ताज्जुब है कि प्रेम और शान्ति के सन्देश के नाम पर श्री श्री रविशंकर और उनके अनुयायी उस धारा को ही भूलने को तैयार हैं, जो शान्ति की निर्मल यमुनोत्री से निकलकर, प्रेम का प्रतीक बने ताजमहल को आज भी सींचती है! बांकेबिहारी को पूजने वाले भी भला कैसे भूल सकते हैं कि कालियादेह पर नन्हें कान्हा का मंथन-नृतन कृष्ण की कृष्णा को विषमुक्त कराने की ही क्रिया थी?
आज है कोई जो कान्हा बन कालियादेह को सबक सिखाए? पुरानी दिल्ली वालों को भी भूलने का हक नहीं कि तुगलकाबाद के किले से लाकर कश्मीरी गेट से अजमेरी गेट के बीच देल्ही को बसाने वाली यमुना ही थी। जिस लालकिले की प्राचीर से उगते हुए आजादी का सूरज कभी सारी दुनिया ने देखा था, उसकी पिछली दीवार से जिसने इश्क किया, वे लहरें भी इसी यमुना की थी। भला कोई भारतीय यह कैसे भूल सकता है!
मुझे खूब याद है कि मेरे पिताजी ने मेरी तालीम के लिये जिस स्कूल को चुना, वह आज भी यमुना के किनारे ही है - लुडलो कैसल। मैं यमुनापार रहता हूँ। तब मेरे स्कूल की बस पुराने पुल से होती हुई रोज दो बार यमुना के ऊपर से गुजरती थी, आज मैं गुजरता हूँ। पिछले 39 सालों से यही सिलसिला है। यमुना के उस पार जाने के लिये एक मात्र बस नम्बर 317 पकड़ने तब हमें यमुना पुश्ता चुंगी ही जाना पड़ता था। अकेले में हिम्मत रखना भी मुझे 1978 की यमुना बाढ़ ने ही सिखाया।
यमुना के मोटे रेतीले स्पंज में सुरक्षित जल भण्डार ने ही आज तक मुझे पानी पिलाया है। मैंने चुल्लू से निकाल कर यह पानी खुद पीया है। कभी यमुना किनारे बसे चंदगीराम के अखाड़े के दंगल देखकर बदन को कसरती बनाने की चाह मेरे भी मन में जगी थी। मैंने और मेरी पत्नी ने जाने कितनी बसन्तपंचमी यमुना को निहारते मनाई होंगी। मेरा मृत नवजात शिशु इसी यमुना की रेती में आज भी कहीं सोया हुआ होगा। मेरी विदाई यदि दिल्ली में हुई, तो मेरा शरीर भी इसी यमुना के किनारे ही भस्म होगा। ये सब क्या भूलने की बातें हैं?
यमुना के साथ इतने सारे रिश्ते! इतनी सारी स्मृतियाँ!! यह सब होते हुए भी मेरा व्यवहार यमुना के साथ वैसा ही है, जैसे श्मशान पहुँचकर वैरागी और बाहर निकलकर पुनः दुनियाई हो जाना। निश्चित ही यह एक माँ से एक सन्तान का व्यवहार नहीं है, तो मुझे यमुना को माँ कहने का भी कोई हक नहीं है। यदि मैंने यमुना से सच में कोई रिश्ता समझा होता, तो मेरे मन में भी यह सवाल जरूर उठता कि कभी यमुना रेती की सब्जियाँ खाकर मैंने सेहत पाई थी; आज उसी तट की सब्जियाँ खाकर सेहत गँवा रहा हूँ। क्यों?
