धुँधली नदी में

आज मैं भी नहीं अकेला हूँ
शाम है, दर्द है, उदासी है

एक खामोश साँझ-तारा है
दूर छूटा हुआ किनारा है
इन सबों से बड़ा सहारा है
एक धुँधली अथाह नदिया है
और बहकी हुई दिशा-सी है

नाव को मुक्त छोड़ देने में
और पतवार तोड़ देने में
एक अज्ञात मोड़ लेने में
क्या अजब-सी, निराश-सी,
सुखप्रद एक आधारहीनता-सी है

प्यार की बात ही नहीं साथी
हर लहर साथ-साथ ले आती
प्यास ऐसी कि बुझ नहीं पाती
और यह जिदंगी किसी सुंदर चित्र
में रंगलिखी सुरा-सी है

शाम है, दर्द है, उदासी है
आज मैं भी नहीं अकेला हूँ।

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