जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम का मूल्यांकन : करौली पंचायत में समिति के संदर्भ में अध्ययन

जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम का मूल्यांकन
जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम का मूल्यांकन

सारांश

जल एक मूल्यवान प्राकृतिक संसाधन है। बढ़ती मांग पूरी करने के लिए जल का संरक्षण करने और सभी क्षेत्रों में जल को दूषित होने से बचाने की आवश्यकता है। इसके लिए हमें वाटरशेड प्रबंधन से लेकर रेन वाटर हार्वेस्टिंग की तकनीकों को अपनाना होगा। वर्षा जल का संग्रहण संरक्षण तथा समुचित प्रबंधन आवश्यक है। करौली जिले में बढ़ती जनसंख्या शहरीकरण एवं सिंचित कृषि के विस्तार में बढ़ती पानी की मांग व अन्य गतिविधियों के परिणामस्वरूप जिले की नादौती पंचायत समिति अर्द्धसंवेदनशील जबकि अन्य सभी पांचों पंचायत समिति हिण्डौन, करौली, टोडाभी, सपोटरा व मण्डरायल में भूजल का स्तर अति दोहन की श्रेणी में आ गया है और साथ ही पानी की गुणवत्ता में भी कमी आई है। प्रस्तुत शोध पत्र में राजस्थान राज्य के करौली जिले की करौली पंचायत समिति में संचालित जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम एवं उसके परिणामों का सांख्यिकीय विश्लेषण किया गया है। इसके अलावा जलग्रहण क्षेत्र में पहले से उपलब्ध जल संसाधनों, उनके प्रदूषित होने एवं जलाभाव के कारणों प्रभावों एवं जल प्रबन्धन के प्रभावी उपायों का भी उल्लेख किया गया हैं।

कूटशब्दः सिंचित कृषि, अति दोहन, जलग्रहण क्षेत्र, सूक्ष्म सिंचाई जल दक्षता, भूमि उपयोग 

प्रस्तावना

जल एक अमूल्य प्राकृतिक संसाधन एवं जीवन का आधार है। वर्तमान में बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण औद्योगीकरण एवं सिंचित कृषि के विस्तार के कारण जल की मांग बढ़ी है। एवं जल संसाधनों के अविवेकपूर्ण उपयोग के कारण संपूर्ण विश्व भीषण जल संकट का सामना कर रहा है। राजस्थान की विषम जलवायु एवं भौगोलिक परिस्थितियों के कारण वर्षा कम मात्रा में होती है। साथ ही वर्षा अनियमित य असमान रूप से प्राप्त होती है। करौली जिले में बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण एवं सिंचित कृषि के विस्तार में बढ़ती पानी की मांग व अन्य गतिविधियों के परिणाम स्वरूप जिले की नादौती पंचायत समिति अर्द्धसंवेदनशील' जबकि अन्य सभी पांचों पंचायत समिति हिण्डौन, करौली, टोडाभीम, सपोटरा व मण्डरायल में भूजल का स्तर अति दोहन की श्रेणी में आ गया है और साथ ही पानी की गुणवत्ता में भी कमी आई है। इसके साथ सतही जल संसाधनो के अविवेकपूर्ण उपयोग, समुचित संरक्षण व प्रबंधन के अभाव में यह जल प्रदूषित हो रहा है। समय की माँग है कि जल संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग एवं उचित प्रबंधन हो करौली पंचायत समिति क्षेत्र में निरंतर पेयजल की आपूर्ति कृषि उत्पादन की समानता बनाए रखने, विकास कार्यों का समुचित उपयोग कर अन्न एवं चारा के उत्पाद की क्षमता बनाए रखने तथा भूजल स्तर में होने वाले ह्रास को दृष्टिगत रखते हुए वर्षा जल का संचयन एवं जल संरक्षण के लिए जलग्रहण विकास कार्यक्रम क्षेत्र के निवासियों के लिए सतत विकास का आधार बन रहा है।

