कैसे मनाएँ पृथ्वी दिवस

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पृथ्वी दिवस पर विशेष


जब-जब हम अपनी भूमिका का निर्वाह करने में चूक करते हैं, पृथ्वी हमें चेताती है। अमीबा, चींटी, बिल्ली, सियार, कौआ, बाघ तक सभी की कुछ-न-कुछ भूमिका है। सहयोगी भूमिका पहाड़, पठार, रेगिस्तान, तालाब, झील, समन्दर, नमी से लेकर उस पत्थर की भी है, जो नदी के बीच खड़ा नदी के प्रवाह को चुनौती देता सा प्रतीत होता है। यदि हमने धरती की चुनौतियों और इनके समाधान में प्रत्येक की भूमिका समझने का थोड़ा भी प्रयास किया, तो हमें अपनी भूमिका स्वयंमेव समझ आ जाएगी। पृथ्वी दिवस - हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी आएगा ही यह दिन। सोचना यह है कि हम इसे कैसे मनाएँ? पृथ्वी दिवस पर दुनिया भर में गोष्ठी, सेमिनार, संवाद, कार्यशालाएँ आयोजित होती ही हैं। इनमें भाग ले सकते हैं। इनका आयोजन कर सकते हैं। इनके आयोजन में मदद कर सकते हैं। इसके लिये कोई बड़े खर्च और आयोजन की जरूरत नहीं। आप चाहें तो अपने आसपास के बच्चों को इकट्ठा कर पृथ्वी की चुनौतियों और उसके समाधान में उनकी भूमिका चर्चा कर सकते हैं। उनकी नदी, बरगद, गोरैया से मित्रता करा सकते हैं।

पृथ्वी से सरोकार समझें और समझाएँ


बड़े, बच्चों को बता सकते हैं कि यदि वे अपनी कॉपी के पन्ने बर्बाद न करें, तो इससे कैसे धरती की मदद होगी। उन्हें यह भी बताएँ कि इससे अन्ततः कैसे इंसानी जीवन को बेहतर रखने में मदद मिलेगी। प्रकृति की सुरक्षा और हमारी सेहत, रोज़गार, आर्थिकी व विकास के रिश्ते को बताए बगैर बात बनेगी नहीं। इस रिश्ते को समझाना भी पृथ्वी दिवस का ही काम है। लेकिन बच्चों को बताने से पहले एक बात सुनिश्चित कर लें कि आप खुद भी उस काम को अंजाम दे दें, जिसे करने की आप बच्चों से अपेक्षा कर रहे हैं। कोरी बातें न करें। अच्छी बातों को कार्यरूप दें; वरना वे बेअसर रहेंगी।

कहना न होगा कि प्रथम पृथ्वी दिवस के आयोजन में शामिल सरोकारों का सन्देश साफ है कि पृथ्वी के सरोकार व्यापक हैं। अतः संचेतना और सावधानियाँ भी व्यापक ही रखनी होगी। यदि पृथ्वी की चिन्ता करनी है, तो सृष्टि के हर अंश की चिन्ता करनी होगी। हम मानवों की चिन्ता इसमें स्वयंमेव शामिल है।

चौपाई से पृथ्वी समझाएँ : भारतीय ज्ञानतन्त्र पर विश्वास लौटाएँ


हनुमान चालीसा में एक चौपाई है:

“युग सहस्त्र योजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू।’’

इसका मतलब है कि बाल हनुमान ने एक हजार युग योजन दूर स्थित सूर्य को मधुर फल समझकर निगल लिया। एक युग यानी 12,000 वर्ष, एक सहस्त्र यानी 1000 तथा एक योजन का मतलब होता है - 8 मील। एक मील बराबर होता है - 1.6 किलोमीटर। इस प्रकार एक हजार युग योजन का मतलब है - 12000x1000x8x1.6 = 153.60 करोड़ किलोमीटर; अर्थात पृथ्वी, सूर्य से 153.60 करोड़ किलोमीटर दूर स्थित एक ग्रह है।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने यह वैज्ञानिक आँकड़ा एक चौपाई के रूप में पेश किया। नासा ने भी सूर्य से पृथ्वी की यही दूरी मानी है। विज्ञान के ऐसे अनेक सूत्र और धरती व इसकी रचनाओं के लिये हितकारी अनेक निर्देश भारत के पुरातन शास्त्रों, लोकगाथाओं में मौजूद है। इन्हें नई पीढ़ी के समक्ष पेशकर हम न सिर्फ पृथ्वी दिवस के सन्देश को आगे बढ़ाने का काम करेंगे, भारतीय ज्ञानतन्त्र के प्रति विश्वास और सम्मान बढ़ाने का भी काम करेंगे। अपनी ज़रूरतों की पूर्ति के लिये परावलम्बन, कभी किसी जीव के लिये हितकारी नहीं होता।

