जिस तरह पृथ्वी पर वायु हमारे जीवन के लिए आवश्यक है, उसी तरह जल भी जीवन के अस्तित्व के लिए बहुत जरूरी है। चिंता का विषय है कि आज वायु और जल दोनों बुरी तरह से प्रदूषित हो चुके हैं। प्राकृतिक आपदाएँ जैसे बाढ़ और सूखे का हमारे पेय जल पर गहरा असर पड़ता है। पीने के पानी में विषैले रसायन जैसे आर्सेनिक, फ्लोराइड, शीशा, सल्फर इत्यादि घुले हो सकते हैं। कभी-कभी बाढ़ आने के कारण, फसलों के ऊपर छिड़के कीटनाशक रसायन, खेतों से बहकर नदियों और कुओं में मिल जाते हैं जिससे पीने का जल प्रदूषित हो जाता है। जब तक जल रहेगा जीवन रहेगा। यह एक ऐसा अनिवार्य रसायन है जिसके विना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। जिंदगी में पानी की आवश्यकता पृथ्वी की सतह का लगभग 71% क्षेत्र पानी से बना है पानी में कई विशेषताएं हैं जैसे पानी एक बहुत अच्छा विलायक है जो कई पदार्थों को घोलने की क्षमता रखता है। पानी की विशिष्ट ऊष्मा काफी अधिक होती है। पानी की विशिष्ट ऊष्मा पृथ्वी की जलवायु में एक बड़ी भूमिका निभाती है इस गुण के कारण पानी पृथ्वी के वातावरण में सूर्य द्वारा प्रदत्त गर्मी को अवशोषित करता है व पर्यावरण को नियंत्रित करता है। पानी महासागरों, झीलों और नदियों में जीव जन्तु व पौधों के जीवन के अस्तित्व के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। पानी न तो अम्लीय होता है और न ही में क्षारीय। क्योंकि इसका पीएच मान 7 होता है। पृथ्वी पर प्रचुरता के कारण पानी मनुष्यों, पौधों, और जानवरों के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है पानी के विना जीवन संभव नहीं है। यदि यह कहा जाए कि जिंदगी में पानी के बिना कुछ भी संभव नहीं है, तो गलत नहीं होगा। प्यास बुझाने के अलावा, खाना बनाने जैसे तमाम काम पानी के बिना संभव नहीं हैं।
पानी जीवन के हर पहलू के लिए जरूरी है, पोषण से लेकर साफ-सफाई तक। हमें पानी की आवश्यकता पीने के लिए, हाथ धोने के लिये, खाना बनाने के लिये, पौधों के लिये होती है। यह क्रम कभी ना खत्म होने वालों में से है। कई लोगों की नजर पानी की शुद्धता जरूरी नहीं होती। लेकिन आपकी यह सोच आपके और आपके परिवार के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। नहाने के पानी से लेकर पीने के पानी तक की शुद्धता मायने रखती है। पानी खाना बनाने का महत्वपूर्ण माध्यम है। पानी का उपयोग शुरू में रसोई में भोजन बनाने के लिए किया जाता है। रसोई में प्रायः पानी का उपयोग सब्जियां, फल, अनाज और दाल को बनाने से पूर्व धोने के लिये किया जाता है। इसके अलावा रसोई में पानी का प्रयोग स्टीमिंग (भाप का उपयोग करके खाना पकाने की विधि), उबालने में, और बेकिंग में भी किया जाता है। सभी प्रकार के ठंडे या गरम पेय पदार्थ-जैसे चाय, कॉफी, शरबत आदि का आधार पानी ही है।
