनजान बन रहे हैं।
केंद्र सरकार ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत की थी। योजना का जोरो शोरों पर प्रचार किया गया। स्वच्छता के प्रति निरतंर जागरुकता अभियान चलाए जा रहे हैं। इससे देश भर में स्वच्छता अभियान जन आंदोलन के रूप में सामने आया और कई शहरों में इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले। शौचालय का उपयोग करना लोगों ही दिनचर्या का हिस्सा बनाया गया, जिसके लिए देश भर के ग्रामीण इलाकों में 8 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण कराया गया। इससे ऐसा माना जाने लगा कि भारत कि भारत के किसी भी कोने में खुले में शौच नहीं होती है, यानी हर व्यक्ति शौच के लिए शौचालय का ही उपयोग करता है और हर घर में शौचालय है। इसके आधार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महात्मा गांधी की 150वी जयंती (2 अक्टूबर 2019) पर पूरे हिंदुस्तान को ‘‘खुले में शौच से मुक्त’’ (ओडीएफ) घोषित कर दिया। खैर अभी तक ये नहीं पता कि प्रधानमंत्री ने किस आधार पर देश को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया या फिर केवल सरकारी फाइलों का आंकड़ा ही देश को ओडीएफ घोषित करने के लिए पर्याप्त है ? इसी प्रकार गंगा की निर्मलता के लिए वर्ष 2014 में ही केंद्र सरकार ने नमागि गंगे योजना की शुरुआत की। गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए गंगा मंत्रालय का गठन कर 20 हजार करोड़ रुपये से गंगा को अगले पांच सालों में स्वच्छ बनाने का लक्ष्य रखा गया।
गंगा मंत्रालय की कमान केंद्रीय मंत्री उमा भारती को सौंपी गई। उन्होंने भाषणों और बैठकों में तो गंगा को साफ कर ही दिया था, लेकिन धरातल पर नहीं कर पाईं। जिसके बाद गंगा मंत्रालय की कमान केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी को सौंपी गई। उन्होंने भी बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाई। सरकारी फाइलों के आंकड़ों में गंगा को काफी साफ दिखाया और मार्च 2020 तक गंगा को 100 प्रतिशत निर्मल करने का वादा भी किया। नमामि गंगे के अंतर्गत सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाकर गंगा में गिरने वाले नालों में टैप किया गया, लेकिन ये पड़ताल करने पर पता चला कि ये नाले केवल सरकारी फाइलों में ही टैप है और सीधे गंगा में ही बह रहे हैं, जबकि कई एसटीपी सीवर के पानी को ठीक प्रकार से शोधित नहीं कर रहे हैं। इसके बाद मंत्रालय के पांच साल पूरे हो गए और 20 हजार करोड़ रुपया पूरा खर्च तक नहीं किया जा सका। चुनाव के बाद जल संरक्षण के लिए जल संसाधन, नदी विकास और गंगा कायाकल्प, पेयजल तथा स्वच्छता मंत्रालय का विलय कर ‘‘जल शक्ति मंत्रालय’’ नाम से नए मंत्रालय का गठन किया गया। इस मंत्रालय के कंधों पर स्वच्छता और जल की जिम्मेदारी है।
सरकार के गंगा मंत्रालय और स्वच्छ भारत अभियान की कानपुर में यदि धरातल पर पड़काल करें, तो स्थिति सरकारी फाइलों और नेताओं के भाषणों से बिल्कुल विपरीत मिलेगी। दैनिक जागरण में छपी खबर के अनुसार कानुपर के एक तिहाई हिस्से में सीवर लाइन नहीं है। गंगा किनारे की बस्तियों सहित शहर के करीब एक लाख घरों का शौचालय सीधे गंगा में गिर रहा है, जबकि सीवरेज सिस्टम न होने के कारण पांच लाख से अधिक आबादी वाले इलाके के सीवर सीधे नालों में गिर रहा है। अभी तक किए गए सर्वे में 3500 घरों में से 500 घरों में शौचालय नहीं है, जबकि एक हजार से अधिक शौचालय सेप्टिक टैंक विहीन मिले। हालाकि सर्वे अभी जारी है। वहीं कानपुर में गंगा घाटों पर गंदगी पसरी हुई है। नाले खुले हैं और गंगा में बह रहे हैं। गंगा का पानी से दुर्गंध आ रही है। यहां गंगा जल आचमन तो दूर नहाने के योग्य भी नहीं है, लेकिन गंगा की स्वच्छता के प्रति गहरी नींद में सोया कानपुर का प्रशासन आजकल दिन रात जागा हुआ है और सफाई में जुट गया है।
दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 दिसबंर को कानुपर में नमामि गंगे के कार्यों की समीक्षा बैठक करेंगे। इसी बैठक के कारण कानपुर प्रशासन प्रधानमंत्री को स्वच्छ गंगा दिखाने की जद्दोजहद में लगा हुआ है। इसके लिए प्रशासन ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है। जल निगम और नगर निगम की कार्य प्रणाली पर कोई प्रश्नचिन्ह न लगे, इसके लिए आनन-फानन में बस्तियों में शौचालय बनाए जा रहे हैं। गंगा की तरफ दिखने वाले घरों के सीवर पाइप काटकर उनका मुंह बंद किया जा रहा है। नाले को टैक किया गया है। गंगा के किनारे और घाटों पर जमी गंदगी, जिससे पूरा पानी काला दिखता है और दुर्गंध आती है, उसे पानी का जलस्तर बढ़ाकर बहाया जा रहा है। इसके लिए नरोरा बांध से बुधवार को 5728 और गुरुवार को 8862 क्यसिक पानी छोड़ा गया था। अभी तक शहर में सीवेज निस्तारण प्लान भी नहीं बनाया गया है। ऐसे में प्रधानमंत्री को भले ही कानुपर में स्वच्छ गंगा दिखाई जाएगी, लेकिन कानुपर में गंगा प्रदूषण के पूरा देश वाकिफ है। प्रशासन की ऐसी कार्यप्रणाली पर सख्ती दिखानी होगी, वरना जिस प्रकार केवल सरकारी फाइलों में भारत को ‘‘खेल में शौच से मुक्त’’ घोषित किया है, उसी प्रकार कहीं गंगा जल भी केवल फाइलों, स्कूल के किताबों और धार्मिक ग्रंथों में ही अमृत न रह जाए। इसके अस्तित्व को बचाने के लिए सरकार के साथ ही हर नागरिक को भी पहल करनी होगी। क्योंकि भले ही गंगा नदी में प्रदूषण का ये आंकड़ा कानुपर का है, लेकिन गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक गंगा की यही दयनीय स्थिति है।
लेखक - हिमांशु भट्ट
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