गंगादेवी पल्‍ली में बही विकास की गंगा

जरूरी नहीं कि हमारे गांव का विकास तभी होगा, जब बड़े-बड़े सरकारी अधिकारियों की कृपा दृष्टि हो। गांव का विकास खुद गांव वालों के हाथ में है। सरकारी कानून ऐसे हैं, जिनके इस्तेमाल से हम अपने गांवों में विकास की गंगा बहा सकते हैं। ग्रामसभा एक ऐसी संस्था है, जिसकी नियमित बैठक से भ्रष्टाचार को करारा जवाब दिया जा सकता है और अपने गांव का संपूर्ण विकास किया जा सकता है।आंध्र प्रदेश के वारंगल जिले की मचापुर ग्राम पंचायत का एक छोटा सा क्षेत्र था गंगादेवी पल्ली। ग्राम पंचायत से दूर और अलग होने के चलते विकास की हवा या कोई सरकारी योजना यहां के लोगों तक कभी नहीं पहुंची। बहुत सी चीजें बदल सकती थीं, लेकिन नहीं बदली, क्योंकि लोग प्रतीक्षा कर रहे थे कि कोई आएगा और उनकी जिंदगी संवारेगा, बदलाव की नई हवा लाएगा। करीब दो दशक पहले गंगादेवी पल्ली के लोगों ने तय किया कि वे खुद एकजुट होंगे और बदलाव की हवा स्वयं लेकर आएंगे, जिसका वह अब तक सिर्फ इंतजार कर रहे थे। आज गंगादेवी पल्ली एक प्रेरणादायक उदाहरण है कि कैसे एक छोटे से क्षेत्र को आदर्श गांव बनाया जा सकता है।

आज गंगादेवी पल्ली में 100 प्रतिशत घरों से गृहकर इकट्ठा होता है, 100 प्रतिशत साक्षरता है, 100 प्रतिशत लोग परिवार नियोजन के साधन अपनाते हैं, 100 प्रतिशत परिवार छोटी बचत अपनाते हैं, बिजली बिल की अदायगी भी 100 प्रतिशत है, समूचे गांव के लिए पेयजल है और सभी बच्चे स्कूल जाते हैं। जाहिर है, इस सबके पीछे सिर्फ और सिर्फ ग्रामसभा की ही भूमिका थी। जनता की सहभागिता, नियमित बैठक और सामूहिक निर्णय प्रक्रिया की बदौलत यह गांव आज भारत के 6 लाख गांवों के लिए एक मिसाल बन चुका है।

शराबखोरी गंगादेवी पल्ली गांव में एक बड़ी समस्या थी। इस सामाजिक बुराई ने अन्य समस्याओं को भी और बढ़ा दिया था, जैसे घरेलू झगड़े, गुटों के झगड़े। 70 के दशक के उत्तरार्द्ध में गांव के कुछ लोग इकट्ठा हुए और उन्होंने तय किया कि अब कुछ करना है। इन लोगों ने गांव में लगातार बैठकें की कि शराब से क्या-क्या नुकसान हो रहे हैं। 1982 तक गांव में पूर्णत: मद्य निषेध हो चुका था। 1994 में गंगादेवी पल्ली भी ग्राम पंचायत बन गया। पंचायती राज एक्ट की धारा 40 में ग्रामसभा के सहयोग से समिति बनाने की बात कही गई है। गंगादेवी पल्ली गांव की सफलता इन समितियों के गठन में पारदर्शिता और ईमानदारी में निहित है।

किसी नई योजना की घोषणा माइक द्वारा की जाती है। ग्रामसभा की बैठक होती है और समिति के सदस्य चुन लिए जाते हैं। समितियां गठित होने के बाद लोग अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से लेते हैं और उसी हिसाब से काम करते हैं। दरअसल, गांव के सभी मतदाता ग्रामसभा के स्वत: सदस्य होते हैं। ऊपर से इस गांव ने विभिन्न समितियां गठित करके और बेहतर काम किया। इससे फायदा यह हुआ कि गांव के सभी लोगों का प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व हुआ और निर्णय प्रक्रिया में उनकी सहभागिता बढ़ी। समितियां बनाने से गांव की अलग-अलग समस्याओं का कम समय में बेहतर समन्वय के साथ निराकरण संभव हो सका। मौजूदा सरपंच बताते हैं कि जन-सहभागिता तभी से शुरू हो जाती है, जब लोग अपनी समस्याओं के बारे में बात करना शुरू करते हैं। इसके बाद हम समस्या का हल ढूंढ़ने और उसे लागू करने के लिए काम करते हैं। सरपंच प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी सुनिश्चित करते हैं। इससे उनकी अनुपस्थिति में भी विकास कार्यों में कोई कमी नहीं आने पाती। लोग हर स्तर पर ग्राम पंचायत से जुड़े होते हैं। लिहाजा सभी मुद्दों और फैसलों से वाकिफ रहते हैं। इससे उत्तराधिकार की भावना और पारदर्शिता भी आती है। इसमें समूची प्रक्रिया स्वयं देखने को मिलती है। यह भी देखने को मिलता है कि किसी भी भ्रष्टाचार के बिना योजनाओं को लागू किया जा सकता है।

