ग्रामीण सूचना एवं ज्ञान केन्द्र

ग्रामीण सूचना एवं ज्ञान केन्द्र
बुंदेलखंड के पठारों में मृदा एवं नमी संरक्षण
Posted on 03 Mar, 2011 09:49 AM

भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसका प्रमुख व्यवसाय है कृषि एवं पशुपालन। कृषि पर निर्भर जनसंख्या की आर्थिक स्थिति कुछ अच्छी नहीं है जिसका प्रमुख कारण है खेती की अनुपयुक्तता। इसका अर्थ है - 60 से 80 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि पर सिंचाई के साधनों की कमी, खेती योग्य भूमि का ढालू होना, समुचित खाद एवं उन्नत किस्म के बीजों का समय पर उपलब्ध न होना, वर्षा की अनियमितता आदि। सामान्यत: सूखी अवस्थाओं में सीमान्त

क्षारीय मृदा सुधार जरूरी है जल निकास
Posted on 01 Mar, 2011 01:29 PM
आज के परिप्रेक्षय में क्षारीय मृदाओं का विस्तार 3.4 मिलियन है। क्षेत्र में फैला हुआ है जिसका लगभग 75 प्रतिशत सिन्धु-गंगा जलौढ़ क्षेत्र में मिलता है। ऐसी मृदाएं पंजाब, हरियाणा और उत्तार प्रदेश के अतिरिक्त मध्य प्रदेश, तमिलनाडू और बिहार राज्यों के काफी क्षेत्र में फैली हुई है। पिछले तीन-चार दशकों में लगभग 1.2 मिलियन हैक्टर क्षेत्र का सुधार होने के बावजूद, 2.2 मिलियन हैक्टर क्षेत्र में इनका विस्तार एक
मिट्टी परीक्षण का महत्व और प्रतिनिधि नमूना लेने की विधि
Posted on 01 Mar, 2011 12:09 PM
मिट्टी की बनावट बड़ी पेचीदा होती है और कोई किसान अपने वर्षों के अनुभव के बावजूद भी अपने खेत की उपजाऊ शक्ति का सही-सही अन्दाजा नहीं लगा सकता। अक्सर किसी पोषक तत्व की कमी भूमि में धीरे-धीरे पनपती है और पौधों पर जब कमी के चिन्ह प्रगट होते हैं तो प्रायः काफी देर हो चुकी होती है और फसल की पैदावार पर विपरीत प्रभाव जोर पकड़ चुका होता है। दूसरी ओर हो सकता है कि भूमि में किसी एक तत्व या तत्वों की मात्रा अत्य
गोबर गैस प्लांट की उपयोगिता
Posted on 01 Mar, 2011 11:40 AM
किसानों की दो मुख्य समस्याँए हैं - पहली उर्वरक तथा दूसरी ईंधन की कमी, जो तरह-तरह की कठिनाईयाँ पैदा कर रही है। किसानों को गोबर तथा लकड़ी के अलावा अन्य कोई पदार्थ सुगमतापूर्वक उपलब्ध नहीं है। अगर किसान गोबर का उपयोग खाद के रूप में करता है तो उसके पास खाना पकाने के लिए ईंधन की समस्या बन जाती है। जैसा कि हमें विदित है मृदा की उर्वरक शक्ति ज्यादा फसल पैदा करने से काफी कमजोर हो गई है तथा संतुलित पोषक पदा
बड़े काम के छोटे बांध
Posted on 01 Mar, 2011 11:06 AM
जमीन के नीचे के पानी का खजाना बढ़ानें के लिए सूखी धरती को हरा-भरा बनाने का नायाब तरीका है, चैकडैम यानी की लघुबांध आप शायद इस तथ्य से अवगत होंगे कि दुनिया के संपूर्ण ताजे या मीठे पानी का एक बहुत छोटा सा अंश ही नदियों या झीलों में पाया जाता है। अधिकांश मीठा पानी, यानीकि 98 प्रतिशत जमीन के नीचे माटी की नमी और भूजल के रूप में रहता है। अत: भूजल ही (बर्फीले पहाड़ों से पिघलने वाली बर्फ के बाद) ताजे पानी की
किफायती मृदा और जल-संरक्षण व्यवस्था
Posted on 01 Mar, 2011 10:02 AM
जल संचयन के कार्य में जस्त चढ़े लोहे के तारों के जाल और पोलीथीन के बोरों का नवीन प्रयोग किया गया है। यह तरीका किफायती है और भारतीय परिस्थितियों में उपयोगी भी। प्रस्तुत है पदमपुरा पनढाल में हुए इस प्रयोग का विवरण खुद इसके प्रवर्तक की कलम से।
जैविक खेती
Posted on 01 Mar, 2011 09:30 AM
भारत एक कृषि प्रधान तथा कृषि देश की अर्थ व्यवस्था का प्रमुख साधन है । भोजन मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है और अन्न से ही जीवन है, इसकी पूर्ति के लिए 60 के दशक में हरित क्रान्ति लाई गई ओर अधिक अन्न उपजाओं का नारा दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप रासायनिक उर्वरकों ओर कीटनाशकों का अन्धा-धुन्ध व असन्तुलित उपयोग प्रारम्भ हुआ । इससे उत्पादन तो बढ़ा उत्पादकता में स्थिरता आने के कारण पूर्व वर्षो की उत्पादन वृद्ध
×