उद्देश्य

  1. करौली पंचायत समिति क्षेत्र में स्थित जल संसाधनों का विश्लेषण करना।
  2. करौली पंचायत समिति में संचालित जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम का विश्लेषण करना।
  3. विभिन्न योजनाओं के साथ संचालित जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम की स्थिति को स्पष्ट करना।
  4.  करौली पंचायत समिति क्षेत्र के सतत विकास को जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम के परिपेक्ष्य में स्पष्ट करना। जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम के द्वारा होने प्रभावों का विभिन्न आधारों पर मूल्याकन करना।

शोध विधि

प्रस्तुत शोध पत्र में जल संसाधन प्रबंधन की समस्या का अध्य करने के लिए दो प्रकार के आंकडों को चुना गया हैं। प्राथमिक आंकडे प्रश्नावली द्वारा सर्वे एवं साक्षात्कार माध्यम से एकत्रित किये गये हैं। द्वितीयक आंकडे सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों रिपोर्टों एवं वेबसाइट से प्राप्त किये गये हैं।

अध्ययन क्षेत्र का परिचय

प्रस्तुत शोध कार्य के लिए करौली जिले की करौली पंचायत समिति का चयन किया गया है। करौली जिला राजस्थान के भू-भाग में 28°03' से 26°49 उत्तरी अक्षांश तथा 76 35 77°26 पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। 2011 की जनगणना अनुसार जिले की जनसंख्या 1458459 तथा जिले का क्षेत्रफल 504302 वर्ग किलोमीटर है। यह जिला ग्रामीण विकास एवं प्रशासनिक रूप से हिण्डौन, करौली, टोडाभीम नाद सपोटरा, मण्डरायल पंचायत समिति में विभाजित है। भौगोलिक रूप से यह जिला समक्षेत्र एवं छितराई हुई पहाड़ियों आच्छादित है। करौली, सपोटरा एवं मण्डरायल उपखण्ड पहाड़ी इलाका (डांग क्षेत्र) कहा जाता है; मैदानी क्षेत्र उपजाऊ तथा यहाँ की मिट्टी हल्की एवं रेतीली है। इस जिले की नदियाँ गम्भीरी, कालीसिल, चम्बल, खारी, भैंसावट, बरखेडा, माँची, भद्रावती आदि हैं। जिले की जलवायु को अर्ध-शुष्क रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, जिले की औसत वार्षिक 636 मिलीमीटर है। करौली में दैनिक अधिकतम तापमान औसत माह जून में 34.4 डिग्री सेन्टीग्रेड होता है एवं न्यून तापमान 15.75 डिग्री सेन्टीग्रेड माह जनवरी में प्राप्त होता है। करौली जिले की औसत सापेक्षिक मात्रा लगभग 67.17 प्रतिशत हैं समुद्र तल से जिले की ऊँचाई 400 से 600 मी. तक करौली जिले की सीमा पश्चिम में दौसा जिले से दक्षिण-पश्चिम में सवाईमाधोपुर जिले से पूर्व में धौलपुर से तथा उत्तर-पूर्व में भरतपुर जिले से लगती है।

करौली पंचायत समिति में जलाभाव की समस्या

करौली पंचायत समिति में भी सम्पूर्ण भारत की तरह मानसूनी वर्षा होती हैं। वर्षा जल विवेकपूर्ण संग्रहण एवं समुचित प्रबंधन के अभाव में यह अप्रयुक्त पानी के रूप में व्यर्थ यह जाता है और भूजल के अत्यधिक दोहन से जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है अतः वर्षा कम होने और भूमिगत जल के अधिक दोहन से क्षेत्र में जल की विकट समस्या है। पंचायत समिति में बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण, पशुपालन एवं सिंचित कृषि के विस्तार से पानी की माँग बढ़ी है। पंचायत समिति में उपस्थित बांध भी वर्षा पर निर्भर हैं। इसके अतिरिक्त कुओं, नलकूपों एवं अन्य सिंचाई के साधन उपलब्ध होने पर भी जल के दुरुपयोग के कारण जल का अभाव रहता है। भूजल के अत्यधिक दोहन से करौली पंचायत समिति में भूमिगत जल स्तर अति दोहन की श्रेणी में आ गया है।