जिस यमुना की गोदी में मौन-मुखर समाधियों से कभी मन सुवासित होता था, आज उन समाधियों को ही हमने यमुना की दुर्गन्ध सहने को मजबूर कैसे हो जाने दिया? यमुना का जो पुश्ता हमारी सुबह-सवेरे सैर की पगडंडी था, हमने उसे रफ्तार का राजमार्ग बना दिया। यमुना की जमीन समाधियों को दी गई; हम देखते रहे। पुश्ते के भीतर नया पुश्ता बना दिया गया; कह दिया गया कि नए पुश्ते के बाहर की जमीन यमुना की नहीं हैं। दिल्ली ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
आज भी आधी दिल्ली, यमुना की वजह से पीने का पानी पाती है। इस दृष्टि से यमुना.. दिल्ली की लाइफलाइन है; बावजूद इसके दिल्ली अपनी एहसानफरामोशी से बाज नहीं आ रही। दिल्ली, उलटे यमुना को धमका रही है। ‘यमुना जिये अभियान’ के मनोज मिश्र कहते हैं कि यमुना को धमकाते, दिल्ली को कई बरस बीत गए। दिल्ली से गुजरती यमुना की 50 कि.मी. लम्बाई में से 22 कि.मी. को हर रोज शहरी सीमाएँ धमकाती ही हैं।
वजीराबाद पुल से ओखला बैराज के बीच की यह दूरी, दुनिया में किसी भी नदी की तुलना में यमुना के लिये सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। इसी हिस्से में यमुना सबसे ज्यादा प्रदूषित है। इसी हिस्से में आकर यमुना सिकुड़कर डेढ़ से तीन कि.मी. चौड़ी रह जाती है। देखें तो, इस हिस्से को सबसे ज्यादा धमकी सरकारी एजेंसियों ने ही दी है - 100 एकड़ पर शास्त्री पार्क मेट्रो, 100 एकड़ में यमुना खादर आई टी ओ मेट्रो, 100 एकड़ में खेलगाँव व उससे जुड़े दूसरे निर्माण, 61 एकड़ में इन्द्रपस्थ बस डिपो और 100 एकड़ में बनाया अक्षरधाम। माँ यमुना के सीने पर आर्ट ऑफ लिविंग का तय आयोजन भी सरकारी सहमति का ही नतीजा है। म्युनसिपलिटी के नाले यमुना में गिरकर साँस रोकने की धमकी रोज दे रहे हैं, सो अलग।
गौर करें कि धमकियाँ देने को विवश यमुना भी है। महरौली, बसन्त विहार से लेकर द्वारका तक की हरियाणा से सटी पट्टी अभी ही त्राहि-त्राहि कर रही है। शेष दिल्लीवासियों को अभी भी पीने का पानी सीमित ही मिलता है। यमुना और सिकुड़ी... और कीचड़ हुई, तो पेयजल की दुर्दशा और गहराएगी।
यही वह हिस्सा है, जिसने 1947 से 2010 के मध्य नौ बाढ़ देखी हैं - 1947, 1964, 1977, 1978, 1988, 1995, 1998, 2008 और 2010। किस बारिश में घुसकर यह बाढ़ मेट्रो और डीडीए के किस निर्माण में अव्यवस्था फैला देगी; यमुना कब दिल्ली को 2005 की मुम्बई याद दिला देगी; भविष्यवाणी करना मुश्किल है। धमकी यह भी है कि यह हिस्सा भूकम्परेखा से अछूता नहीं। भूकम्प केे झटके कभी भी आकर रेत पर टिकी इमारतों को धूल चटा जाएँगे। क्या ये धमकियाँ अनसुनी करने योग्य हैं? नहीं! फिर भी हमने आज तक इन्हें अनसुना ही किया।
बाढ़, दिल्ली को न डुबोए। केन्द्रीय जल आयोग के प्रस्ताव के मुताबिक, इसके लिये यमुना धारा के मध्य बिन्दु और एक तरफ के पुश्ते के बीच की दूरी कम-से-कम पाँच किमी रहनी चाहिए। हमने क्या किया? पुश्ते के भीतर एक और नया पुश्ता बनाकर बोर्ड टांग दिया- ‘सेफ डेल्ही’। हकीकत यह है कि मेट्रो, खेलगाँव, अक्षरधाम सरीखे निर्माण दिल्लीवासियों की सुरक्षा से समझौता कर बनाए गए हैं।
