बायोस्फीयर रिजर्व बहु उपयोगी संरक्षित क्षेत्र होता है जिसमें आनुवंशिक विविधता को उसके प्रतिनिधि पारिस्थितिक तंत्र में वन्य जीवन जनसंख्या, आदिवासियों की पारम्परिक जीवनशैली आदि को सुरक्षा प्रदान कर संरक्षित किया जाता है। लेकिन वर्तमान में इस क्षेत्र की तेजी से नष्ट हो रही जैव-विविधता का संरक्षण आज आवश्यकता है।
भारत की जैव भौगोलिक वर्गीकरण की दृष्टि से पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व डेक्कन प्रायद्वीपीय क्षेत्र को प्रतिनिधित्व करता है। यह क्षेत्र भूगर्भीय चट्टान एवं मिट्टी संरचनाओं की एक विविधता को दर्शाता है। पचमढ़ी में कई किस्म की भूगर्भीय चट्टानें और भूमि संरचनाएँ हैं। मध्य भारत की सबसे ऊँची चोटी धूपगढ़ भी यहीं है। तामिया क्षेत्र मनोरम एवं विहंगम दृश्यों के लिये विख्यात है। इसी के निकट पातालकोट क्षेत्र, जो भू-सतह से लगभग 300-400 मी. नीचे स्थित है, अपनी प्राकृतिक सुन्दरता एवं मनोरम दृश्यों के साथ-साथ विशिष्ट मानव आनुवंशिक जनजाति के छोटे से समूह की उपस्थिति के कारण मानवशास्त्रीय अध्ययनों के लिये अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थल है।
सतपुड़ा पर्वत शृंखलाएँ भारत की प्राचीन पर्वत शृंखला हैं जो मध्य भारत में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र एवं गुजरात तक फैली हैं। यह पर्वत शृंखला उत्तर में गंगा के मैदानी भागों से दक्षिण के पठार को पृथक करती हैं। सतपुड़ा पर्वत शृंखला 220 से 2702’ उत्तरी अक्षांशतक एवं 780 से 22014’ पूर्वी देशान्तर तक फैली हैं। प्रचलित लोक मान्यता के अनुसार सतपुड़ा नाम ‘सात’ और ‘पुड़ा’ शब्दों के संयोग से बना है जिसका अर्थ है ‘सात तह’ या ‘वलय’ जो इसकी अत्यन्त तरंगित बनावट को देखते हुए उपयुक्त प्रतीत होता है। इन्हीं पर्वतमालाओं में प्राकृतिक सौन्दर्य एवं जैवविविधता से परिपूर्ण एक स्थान है जिसे ‘पचमढ़ी’ के नाम से जाना जाता है। यह मध्य प्रदेश का एकमात्र पहाड़ी इलाका है और इस मनमोहक स्थान को ‘सतपुड़ा की रानी’ भी कहा जाता है।अपनी प्रचुर जैवविविधता के कारण इसे ‘वनस्पति विज्ञानियों का स्वर्ग’ के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। पचमढ़ी में प्रकृति अपने मोहक रूप में मुखर हुई है। पचमढ़ी का नाम पाँच पांडव गुफाओं के नाम से पड़ा है जो 200 ईसा पूर्व बौद्ध काल की मानी जाती हैं। पौराणिक मान्यतानुसार इन गुफाओं में महाभारत काल में पांडवों ने अपने 14 वर्ष के वनवास काल का अधिकांश समय व्यतीत किया था।
पचमढ़ी में वन्यजीवों, वनस्पतियों एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों की बहुलता, संरक्षण की दृष्टि एवं अन्तरराष्ट्रीय महत्त्व को देखते हुए यूनेस्को ने इसे मई 1999 में बायोस्फीयर रिजर्व के रूप में मान्यता दी। बायोस्फीयर रिजर्व एक ऐसी स्थलीय अथवा समुद्रतट की पारिस्थितिकीय प्रणाली है जिस यूनेस्को द्वारा ‘मानव एवं बायोस्फीयर’ कार्यक्रम के अन्तरराष्ट्रीय रूप से मान्यता प्राप्त है।