अध्ययन क्षेत्र में जल संसाधन

करौली पंचायत समिति के प्रमुख जल संसाधनों में वर्षा जल नदी, बांध, तालाब एवं कुएं इत्यादि है। वर्ष 2021 में करौली पंचायत समिति में मानसूनी वास्तविक वर्षा 69.74 सेमी में रही. जो सामान्य वर्षा 61.69 सेमी से 8.05 सेमी अधिक रही। केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा जारी करौली जिले में भूजल संसाधन रिपोर्ट-2020 के अनुसार करौली पंचायत समिति का क्षेत्र 108446 हेक्टेयर संभावित जलभृत क्षेत्र हैं। पंचायत समिति का कुल भूजल सम्भावित क्षेत्र 8967 हेक्टेयर है और भूजल के निष्कर्षण का स्तर 109.89 प्रतिशत है अर्थात भूजल का स्तर अति दोहन की श्रेणी में आ गया है। भूजल के अंधाधुंध दोहन के कारण भूजल स्तर साल-दर-साल गिरता चला जा रहा है। इस जिले की मुख्य नदियाँ गम्भीरी कालीसिल, चम्बल, खारी, भैंसावट, बरखेडा, अटा. माँची, भद्रावती आदि है ये नदियाँ जिले के अधिकतर क्षेत्रों में सिंचाई एवं जलापूर्ति प्रदान करती है। जिले में वर्तमान में सिंचाई के स्त्रोतों में पांचना, कालीसिल, नींदर व जगर बांध बृहद स्रोत माने जा सकते हैं आने वाले समय में चम्बल पाचना जगर लिफ्ट परियोजना गुडला - पांचना लिफ्ट परियोजना के पूरा हो जाने से करौली, हिण्डौन क्षेत्र का भू भाग भी सोना उगलने लगेगा।

तालिका 1: पंचायत समिति करौली साधनों के अनुसार कुल सिंचित क्षेत्रफल, वर्ष 2017-18 (हेक्टेयर में) 

Picture 1
स्रोत: कार्यालय जिला कलेक्टर (भू.अ)  करौली 


पंचायत समिति में तालाब का उपयोग सिंचाई, पेयजल व मत्स्य पालन के लिए किया जाता है। अध्ययन क्षेत्र में शक्ति चलित सिंचाई के साधनों में डीजल व बिजली से चलने वाले ट्यूबवेल एवं पम्पिंग सेट प्रमुख हैं। इनके द्वारा बहुत अधिक दूरी के क्षेत्र में भी सिंचाई की जा सकती है अध्ययन क्षेत्र में कुओं में जल स्तर में गिरावट की वजह से उनका स्थान ट्यूबवेल व पम्प सेटों ने ले लिया जिससे कुओं के द्वारा की जाने वाली सिंचाई में कमी आयी है। साथ ही वर्षा की स्थिति, अनिश्चितता व अनियमितता है, जिससे भूमिगत जल में बढ़ोत्तरी नहीं हो पा रही है। पंचायत समिति करौली में स्थित तीनों बांधों की कुल भराव क्षमता 23.73. 20 MCFT है।

तालिका 2 पंचायत समिति करौली प्रमुख बांधों की स्थिति

जल संसाधन विभाग,करौली
स्रोत:- संसाधन विभाग,करौली

करौली पंचायत समिति में जलग्रहण एवं विकास कार्यक्रम

जलग्रहण क्षेत्र ऐसा भौगोलिक क्षेत्र (बडा, मध्यम, छोटा) है, जिसके जल का निकास एक ही स्थान (नदी नाला या नाली) से होता हैं। इसमें प्राप्त समस्त वर्षा जल का नियंत्रण संभव हो पाता है। जलग्रहण क्षेत्र एक ऐसी भौगोलिक इकाई के रूप में परिभाषित हो चुका है, जिसमें विभिन्न भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक क्रियाकलापों द्वारा स्थायी विकास का आधार तैयार किया जाता है। राजस्थान में जलग्रहण एवं विकास कार्यक्रम का प्रारम्भ 1986-87 से हुआ राजस्थान का करौली जिला जलवायुविक दृष्टि से अर्ध शुष्क प्रदेश में सम्मिलित है। यहाँ की अधिकतर नदियां बरसाती है। इस कारण उनमें जल प्रवाह केवल वर्षा ऋतु के समय हो पाता है। क्षेत्र में वर्षा जल को संचित कर उसके विभिन्न कार्यों में उपयोग हेतु जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम एक आशा के प्रस्फुटन से उत्पन्न नवीन कली के रूप में है और पुष्प बनने की ओर अग्रसर है, जिसके द्वारा क्षेत्र में विकास की बयार चलने लगी है। करौली जिला डांग क्षेत्र है। अतः शोध क्षेत्र में जल का संरक्षण एवं एकत्रीकरण द्वारा स्थानीय मांग के अनुरूप क्रियाएँ सम्पादित की जाती है। 

