देश में जल संरक्षण के नाम पर तमाम योजनाएं चल रही हैं। इन योजनाओं को चलाने में करोड़ों रुपये खर्च भी किए जा रहे हैं। इसी में वॉटर बॉडीज यानि जल संचय के केंद्रों को भी संरक्षित करने का ढिढोरा पीटा जा रहा है। उनके नाम पर करोड़ों रुपये डकारे जा रहे हैं। ये हाल राजधानी से लेकर दूर-दराज इलाके तक में भी देखा जा सकता है।
क्योंकि देश की राजधानी की तरह ही दूर-दराज के इलाकों में भी जल संचय के संसाधन सूख रहे हैं। ऐसे में इलाहाबाद के फूलपुर में बना सौ साल से भी ज्यादा पुराना और नायाब “रानी का तालाब” भी मर रहा है। पेश है इलाहाबाद से संवाददाता लक्ष्मी कांत की विशेष रिपोर्ट
अंग्रेजों के शासनकाल में राजा-रजवाड़ों और रियासत के हुक्मरानों की तूती बोलती थी। उनके हर आदेश का अक्षरश: पालन होता था। ये आदेश चाहे समाज के अच्छे काम के लिए हों या बुरे दोनों मामलों में आदेश का पालन अनिवार्य होता था। इसी काल में इलाहाबाद शहर से करीब तीस किलोमीटर दूर स्थित फूलपुर रियासत थी। इस रियासत के राजा राय बहादुर प्रताप थे। उनकी रानी का नाम गोमती था। राजा की मौत के बाद रानी गोमती ही सारा कामकाज देखती थीं। उसी समय एक बार उनके इलाके के लोगों ने पानी की समस्या उठाई तो रानी गोमती ने तालाब बनाने का हुक्म दिया।
ये तालाब कई साल के बाद फूलपुर से करीब सात किलोमीटर आगे मुंगरा बादशाहपुर होते हुए जौनपुर जानेवाली रोड पर बना है। ये तालाब करीब सौ साल पहले 1913 में बन कर तैयार हुआ था। इस तालाब को पक्का बनाया गया है। इसमें आठ घाट हैं, जिसमें महिलाओं और जानवारों के लिए अलग घाट बनाया गया है। इस तालाब की सबसे बड़ी खासियत है कि इसमें महिला घाट भी बनाया गया है। ये रानी का सामाजिक न्याय उस जमाने में देखने को मिला जब महिलाओं की इच्छा को नगण्य माना जाता था। लेकिन रानी ने तालाब के अंदर जो महिला घाट बनवाया उसकी कारीगरी और खूबसूरती देखकर कोई भी हैरत में पड़ सकता है। ये हमने पहली बार सुना की किसी तालाब के अंदर महिला घाट बना है और वो भी उस तरह का है कि महिलाएं स्नान करें तो किसी को कुछ भी दिखाई न पड़े। लोग ये भी बताते हैं कि रानी खुद यहां स्नान करने आती थीं। ये अंदाज आप तालाब की तस्वीर देखकर भी लगा सकते हैं। यहां के लोग बताते हैं कि इस तालाब को जिस समय बनाया गया था उस समय तालाब में देश की 121 नदियों का पानी मिलाया गया था। यही वजह है कि तालाब आज भी नहीं सूखता है, लेकिन तालाब की हालत देखकर यही कहा जा सकता है कि रानी का तालाब मर रहा है। क्योंकि ये तालाब कोई मामूली तालाब नहीं है ये एक ऐतिहासिक धरोहर है। इस तालाब के साथ एक हनुमान मंदिर भी बनाया गया है। हनुमान मंदिर के पुजारी जगन्नाथ लक्ष्मण पाटिल हैं। ये पुजारी मूलत: महाराष्ट्र के रहने वाले हैं, लेकिन भ्रमण के दौरान उनको रानी का तालाब पसंद आया तब से वो यहीं पर रह रहे हैं। पुजारी जी कहते हैं कि उन्होंने तालाब के आसपास काफी सफाई कराई। लेकिन उनके अकेले से तालाब का रख-रखाव संभव नहीं है। यहां के दबंग लोग तालाब और उसके आस-पास की जमीन पर दावा भी ठोक रहे हैं। इसलिए कब ये रानी का तालाब भू माफिया के कब्जे में हो जाए कहना मुश्किल है। इसलिए पुजारी जी चाहते हैं कि सरकार इस तालाब को अपने अधीन लेकर इसका रख-रखाव करे और इसको एक टूरिस्ट स्पॉट के रूप में विकसित करे। ताकि आज के समय में एक वॉटर बॉडी को बचाया जा सके।
पुजारी जी की चिंता तालाब को लेकर तो है ही साथ ही वो रानी के कार्यप्रणाली की सराहना भी करते हैं। उनके मुताबिक रानी के तालाब से कुछ दूरी पर एक साप्ताहिक बाजार लगता था। उस बाजार में हर तरह की चीजें बिकती थीं। लेकिन शाम को जब बाजार उठने का समय होता था तो रानी के कारिंदे बाजार में घोड़ा गाड़ी लेकर आते थे और बाजार का सारा सामान खरीद लेते थे। दुकानदारों को बाजार भाव पर पैसे दे दिए जाते थे। यानी बाजार में बिकने के लिए आने वाला कोई भी सामान वापस लौटकर नहीं जाता था। ये तो रानी की कार्यशैली थी जिसकी सराहना आज भी लोग करते हैं।
लेकिन जब देश आजाद हुआ तो इस फूलपुर का नाता देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से भी जुड़ा, क्योंकि इसी फूलपुर संसदीय क्षेत्र से वो सांसद थे। पंद्रहवीं लोकसभा बनीं मीरा कुमार, केद्रीय जल संसाधन मंत्री बनीं और चंद दिनों में ही वो लोकसभा अध्यक्ष भी बन गईं। अब इस कुर्सी का जिम्मा केंद्रीय संसदीय कार्यमंत्री पवन बंसल को अतिरिक्त प्रभार के रूप में दिया गया है। फूलपुर के इस रानी के तालाब को उनकी मदद की जरूरत है।
इलाहाबाद से संवाददाता लक्ष्मी कांत की विशेष रिपोर्ट।
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