कुछ नारे


हम चाहें तो पृथ्वी दिवस के सन्देश को आगे ले जाने के लिये नारे लिख सकते हैं। कहीं और नहीं, तो अपने घर के बाहर, स्कूल के अन्दर या अपनी मेज पर धरती बचाने के लिये कोई एक नारा लिखकर टाँग सकते है:

“पानी बचेगा, सेहत बचेगी, पैसा बचेगा, पलायन रुकेगा, रोजगार बढ़ेगा’’
“भगवान यानी भ से भूमि, ग से गगन, व से वायु, अ से अग्नि, न से नीर’’
“पंचतत्व ही है भगवान, इनकी समृद्धि कार्य महान’’
“कचरा फैलाना गन्दी बात’’
“नदियाँ हमारी जीवन रेखा हैं, कोई कूड़ादान नहीं।’’
“धरती बचाओ: पेड़ लगाओ।’’
“अपव्यय घटेगा: पृथ्वी बचेगी’’
“क्लीन स्ट्रीट: ग्रीन सिटी’’


कुछ संकेत


हाँ, पर कुछ खास बताओ यार?
खास? ..तो यह भी कर सकते हैं कि गली में कचरा फेंकने वाले घर/दुकान अथवा प्रदूषण फैलाने वाली फैक्टरी को चिन्हित करें और पृथ्वी दिवस पर उसके बाहर एक पोस्टर लगाएँ: “इस घर/ दुकान/फैक्टरी को कचरा फैलाना पसन्द है।’’ ....या फिर कचरा फेंकने के खिलाफ कचरा फेंकने वाले के दरवाजे पर मौन.. शान्तिपूर्ण सांकेतिक प्रदर्शन करें। उनकी सूची बनाकर किसी एक सार्वजनिक स्थल पर लगाएँ।

अपनी भूमिका तलाशें


ये तो बस एक आइडिया है। यदि आपको ये काम अपने लिये मुफीद नहीं लगते, तो आप कुछ और काम सोच कर सकते हैं। बस! कुछ भी करने से एक बात जरूर समझ लें कि पृथ्वी कोई एक गोेला मात्र नहीं है; पृथ्वी पंचतत्वों से निर्मित जीवन्त प्रणालियों का एक अनोखा रचना संसार है। रचना और विनाश, ऐसी दो प्रक्रियाएँ जो इसे हमेशा नूतन और सक्रिय बनाए रखती हैं। इसकी रचना, विकास और विनाश में हर जीव की अपनी एक अलग भूमिका है।

जब-जब हम इस भूमिका का निर्वाह करने में चूक करते हैं, पृथ्वी हमें चेताती है। अमीबा, चींटी, बिल्ली, सियार, कौआ, बाघ तक सभी की कुछ-न-कुछ भूमिका है। सहयोगी भूमिका पहाड़, पठार, रेगिस्तान, तालाब, झील, समन्दर, नमी से लेकर उस पत्थर की भी है, जो नदी के बीच खड़ा नदी के प्रवाह को चुनौती देता सा प्रतीत होता है। यदि हमने धरती की चुनौतियों और इनके समाधान में प्रत्येक की भूमिका समझने का थोड़ा भी प्रयास किया, तो हमें अपनी भूमिका स्वयंमेव समझ आ जाएगी।

दिवस के नामकरण का सन्देश


भारतीय संस्कृति तो ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ कहती ही रही है। 22 अप्रैल - ‘अन्तरराष्ट्रीय माँ पृथ्वी का दिन’ का नामकरण भी यही सन्देश देता है कि हम सभी की माँ एक है। इसके मायने व्यापक हैं। इसकी पालना करें तो दुनिया के देशों के बीच दूरियाँ स्वतः काफी कम हो जाएँ; राजनैतिक, आर्थिक और सामरिक समीकरण काफी बदल जाएँ। काश! कभी हम यह कर सकें।