जल ग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम में जल संरक्षण द्वारा क्षेत्र विकास के विभिन्न उद्देश्यों को शामिल किया जाता है जिनमें जलग्रहण क्षेत्र में पाये जाने वाले प्राकृतिक संसाधनों जैसे भूमि, पानी एवं वनस्पति का समन्वित रूप से उपयोग, संरक्षण और विकास विभिन्न प्रकार के छोटे व मध्यम आकार के जल संग्रहण ढांचों एवं अन्य जल संरक्षण विधियों द्वारा वर्षा जल को संचित कर उसका समुचित उपयोग करना। 

जलग्रहण क्षेत्र के गरीब, पिछड़े एवं संसाधनहीन व्यक्तियों की आय के सतत् स्रोत सृजित कर सामाजिक एवं आर्थिक दशा को सुधारना अकृषि योग्य भूमि में चारागाह विकास एवं पौधारोपण कर मानव एवं पशुधन की बढ़ती हुई जरूरत की पूर्ति हेतु चारा, जलाऊ लकड़ी एवं अन्य जैविक पदार्थों की आपूर्ति सुनिश्चित करना जलग्रहण क्षेत्र में सृजित परिसम्पत्तियों के प्रबंधन एवं अनुरक्षण तथा प्राकृतिक संसाधन के विकास हेतु ग्राम समुदाय को प्रोत्साहित करना। जलग्रहण क्षेत्र में पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने को बढ़ावा देना। कृषि भूमि पर पानी के बहाव को रोकने के लिये मेड़बन्दी एवं उसकी वानस्पतिक सुदृढ़ीकरण एवं पानी एकत्रित करने हेतु खेत तलाई, खड़ीन एवं टाकों का निर्माण।

जल ग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम द्वारा क्षेत्र विकास के विभिन्न कार्य किये जाते है, जिनमें अकृषि भूमि पर पानी एकत्रित करने हेतु नाड़ी, जोहड़ वीडिच, स्टेगर्ड ट्रेन्च सी.सी.टी., डी.सी.सी.टी., एम.पी.टी. का निर्माण नालों में सूखे पत्थरों के चेकडेम, गैबियन स्ट्रक्चर, वानस्पतिक अवरोधक आदि का निर्माण कर पानी के वेग को नियंत्रित कर भू-कटाव को रोकना एवं जल संरक्षण कर भूजल स्तर में वृद्धि करना एनिकट एवं अन्य जलग्रहण ढांचों का निर्माण कर वर्षा जल संग्रहित करना चारा, लकड़ी, ईंधन हेतु नर्सरी तैयार करना चरागाह विकास एवं वानिकी विकास । वृक्षारोपण एवं मृदा सरक्षण कार्यों द्वारा सामुदायिक भूमि तथा बंजर भूमि का विकास जीविकोपार्जन हेतु अन्य गतिविधियों के अन्तर्गत जलग्रहण क्षेत्र के भूमिहीन श्रमिक, लघु एवं सीमांत कृषकों की आर्थिक स्थिति सुधारने हेतु उन्हें स्वयं सहायक समूह में संगठित कर आय सृजन की अन्य गतिविधियों जैसे डेयरी, मुर्गीपालन, बकरी पालन, कुटीर उद्योग, सुथारी एवं लुहारी कार्य मधुमक्खी पालन अपनाए जाने हेतु बढ़ावा दिया जाना।