जब आप पानी के गिलास को लगभग 12 घंटे के लिए खुला छोड़ देते हैं, तो हवा में कार्बन डाइऑक्साइड उसमें घुलने लगती है। यह पानी के पीएच स्तर को कम करता है और इसे एक अलग स्वाद देता है। खुले गिलास या कंटेनर में रात भर या लंबे समय तक बचे हुए पानी में कई बैक्टीरिया उत्पन्न हो जाते हैं जो सेहत पर बुरा असर डालते हैं और पीने के लिए यह जल सुरक्षित नहीं होता। इसके लिए पानी के वर्तन को समय-समय पर धोकर पानी बदलते रहें। पानी को उबालने से पानी के अंदर के वायरस, वैक्टीरिया और परजीवी सहित रोग पैदा करने वाले कीटाणु अधिक ताप से खत्म हो जाते हैं और अशुद्धियाँ भाप वनकर हवा में बाहर चली जाती हैं। पानी साफ करने के लिये उबालना अच्छा तरीका है। पानी को 1-3 मिनट तक उबालें। पानी ठंडा होने के बाद, साफ बर्तन में रखें। हमें प्राकृतिक रुप से प्यास लगती है, और सुबह हम थोड़े निर्जलित भी होते हैं। इसलिये, इस प्यास का लाभ उठाकर उठते ही गिलास भर पानी पियें और अपनी सेहत संबंधी ज़रुरतों को पूरा करें। सुबह सबसे पहले पानी पीने से पेट साफ होता है और लसीका तंत्र संतुलित हो जाता है व शरीर से उन ज़हरीले पदार्थों को दूर करने में मदद करता है, जो रात भर में बनते है। आपको प्यास लगने तक आप निर्जलित हो जाते हैं। प्यास लगने का इंतज़ार ना करें।
वयस्क पुरुषों में, उनके शरीर का लगभग 60% हिस्सा पानी होता है जबकि वयस्क महिलाओं में शरीर का लगभग 55% हिस्सा पानी होता है इसका कारण यह है कि महिलाओं में वसा का प्रतिशत अधिक होता है। अतः पानी स्वास्थ्य के लिए अति आवश्यक है और यह कई शारीरिक कार्यों जैसे तापमान विनियमन, सेलुलर फंक्शन, अपशिष्ट निवारण के लिए आवश्यक है। लोग तरल पदार्थ पीकर भी अपने शरीर में पानी का संतुलन बनाए रख सकते हैं। व्यायाम के बाद और गर्म मौसम में उन्हें अधिक पानी पीने की आवश्यकता होती है। आवश्यकतानुसार अपने शरीर के भार के अनुसार पानी पीना चाहिए। अतः शरीर को स्वस्थ रखने के लिए समय-समय पर शुद्ध पानी पीना बहुत जरूरी है खासकर गर्म मौसम में जहां शरीर से आपका पानी पसीने के द्वारा बाहर निकाला जाता है। समय-समय पर अपने आप को याद दिलाते रहें कि अच्छी सेहत के लिए आपको पानी पीना है और अपने पास पानी की बोतल हमेशा रखें लेकिन पानी पीने के लिए पानी की गुणवत्ता बहुत महत्वपूर्ण है। पानी शरीर के पाचन तंत्र को दुरुस्त रखता है, आपके शरीर के आहारत्तत्व को पचाने और सोखने के लिये पानी ज़रुरी होता है। पाचन के लिये रेशांक पानी के बिना अधूरा होता है। वास्तविक रुप से बिना पानी के अच्छे रेशांक खराब हो जाते हैं, जिससे कब्ज और पेट में दर्द होता है। लीवर और किडनी को पानी साफ रखने में मदद करता है और शरीर से सारी गंदगी निकालने में मदद करता है। इसके अलावा अगर आप कॉफी, चाय या कैफीन व भरपूर सोडा पीते हैं तो अधिक मात्रा में पानी पीना ज़रुरी होता है, क्योंकि ऐसे पदार्थ शरीर से पानी बाहर निकालते हैं।
निर्जलित हैं तो आपका खून गाढ़ा होने लगता है और खून के प्राचन के लिये शरीर को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। जिसकी वजह से दिमागी विकास कम हो जाता है, जिससे ध्यान लगाने में मुश्किल होती है और थकान महसूस होती है। दिन भर में 6 से 8 ग्लास पानी आपकी ऊर्जा की मात्रा बढ़ाता है, पानी शरीर में मानसिक और शारीरिक शक्ति बढ़ाने में, त्वचा को चमकाने और स्वस्थ रखने में, सरदर्द और चक्कर आने पर आराम तथा पाचन में मदद करता है। पानी प्राकृतिक रुप से पेट भरा रखता है, इसलिये पानी पीने की आदत से लंबे समय तक वजन संतुलित रखने में मदद मिल सकती है। खासतौर से पानी गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिये जरूरी होता है। व्यायाम करने वाले लोगों व स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने वाले लोगों को अधिक मात्रा में पानी चाहिए। पानी शरीर के हृदयवाहिनी में तनाव कम करने में और इसकी प्रक्रिया बढ़ाने में मदद करता है क्योंकि पानी शरीर का तापमान कम करता है, यह सारे व्यायाम की क्रिया को मजबूत रखने में मदद करता है क्योंकि व्यायाम में पसीने के कारण शरीर से पानी निकलता है। किडनी में पथरी होने पर पानी पीना ज़रुरी होता है। यह इसलिये क्योंकि पानी मूत्र में कैल्शियम घोलता है और पत्थर बनने से रोकने में मदद करता है।
पानी पीने से पुरुष और महिला में मूत्र ग्रंथि की बीमारी नहीं होती है और पानी शरीर से अशुद्ध तत्व निकालने में मदद करता है। होंठ फटने पर पानी उपयोगी होता है, पानी होंठ को मुलायम रखने में मदद करता है। दुनिया में जल की खपत दर जनसंख्या वृद्धि दर की दोगुनी है तथा यह हर बीस वर्ष में दोगुनी हो जाती है। जल हमारी रगों में खून बनकर दौड़ता है पर दूषित जल के कारण इस खून में मिलावट आ गई है। देश के कई हिस्सों में लोगों को पीने के लिए साफ पानी उपलब्ध नहीं है। समस्या ताजे पानी की उपलब्धि की नहीं बल्कि गुणवत्ता वाले उपलब्धि की नहीं बल्कि गुणवत्ता वाले पानी की उपलब्धता न होना है। जहाँ स्वच्छ जल की माँग बढ़ी है वहीं इसकी उपलब्धता सीमित है व घट रही है। औद्योगिक व दूसरे विकास जल की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं। जल की कमी एवं इसमें गुणवत्ता का अभाव मानव स्तर को उठाने व सतत विकास में बाधक है। दूषित जल पीने से हर साल कितने ही लोग मर रहे हैं, ऐसे में इन चुनौतियों का सामना करने के लिए पानी के स्रोतों का पता लगाना, पानी का गुणवत्ता प्रबंधन, संरक्षण करना और गुणवत्ता बनाए रखने के लिए पानी का प्रबोधन करना आवश्यक है।
भारत में पानी की स्थिति यह गर्व का विषय है कि भारत प्राचीन काल से ही शिक्षा, विज्ञान एवं सम्यता में अग्रणी रहा है। भूजल विज्ञान का आविष्कार भारत में पांचवी शताब्दी में ही अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया था। आचार्य वाराहमिहिर सम्भवतः भूजल जलविज्ञान के प्रथम वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अपने फलित ज्योतिष ग्रंथ 'बृहत्संहिताङ्क में अर्गला के माध्यम से भूजल का पता लगाने की महत्वपूर्ण जानकारी दी थी, जो आज भी बहुत उपयोगी है। द संडे टाइम्स बेस्टसेलर द्वारा प्रकाशित पुस्तक "लाइफ ऑन अर्थ" के लेखक डेविड एटनबरो ने पृथ्वी की संरचना, उसमें वालुकाश्म में निहित सरंध्रता तथा पारगम्यता के संबंधों का सविस्तार वर्णन किया है। जिसकी उपमा शरीर में निहित शिराओं से कर उसकी उपयोगिता बताई है। वृक्षों की बनावट, पत्तियों की जर्जरता, उसमें निहित छिद्रों की गहनता से अधस्तल में जलाशय का पता लगाने की विधि, एक अनुपम उदाहरण था। भारत के हिस्से में विश्व का पांच प्रतिशत पानी आता है, लेकिन हम चीन में 13%, संयुक्त राज्य अमेरिका में 9.5% पानी उपयोग होता है। इसके अतिरिक्त वर्षा के पानी को संग्रह करने में बाकी देशों के मुकाबले भारत काफी पीछे है। वर्षा जल संग्रहण के संबंध में आस्ट्रेलिया, चीन, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देश पानी की अहमियत समझ-ज्यादा पानी इकट्ठा करते हैं। देश में जल संसाधनों की व्यवस्था सुनिश्चित करने के साथ भूजल स्तर में सुधार लाना न केवल आवश्यकता है अपितु चुनौती भी है। पेयजल समस्या आने वाले समय में भयावह हो सकती है।
