गोबर गैस प्लांट की उपयोगिता

किसानों की दो मुख्य समस्याँए हैं - पहली उर्वरक तथा दूसरी ईंधन की कमी, जो तरह-तरह की कठिनाईयाँ पैदा कर रही है। किसानों को गोबर तथा लकड़ी के अलावा अन्य कोई पदार्थ सुगमतापूर्वक उपलब्ध नहीं है। अगर किसान गोबर का उपयोग खाद के रूप में करता है तो उसके पास खाना पकाने के लिए ईंधन की समस्या बन जाती है। जैसा कि हमें विदित है मृदा की उर्वरक शक्ति ज्यादा फसल पैदा करने से काफी कमजोर हो गई है तथा संतुलित पोषक पदार्थ उपलब्ध नहीं करवा पा रही है। दूसरी ओर रासायनिक खादों के उपयोग से पर्यावरण भी दूषित हो रहा है। इनके प्रयोग में लागत भी ज्यादा आती है तथा इनके मिलने में भी कई बार कठिनाई आती है।

इन समस्याओं का समाधान गोबर का दोहरा प्रयोग करके किया जा सकता है। गोबर में ऊर्जा बहुत बड़ी मात्रा में होती है जिसको गोबर गैस प्लांट में किण्वन (फर्मंटेशन) करके निकाला जा सकता है। इस ऊर्जा का उपयोग र्इंधन, प्रकाश व कम हॉर्स पावर के डीजल ईंजन चलाने के लिए किया जा सकता है। प्लांट से निकलने वाले गोबर का खाद के रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं। अत: गोबर गैस प्लांट लगाने से किसानों को र्इंधन व खाद दोनों की बचत होती है।

गोबर गैस प्लांट लगाने के लिए निम्नलिखित आवश्यकताओं का होना जरूरी है :

1- गोबर गैस से छोटे से छोटा प्लांट लगाने के लिए कम से कम दो या तीन पशु हमेशा होने चाहिए।
2- गैस प्लांट का आकार गोबर की दैनिक प्राप्त होने वाली मात्रा को ध्यान में रखकर करना चाहिए।
3- गोबर गैस प्लांट गैस प्रयोग करने की जगह के नजदीक स्थापित करना चाहिए ताकि गैस अच्छे दबाव पर मिलता रहे।
4- गोबर गैस प्लांट लगवाने के लिए उत्ताम किस्म का सीमेंट तथा ईंटें प्रयोग करनी चाहिएं। छत से किसी प्रकार की लीकेज नहीं होनी चाहिए।
5- गोबर गैस प्लांट किसी प्रशिक्षित व्यक्ति की देखरेख में बनवाना चाहिए।

संशोधित गोबर गैस प्लांट


जनता व दीनबन्धु डिजाइन के गोबर गैस प्लांट पानी व गोबर के घोल द्वारा चलाए जाते हैं। पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध न होने के कारण किसान गोबर गैस प्लांट लगवाने के लिए तैयार नहीं होते। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में सूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग ने गोबर व पानी के घोल द्वारा चलने वाले जनता मॉडल के बायोगैस प्लांट को संशाधित करके ऐसा डिजाईन तैयार किया है जो ताजे गोबर से चलता है। इस प्लांट को गोबर डालने का आर सी पी पाइप एक फुट चौड़ा तथा पृथ्वी से 4 फुट ऊॅंचाई पर बना होता है। प्लांट के अंदर का भाग लीकेज रहित बनाया जाता है तथा गोबर की निकासी का पाइप पर्याप्त चौड़ा रखा जाता है जिससे गोबर गैस के दबाव से स्वत: बाहर आ जाता है। गैस की निकासी के स्थान को जी.आई. प्लास्टिक पाइप द्वारा रसाईघर तक चूल्हे से या फिर ईंजन द्वारा जोड़ दिया जाता है। इस प्लांट में बनी गैस की मात्रा अन्य सयंत्रों की अपेक्षा ज्यादा होती है तथा निकलने वाला गोबर जल्दी सूख जाता है जिसे इकट्ठा करने के लिए खङ्ढे की जरूरत नहीं पड़ती। इस प्लांट के आसपास की जगह साफ-सुथरी रहती है तथा इसे बनाने का खर्च अन्य संयंत्रों की अपेक्षा कम आता है (तालिका 1, 2)।

प्रयोग


गोबर गैस प्लांट की स्थापना के बाद इसे गोबर व पानी के घोल (1 : 1) से भर दिया जाता है और चलते हुए प्लांट से निकला गोबर (दस प्रतिशत) भी साथ ही डाल दिया जाता है। इसके बाद गैस की निकासी का पाइप बंद करके 10-15 दिन छोड़ दिया जाता है। जब गोबर की निकासी बाते स्थान से गोबर बाहर आना शुरू हो जाता है तो प्लांट में ताजा गोबर प्लांट के आकार के अनुसार सही मात्रा में हर रोज एक बार डालना शुरू कर दिया जाता है तथा गैस को आवश्यकतानुसार इस्तेमाल किया जा सकता है एवं निकलने वाले गोबर को उर्वरक के रूप में प्रयोग किया जा सकता है जो गुणवत्ता के हिसाब से गोबर की खाद के बराबर होता है।

तालिका 1 : विभिन्न क्षमता के संशाधित गोबर गैस प्लांट लगाने की लागत बनाने के लिए सामग्री की मात्रा

क्रम संख्या

सामग्री

प्लांट की क्षमता (घन मीटर)

2 3 4

कुल खर्चे (रूपये)

2 3 4

1

ईंट1

1200

1500

2000

1620

1975

2700

2

सीमेंट (थैले)2

15

15

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