बायोस्फीयर रिजर्व कार्यक्रम का मुख्य जोर पारिस्थितिकीय प्रणालियों, भू-दृश्यों, प्रजातियों और आनुवंशिक विभिन्नताओं के संरक्षण पर है। यह आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक और पारिस्थितिकीय रूप से टिकाऊ सतत विकास पर भी जोर देता है। इसमें शोध तथा अनुस्रवण, स्थानीय राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय मुद्दों से सम्बन्धित शिक्षा पर भी जोर दिया जाता है।
स्थिति और विस्तार
पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व का कुल 4981.72 वर्ग किमी क्षेत्र 22011’ से 22050’ उत्तरी अक्षांश और 77047’ से 78052’ पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। यह बायोस्फीयर रिजर्व मध्य प्रदेश के तीन जिलों होशंगाबाद (59.55 प्रतिशत), बैतूल (11.26 प्रतिशत) और छिंदवाड़ा (29.19 प्रतिशत) में फैला हुआ है। सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान (524.37 वर्ग किमी.) एवं बोरी अभयारण्य (485.72 वर्ग किमी.) का पूर्ण क्षेत्र तथा पचमढ़ी अभयारण्य (491.63 वर्ग किमी.) तीन वन्यजीव संरक्षण इकाइयों के मुख्य क्षेत्रों के साथ कुछ आरक्षित वन क्षेत्र, जो जैवविविधता की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण एवं संवेदनशील हैं, को इस बायोस्फीयर रिजर्व में सम्मिलित किया गया है।
बायोस्फीयर रिजर्व के 1555.23 वर्ग किमी. क्षेत्र की पहचान ‘कोर जोन’ के रूप में की गई है। कोर जोन के अन्तर्गत सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान एवं बोरी अभयारण्य का पूर्ण क्षेत्र तथा पचमढ़ी अभयारण्य के मुख्य क्षेत्रों के साथ कुछ आरक्षित वन सम्मिलित हैं। कोर जोन के परिधि से लगे 1785.58 वर्ग किमी. क्षेत्र को मध्यवर्ती क्षेत्र में वर्गीकृत किया गया है।
बायोस्फीयर रिजर्व के सबसे बाहरी वृत में स्थित 1640.91 वर्ग किमी. क्षेत्रफल को परिवर्तनीय क्षेत्र कहा जाता है। इस क्षेत्र में मुख्यता मानव रहवास एवं कृषि क्षेत्र आते हैं। इस बायोस्फीयर रिजर्व में कम-से-कम 500 गाँव हैं तथा दो प्रमुख जनजातियाँ गोंड एवं कोरकू वन क्षेत्रों में निवास करती हैं।
स्थलाकृति, भूगर्भ एवं संस्कृति
भारत की जैव भौगोलिक वर्गीकरण की दृष्टि से पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व डेक्कन प्रायद्वीपीय क्षेत्र को प्रतिनिधित्व करता है। यह क्षेत्र भूगर्भीय चट्टान एवं मिट्टी संरचनाओं की एक विविधता को दर्शाता है। पचमढ़ी में कई किस्म की भूगर्भीय चट्टानें और भूमि संरचनाएँ हैं। मध्य भारत की सबसे ऊँची चोटी धूपगढ़ (समुद्र तल से 1352 मी. ऊँचाई) भी यहीं है।
तामिया क्षेत्र मनोरम एवं विहंगम दृश्यों के लिये विख्यात है। इसी के निकट पातालकोट क्षेत्र, जो भू-सतह से लगभग 300-400 मी. नीचे स्थित है, अपनी प्राकृतिक सुन्दरता एवं मनोरम दृश्यों के साथ-साथ विशिष्ट मानव आनुवंशिक जनजाति के छोटे से समूह की उपस्थिति के कारण मानवशास्त्रीय अध्ययनों के लिये अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थल है।