पर्यावरण संरक्षण कानून- 1986 की मंशा के मुताबिक, नदियों को ‘रिवर रेगुलेशन जोन’ के रूप में अधिसूचित कर सुरक्षित किया जाना चाहिए था। 2001-2002 में की गई पहल के बावजूद, पर्यावरण मंत्रालय आज तक ऐसा करने में अक्षम साबित हुआ है। बाढ़ क्षेत्र को ‘ग्राउंड वाटर सेंचुरी’ घोषित करने के केन्द्रीय भूजल आयोग के प्रस्ताव को हम कहाँ लागू कर सके? नदी भूमि पर निर्माण की मनाही वाली कई सिफारिशें हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने नदी भूमि को जलनिकाय के रूप में सुरक्षित रखने को कहा; हमने नहीं सुना।
श्री मिश्र का आकलन और आरोप सच है, किन्तु यमुना के प्रति हमारी संवेदनहीनता भी झूठ नहीं। याद कीजिए, यमुना की आजादी में खलल डालने के विरोध में दो साल लम्बा यमुना सत्याग्रह हुआ; हम घर में बैठे रहे। हमारे मल-मूल के नाले और हमारे घरों की पन्नियों ने यमुना की साँस पर ही संकट पैदा कर दिया। हमारे अस्पताल, यमुना में मवाद-सड़े-गले अंग..सब कुछ डालते रहे; हम चुप रहे। विरोध जताने बृज से चली एक यात्रा को बॉर्डर पर ही रोक दिया गया।
हमने उसे रमेश बाबा की यात्रा कहकर उसमें शामिल होने की जहमत भी नहीं उठाई। ठेकेदारों से लेकर फैक्टरी, निगम व सरकार तक ने यमुना के साथ ‘डम्प एरिया’ जैसा व्यवहार किया। विधानसभा में इसे लेकर कभी हल्ला नहीं हुआ। नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने यमुना पुश्ते से ठोस कचरा उठाने का सख्त आदेश दिया, किन्तु दिल्ली की राजनीति ने क्या किया?
दिल्ली की सफाई व्यवस्था को भाजपा और आम आदमी पार्टी का राजनैतिक अखाड़ा बना दिया। गत भारत नदी दिवस पर दिल्ली के वर्तमान जल मंत्री कपिल मिश्र ने भी कहा, “यदि हम यमुना को नहीं बदल पाये, तो समझिएगा कि हम व्यवस्था नहीं बदल पाये।” क्या इसी अखाड़ेबाजी से बदलेगी व्यवस्था?
दरअसल, हम दिल्लीवासी जब तक यमुना से अपनी सेहत, सुख, दुख और समृद्धि के रिश्ते को ठीक से समझने की कोशिश नहीं करेंगे, तब तक हम यमुना के बेबसी के लिये सिर्फ सरकार को कोसते ही रहेंगे, करेंगे कुछ नहीं। खुद अपने और अपने बच्चों को यमुना किनारे ले जाये बगैर यह रिश्ता बन नहीं सकता।
यमुना की आँख से अपनी आँख मिलाए बगैर, इस संकल्प का मन में आना मुश्किल है कि यमुना की समृद्धि में मेरा खुद का भी कुछ योगदान हो सकता है। यह बात तभी गले उतरेगी कि मेरे द्वारा हर दिन बचाया एक बाल्टी पानी, यमुना को पानीदार बनाने में सहायक हो सकता है। बिना सीवर, पानी कनेक्शन नहीं देने का नियम आड़े आये, तो आये...अपनी हाउसिंग सोसाइटी को सीवर से जोड़ने की बजाय, बड़ा सामुदायिक सैप्टिक टैंक बनाकर हम यमुना के दर्द को कम कर सकते हैं। ऐसे नियम को बदल डालें।
जल मंत्री महोदय ने कहा कि उनके विधानसभा क्षेत्र करावल नगर के उस हिस्से में ज्यादा सफाई थी, जहाँ सीवर पाइप लाइन नहीं थी; फिर भी नियम नहीं बदला; उल्टे खजूरीखास में सीवर को ही आगे बढ़ाया।