पंचायत समिति करौली जलग्रहण क्षेत्र 

करौली में जलग्रहण क्षेत्र विकास सम्बन्धी कार्यक्रम जिले में गिरते भूमिगत जल स्तर को रोकने व वर्षा जल के उचित प्रबंधन हेतु कार्यक्रम के अन्तर्गत विभागीय योजना, मनरेगा व एम.जे.एस.ए. के द्वारा स्थानीय आवश्यकता की पूर्ति हेतु कार्य सम्पादित किये गये हैं। करौली पंचायत समिति के अन्तर्गत जलग्रहण विकास संबंधी, जल स्वावलम्बन अभियान व अन्य योजनाएं संचालित हो रही है। जलग्रहण क्षेत्रों में लगभग 40500 व्यक्ति रहते है। यहाँ परियोजना संचालित क्षेत्र 8 ग्राम पंचायतों में आने वाले 14 गांवों में फैला हुआ है। यहाँ जल व भूमि संरक्षण व उनके उचित प्रबंधन के माध्यम से स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु क्रियाओं का संचालन किया है ताकि स्थानीय निवासी अधिकाधिक लाभ प्राप्त कर विकास की राह पर आगे बढ़ते रहें। 

करौली पंचायत समिति में अवस्थित जलग्रहण विकास क्षेत्र कृषि जलवायु क्षेत्र 111ए में आता है। यहाँ की भूमि दोमट व बालुका मय दोमट प्रकार की पायी जाती है योजना क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 627 मि.मी. है। जलग्रहण क्षेत्रों में गर्मियों में तापमान 29° सेल्सियस से 47° सेल्सियस के मध्य पाया जाता है, जबकि सर्दी में यह 4 से 24° सेल्सियस के मध्य रहता है। जलग्रहण योजना विकास क्षेत्र की 32.57 प्रतिशत भूमि जोत क्षेत्र, 3.37 प्रतिशत बंजर भूमि व 1.26 प्रतिशत भूमि पडत क्षेत्र के अन्तर्गत शामिल है जिसके 30.67 प्रतिशत भाग सिंचित क्षेत्र में शामिल है, यहाँ मुख्यतः सरसों, चना, चरी, ज्वार, बाजरा, मूंगफली, तिल, गेहूँ ग्यार आदि फसलें उगाई जाती है। जलग्रहण परियोजना क्षेत्र में 10.80 प्रतिशत क्षेत्र पर दो फसलें तथा 21.71 प्रतिशत क्षेत्रफल एकल फसली क्षेत्र में आता है एवं यहाँ औसत भूमि प्रति परिवार 0.53 हैक्टेयर है। यहाँ सिचाई ट्यूबवेल व बोरवेल से होती है यहाँ मुख्यतः अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग व सामान्य वर्ग की जाति निवास करती है।

पंचायत समिति करौली जलग्रहण क्षेत्र
 मानचित्र 1: पंचायत समिति करौली जलग्रहण क्षेत्र

 

तालिका 3 जिला करौली पंचायत समिति करौली जलग्रहण क्षेत्रों का विवरण

तालिका 3 जिला करौली पंचायत समिति करौली जलग्रहण क्षेत्रों का विवरण
स्रोत- - जल ग्रहण क्षेत्र विकास विभाग, जिला परिषद्, करौली

अध्ययन क्षेत्र में जल संसाधन प्रबन्धन

अध्ययन क्षेत्र में जल ग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम में जल संरक्षण द्वारा क्षेत्र विकास के लिए निम्नलिखित सुझावों की अनुशंसा की जाती है।

जनसंख्या नियंत्रण

जनसंख्या में तीव्र वृद्धि तथा जल संसाधन में प्रादेशिक रूप में मात्रात्मक व गुणात्मक कमी आने से जल संकट ने उग्र रूप ले लिया है। निरंतर जल की मांग बढ़ती जा रही है। जनसंख्या वृद्धि के साथ ही कृषि व उद्योगों का विस्तार तथा नगरीकरण भी बढ़ा है जिससे स्वच्छ जल की मांग भी बढ़ती जा रही है।

जल को आर्थिक वस्तु माना जाए जल को एक आर्थिक वस्तु के रूप में देखा जाना चाहिए जल को पेयजल, सफाई के लिए सर्वप्रथम आवश्यकता और अन्य घरेलू आवश्यकताओं (पशुओं की आवश्यकताओं समेत), खाद्य सुरक्षा हासिल करने, सम्पोषक कृषि को सम्बल देने और न्यूनतम पारिस्थितिकीय आवश्यकताओं के लिए उच्च प्राथमिकता वाले आंवटन के बाद आर्थिक वस्तु माना जाना चाहिए, ताकि इसका संरक्षण और कुशल उपयोग हो सके। -