पचमढ़ी पठार के पड़ोस में पुरातात्विक महत्त्व के विशाल शैलाश्रय और उनमें जनजातियों द्वारा बनाये गए 55 से ज्यादा शैलचित्र हैं। इनमें से कुछ तो 1000 साल पुराने हैं, जबकि अधिकांश 2500 से 1500 साल तक पुराने हैं। इन शैलचित्रों में तलवार, ढाल, तीर और कमान धारण किये हुए योद्धाओं के अलावा हाथी, बाघ तथा तेंदुए चित्रित हैं।
जलवायु
इस क्षेत्र में समुद्र तल से ऊँचाई में विविधता के कारण यहाँ की जलवायु में काफी विविधता देखने को मिलती है। इस क्षेत्र में वर्षा ऋतु अनिश्चित रहती है तथा अधिकांश वर्षा जुलाई एवं सितम्बर में होती है। कभी-कभी जाड़े के मौसम में दिसम्बर से फरवरी तक वर्षा की हल्की बौछारें पड़ती हैं। इस क्षेत्र में वार्षिक वर्षा का औसतम 800 मिमी. से 1300 मिमी. तक होती है। यहाँ का तापमान सर्दियों में 4.50C होता है।
पचमढ़ी का सौन्दर्य
पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व अपने सुन्दर भू-दृश्यों एवं जैव विविधता के लिये प्रसिद्ध है। सतपुड़ा श्रेणियों के बीच स्थित होने और अपने सुन्दर स्थलों के कारण इसे ‘सतपुड़ा की रानी’ कहा जाता है। यहाँ बसे घने जंगल और मदमाते जलप्रपात पर्यटकों का आकर्षण हैं। पचमढ़ी की पहाड़ियों के शिखर और ढलानें हरियाली से ढकी हुई हैं और पठार की समतल भूमि पर विस्तृत हरे घास मैदान हैं।
हरियाली वाले ऐसे विस्तृत घास मैदान किसी दूसरे पर्यटन स्थल पर दुर्लभ हैं। यहाँ की गुफाएँ अपने अन्दर पुरातात्विक महत्त्व समाए हैं क्योंकि यहाँ गुफाओं में शैलचित्र भी पाये जाते हैं। जैवविविधता की दृष्टि से पचमढ़ी के महत्त्वपूर्ण एवं पर्यटन स्थल हैं- पनार पानी, बी फॉल, चौरागढ़, धूपगढ़, रजत पर्वत, सिल्वर फॉल, बड़ा महादेव, गुप्त महादेव, हाण्डी खोह, डचेस फॉल, जम्बूदीप, पत्थरचट्टा, लेडी रॉबर्टसन ब्यू, रीचगढ़, राजेन्द्रगिरि, द्रौपदीकुण्ड, पांडव गुफाएँ, वनश्रीविहार इत्यादि। इन सभी में सबसे ऊँची चोटी धूपगढ़ (1352 मी. ऊँचाई) है।
वनस्पतियाँ
पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व क्षेत्र को एक ऐसा जैव विविधता समृद्ध संक्रमण क्षेत्र माना गया है जो देश के दो जैव विविधता समृद्ध स्थलों पूर्वी हिमालय और पश्चिमी घाट को जोड़ता है। इस क्षेत्र को उत्तरी तथा दक्षिणी प्रकार की वनस्पतियों का संगम स्थल भी माना जाता है। पचमढ़ी का पठार वनस्पतिशास्त्रियों के लिये स्वर्ग समान है। यह सागौन (Tectona grandis) और साल (Shorea robusta) दो महत्त्वपूर्ण लकड़ी प्रजातियों का एक प्राकृतिक सन्धि-स्थल है।
पूरे जंगल को तीन मुख्य वर्गों में बाँटा जा सकता है- उष्ण कटिबन्धीय नम पतझड़ी वन, उष्ण कटिबन्धीय शुष्क पतझड़ी वन एवं मध्य भारतीय सम-शीतोष्ण पहाड़ी वन। इस क्षेत्र में सम-शीतोष्ण पहाड़ी वन का पाया जाना अनोखी विशिष्टता है। पचमढ़ी के पठार पर गहरे गड्ढे होने के कारण यहाँ कई जल प्रपात बन गए हैं।
नालों और जलप्रवाहों के तट के निकट जंगलों में आम, जामुन और अर्जुन के वृक्ष बहुतायत से पाये जाते हैं। यहाँ प्राकृतिक रूप से आम के वृक्ष का पाया जाना अनोखी विशेषता है। लगभग 150 वर्ग किमी. में इतने ऊँचाई पर साल का पाया जाना इस क्षेत्र की एक प्रमुख विशेषता है। पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व वानस्पतिक विविधता की संगम स्थली है। यहाँ थैलोफाइट्स की 30, ब्रायोफाइट्स की 8, टेरिडोफाइट्स की 71, जिम्नोस्पर्म की 7 एवं एंजियोस्पर्म की 1200 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