ग्रामसभा की बैठक में ही तय किया गया कि खुले में शौच जाने वाले लोगों पर 500 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। हालांकि नियम-कानून में ऐसे जुर्माने का प्रावधान नहीं था, लेकिन यह ग्रामसभा की सामूहिक इच्छाशक्ति थी, जिसने जुर्माना लागू कराया और उसे वसूला भी। आज गांव का हर व्यक्ति अपने घर में बने शौचालय का इस्तेमाल कर रहा है।कोई भी फैसला गांव के लोगों पर थोपा नहीं जाता। समस्याएं ग्रामसभा के सामने पेश की जाती हैं और उनका समाधान लोगों की तरफ से ही आ जाता है। इस प्रकार लोगों का अपना फैसला होता है। गांव की सड़कों पर अंधेरा रहता था, लेकिन लोगों ने मिलकर पूरे गांव की सड़कों पर रोशनी की व्यवस्था कर ली। गांव में पानी की बड़ी समस्या थी। इकलौता कुआं लगभग एक किलोमीटर दूर था। कुएं से पानी निकालने के लिए लोगों को सुबह तीन बजे से लाइन में खड़ा होना पड़ता था। गांव वालों ने एक संस्था की मदद से टंकी लगाने की योजना बनाई। 15 प्रतिशत खर्च स्वयं गांववालों ने उठाया। धन इकट्ठा करने के लिए लोगों के 18 समूह बनाए गए और महज 2 दिनों में 65 हजार रुपये इकट्ठा हो गए। इसी तरह टंकी से आने वाले पानी के इस्तेमाल के लिए ग्रामसभा में विचार-विमर्श करके नियम बनाए गए, ताकि कोई पानी बर्बाद न करे और पूरा गांव नियमों को मानता है। गांव वाले जानते हैं कि अब उनके यहां पानी की कमी नहीं है, लेकिन फिर भी इन नियमों का पालन इसलिए किया जाता है, ताकि कोई व्यर्थ ही पानी न बहाए। पानी के इस्तेमाल से जुड़े कुछ नियम हैं। जैसे टंकी का कनेक्शन केवल लोगों के घर के सामने लगेगा, हर घर आधा इंच का पाइप इस्तेमाल करेगा, हर नल जमीन से 4 फीट ऊपर होगा, नल के आसपास की जगह सूखी रखी जाएगी, किसी घर में पानी बहाया नहीं जाएगा, पौधों को भी पानी देने के लिए बाल्टी और मग का इस्तेमाल होगा, कोई पाइप लगाकर पानी नहीं देगा।

इन नियमों को तोड़ने वाले व्यक्ति का पानी कनेक्शन सील कर दिया जाता है और 100 रुपये का जुर्माना भरने पर ही दोबारा बहाल किया जाता है। जल समिति की नियमित बैठक महीने के दूसरे शनिवार को होती है। अगर कोई विशेष बात या आपत्ति हो तो ग्रामसभा की बैठक में उस पर चर्चा होती है। लेकिन यह पानी पीने के लिए नहीं है। नल में आने वाला पानी फ्लोराइड युक्त है, इसलिए पीने के काम में नहीं लिया जाता। पेयजल के लिए टाटा कंपनी के सहयोग से जल शुद्धि संयंत्र लगाया गया है। इससे शुद्ध होने वाला पानी एक रुपये प्रति कैन उपलब्ध कराया जाता है। इसकी पूरी व्यवस्था पंचायत की देखरेख में चलती है, लेकिन कोई भी फैसला ग्रामसभा में ही लिया जाता है। इसलिए यह प्रक्रिया सही तरह से लागू की गई है और गांव का कोई भी व्यक्ति इसे हल्के में नहीं लेता।

ग्रामसभा की बैठक में ही तय किया गया कि खुले में शौच जाने वाले लोगों पर 500 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। हालांकि नियम-कानून में ऐसे जुर्माने का प्रावधान नहीं था, लेकिन यह ग्रामसभा की सामूहिक इच्छाशक्ति थी, जिसने जुर्माना लागू कराया और उसे वसूला भी। आज गांव का हर व्यक्ति अपने घर में बने शौचालय का इस्तेमाल कर रहा है। ग्रामसभा ने गांव में हरियाली योजना लागू करने के लिए एक समिति बनाई। हर घर से कहा गया कि वह अपनी जमीन पर पेड़ लगाए। साथ ही सड़क के किनारे भी पेड़ लगाए गए। पेड़ों की सुरक्षा के लिए उनके सामने स्थित घरों को जिम्मेदार बनाया गया। अगर ये घर मंगलवार एवं शनिवार को इन वृक्षों को पानी नहीं देते तो उनके लिए पीने का पानी बंद करने का प्रावधान है। गांव के लोग अपने पशुओं को बांध कर रखते हैं, ताकि वे गांव में लगाए जा रहे पेड़-पौधे खा न जाएं। ग्रामसभा ने लोगों, विभिन्न समितियों और पंचायत की विभिन्न गतिविधियों के लिए दिशा-निर्देश तय कर रखे हैं। पहले लोग इनके पालन में आनाकानी करते थे, लेकिन जब उनकी समझ में आ गया कि ये उनके और पूरे गांव की भलाई के लिए है, तब से दिशा-निर्देशों का पालन उन्होंने अपनी आदत बना लिया।

गांव में 256 घर और दूसरे संस्थान हैं, इन सभी द्वारा ग्राम पंचायत को दिया जाने वाला कुल टैक्स 95,706 रुपये बनता है। यह रकम बिना नागा ग्राम पंचायत को अदा कर दी जाती है। जिस तरह विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए लोगों ने पूरी जिम्मेदारी ली, उसे देखते हुए हो सकता है कि सरकारी संस्थाएं और बड़े औद्योगिक घराने भी ग्राम पंचायत को सहयोग देने के लिए आगे आएं।

• घरों से 100 प्रतिशत गृहकर इकट्ठा होता है।
• 100 प्रतिशत साक्षरता है।
• 100 प्रतिशत परिवार छोटी बचत अपनाते हैं।
• बिजली बिल अदायगी 100 प्रतिशत है।
• 100 प्रतिशत बच्चे स्कूल जाते हैं।
• समूचे गांव के लिए पेयजल है।
 

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