गौरीनाथ

गौरीनाथ
एक नदी से प्यार करते हुए
Posted on 24 Oct, 2014 03:32 PM
सारी फसलें भादो के उस धान जैसी हैं
सिहर जाती हैं जो पानी के स्पर्श मात्र से

लेकिन अगहनी की दूध भरे शीशों की गमक
जिसकी उम्मीद नहीं की थी
फैल जाती है फेफड़ों में

दुलराता हूं इस गमक को
प्रेम में पुचकारता हूं
संध्या की गमकती हवा गाता हूं
जब दाह सन्नाटे से करता हूं गुफ्तगू

एक अगहनी सुबह
जहां से निकलती हैं जिंदगी की तमाम राहें
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