वन्य प्राणी
वर्तमान में पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व में स्तनधारी प्राणियों की लगभग 50, पक्षियों की लगभग 254 तथा अन्य कई प्रकार के प्राणियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। राष्ट्रीय पशु बाघ बायोस्फीयर रिजर्व के घने वन क्षेत्रों में पाया जाता है जबकि तेंदुआ रिजर्व के सभी क्षेत्रों में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त यह क्षेत्र घुटरी, चौसिंगा, चिंकारा, लंगूर, गौर, सांभर, चीतल, बंदर, जंगली कुत्ता, भालू आदि महत्त्वपूर्ण वन्य जीवों का अनूठा संग्रह है।
बड़ा शाकाहारी जानवर नीलगाय झाड़ीदार कम घने जंगल में देखा जाता है। दूधराज, धनाष, मलाबार, गिद्ध आदि पक्षी भी इस बायोस्फीयर रिजर्व में पाये जाते हैं। विशाल भारतीय गिलहरी और उड़न गिलहरी जैसी प्रजातियाँ भी रिजर्व क्षेत्र में पाई जाती हैं। कई जलधाराएँ, सघन पेड़-पौधे, जंगली फूल, छायादार व नम भूखण्ड असंख्य तितलियों को आकर्षित करते हैं, जिनमें ऑरेन्ज ओकलीक, ब्लैकराजा, ग्रेट एग लाई आदि प्रमुख हैं।
जैवविविधता क्षरण के कारण
पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व क्षेत्र की जैवविविधता क्षरण के विभिन्न कारण हैं जैसे- आवास का विनाश, आवास का विखण्डन, विदेशी प्रजातियों का आक्रमण, जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक पर्यटन, अनियमित चराई, वन विनाश (वनों से भारी मात्रा में जलाऊ व इमारती लकड़ी एकत्र करना), औषधीय एवं आर्थिक प्रजातियाँ तथा लघुवनोपज का अत्यधिक दोहन इत्यादि। पचमढ़ी में पर्यटन महत्त्व के कारण तेजी से बढ़ रही वाणिज्यिक गतिविधियाँ आवास के विनाश का सबसे प्रमुख कारण हैं।
वन विभाग के आँकड़ों के अनुसार बायोस्फीयर रिजर्व के भीतर के गाँवों से लगभग 10 हजार से अधिक मवेशियों का दबाव रिजर्व के उत्तरी हिस्से पर पड़ रहा है। दुर्गम क्षेत्र में चराई का भार कम है- परन्तु बाहरी क्षेत्रों में अत्यधिक चराई के कारण रिजर्व की जैवविधता का निरन्तर क्षरण हो रहा है। अत्यधिक चराई के कारण पौधों का प्रकाश-संश्लेषण वाला भाग नष्ट हो जाता है जिससे बहुत से पौधे निष्क्रिय हो जाते हैं तथा बहुत-सी कमजोर प्रजातियाँ शाकभक्षी पशुओं द्वारा कुचल दी जाती हैं।
बाहरी हानिकारक प्रजातियों में लेण्टाना ने भी इस क्षेत्र की जैवविविधता के अस्तित्व पर गम्भीर खतरा पैदा हो कर दिया है। ये प्रजाति जहाँ उगती हैं वहाँ अन्य प्रजातियाँ पनप नहीं पाती हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु नागपंचमी और महाशिवरात्रि के त्योहारों के समय पचमढ़ी आते हैं।
कई तीर्थयात्री औषधीय पौधे या उनके हिस्से एकत्र करके वनस्पतियों को बर्बाद करते हैं। शोध एवं अनुसन्धान हेतु इस क्षेत्र से दुर्लभ व संकटापन्न वनस्पतियों के अवैध दोहन से जैवविविधता को भारी हानि हुई है। पचमढ़ी सुन्दर दृश्यों को देखने के लिये हर साल लाखों पर्यटक आते हैं।