भूजल का विवेकपूर्ण उपयोग स्थानीय स्तर पर जिन गतिविधियों को विनियमित करने की आवश्यकता है। उनमें ड्रिलिंग की गहराई कुँओं के बीच दूरी फसल लगाने का पैटर्न शामिल है जिससे जलभृतों की स्थिरता और भागीदारीपूर्ण भूजल प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके।

कृत्रिम भूजल पुनर्भरण संरचनाओं का निर्माण 

क्षेत्र में जल की बढ़ती मांग के कारण भूजल पर बढ़ते दबाव को ध्यान में रखते हुए कृत्रिम भूजल पुनर्भरण संरचनाओं के निर्माण कार्य को प्राथमिकता से बढ़ाना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में सरल कृत्रिम पुनर्भरण तकनीकों को अपनाने की दोहरी रणनीति, चेक डैम, गॅबियन संरचना फार्म पौड, रीचार्ज शाफ्ट, डगवेल रिचार्ज और सबसर्फ डाइक और शहरी क्षेत्रों में रूफ टॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग को अपनाने की आवश्यकता है। इसके अन्तर्गत पुनर्भरण खाई द्वारा छत से प्राप्त वर्षा जल का संचयन, हैण्डपम्प द्वारा पुनर्भरण. पुनर्भरण कुँओं द्वारा वर्षा जल संचयन द्वारा जिले में भूजल की मात्रा बढ़ायी जा सकती है।

परम्परागत जल संचयन की संरचनाओं को पुनर्जीवित करना-

पारम्परिक वर्षा जल संचयन (जन्म) सरचनाओं यानी कुंडी, कुई / बेरी, बोरी, झालरा, नाड़ी, टोबा टाका. खडीन, बावड़ियाँ, जोहड़ व एनीकेट का पुनरुद्धार करके जल संचयन किया जा सकता है। आज ये पारम्परिक वर्षा जल संचयन (ज्म) संरचनाएँ सरकार और लोगों की उपेक्षा के कारण बेकार पड़ी हैं।

कृषि क्षेत्र में जल का दक्षता से उपयोग- 

वाष्पीकरण के नुकसान को कम करने के लिए रात्रि सिंचाई अभ्यास शुरू किया जा सकता है। फसल प्रणाली, सूक्ष्म सिंचाई (टपक, छिडकाव आदि) स्वचालित सिंचाई, वाष्पीकरण न्यूनीकरण फार्म पौंड जल प्रबंधन जैसी आधुनिक पद्धतियों को बढ़ावा एवं प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। सरकार भी प्रति बूंद अधिक फसल के मिशन के अन्तर्गत का फव्वारा व टपक सिंचाई पद्धति को बढ़ावा दे रही है।

वृक्षारोपण में वृद्धि करौली जिले में पिछली वन स्थिति रिपोर्ट-2019 की तुलना में 2021 की रिपोर्ट के अनुसार वन क्षेत्र में 26.16 प्रतिशत वन क्षेत्र की कमी हुई है। वन क्षेत्र में कमी काफी चिंता का विषय है। अतः हमारे पर्यावरण को बचाने एवं जल स्रोतों के पुनर्भरण व जल संरक्षण के लिए जिले में अधिक से अधिक पेड़ लगाने की आवश्यकता है।

जल का पुनर्वितरण

जिले में सम्भावित इन्टरबेसिन, अधिशेष जल क्षेत्रों से कम जल क्षेत्र में जल अपवर्तन की सम्भावनाओं की खोज की जानी चाहिए। करौली जिले की पेयजल एवं सिंचाई की आवश्यकता के लिए जल का पुनर्वितरण किया जा रहा है।

जल की प्रदूषण से सुरक्षा 

जल प्रदूषण फैलाने वाली आशंका वाले औद्योगिक ठोस पदार्थों का निपटारा विशेष सुविधाओं द्वारा एकीकृत अपशिष्ट प्रबंधन के आधार पर किया जाना चाहिए। प्रदूषण फैलाने वालों पर न केवल दण्ड लगाकर बल्कि कानूनी कार्यवाही भी करनी चाहिए।