भारत में हर साल वर्षा और हिमगलन के रूप में औसतन 4000 अरब घन मीटर पानी प्राप्त होता है। इसमें भूजल और नदियों से करीब 1900 अरब घन मीटर पानी प्राप्त होता है। भारत में प्राप्त होने वाले कुल पानी का प्रतिवर्ष औसतन (लगभग) 62% पानी का ही उपयोग कृषि और अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में हो पाता है। बाकी बचा पानी नदियों व सागरों में मिल जाता है। देश में सालाना सिर्फ लगभग 700 अरब घन मीटर सतही पानी और लगभग 400 अरब घन मीटर भूजल का इस्तेमाल किया जाता है। आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा जल उपभोक्ता बन रहा है।
जल प्रदूषण
जल प्रदूषण को दो प्रमुख वर्गों में बांटा जा सकता है- 'बिंदु स्रोत प्रदूषण - Point Source Pollution' और 'अबिंदु स्रोत प्रदूषण Non Point source pollution' बिंदु स्रोत प्रदूषण में प्रदूषण का एक ही उद्गम जल स्त्रोत के समीप कोई औद्योगिक क्षेत्र या परमाणु संयंत्र होता है, जबकि अबिंदु स्रोत प्रदूषण में प्रदूषण के अनेक विसरित और दूरस्थ स्रोत हो सकते हैं। जैसे जल के साथ बहकर आये कृषि रसायन और मल-मूत्र आदि के कारण जल प्रदूषण विश्व भर में एक गंभीर समस्या है। मानवीय क्रियाकलापों द्वारा प्रदूषित जल विना उपचार बहा दिया जाता है। जिसके नदियों, झीलों में मिलने के कारण पीने के पानी में विषैले रसायन जैसे फ्लोराइड, सीसा, सल्फर, आर्सेनिक, इत्यादि घुले हो सकते हैं। प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़ और सूखे का हमारे पेयजल पर गहरा असर पड़ता है। कभी-कभी बाढ़ के कारण, फसलों के ऊपर छिड़के कीटनाशक रसायन, खेतों से बहकर नदियों और कुओं में मिल जाते हैं जिससे भूजल प्रदूषित हो जाता है। आज बहुत से उद्योगों के अपशिष्ट को नदियों में बहा दिया जाता है।
नदियों में मृत पदार्थ के रूप में मिलकर पानी के पाइपों में प्रवाहित होकर पेय जल के रूप में प्राप्त होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है। कई स्थानों पर भूजल का पानी पीने लायक नहीं है जहाँ भूजल में लोहा, मैंगनीज, आर्सेनिक, और उच्च टी.डी.एस. पाया जा रहा है। भूजल के पानी में सामान्यतः शुद्धिकरण की आवश्यकता नहीं होती है। दुनिया के अधिकांश हिस्सों में, जनसंख्या में वृद्धि, कृषि में बड़ी मात्रा में उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का विस्तार और अन्य औद्योगिक प्रक्रियाओं के विकास से मल और अपशिष्ट जल की मात्रा तेजी से बढ़ती जा रही है। इसलिए अपशिष्ट उपचार द्वारा उच्च बीओडी, रोगजनक जीवों और हानिकारक रसायनों के साथ यौगिकों को दूर करने का प्रयास करती है। नदियों में प्रदूषण के कारण पेयजल दूषित हो रहा है। दूषित पेयजल के कारण टाइफाइड, आंत्र ज्वर, अमीबियासिस, एस्कारियासिस, एन्सेफलाइटिस, जिआर्डियासिस, (जीआर्डिया परजीवी की वजह से होने वाला आंत का एक लिए विभिन्न जल शोधन संयंत्र लगाने की आवश्यकता है।