पर्यटकों द्वारा इस्तेमाल किये गए पॉलीथीन बैग व अन्य कूड़ा-करकट भी इन स्थानों में फेंक दिया जाता है, जिससे ठोस कचरे की समस्या पैदा होती है। पर्यटकों के लिये सड़कों और अन्य सुविधाओं के निर्माण से भी जीव-जन्तुओं पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
जैवविविधता का संरक्षण
बायोस्फीयर रिजर्व बहुउपयोगी संरक्षित क्षेत्र होता है जिसमें आनुवंशिक विविधता को उसके प्रतिनिधि पारिस्थितिक तंत्र में वन्य जीवन जनसंख्या, आदिवासियों की पारम्परिक जीवनशैली आदि को सुरक्षा प्रदान कर संरक्षित किया जाता है। लेकिन वर्तमान में इस क्षेत्र की तेजी से नष्ट हो रही जैवविविधता का संरक्षण आज आवश्यकता है। पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व की जैवविविधता संरक्षण हेतु निम्न सुझाव हैंः
1. पौधों एवं जन्तुओं की प्रजातियों तथा उनके आवास को बचाने के लिये समयबद्ध कार्यक्रम को लागू करने की आवश्यकता है जिससे जैवविविधता संरक्षण को बढ़ावा मिल सके।
2. वन्य प्राणियों एवं प्राकृतिक रहवासों के संरक्षण हेतु बाघ परियोजना के अन्तर्गत सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के रूप में चिन्हित कर संरक्षण के प्रयास आवश्यक हैं।
3. जैवविविधता से सम्पन्न क्षेत्रों एवं उसके आस-पास के स्थलों के संरक्षण तथा स्थानीय रहवासियों के विकास एवं वनों पर उनकी निर्भरता को कम करने हेतु योजनाओं को क्रियान्वित किया जाना आवश्यक है।
4. दुर्लभ, स्थानिक तथा संकटग्रस्त प्रजातियों को स्वस्थाने तथा परस्थाने (In-situ & ex-situ) संरक्षण किया जाना आवश्यक है।
5. इको-विकास, गैर पारम्परिक ऊर्जा को बढ़ावा, सामाजिक कल्याण एवं गुणवत्ता सुधार तथा इकोपर्यटन को बढ़ावा देने जैसे कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए।
6. औषधीय एवं आर्थिक महत्त्व की प्रजातियों तथा लघुवनोपज के अत्यधिक दोहन पर रोक आवश्यक है।
7. बाहरी हानिकारक प्रजातियों के उन्मूलन हेतु प्रयास किया जाना आवश्यक है।
8. पर्यावरणीय मुद्दों पर जन-जागरुकता हेतु विद्यालयों एवं स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से संरक्षण शिक्षा को बढ़ावा दिया जाना आवश्यक है।
9. विश्विविद्यालयों एवं अनुसन्धान संस्थानों में इस क्षेत्र की जैवविविधता संरक्षण एवं प्रबन्धन हेतु गहन शोध किया जाना आवश्यक है।
10. पर्यटकों द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे पॉलीथीन बैग व अन्य कूड़ा-करकट को बायोस्फीयर रिजर्व के अन्दर फेंकने पर प्रतिबन्ध लगाना आवश्यक है।
सम्पर्क सूत्रः
1. डॉ. अर्जुन प्रसाद तिवारी
भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण, मध्य क्षेत्रीय केन्द्र 10 चैथम लाइन्स, इलाहाबाद 211002 (उ.प्र.)
मो. : 08004392787;
ई-मेल : arjuntiwari2007@gmail.com
2. डॉ. राम लखन सिंह सिकरवारआरोग्यम, दीनदयाल शोध संस्थानचित्रकूट, जिला-सतना 485334 (म.प्र.)
मो. : 09425886085;
ई-मेल : rlssikarwar@rediffmail.com
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Post By: RuralWater