जल काव्य


अमृत और दूसरा क्या है
यह जल ही तो अमृत है

जल है तो
सचमुच कल है
आशान्वित अपना
हर पल है।

जल का जो
समझे न मोल
उसे बताओ
यह कितना अनमोल।

जल श्रोतों से
प्राप्त जल से
प्राणों का संचार
जल ही से तो
समक्ष हमारे
यह समग्र संसार।

अपव्यय खुद
जल का रोको
कोई और करे तो
उसे भी टोको
नल खुले छोड़ना
घोर पाप है
यह भी जैसे
एक अपराध है।

जल से ही
जीवन का वजूद है
अपव्यय होता
बावजूद है।

सब मिलकर
बचाओ बूँद-बूँद जल
वर्ना नजर आएँगे
कुओं के तल
खेतों में नहीं
चल पाएँगे हल।

बिना वजह
मत काटो जंगल
नभ में लहराएँगे बादल
बरसाएँगे जल।

अमृत और
दूसरा क्या है,
यह जल ही तो
अमृत है
जल की कमी
न होने पाए
वर्षाजल यदि
व्यर्थ न जाए
अपना कर्तव्य
सभी निभाएँ
संरक्षण जल का
हो जाए।

नदियों में पशुओं को
नहलाना
वाहन, कपड़े
इनमें धोना
स्वास्थ्य की दृष्टि से
उचित नहीं है
रोगों को
न्यौता देना।

प्रदूषित न हों
अपने ये जल स्रोत
गन्दगी इनमें
घुलने न पाए
जल से सृष्टि का
स्वरूप है
बर्बादी जल की
होने न पाए।

सम्पर्क : श्री हुकम चंद्र सोगानी
श्री पाल प्लाजा, द्वितीय मंजिल, फ्लैट नम्बर-201, महावीर मार्केट, नई पेठ, उज्जैन-456006 (म.प्र.)
 

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