हिंडन रक्षा को अभिष्ट गुप्ता की लड़ाई ‘स्पेशल एनवायरनमेंट सर्विलांस टास्क फोर्स’ तक आई

फोटो - विक्रांत शर्मा
फोटो - विक्रांत शर्मा

हिंडन के नाम पर खूब यात्राएं हुई हैं। हिंडन के नाम पर कई-कई संस्थाएं काम कर रही हैं। हिंडन की ज़मीन बेचने पर सरकारी अमला आंखें मूंदे पड़ा है। हिंडन के नाम पर अपार्टमेंट हैं। प्रतिष्ठान हैं, पत्रिका है, पार्क हैं। हिंडन के कइयों मुकदमों में आदेश दर आदेश हैं, बजट है। पर हालात यह है कि हिंडन दिन-प्रतिदिन बीमार होती जा रही है और लगभग मरने के कगार पर पहुंच चुकी है।

हिंडन, आज उत्तर प्रदेश की सबसे अधिक और भारत का दूसरी सबसे अधिक प्रदूषित नदी है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यह जानकर निराश हुआ है कि सालों से यह मुद्दा लटका हुआ था और लगातार इस पर निर्देश जारी किए जाते रहे हैं, लेकिन राज्य-अथॉरिटी हिंडन नदी में प्रदूषण को रोकने में नाकामयाब रही हैं।

एनजीटी के आदेश पर सात जिलों में ‘विशेष पर्यावरण निगरानी कार्यबल’ गठित की जानी है। हिंडन नदी के उदगम से लेकर संगम तक हिंडन नदी विरोधी गतिविधियों पर ‘विशेष जांच अभियान’ चलाकर रिपोर्ट मांगा गया है। ‘विशेष पर्यावरण निगरानी कार्यबल’ इस बात की पुष्टि करेगी कि कोई भी गैर कानूनी माइनिंग न हो रही हो। अगर पाई जाती है तो ‘पोल्यूटर पेज सिद्धांत’ के आधार पर नदी के पुनर्जीवन के लिए उनसे कॉस्ट वसूला जाए, जो हिंडन नदी में पोलूशन के लिए जिम्मेदार हैं। साथ ही और यह भी निर्देश दिया गया है। एनजीटी ने आदेश में कहा है कि एक्शन प्लान में किसी भी गड़बड़ी पर उत्तर प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे।

यह भी गौर करने लायक बात है कि नदी में गिरने वाले 133 नालों में से अभी भी 113 नालों पर कुछ भी नहीं किया गया है जो कि बहुत गंभीर समस्या है। भयानक चिंता की बात है साथ ही हिंडन-खादर की जमीन पर लगातार भूमाफिया कब्जे कर रहे हैं और फार्म हाउस या मकान आदि लगातार बनाए जा रहे हैं।

‘विशेष पर्यावरण निगरानी कार्यबल’ की प्रक्रिया 

सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर में विशेष पर्यावरण निगरानी कार्यबल’ की प्रक्रिया होनी है। माननीय ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल -एनजीटी’ के आदेशानुसार 859/2022 के जनहित याचिका ‘अभीष्ट कुसुम गुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य’ में ‘विशेष पर्यावरण निगरानी कार्य बल’ का गठन किया जाना है, जिसमें निम्न सदस्यों को होना है।

1-  जिला मजिस्ट्रेट 
2- सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस 
3 - स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के रीजनल अधिकारी 
4- डिस्ट्रिक्ट जज लीगल सर्विसेज अथॉरिटी के चेयरमैन होने के नाते किसी एक सदस्य को नामित करेंगे। 

जिला गाजियाबाद और हिंडन 

जिला गाजियाबाद, नाम ही काफी है।  हिंडन नदी के सीने पर आए दिन अतिक्रमण पर सरकार कब जागेगी? हिंडन की जमीन पर बनाए गए और बन रहे अवैध निर्माणों पर सरकार कब जागेगी? नदी की ज़मीन बेचो, करोड़ों का वारा-न्यौरा करो। फिर ‘प्रशासन’ न्यायपालिका के सामने गिड़गिड़ाए कि जी खाली नहीं करा सकते!