चुनौती और समाधान की पहचान भी एक कामहमें विचार करना चाहिए कि आखिर वे कौन से कारण हैं, जो वैश्विक माता पृथ्वी को नुकसान पहुँचा रहे हैं। कौन से कार्य हैं, जो पृथ्वी की हवा, पानी, मिट्टी को प्रदूषित कर रहे हैं? किन वजहों से धरती गर्म हो रही है? पृथ्वी माँ को हो रहे बुखार के कारण को पहचानें। वनस्पतियाँ, पृथ्वी माता के फेफड़े हैं; नदियाँ, इसकी धमनियाँ। इनके काम में कौन और कैसे रुकावट डाल रहा है? सोचें कि कैसे पृथ्वी पर प्रकृति के बनाए ढाँचों को नष्ट किए बगैर, इंसान अपने लिये जरूरी ढाँचे बना सकता है? पृथ्वी दिवस पर एक पौधा लगाकर उसकी सेवा का संकल्प इसमें मददगार हो सकता है।

प्याऊ लगाओ : भूजल बढ़ाओ


पृथ्वी दिवस से एक दिन पहले, 21 अप्रैल को अक्षय तृतीया है। यह अबूझ सा होता है। शुभ काम करने के लिये इस दिन किसी से मुहूर्त पूछने की जरूरत नहीं। शास्त्रों में इस दिन से आगे पूरे बैसाख-जेठ तक प्याऊ लगाने को पुण्य का काम माना गया है। भारत के कई इलाकों में ऐसा होता है। आप भी अपना एक छोटा सा प्याऊ लगा सकते हैं - “प्याऊ: पानी के बाजार के खिलाफ एक औजार।”

अक्षय तृतीया से जलसंरचनाओं की गाद निकालने और पाल को ठीक करने का काम करने के निर्देश हैं। ऐसा कर आप धरती और स्वयं की मदद ही करेंगे।

अपव्यय घटाएँ: पृथ्वी बचाएँ


जिस चीज का ज्यादा अपव्यय करते हों, संकल्प ले सकते हैं - “मैं इसका त्याग करुँगा अथवा अनुशासित उपयोग करुंगा।’’ सामर्थ्य होते हुए भी कम-से-कम कपड़े, एक जोड़ी जूते में गुजारा चलाने का संकल्प ले सकते हैं। ध्यान रहे कि अपव्यय और कंजूसी में फर्क होता है। “खाऊंगा मन भरः छोड़ूँगा नहीं कणभर’’ यानी थाली में झूठा नहीं छोड़ूँगा। यह जूठन छोड़ना कंजूसी नहीं, अपव्यय है। गाँव में तो यह जूठन मवेशियों के काम आ जाता है अथवा खाद गड्ढे में चला जाता है। ऐसा करके आप भोजन का अपव्यय रोक सकते हैं।

तय कर सकते हैं कि “दूध लेने के लिये मैं दुकानदार से पॉलीथीन की थैली नहीं लूँगा। इसके लिये घर से सदैव एक पॉलीथीन बैग लेकर जाऊँगा।’’ ऐसा कर आप एक वर्ष में 364 थैलियों का कचरा कम करेंगे।

यदि हम बाजार से घर आकर कचरे के डिब्बे में जाने वाली पॉलीथीन की थैलियों को घर में आने से रोक दें तो गणित लगाइए; एक अकेला परिवार ही अपनी जिन्दगी में कई सौ किलो कचरा कम कर देगा; दुकानदार का थैली खरीदने पर खर्च कम होगा, सो अलग। मात्र एक झोला अपने साथ रखकर हम यह कर सकते हैं। इस तरह एक बात तो तय है कि हम जो कुछ भी बचाएँगे, अन्ततः उससे पृथ्वी का हित ही होगा। इससे धरती बचेगी और हम भी।

.....तो मित्रों, इस पृथ्वी दिवस पर आप क्या करने वाले हैं? पहले से सोचें और करना तय करें। हमें भी बताएँ। अपने दोस्तों से साझा करें। उन्हें ऐसा करने के लिये प्रेरित करें।

ऐसा कर आप पृथ्वी के दोस्त बन जाएँगे और पृथ्वी आपकी। दोनों मिलकर ही एक-दूसरे की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं। आइए, इस पृथ्वी दिवस पर कोई अच्छी पहल करें। भूले नहीं कि हर अच्छी शुरुआत स्वयं से ही होती है। यह भी याद रखें कि हर बड़े बदलाव की शुरुआत छोटी ही होती है। परिणाम की चिन्ता करे बगैर आइए, करें।

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Post By: RuralWater
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