जयपुर शहर के उत्तर पश्चिम से निकल कर पश्चिम-दक्षिण होती हुई, ठूण्ड नदी से मिलने वाली, द्रव्यवती नदी, उर्फ अमानी शाह का नाला, जयपुर शहर की जीवन रेखा रही है। सर्वे आफ इंडिया द्वारा प्रकाशित सन् 1865- 66 के नक्शों में भी इस नदी को साफ तौर पर दर्शाया गया है। उसके बाद भी सर्वे आफ इंडिया द्वारा प्रकाशित नक्शों में नदी साफ तौर पर चिन्हित है। यदि नदी कहीं नहीं है, तो राजस्थान सरकार के राजस्व विभाग के रिकार्ड में।
सन् 1955 में प्रदेश में हुए भू प्रबंधन के दौरान नदी की अधिकांश भूमि को निजी खातेदारों के नाम चढ़ाकर राजस्व रिकार्ड में निजी खातेदारी में दर्ज कर दिया गया। जिसके चलते नदी के पेटे और बहाव क्षेत्र की जमीन की खरीद- फरोख्त होने लगी, उसमें कॉलोनियां बसने लगी और सरकार के विभागों और निकायों द्वारा उन कॉलोनियों को तमाम सुविधाएं दे, उन्हें नियमित भी किया जाने लगा।
जयपुर शहर के प्रमुख नागरिकों, जनसंगठनों, स्वयं सेवी संस्थाओं तथा गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा जलधारा अभियान के बैनर तले, पिछले 4 वर्षों में इस नदी के संरक्षण- संवर्धन के लिए चलाए जा रहे अभियानों को दबाव में आकर, सरकार एवं उसके विभिन्न विभागों तथा निकायों द्वारा इस नदी के संरक्षण, संवर्धन के नाम पर जो प्लान बनाए, उनमें भारी अनियमितताओं को देख लगता है कि ''सरकार स्वयं ही इस नदी को नाले में तब्दील करने पर आमादा है''।
अत: जलधारा अभियान सरकार और उसके विभिन्न विभागों और निकायों को जानना चाहता है कि :-
1- सर्वे आफ इंडिया के विभिन्न नक्शों में जब नदी का प्राकृतिक सीमांकन मौजूद है, जिसे कि वर्तमान में आधुनिक तकनीकी उपकरणों की मदद से सफलतापूर्वक नापा जा सकता है, तो फिर नदी का स्वैच्छाचारी सीमांकन क्यों किया जा रहा है?
2- सन 2004 में एक बार सीमांकन कर लेने के पश्चात एवं उसके अनुसार चौड़ाई नियत कर पिला लगा देने के बाद, दुबारा सीमांकन की जरूरत क्यों कर पड़ी? पहला सीमांकन क्यों कर निरस्त किया गया?
3- सन् 2007 में दूसरे सीमांकन को किन आधारों पर तय किया गया कि नदी की चौड़ाई टोपो शीट में दिखायी गई प्राकृतिक चौड़ाई से, प्रथम सर्वे के अनुसार गाड़े गए पिलर तथा वर्तमान सर्वे में नियत की गई चौड़ाई में काफी अंतर है।
4- राजस्व रिकार्ड में नदी की जितनी जमीन निजी खातेदारों के नाम है, उसे निरस्त कर, नदी की जमीन के खाते में क्यों नहीं रखा जा रहा है? इसके लिए गजट नोटिफिकेशन क्यों नहीं जारी किया जा रहा है।5- जेडीए के द्वारा सर्वे कराकर सीमांकन किया गया। इसके बाद भी नदी की भूमि में अतिक्रमण तेजी से होता रहा और सरकार, जेडीए. मूकदर्शक बनी क्यों देखती रही?
जलधारा अभियान, सरकार से मांग करता है कि नदी का स्वेच्छाचारी सीमांकन निरस्त किया जाए और प्राकृतिक सीमांकन को ही आधार बनाकर नदी का संरक्षण और जीर्णोद्धार किया जाए।
सन् 1955 में प्रदेश में हुए भू प्रबंधन के दौरान नदी की अधिकांश भूमि को निजी खातेदारों के नाम चढ़ाकर राजस्व रिकार्ड में निजी खातेदारी में दर्ज कर दिया गया। जिसके चलते नदी के पेटे और बहाव क्षेत्र की जमीन की खरीद- फरोख्त होने लगी, उसमें कॉलोनियां बसने लगी और सरकार के विभागों और निकायों द्वारा उन कॉलोनियों को तमाम सुविधाएं दे, उन्हें नियमित भी किया जाने लगा।
जयपुर शहर के प्रमुख नागरिकों, जनसंगठनों, स्वयं सेवी संस्थाओं तथा गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा जलधारा अभियान के बैनर तले, पिछले 4 वर्षों में इस नदी के संरक्षण- संवर्धन के लिए चलाए जा रहे अभियानों को दबाव में आकर, सरकार एवं उसके विभिन्न विभागों तथा निकायों द्वारा इस नदी के संरक्षण, संवर्धन के नाम पर जो प्लान बनाए, उनमें भारी अनियमितताओं को देख लगता है कि ''सरकार स्वयं ही इस नदी को नाले में तब्दील करने पर आमादा है''।
अत: जलधारा अभियान सरकार और उसके विभिन्न विभागों और निकायों को जानना चाहता है कि :-
1- सर्वे आफ इंडिया के विभिन्न नक्शों में जब नदी का प्राकृतिक सीमांकन मौजूद है, जिसे कि वर्तमान में आधुनिक तकनीकी उपकरणों की मदद से सफलतापूर्वक नापा जा सकता है, तो फिर नदी का स्वैच्छाचारी सीमांकन क्यों किया जा रहा है?
2- सन 2004 में एक बार सीमांकन कर लेने के पश्चात एवं उसके अनुसार चौड़ाई नियत कर पिला लगा देने के बाद, दुबारा सीमांकन की जरूरत क्यों कर पड़ी? पहला सीमांकन क्यों कर निरस्त किया गया?
3- सन् 2007 में दूसरे सीमांकन को किन आधारों पर तय किया गया कि नदी की चौड़ाई टोपो शीट में दिखायी गई प्राकृतिक चौड़ाई से, प्रथम सर्वे के अनुसार गाड़े गए पिलर तथा वर्तमान सर्वे में नियत की गई चौड़ाई में काफी अंतर है।
4- राजस्व रिकार्ड में नदी की जितनी जमीन निजी खातेदारों के नाम है, उसे निरस्त कर, नदी की जमीन के खाते में क्यों नहीं रखा जा रहा है? इसके लिए गजट नोटिफिकेशन क्यों नहीं जारी किया जा रहा है।5- जेडीए के द्वारा सर्वे कराकर सीमांकन किया गया। इसके बाद भी नदी की भूमि में अतिक्रमण तेजी से होता रहा और सरकार, जेडीए. मूकदर्शक बनी क्यों देखती रही?
जलधारा अभियान, सरकार से मांग करता है कि नदी का स्वेच्छाचारी सीमांकन निरस्त किया जाए और प्राकृतिक सीमांकन को ही आधार बनाकर नदी का संरक्षण और जीर्णोद्धार किया जाए।
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