मरणासन्न स्थिति में पहुँच चुकी इस नदी को नया जीवन देना आसान नहीं था लेकिन कनालसी गाँव के लोगों ने इस नदी को बचाने के लिये कोई कसर नहीं छोड़ी और उनका प्रयास रंग लाया। आज इस नदी में इतना प्रवाह है और इसका पानी इतना कंचन है कि अपने आगोश में समेट लेने वाली यमुना मैया भी इसे देखकर लजा जाये। नदी को नवजीवन मिलने से गाँव में भी सुख-समृद्धि आ गई है। गाँव में पक्की सड़कें, पक्के मकान हैं। मुख्य सड़क से कटी उप-सड़क गाँव में जाती है।
हरियाणा के यमुनानगर से लगभग 17 किलोमीटर दूर कनालसी गाँव से होकर एक नदी बहती है-थपाना। कनालसी से लगभग 10 किलोमीटर दूर एक नौले-धारे से यह नदी निकली है। इस गाँव में आकर थपाना नदी में सोम्ब नदी (बैराज से पानी छोड़े जाने पर सोम्ब नदी में पानी आता है) मिल जाती है। आगे जाकर यह यमुना में समा जाती है। थपाना को देखकर कोई यकीन नहीं कर सकेगा कि 6-7 साल पहले यह नदी लगभग मर चुकी थी।फिलवक्त थपाना की धारा अविरल बह रही है और पानी इतना साफ है कि अंजुरी में भरकर उससे गला तर किया जा सकता है। प्रवासी पक्षी नदियों की धारा से अटखेलियाँ करते हैं। देसी परिन्दे नदी के कछार में अन्ताक्षरी खेला करते हैं। शाम का सूरज जब पश्चिम में ढलने लगता है तो इस नदी का किनारा गाँव के लोगों की सैरगाह बन जाता है।
मरणासन्न स्थिति में पहुँच चुकी इस नदी को नया जीवन देना आसान नहीं था लेकिन कनालसी गाँव के लोगों ने इस नदी को बचाने के लिये कोई कसर नहीं छोड़ी और उनका प्रयास रंग लाया। आज इस नदी में इतना प्रवाह है और इसका पानी इतना कंचन है कि अपने आगोश में समेट लेने वाली यमुना मैया भी इसे देखकर लजा जाये।
![थपाना नदी](https://c5.staticflickr.com/9/8560/30130159556_7623802fbf_z.jpg)
थपाना नदी को नवजीवन देने की पूरी कहानी के नायक कनालसी गाँव के निवासी हैं जिन्होंने भगीरथ प्रयास कर मरती नदी को कालजेय बना दिया। गाँव के स्थानीय निवासी और स्कूल मास्टर अनिल शर्मा कहते हैं, ‘हम महसूस कर रहे थे कि थपाना नदी में जो जैवविविधता थी, वो खत्म हो रही है। इसका असर गाँव पर देखने को मिल रहा था। गाँव की सुख-समृद्धि कहीं खो गई थी। थपाना नदी का अस्तित्व तो लगभग खत्म हो चुका था। नदियों में मछलियाँ नहीं थीं। 32 प्रकार के प्रवासी पक्षी इस नदी में आया करते थे लेकिन गन्दगी के चलते इन्होंने भी थपाना से तौबा कर ली थी।’
यह वर्ष 2009 की बात होगी। स्थानीय लोगों ने यमुना जिये अभियान से जुड़े मनोज मिश्र को अपने गाँव बुलाया और नदी में नई जान फूँकने के लिये सुझाव माँगे। मनोज मिश्र के सुझाव पर ग्रामीणों ने यमुना सेवा समिति का गठन किया। समिति के अध्यक्ष किरणपाल राणा बताते हैं, ‘मिश्र जी के सहयोग से ही हमने थपाना नदी के बारे में दुबारा पता लगाया और इसे बचाने के लिये एक मुहिम शुरू की।’ इस महती अभियान में टेम्स रीवर रेस्टोरेशन ट्रस्ट की भी मदद ली गई जिसने टेम्स नदी का जीर्णोंद्धार किया था। टेम्स नदी के तर्ज पर ही थपाना नदी पर काम शुरू हुआ। मनोज मिश्र ने भी 4 वर्षों तक ग्रामीणों के साथ मिलकर काम किया।
![थपाना नदी के निकट विदेशों से आये प्रतिनिधि](https://c3.staticflickr.com/9/8554/30050660162_e54627f9e2_z.jpg)
जाँच में अगर पाया जाता है कि अनाज में किसी तरह का रसायन नहीं है, तभी ऊँची कीमत मिलती है। संजय कम्बौच ने कहा, ‘चूँकि लम्बे समय से हम खेतों में रासायनिक खाद का इस्तेमाल कर रहे थे इसलिये इसका असर अब भी बना हुआ है लेकिन अगले कुछ सालों में मिट्टी से रसायन का प्रभाव खत्म हो जाएगा, ऐसी उम्मीद है।’
खेती में बदलाव करने के साथ ही लोगों के नजरिए में भी बदलाव लाने की कोशिश की गई। खुले में शौच पर रोक लगाई गई और नदी के बहाव क्षेत्र को साफ-सुथरा बनाया गया। इसके साथ ही नदी के कैचमेंट एरिया में भारी संख्या में वृक्षारोपण किया गया। अनिल शर्मा कहते हैं, ‘लोगों को जागरूक करना चुनौतिपूर्ण काम था। हमने घर-घर जाकर लोगों को जागरूक किया। उनसे पानी की बर्बादी नहीं करने की अपील की। स्कूलों में भी जागरुकता कार्यक्रम किये और बच्चों को प्लास्टिक के इस्तेमाल के नुकसान के बारे में बताया गया।’ ऐसे ही प्रयास नदी के किनारों पर बसे दूसरे गाँवों में भी हुए। सम्प्रति कनालसी गाँव के 97 प्रतिशत घरों में शौचालय है।
![थपाना नदी का पानी महाशीर मछली का प्रवास हो गया है](https://c7.staticflickr.com/9/8533/30130182206_40e688b075_z.jpg)
ग्रामीणों के लिये अब थपाना केवल नदी नहीं रह गई है। यहाँ के लोग इसे धरोहर मानते हैं। वे हर साल थपाना दिवस मनाते हैं।
पूरे अभियान में खास बात यह है कि सरकार व प्रशासन की तरफ से किसी भी प्रकार की मदद नहीं दी गई। सब कुछ स्थानीय लोगों और संस्थाओं ने किया। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार अगर इस काम में शामिल हो जाती तब तो फाइलों में ही थपाना बहती। अब गाँव के लोग पूरी तरह जागरूक हो गए हैं और नदी के प्रति वे अपना दायित्व समझने लगे हैं। थपाना नदी के मुहाने पर डेढ़-डेढ़ दो-दो किलोग्राम की महाशीर मछलियाँ पानी में तैरती रहती हैं लेकिन कोई उन्हें नहीं पकड़ता।
![थपाना नदी को बचाने की कहानी सुनाते स्थानीय ग्रामीण](https://c7.staticflickr.com/9/8614/30130171286_6c049e2297_z.jpg)
Path Alias
/articles/eka-maratai-nadai-kae-amara-haonae-kai-kahaanai
Post By: RuralWater