जल प्रबंधन में महिलाओं का योगदान-

विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि एवं जल प्रबंधन में महिलाओं की विशेष भूमिका होती है। अधिकांश जगहों पर महिलायें दूरस्थ क्षेत्रों से नहानें, कपड़े धोनें एवं जानवरों के लिए पानी लाती जो कि एक समय लेने वाला एवं थकाने वाला कार्य है। इस प्रकार वे जल के संरक्षित उपयोग के प्रति बहुत सजग है। ग्राम स्तर पर जल उपयोकर्ता संघ का निर्माण किया जा सकता है जिसमें महिलायें जल सुरक्षा उपयोग एवं संरक्षण की महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है।

जल सम्बंधित आँकड़ों का कुशल प्रबंधन 

जल क्षेत्र के विभागों द्वारा जल सम्बन्धित तकनीकी ऑकडें, निर्देशिका, सूचना आदि जल उपभोक्ता संगठनों एवं अन्य जल क्षेत्र के उपयोगकर्ताओं को प्रधान किया जाना चाहिए। कुशल डेटा वितरण, डेटा संग्रहण की निरंतरता और आँकड़ों की निरन्तर गुणवत्ता पर नियंत्रण रखा जाना आवश्यक है।

इसके अलावा अध्ययन क्षेत्र में अनियंत्रित पशुचारण पर रोक लगाना, भूमिहीन परिवारों को भूमि उपलब्ध कराना, जलग्रहण क्षेत्रों में अवैध खनन सम्बन्धी कार्यों को कठोरता से रोकना, जलग्रहण विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत उपचारित भूमि से अतिक्रमण हटाना, दस्यु प्रभावित जलग्रहण क्षेत्रों में सुरक्षा उपलब्ध कराकर विकास किया जा सकता है। समग्रतः जलग्रहण क्षेत्रों के समग्र विकास हेतु उपयुक्त सुझायों के ठोस क्रियान्वयन के साथ समयबद्ध मूल्यांकन की पारदर्शी व्यवस्था के साथ ही दृढ राजनैतिक एवं प्रशासनिक इच्छाशक्ति की महती आवश्यकता है। इससे अध्ययन क्षेत्र में एक नया भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक परिदृश्य विकसित होकर जनमानस के समेकित विकास में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करेगा।

निष्कर्ष

जल संरक्षण हेतु सम्पूर्ण सामुदायिक चेतना जगाने के लिए संगठनों को अभियान चलाने चाहिए, ताकि भावी पीढ़ियों के लिए जल उपलब्धता एवं गुणवत्तापूर्ण जल आसानी से उपलब्ध हो सके करौली पंचायत समिति में जलग्रहण क्षेत्रों में स्थानीय ग्रामीणों द्वारा गठित जलग्रहण समितियों / ग्राम पंचायत के माध्यम से समस्त योजनाएँ सफलतापूर्वक संचालित की जा रही हैं। करौली जिला डांग व ऊबड़-खाबड़ होने के कारण भूमि उपयोग प्रकृति अनुसार निर्धारित था, साथ ही डांग क्षेत्र में वर्षा ऋतु को छोड़कर वर्षभर पानी की कमी से जूझते रहते तथा अकाल की स्थिति बनी रहती थी किन्तु जलग्रहण विकास कार्यक्रमों के संचालन से जिले की भूमि उपयोग परिवर्तन में काफी अन्तर देखने को मिला है, जो स्थानीय आवश्यकतानुसार नियोजित कर लक्ष्यों की पूर्ति में सहायक रहा है जिसमें अनुपयोगी भूमि को उपचारित कर कृषि भूमि को बढ़ाना व जलग्रहण क्षेत्र में वृद्धि.. वन भूमि में विस्तार, खनिजों के खनन में उन्नत तकनीकी का उपयोग कर प्रदूषण को कम करना, चारागाह भूमि व पशुधन विकास व खनन उद्योगों की स्थापना की गई है, जो अध्ययन क्षेत्र के लिए लाभकारी रहा है।

संदर्भ सूची

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स्रोत:- इंटरनेशनल जर्नल ऑफ जियोग्राफी एंड एनवायरनमेंट
 

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