ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति


अरावली वनीकरण परियोजना न केवल अरावली पर्वत श्रेणी को संरक्षित रखने की योजना है वरन यह राजस्थान के पर्यावरण को सुरक्षित रखने एवं पारिस्थितिक तंत्र को सही रखने की दिशा में उठाया जाने वाला एक सशक्त कदम है जो वन विकास के साथ-साथ ग्रामीण वनवासियों की खुशहाली को नए आयाम प्रदान करेगा।

ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति का दायित्व बुनियादी तौर पर राज्यों का होता है। फिर भी, केन्द्र सरकार गाँवों का होता है। फिर भी, केन्द्र सरकार गाँवों में रहने वाले लोगों की इस आधारभूत आवश्यकता की पूर्ति को उच्च प्राथमिकता देती आई है। त्वरित ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम के अंतर्गत तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान की जाती रही है। उक्त कार्यक्रम 1972-73 में आरम्भ हुआ था। वर्ष 1974-75 में न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के अंतर्गत ग्रामीण जल आपूर्ति व्यवस्था की शुरूआत के साथ ही त्वरित ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम वापिस ले लिया गया, परन्तु 1977-78 में इसे फिर से चालू कर दिया गया। इस कार्यक्रम को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिये 1986 में राष्ट्रीय पेयजल मिशन आरम्भ किया गया। अब इस मिशन का नाम बदलकर राजीव गाँधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन कर दिया गया है।

न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के राज्य क्षेत्र के अंतर्गत राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों के तथा त्वरित ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम और मिशन के अंतर्गत केन्द्रीय सहायता के मिले-जुले प्रयासों से वर्ष 1991-92 के अंत तक 74.41 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध किया जाना सम्भव हो सका। इसका श्रेय स्रोत विहीन समस्याग्रस्त गाँवों के लिये विशेषकर 1 अरब 78 करोड़ रुपये की विशेष केन्द्रीय सहायता को भी जाता है।

सातवीं योजना के आरम्भ तक लगभग 94,000 समस्याग्रस्त गाँवों को पेयजल उपलब्ध कराने तथा समस्यग्रस्त गाँवों की पहचान के लिये राज्यों व केन्द्र शामिल पहचान के लिये राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा किए गए अध्ययन के पश्चात पाया गया कि 1 अप्रैल 1980 को 2 लाख 31 हजार गाँव समस्याग्रस्त गाँवों की श्रेणी में आते थे, जिनमें से 192 हजार गाँवों में पेयजल छठी योजना में पहुँचा दिया गया तथा शेष बचे 39 हजार गाँव आठवीं योजना के हिस्से में आ गए। 1985 में ताजा सर्वेक्षण कराया गया तथा परिणामस्वरूप 1 अप्रैल 1985 को 1 लाख 62 हजार समस्या ग्रस्त गाँवों का पता चला, जिनमें पेयजल उपलब्ध कराने का काम सातवीं योजना में किया जाना था।

सातवीं योजना में लगभग एक लाख 54 हजार गाँवों में पेयजल व्यवस्था कराई गई। ये छठी योजना के एक लाख 92 हजार गाँवों के अलावा थे। देश भर के लगभग 5 लाख 83 हजार समस्याग्रस्त गाँवों में से शेष बच्चे 8365 समस्याग्रस्त गाँवों में से 3032 गाँवों में वर्ष 1990-91 के दौरान पेयजल पहुँचाया गया तथा 2168 गाँवों में यह काम 1991-92 के दौरान हुआ। 1992-93 के लिये ‘स्रोतविहीन’ समस्याग्रस्त गाँवों की संख्या 2968 थी तथा आंशिक व्यवस्था वाले गाँवों की संख्या 31,500 थी, जहाँ पेयजल की व्यवस्था की जानी थी। फरवरी 1993 तक राज्यों व केन्द्रशासित प्रदेशों से जो रिपोर्ट मिली है उनके अनुसार 1469 स्रोतविहीन गाँवों तथा 23,500 आंशिक व्यवस्था वाले गाँवों में पेयजल व्यवस्था की जा चुकी है। लगभग 600 गाँव ऐसे रह जाएंगे जहाँ पेयजल उपलब्ध कराने का काम 1993-94 में कराना होगा। लेकिन आंशिक व्यवस्था वाले गाँव का लक्ष्य तो संभवतया पूरा कर लिया जाएगा। वर्ष 1993-94 के लिये 42,000 गाँवों में पेयजल आपूर्ति का अस्थायी लक्ष्य रखा गया है, जिनमें पिछले वर्ष के बचे, स्रोत विहीन समस्याग्रस्त गाँव भी शामिल हैं।