कभी सदानीरा, निर्मल, अविरल हिंडन आज सिकुड़ कर नाला बन चुकी है। और हिंडन किनारे के 7 जिलों यानी कि गाजियाबाद, नोएडा, मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, शामली, बागपत, ‘हरिद्वार’ का प्रशासनिक अमला हिंडन का गला घोट रहे हैं। अकेले गाजियाबाद में प्रशासन जानता है कि किस तरीके से वह भू माफियाओं को ज़मीन कब्जा करने में पूरी तरह से सहयोगी बना हुआ है।  “सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज है कि हिंडन की छाती पर छह हजार से ज्यादा अवैध निर्माण हो चुके हैं। डूब क्षेत्र पर भूमाफिया का कब्जा है। आस-पास की हरियाली खत्म हो गई है। पूरे क्षेत्र के इकॉलाजिकल सिस्टम पर अवैध कब्जों ने ग्रहण लगा रखा है।”

गाजियाबाद में सबसे ज्यादा हिंडन की जमीन पर निर्माण गांव कनावनी, अकबरपुर, बहरामपुर के आसपास हुए हैं। इतना ही नहीं, अफसरों की मिलीभगत भी खूब रही है। उन्होंने नदी की जमीन पर रजिस्ट्री तक कर दी। इस आधार पर यहां रहने वालों को बिजली-पानी के कनेक्शन भी मिल गए हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) भी पूर्व में हिंडन की जमीन से अवैध अतिक्रमण हटाने के आदेश देता रहा है। 

हिंडन उद्गम से संगम तक

हिंडन उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से इसका उद्गम गंगा-यमुना के दोआब जिला सहारनपुर के उत्तर-पूर्वी इलाके के ‘शिवालिक रिजर्व फारेस्ट’ के मोहंड रेंज से निकलती है। ‘शिवालिक रिजर्व फारेस्ट’ से निकलकर पहला गांव ’कालुपुर पहाड़ीपुर’ पड़ता है। हिंडन के उद्गम क्षेत्र शिवालिक होने के नाते कई ऐसी जलसंरचनायें हैं, जो संचित वर्षाजल हिंडन को साल भर देती रहती हैं।  हिंडन लगभग 280 किलोमीटर लंबी नदी है। 
 
शिवालिक रेंज की शाकुम्भरी रेंज से ‘कोठड़ी बहलोलपुर’ से निकल 41 कि.मी. लंबी नागदेई,  78 कि.मी लंबी कृष्णी, 75 कि.मी. लंबी काली हरिद्वार, 52 कि.मी लंबी धमोला, 20 कि.मी. लंबी पांवधोई सहारनपुर और 80 कि.मी. लंबी सेंधली के अलावा कई बरसाती नाले। इन सभी की लंबाई में हिंडन की लंबाई जोङ लें, तो 606 कि.मी. लंबा है हिंडन का कुल प्रवाह। नागदेई का औसत ढाल 18.0 मीटर प्रति कि.मी. है, नागदेई-धमोला मिलन तक 1.2 मीटर. प्रति कि.मी., धमोला-काली मिलन तक 0.59 मीटर प्रति कि.मी., काली-कृष्णी मिलन तक 9.29 मीटर प्रति कि.मी. तथा कृष्णी-हिंडन मिलन के बीच यह ढाल 0.20 मीटर प्रति कि.मी पाया गया है। सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद जिले से होकर हिंडन का प्रवाह अंततः जिला गौतमबुद्ध नगर, गांव तिलवाड़ा के दक्षिण में स्थित यमुना में विलीन हो जाती है।

हिंडन का हाल 

शहरी मल, कृषि रसायन और बेलगाम हुआ है। हिंडन की वस्तु स्थिति यह है कि रास्ते में उसे कचरा और मल के अलावा के अलावा कहीं जल भी मिलता है; यह कहना मुश्किल है। हिंडन की दुर्दशा, हिंडन ही नहीं, अब इसके किनारे के रहने वाले भी जानने लगे हैं। पता लगायेंगे, तो पता चलेगा कि कई फैक्टरियां अपने तरल कचरे को बिना शोधन बोर कर सीधे धरती में डाल रहे हैं। खुली आंखों से देखने पर भी सच सामने होता है। 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल मानता है कि यह डैमेज भी वैसा ही है जैसा कि अन्य अपराधों से होने वाला नुकसान। ट्रिब्यूनल इस बात से भी निराश है कि राज्य अपनी संवैधानिक कर्तव्यों को भी निभाने में नाकामयाब रहा है। क्योंकि यह मुद्दा राज्य में सबसे उच्च अधिकारियों के पास होने के बावजूद भी राज्य अपनी संवैधानिक कर्तव्यों को निभाने में नाकामयाब रहा है, नदी के हालात बदतर हुए हैं।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने राज्य के चीफ सेक्रेटरी को यह भी निर्देश दिया है कि वह ऐसे अधिकारियों की पहचान करे जो अपने कर्तव्य निभाने में नाकामयाब रहे। और उनकी जिम्मेदारियां तय करें और उनके सर्विस रिकॉर्ड में कार्यान्वयन करने वाले और नाकामयाब अधिकारियों के बारे में उनके सर्विस रिकॉर्ड में एंट्री करें, दर्ज करें।

अब तो इंतजार है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को आदेशों की परिणति ज़मीन तक उतरे। 


 

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Post By: Kesar Singh
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