झोपड़ियों के बीच बने शौचालय कह रहे स्वच्छता की कहानी

शौचालय
शौचालय


बिहार की इस इकलौती पंचायत को पिछले दिनों नानाजी देशमुख राष्ट्रीय गौरव ग्रामसभा पुरस्कार मिला। मुजफ्फरपुर जिले के सकरा प्रखंड की सबसे गरीब पंचायत भरथीपुर में भले ही अधिकांश लोग झोपड़ियों मेें रहते हों, लेकिन वे खुले में शौच को नहीं जाते। घर की जगह झोपड़ी ही सही, लेकिन हर घर के लिये शौचालय बन चुका है।

मुखिया इन्द्रभूषण सिंह के दृढ़ संकल्प को ग्रामीणों का सहयोग मिला तो ग्रामसभा की परिकल्पना साकार होने लगी। स्वच्छता का मिशन पूरा हुआ और पंचायत को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित कर दिया गया। अब अगला कदम, गाँव में ही रोजगार को बढ़ावा देकर गरीबी दूर करना और शिक्षा का प्रचार-प्रसार है।

स्वच्छता के जुनून से मिली सफलता

करीब 10 हजार की अबादी वाली इस पंचायत के 80 फीसद लोग गरीब हैं। पक्की सड़कों के किनारे बनीं झोपड़ियाँ इसका अहसास भी कराती हैं। मगर गुलाबी रंग के शौचालय की दीवारें यह बताती हैं कि ये झोपड़ियाँ तो शौचालय वाली हैं।

दो माह में बने 1700 शौचालय

जनवरी तक भरथीपुर पंचायत में महज दो सौ घरों में शौचालय थे। स्वच्छता का ऐसा जुनून चढ़ा कि महज दो माह की मेहनत से पंचायत को खुले में शौच से मुक्त करा दिया गया। इतने दिनों में यहाँ शौचालयों की संख्या 200 से बढ़कर 1900 से अधिक हो गई। मजदूर के रूप में ग्रामीणों ने दिन-रात मेहनत की। 30 मार्च को यह पंचायत ओडीएफ घोषित हो गई।

सशक्त पंचायती राज का बेजोड़ उदाहरण
भरथीपुर पंचायत की 80 फीसद आबादी मजदूर है। शिक्षितों की संख्या सिर्फ 40 प्रतिशत है। रोजी-रोटी के लिये लोगों को बाहर न जाना पड़े, इसके लिये ग्राम सभा में रोजगार को बढ़ावा देने वाली योजनाओं को तरजीह दी जाती है। 80 फीसद घरों में जाने का रास्ता नहीं था। ग्रामसभा के निर्णय से इन घरों को रास्ता मिला।

पंचायती राज दिवस पर भरथीपुर को नानाजी देशमुख राष्ट्रीय गौरव ग्रामसभा पुरस्कार मिला तो ग्रामीणों में खुशी की लहर दौड़ गई। मुखिया इन्द्रभूषण सिंह अशोक ने यह पुरस्कार ग्रहण किया। महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि उन्हें यह पुरस्कार पैगंबरपुर पंचायत का मुखिया रहते हुए पूर्व में भी मिल चुका था। स्नातक मुखिया इन्द्रभूषण कहते हैं कि ग्रामीण आर्थिक रूप से सबल हों और शिक्षा का प्रतिशत बढ़े, इस दिशा में भी ग्राम सभा के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है।

नीली क्रान्ति से सुनहरी होती जिन्दगी

नुरेशा खातून (45) सिर्फ दो कट्ठे में मछली पालन करती हैं। छह माह में चार क्विंटल मांगुर मछली का उत्पादन होगा और आमदनी होगी 48 से 50 हजार रुपए। इससे प्रेरणा लेकर कई और इस व्यवसाय की ओर बढ़े हैं। इसके अलावा फूलों की खेती से भी किसानों की जिन्दगी मे बहार आने लगी है। ग्रामीण नुख्य रूप से गेंदा की खेती को तवज्जो दे रहे हैं. बाँस से टोकरी निर्माण का काम भी हो रहा है।

ग्राम स्वराज अभियान का हिस्सा बने दो गाँव

पंचायत के दो गाँव प्रधानमंत्री ग्राम स्वराज अभियान का हिस्सा बने हैं। भरथीपुर व फिरोजपुर का चयन किया गया है। दोनों गाँवों के सभी घरों में बिजली पहुँचा दी गई है। सभी परिवारों को एक-एक एलईडी बल्ब मुहैया करा दिया गया है। आयुष्मान भारत के अन्तर्गत टीकाकरण का कार्य पूरा कर लिया गया है। सभी परिवारों के खाते खोल दिये गए हैं। बीमा योजना से जोड़ दिया गया है, लेकिन उज्ज्वला योजना का काम शेष है।
 

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