इस योजना के अंतर्गत, सातवीं योजना तथा 1991-92 और 1992-93 के दौरान कुल मिलाकर 29 अरब 61 करोड़ रु. की राशि का उपयोग किया जा चुका है। इसके अलावा, राज्य क्षेत्र में न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के अंतर्गत 37 अरब 51 करोड़ रुपये का खर्च किया जा चुका है। 1992-93 के लिये त्वरित ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम, राजीव गाँधी राष्ट्रीय पेय जल मिशन आदि के अंतर्गत 4 अरब 60 करोड़ रुपये के परिव्यय की गई थी, जो राज्य क्षेत्र के न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के 8 अरब 11 करोड़ 31 लाख रुपये के परिव्यय के अतिरिक्त थी। वर्ष 1993-94 के लिये 7 अरब 40 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है तथा राज्य क्षेत्र में न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के लिये 8 अरब 19 करोड़ 85 लाख रूपये का प्रावधान किया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति के लिये आठवीं योजना में 49 अरब 54 करोड़ 52 लाख रुपये का प्रावधान, राज्य क्षेत्र न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के अंतर्गत तथा 51 अरब रुपये का प्रावधान क्षेत्र के अंतर्गत किया गया है।

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जन जातियों का पेयजल सुविधाएँ उपलब्ध कराने पर विशेष बल दिया जा रहा है। राज्य क्षेत्र की विशेष घटक योजना (स्पेशल कम्पोनेंट-प्लान) तथा जनजातीय उपयोजना के अंतर्गत प्रावधान और त्वरित ग्रामीण जलापूर्ति योजना के अंतर्गत अनुसूचित जातियों के लिये 25 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों के लिये 10 प्रतिशत राशि के निर्धारण के अलावा, केन्द्र सरकार, दुर्बल वर्गों को सुरक्षित पेयजल सुविधाएँ प्रदान करने की गति को बढ़ाने के लिये विशेष सहायता प्रदान कर रही है। मार्च, 1990 में 19 करोड़ 80 लाख रुपये की विशेष सहायता दी गई थी। इसी प्रकार, 1991-92 के दौरान व 1992-93 के आरंभ में 58 करोड़ 94 लाख रु. की विशेष सहायता जारी की गई। यह सहायता डा. बाबा साहेब अम्बेडकर शताब्दी कार्यक्रम के अंतर्गत जारी की गई।

पेयजल आपूर्ति की गुणवत्ता पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। नहरुआ (गिनीवर्म) निवारण के उप मिशन के चलते यह संभव हो सका है कि जनवरी 93 को प्रभावित गाँवों की संख्या घटकर 1906 तथा मरीजों की संख्या 563 तक आ गई है। वर्ष 1993 के अंत तक इस रोग के निवारण की आशा है।

फ्लोरोसिस नियंत्रण सम्बंधी मिशन के अंतर्गत डिफ्लोराइडेशन के 481 संयंत्रों को स्थापना की मंजूरी दी गई। इनमें से 260 से भी अधिक संत्रंत्र चालू हो चुके हैं। या अन्य कारणों से हरियाली लुप्त हो गई है। इसके लिये सूक्ष्म नियोजन करके वृक्षारोपण, घास के बीजों की बुवाई, मेड़े बनाकर, जलंसग्रह के उपाय व वनसंरक्षण के कार्य किए जाएंगे। जिससे पुनर्वनीकरण सुनिश्चित हो सके, इस कार्य में स्थानीय निवासियों की मदद ली जाएगी। यह कार्य ग्राम वन सुरक्षा एवं प्रबन्ध समिति की सलाह से स्थानीय रूप से उगने वाले वृक्ष, झाड़ियों घास आदि प्रजातियों में से किया जाएगा इसमें 20000 हेक्टेयर भूमि का विकास प्रस्तावित है।

अपभ्रंशित वन क्षेत्रों का पुनर्वास


इसके अन्तर्गत ऐसे एक लाख हेक्टेयर पहाड़ी क्षेत्रों में हरीतिमा, वृद्धि और प्राकृतिक रूप से वनस्पति उगाने का काम होगा जहाँ वन अपभ्रंशित (उजड़े) है। उन क्षेत्रों में स्थानीय वृक्षप्रजातियों की पुनर्स्थापना की जाएगी। आवश्यक सीमाबंदी करके अल्पावधि के लिये चराई पर रोक लगाई जाएगी तथा वनसंवर्द्धन तरीकों को अपना कर प्राकृतिक रूप से पास्थितिकी का स्वाभाविक पुनर्विकास किया जाएगा।

सामुदायिक भूमि पर वृक्षारोपण


इसके अन्तर्गत ग्राम पंचायतों या सरकार द्वारा अधिकृत 15000 हेक्टेयर भूमि पर वृक्षारोपण किया जाएगा। प्रत्येक ‘ग्राम वन विकास एवं सुरक्षा समिति’ सम्बंधित ग्राम सभा बुलाकर सभी के सहयोग द्वारा ईंधन व चारे के ग्राम भंडार तैयार करेगी।

