गुड़गांव के पानी की चिंता किसी के एजेंडे में नहीं है। केंद्रीय भूजल संरक्षण बोर्ड के नोटिफिकेशन की अनदेखी कर साइबर सिटी में गांवों, सेक्टरों, पाश कालोनियों, औद्योगिक क्षेत्र में भूजल दोहन बड़े पैमाने पर हो रहा है। भूजल दोहन यूं ही होता रहा तो एक दिन यहां भूजल स्रोत खत्म हो जाएंगे। तीस वर्ष पहले चकरपुर जोन में बने दो चैक डैम में पानी रहता था, वहां भूजल स्रोत सबसे अधिक नीचे है। चैक डैम में रेन वाटर हारवेस्टिंग यूनिट लग रही हैं। यह गुड़गांव का विकास है। यह शहर किस ओर बढ़ रहा है इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। सबसे नीचे भूजल स्रोत चकरपुर जोन में ही है। चकरपुर व डूंडाहेड़ा जोन में शामिल डीएलएफ फेस वन, टू, थ्री, फोर, सुशांत लोक फेस वन, साउथ सिटी, उद्योग विहार, सेक्टर 18, 21, 22, 23, पालम विहार आदि में भूजल स्तर 60 मीटर तक नीचे चले गए। जबकि पीने का पानी सौ मीटर नीचे मिलता है।
हाईड्रोलोजिस्ट डिपार्टमेंट से मिले आंकडों के अनुसार, चकरपुर व डूंडाहेड़ा जोन में भूजल स्रोत सबसे तेजी से गिरा है। इन दोनों जोनों में भूजल स्तर सबसे नीचे हैं। गुड़गांव शहर में भूजल स्रोत और अधिक नीचे न जाएं, इसके लिए कम से कम दस हजार रेन वाटर हारवेस्टिंग यूनिट पहले चरण में डीएलएफ के सभी फेस, सुशांत लोक, उद्योग विहार, पुराने शहर व हुडा सेक्टरों में लगाने की आवश्यकता है। इस दिशा में न नेता नेता गंभीर है और न राजनैतिक पार्टियां।
ज्ञात हो कि केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की अनुशंसा पर केंद्रीय भूजल बोर्ड ने दिसंबर 2000 में नोटिफिकेशन जारी कर गुड़गांव शहर व आसपास के 81 गांवों के भूभाग को भूजल संरक्षण क्षेत्र घोषित कर दिया। बोर्ड के निर्देश पर दो साल तक नोटिफिकेशन के दायरे में आए गांवों में सरकारी विभागों, शिक्षण संस्थाओं, विकास एजेंसियों द्वारा विकसित किए गए क्षेत्रों, किसानों, उद्यमियों आदि को अपने ट्यूबवेलों को पंजीकृत कराने का समय दिया गया। इस दौरान 9140 ट्यूबवेल को पंजीकृत किया गया। इनमें से डीएलएफ सहित अन्य पॉश कालोनियों में 15 ट्यूबवेल पंजीकृत हैं। पंजीकरण के 31 मार्च 2002 के बाद 81 गांवों के भूभाग में नए ट्यूबवेल लगाने, पंजीकृत ट्यूबवेलों को और गहरा करने पर प्रतिबंध लगा दिया। विशेष परिस्थिति में बोर्ड की अनुमति से लेकर नए ट्यूबवेल या पुराने ट्यूबवेल गहरे किए जा सकते हैं। नियमों की मानीटरिंग करने के लिए सीटीएम, जिला उद्योग अधिकारी, भू जल संरक्षण अधिकारियों की अलग-अलग कमेटी गठित की गई, जिसका कार्यकाल अब तक निष्क्रिय ही रहा। गिरते भूजल दोहन को रोकने के लिए ही वर्ष 2006 में पटौदी व फरुखनगर खंड के 60 से अधिक गांवों में भूजल दोहन पर रोक लगाने के साथ ट्यूबवेलों का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया। लेकिन भूजल स्रोत इन क्षेत्रों में भी लगातार नीचे खिसकते रहे। वर्ष 2008 में एक बार फिर पीने के पानी के लिए चार इंची पाइप वाले ट्यूबवेल लगाने की अनुमति पंजीकरण कर दी जाने लगी। करीब आठ महीनों में ही तीन हजार ट्यूबवेल और लग गए। वहीं सूत्रों की माने तो प्रशासन के पास इस तरह का कोई डाटा भी नहीं है कि प्रतिबंधित क्षेत्र में कितने अनधिकृत ट्यूबवेल लगे हैं। गुड़गांव मास्टर प्लान 2021 के तहत अधिसूचित 58 सेक्टरों में निजी क्षेत्र द्वारा किए जाने निर्माण कार्य में बड़े पैमाने पर भूजल दोहन हो रहा है।
गुड़गांव शहर के साथ लगते क्षेत्र का भूजल स्तर एक नजर में (आंकड़े मीटर में)
जोन |
वर्ष 1974 |
वर्ष 2009 |
चकरपुर डूंडाहेड़ा मानेसर गुड़गांव वजीरपुर |
17.05 16.69 16.80 6.10 6.20 |
50.5 54.2 32.20 32.45 20. 85 |
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