जल संरक्षण
तापमान के लगातार बढ़ने के कारण हिमनदों के पिवलने तथा नदियों में भारी प्रदूषण के प्रसार से पानी के बहाव में लगातार कमी आती जा रही है व मानवीय विकास कार्यों जैसे कृषि तथा वनों के विकास हेतु संसाधनों का दोहन भी वायुमण्डलीय ताप को बढ़ा रहा है। पर्वत वर्षा को रोक देते हैं, जिसके परिणामस्वरुप पर्वत के एक ओर वर्षा हो सकती है और पर्वत के दूसरी ओर रेगिस्तान जैसा वर्षा विहीन भाग हो सकते है। जनसंख्या में लगातार वृद्धि और उद्योगों को विकसित करने के कारण भविष्य में जल संकट गहरा सकता है ऐसी स्थिति में जल संरक्षण अति आवश्यक हो गया है, इसके लिये जल संरक्षण पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। इस हेतु देश में वर्षा के रूप में प्राप्त पानी का यदि पर्याप्त संग्रहण और संरक्षण किया जाय, तो जल संकट पर नियंत्रण किया जा सकता है। पृथ्वी पर जल की वहुत सूक्ष्म मात्रा, पानी की टंकिओं, जैविक निकायों, विनिर्मित उत्पादों के भीतर और खाद्य भंडार में निहित है। वर्फीली चोटियों, हिमनद, एक्वीफर या झीलों का जल कई बार धरती पर जीवन के लिए साफ जल उपलब्ध कराता है। भूजल क्या है, इस बारे में जान लेना भी अच्छा रहेगा। भूजल, अधस्तल में स्थित संरचना और संस्तर में मौजूद रंध्रों में भरे जल को कहते हैं। वर्षा, बर्फ आदि से प्राप्त जल जमीन सोख लेती है तथा गुरुत्व के कारण यह जल मिट्टी, बालू, ग्रेवेल से गुजरते हुए नीचे तब तक जाता है जब तक इसे कोई ठोस चट्टान रोक नहीं देती है। वह क्षेत्र जी जल से संतृप्त हो जाता है उसे जल का भंडार क्षेत्र कहा जाता है और जिस गहराई तक संतृप्त होता है उसे जलस्तर कहते हैं। जलस्तर स्थल के काफी करीब या कई बार 70-80 फीट नीचे हो सकता है। इसका पत्ता करना आसान नहीं होता है खास कर पथरीले क्षेत्रों में जहाँ रंध्रयुक्त चट्टान की कमी होती है। भारत की अर्थव्यवस्था के विकास में भूजल का योगदान उल्लेखनीय है। एक समय था जब हम सिंचाई के लिए सिर्फ बारिश पर ही निर्भर होते थे लेकिन विज्ञान ने तरक्की की और इस जमीन के अंदर बहते की और अब हम जमीन के अंदर बहते पानी का भी सिंचाई के रूप में इस्तेमाल कर सकते है। इसके लिए सबसे पहले हमें जमीन में काफी गहराई तक सुरंग रूपी गड्डा या फिर बोरिंग करनी होती है, पानी कितनी गहराई पर मिलेगा यह निश्चित नहीं होता है। जैसा कि हमारे भारत में बहुत सी जगह हमें मात्र 10 से 15 फीट के अंदर ही पानी मिल जाता है जबकि कई जगह पर पानी का स्तर हजारों फीट की गहराई पर भी हो सकता है। औसतन हमें 100 से 300 फीट की गहराई तक बोरिंग करके जमीन में पाइप डालना होता है। जमीन से लगातार पानी निकालते रहने के कारण एक समय ऐसा भी आता है कि जमीन के उस भाग का पानी पूरी तरह से खत्म हो जाता है अब वहां से और पानी निकालना संभव नहीं रहता, ऐसे में किसान किसी अन्य खेत में एक नई बोरिंग करते हैं और अपने वाटर पंप वगैरह पुरानी बोरिंग से नई बोरिंग पर स्थापित कर देते हैं। जल के अपशिष्ट प्रबंधन के क्षेत्र में वर्षा जल संरक्षण (रेनवाटर हारवेस्टिंग), जल विभाजक प्रबंधन प्रमुख हैं।
यह आलेख दो भागों में है -
/articles/jindagi-mein-jal-ka-mahatva-aur-usake-avyav