कृषि वानिकी


परियोजना क्षेत्र के किसानों की निजी कृषि भूमि पर सुरक्षा एवं उर्वरता बढ़ाने, चारागाहों का विकास करने, पड़त भूमि पर उत्पादन बढ़ाने एवं सार्वजनिक स्थलों पर पौधारोपण के लिये वन विभाग 10 नई पौधशालाओं से 7.50 करोड़ पौधे तैयार कर वितरण करेगा ताकि ग्रामवासी वृक्ष उगाकर स्थानीय रूप से लकड़ी, ईंधन चारा लघु वन उपज आदि की आपूर्ति कर स्वावलम्बी बन सकें।

वन्य जीव अभ्यारण्यों में प्राकृतिक परिवेश सुधार


परियोजना क्षेत्रों के वन्य जीव अभ्यारण्य एवं शिकार निषेध क्षेत्र के आस-पास पारिस्थितिकीय विकास एवं संरक्षण के लिये जल संरक्षण कार्य जैसे एनीकट निर्माण कर जीव जन्तुओं को पेयजल उपलब्ध कराया जाएगा। वन क्षेत्रों को अग्नि से बचाने के लिये भी कार्य किए जाएगें क्योंकि दक्षिणी जिलों में बनाग्नि की घटनाएँ अक्सर होती रहती हैं।

वनवासी कल्याण एवं जन भागीदारी


अरावली वनीकरण परियोजना का क्षेत्र सदैव से ही घनी आबादी वाला क्षेत्र रहा है। वर्तमान में भी यहाँ 150 व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर का जन घनत्व है। इस क्षेत्र में वनवासियों की संख्या भी पर्याप्त है। यहाँ राज्य के 16 प्रतिशत वनवासी निवास करते हैं अरावली की कन्दराओं व घाटियों में निवास करने वाले वनवासी छोटी-छोटी भूमियों पर कृषि करते हैं। बाड़ी के अलावा वनवासी, लकड़ी, ईंधन, शहद गोद, बांस चारा, फल-बीज, तेल जड़ी बूटियाँ प्राप्त करके अपना जीवन-यापन करते हैं।

वनवासी इस क्षेत्र में श्रमिक के रूप में कार्य करके अपनी आजीविका प्राप्त करते हैं। वनवासियों को योजनावधि में रोजगार उपलब्ध कराने के लिये 2.25 करोड़ मानव दिवसों का सृजन किया जाएगा। अधिकतर श्रम नियोजन जनजाति क्षेत्र उदयपुर, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा एवं सिरोही जिलों में किया जाएगा। परियोजना के वानिकी कार्यक्रम इस तरह चलाए जाएगें कि एक तरफ वनवासियों एवं ग्रामीणों को वृक्षारोपण स्थलों से चारा घास, पत्तियाँ, सूखी लकड़ी जैसे वन उपज के लाभ निःशुल्क प्राप्त होते रहेंगे तथा एक निश्चित समयावधि के बाद वन विदोहन से प्राप्त आर्थिक लाभ भी उन्हें प्राप्त होंगे।

परियोजना क्षेत्र में जन भागीदारी को भी सुनिश्चित किया गया है। प्रत्येक ग्राम में एक ‘ग्राम वन सुरक्षा प्रबन्ध सीमति’ गठन की जाएगी। यह समिति ग्राम सभा की सलाह से ग्राम स्तर पर वनों की सुरक्षा व प्रबन्ध करेगी। ग्राम स्तरीय समिति की सक्रिय भागीदारी प्राप्त कर विकसित वन क्षेत्रों की सुरक्षा के बदले प्रतिवर्ष होने वाली आय जैसे घास, फलियाँ, अखाद्य तेल युक्त बीज आदि में से शत-प्रतिशत समिति को प्राप्त होगी। समिति की दस वर्ष तक पूर्ण सुरक्षा करने के बाद 60 प्रतिशत तथा सामुदायिक एवं पंचायती क्षेत्रों में 50 प्रतिशत आय भी दी जाएगी। ये ग्राम समितियाँ अपनी प्रबन्ध प्रणाली से ग्रामीण युवाओं को रोजगार भी दे सकेंगी। इन समितियों के अतिरिक्त वृक्ष उत्पादन सहकारी समिति वन श्रमिक सहकारी समिति तथा राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त उपक्रम एवं संगठन भी इन कार्यों में भागीदारी कर सकेंगे। सूक्ष्म नियोजन पद्धति से जनभागीदारी के आधार पर वानिकी विकास कार्य सम्पन्न होंगे।

अरावली वनीकरण परियोजना न केवल अरावली पर्वत श्रेणी को संरक्षित रखने की योजना है वरन यह राजस्थान के पर्यावरण को सुरक्षित रखने एवं पारिस्थितिक तंत्र को सही रखने की दिशा में उठाया जाने वाला एक सशक्त कदम है जो वन विकास के साथ-साथ ग्रामीण वनवासियों की खुशहाली को नए आयाम प्रदान करेगा।

क्वार्टर नं-1, कृषि विभाग-राजगढ़, जिला- अलवर (राज.) 301408

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