समझने की जरूरत है कि यमुना को बचाना, यमुना से ज्यादा खुद को बचाने के लिये है। यह सोच ही संकल्प देगी कि पॉलीथीन पर लगाए प्रतिबन्ध को लेकर दिल्ली सरकार सख्त भले ही न हो, हमें खुद सख्त होना बेहद जरूरी है। सीवर लाइनों में रसायन और पॉली कचरा कदापि न जाने पाये, इसके लिये प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की प्रतीक्षा करने की जरूरत कहाँ है? हम इसका नियंत्रण अपने घर-फैक्टरी-दुकान के कचरे का ठीक से ठिकाने लगाकर ही कर सकते हैं।
यमुना की खाली जमीन को घनी हरी पट्टी बेल्ट में बदल देने के लिये बीज बिखेरने का काम तो बच्चों की कोई भी टोली कभी भी कर सकती है। इस पर कौन रोक लगा सकता है? जब तक यमुना अपने प्रबल प्रवाह व गुणवत्ता को वापस हासिल नहीं कर लेती, पूजा-पाठ की शेष सामग्री या मूर्तियों का नदी में विसर्जन अनुकूल नहीं है।
ऐसी परम्पराओं को उलट देने में सरकार कहाँ बाधक है? पंचाट का आदेश इसमें सहयोगी है। जेएनयू और राष्ट्रपति भवन ने बारिश का पानी संजोने की कभी नायाब पहल की थी। शेष दिल्ली अभी भी प्रतीक्षा कर रही है। क्यों? जल मंत्री कपिल मिश्र ने अपने बयान में कहा कि दिल्ली को अपने पानी के लिये न रेणुका बाँध चाहिए और न शारदा-यमुना नदी जोड़। कैसे करेंगे? क्या कोई योजना ज़मीन पर उतरनी शुरू हुई?
ये प्रश्न हैं। यह सवाल पूछी जरूर हो, किन्तु जवाबदेही भी उतनी ही जरूरी है। अतः आइए, अब हम न किसी को कोसें, न रोएँ... बस! एक दीप जलाएँ। यमुना का जीवन दीप!! विश्वास कीजिए, एक दिन प्रदूषकों और सरकारों को अवश्य शर्म आएगी। वे जल-मल-शोधन की विकेन्द्रित प्रणालियों को नकारना बन्द करेंगे। प्रदूषक, प्रदूषण मुक्ति में योगदान को प्रेरित व विवश किये जाएँगे।
नदी-तालाब-झीलों की भूमि पर अतिक्रमण न हो। उनका भू-उपयोग न बदला जाये। हमें अनुचित पर निगाह रखनी है; उचित में सहयोग करना है। फिर देखिएगा, एक दिन रिवर-सीवर अलग रखने व प्रदूषण को उसके स्रोत पर ही निपटाने की नीति भी आ जाएगी और नदियाँ अपना प्राकृतिक प्रवाह भी हासिल कर लेंगी। आइए, शुरुआत तो करें; हमें एक अदद रिश्ते की कसम।
यमुना गणित या आँकड़ों में यमुना
उद्गम : यमुनोत्री ग्लेशियर
संगम : प्रयागराज, इलाहाबाद
कुल लम्बाई : 1376 किमी
(यमुनोत्री से हथिनीकुंड - 172 किमी, हथिनीकुंड से वजीराबाद - 224 किमी, वजीराबाद से ओखला - 22 किमी, ओखला से चंबल संगम, इटावा - 490 किमी, चंबल संगम से गंगा संगम तक - 468 किमी )
जलग्रहण क्षेत्र: 3.45.848 वर्ग किमी
घाटी राज्य : सात
(उत्तराखण्ड, हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश)
सहायक नदियाँ : 12
(कमल, गिरि, टोंस, असान, सोम, छोटी यमुना, हिण्डन, चंबल, काली, सिंध, केन और बेतवा)
मुख्य नाले : 26
(नाला नम्बर- 2.8, भूरिया नाला, मथुरा-वृंदावन नाला, आगरा नाला दिल्ली के 22 नाले। दिल्ली नालों के नाम - नजफगढ़, मैगजीन रोड, स्वीपर कॉलोनी, खैबरपास, मैटकॉफ, कुदसिया बाग, मोट, यमुनापार नगरनिगम, मोरी गेट, सिविल मिल, पावर हाउस, मेन नर्सिंग होम, नम्बर 14, बारापुला, महारानी बाग, कालकाजी, ओखला, तुगलकाबाद, शाहदरा, सरिता विहार, एलपीजी बॉटलिंग प्लांट, और तेहखण्ड।)
नहरें : छह
(डाकपत्थर, असान, पश्चिमी यमुना, पूर्वी यमुना, आगरा और गुड़गाँव नहर)
मौजूदा बाँध/बैराज : छह
(उद्देश्य: डाकपत्थर और असान से बिजली, हथिनीकुण्ड से सिंचाई, वजीराबाद से पेयजल, आईटीओ से पावर हाउस और ओखला से आगरा नहर को आपूर्ति)
प्रस्तावित बाँध : तीन
मिट्टी के प्रकार : आठ
(42 फीसदी मिट्टी कछारी, 25.5 मध्यम काली, 15 काली-लाल मिश्रित, 5.5 गहरी काली, 5 लाल-पीली, 4 भूरी पहाड़ी, 2.5 लाल बलुही और 0.5 फीसदी चूनेदार)
खनिज : नगण्य
भूजल : अधिकतम से न्यूनतम तक
(यमुना घाटी के उत्तर-पूर्व समतल में 15 प्रतिशत क्षेत्र में अच्छा और व्यापक। पश्चिमी और दक्षिण पश्चिमी क्षेत्र के 19 प्रतिशत में सीमित। बुदेलखण्डी भूभाग वाले 4 प्रतिशत में इतना कम कि दोहन की दृष्टि से प्रतिबन्धित।)
भूतल : पहाड़ी, छोटी पहाड़ी, पठारी और समतल। समुद्र तल से 100 मीटर से 6.320 मीटर ऊँचाई पर अवस्थित।
वर्षा : 130 से 1600 मिमी तक।
वार्षिक जल बहाव : 0.3 मिलियन क्यूबिक मीटर से 100 बिलियन क्यूबिक मीटर तक।
तापमान : 5 से 42 डिग्री तक।
वाष्पीकरण : 250 से 450 मिमी तक।
फसलें : बाजरा-मक्का जैसे कम पानी फसल अधिक पानी पीने वाले धान तक।
सिंचाई हेतु छोड़े जाने वाला जल : ताजेवाला से 6 बिलियन क्यूबिक मीटर और ओखला से 2.1 बिलियन क्यूबिक मीटर।
(उक्त मात्रा का मौसमी जलबँटवारा : ताजेवाला से मानसून में 2.8, मानसून बाद 0.9, सर्दी में 0.9 और गर्मी में 1.9 बिलियन क्यूबिक मीटर। ओखला से मानसून में 0.9, मानसून के बाद 0.4, सर्दी में 0.4, गर्मी में 0.4 बिलियन क्यूबिक मीटर।)
भू-उपयोग : अत्यन्त व्यावसायिक, कृषि और जनसंख्या दबाव वाला क्षेत्र। यमुना खादर भी अब इसकी चपेट में।
प्रदूषण : भारत की सर्वाधिक प्रदूषित नदी का दर्जा। गुणवत्ता की श्रेणी : यमुनोत्री से आगरा के बीच ‘ए’ से ई तक।
(कारण : नाइट्रोजन, पोटेशियम, फास्फोरस और बायोमाइडस जैसे कृषि रसायन की मौजूदगी में पिछले 25 वर्षों में चार गुना वृद्धि। देहरादून, यमुना नगर, करनाल, सोनीपत, पानीपत, दिल्ली, फरीदाबाद, वल्लभगढ़, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बागपत, गाजियाबाद, नोएडा, मथुरा और आगरा घरेलू और औद्योगिक कचरे के मुख्य स्रोत। हरियाणा के 22, दिल्ली की 42 और उ. प्र. की 17 फैक्टरियों द्वारा यमुना में सीधे तरल कचरा बहाने की रिपोर्ट।)
सम्बन्धित एजेंसियाँ : घाटी प्रदेशों की सरकारें, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा अन्य सम्बन्धित विभाग; जैसे दिल्ली सरकार का दिल्ली जल बोर्ड, पर्यावरण विभाग, भूमि एवं भवन विभाग, नगर विकास विभाग, सिंचाई व बाढ़ नियंत्रण विभाग। भारत सरकार का केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण एवं वन, नगर विकास एवं जलसंसाधन मंत्रालय। केन्द्रीय भूजल बोर्ड, केन्द्रीय जल आयोग, ऊपरी यमुना नदी बोर्ड और दिल्ली विकास प्राधिकरण।
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