यह एशिया का सबसे बड़ा मानव निर्मित बाँध है और इसमें मानवीय श्रम के अलावा किसी तरह की मशीनों का इस्तेमाल नहीं किया गया है। यह भारत की आजादी के बाद के शुरुआती चार बड़े बाँधों में शामिल है। मार्च 1954 में इसकी आधारशिला हमारे पहले प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरू ने रखी थी और महज छह सालों में इसे बनाकर 1960 में पूरा कर लिया गया। मुख्य बाँध के निर्माण के बाद इसकी अन्य संरचनाएँ भी 1970 तक बनकर पूरी हुई। सुनने में आपको अजीब लग सकता है और शायद पहली बार आप सुन रहे हों, लेकिन यह सच है और इस परियोजना पर काम भी शुरू हो चुका है। जी हाँ, अब धरती के नीचे से सुरंगनुमा नहरें निकाली जाएँगी और इनके ऊपर मिट्टी डालकर किसान अपनी जमीन में खेती भी कर सकेंगे। अब तक नहरें खुली होती हैं और किसानों से इसके लिये जमीन का अधिग्रहण करना पड़ता है।
मध्य प्रदेश के इन्दौर से करीब 250 किमी दूर मन्दसौर जिले के भानपुरा के पास ऐसी एक नहर ने आकार लेना भी शुरू कर दिया है। भारत की आजादी के बाद शुरुआती चार बड़े बाँधों में शुमार और चम्बल नदी पर बना एशिया का सबसे बड़ा मानव निर्मित (जिसमें किसी मशीन का इस्तेमाल नहीं किया) गाँधीसागर बाँध के पानी को इसके जरिए रेवा नदी तक ले जाया जाएगा।
रेवा नदी से निकली नहरों के जरिए इलाके की करीब 80 हजार एकड़ खेती सिंचित हो सकेगी वहीं रास्ते में पड़ने वाले 36 गाँवों को इससे पीने का पानी भी मिल सकेगा। इसके लिये किसानों से उनकी जमीन का कुछ हिस्सा दो सालों के लिये लीज पर लेकर निर्माण किया जा रहा है। दो साल बाद मिट्टी भरकर उनकी जमीन फिर उन्हें लौटा दी जाएगी।
करीब 113 करोड़ रुपए की लागत से तैयार होने वाली इस परियोजना में निर्माण कम्पनी यहाँ नहर बनाने के लिये जमीनी सतह से करीब 100 फीट नीचे खुदाई कर रही है। इसमें सीमेंट के ब्लाक लगाकर पानी बहाया जाएगा, जबकि इसके ऊपर मिट्टी भरकर पूर्ववत खेती होती रहेगी।
भानपुरा के पास बाँध के जल भराव क्षेत्र के कंवला गाँव में सीमेंट ब्लाक से दोमुंही सुरंग भी बनकर तैयार हो चुकी है। यहाँ से बाँध के पानी को पहले रेवा नदी में ले जाया जाएगा। कंवला से ही दो चौकोर पाइपलाइन के जरिए पानी भूमिगत नहरों से बहेगा। यह पानी यहाँ से दूर राजस्थान के भवानी मंडी के पास बसे मध्य प्रदेश के गाँव भैंसोदा तक ले जाया जाएगा।
राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा पर करीब 67 किमी लम्बा और 26 किमी चौड़ाई में यह विशालकाय बाँध स्थित है। इसकी ऊँचाई 62.17 मीटर, भण्डारण क्षमता 7322 बिलियन क्यूबिक मीटर तथा जलग्रहण क्षेत्र 22584 किमी है। इसके निर्माण के 50 साल बीत जाने के बाद भी अब तक आसपास के लोग इसे कभी-कभार देखने पहुँचते हैं। जबकि इसके जरिए बड़ी तादाद में राजस्थान के उदयपुर व चित्तौड़ और मध्य प्रदेश के उज्जैन-इन्दौर आने वाले पर्यटकों को यहाँ बुलाया जा सकता है। यहाँ तक कि इसके विकसित होने से विदेशी पर्यटकों को भी यह जगह आकर्षित कर सकती है।
यह एशिया का सबसे बड़ा मानव निर्मित बाँध है और इसमें मानवीय श्रम के अलावा किसी तरह की मशीनों का इस्तेमाल नहीं किया गया है। यह भारत की आजादी के बाद के शुरुआती चार बड़े बाँधों में शामिल है। मार्च 1954 में इसकी आधारशिला हमारे पहले प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरू ने रखी थी और महज छह सालों में इसे बनाकर 1960 में पूरा कर लिया गया। मुख्य बाँध के निर्माण के बाद इसकी अन्य संरचनाएँ भी 1970 तक बनकर पूरी हुई।
जलाशय क्षेत्र की दृष्टि से यह हीराकुण्ड बाँध के बाद भारत का दूसरा बड़ा बाँध है। इससे हर साल 427.000 हेक्टेयर जमीन में सिंचाई और करीब 564 जीडब्ल्यूएच ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है। यहाँ हर साल बड़ी तादाद में मेहमान देशी और विदेशी प्रवासी पंछी पहुँचते हैं।
स्थानीय लोग बताते हैं कि बाँध के निर्माण के समय विस्थापन से मध्य प्रदेश को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था। तब अविभाजित मन्दसौर जिले के 228 गाँव डूब के कारण खाली कराए थे। विभाजन के बाद 169 गाँव नीमच व 59 गाँव मन्दसौर जिले के प्रभावित हुए।
नीमच के रामपुरा में बाँध से कई लोग विस्थापित हुए, लेकिन कई इलाकों का भूजल स्तर भी बढ़ा। लेकिन इसका सबसे ज्यादा फायदा राजस्थान को हुआ है। वहाँ बाँध के इस पानी से कई शहरों में पेयजल आपूर्ति हो रही है। रावत भाटा का परमाणु केन्द्र बाँध के पानी पर निर्भर है। मध्य प्रदेश में हाल ही में जल संसाधन विभाग ने 200 करोड़ की सिंचाई योजना पर काम शुरू किया है। इससे तीन नगर परिषद को पेयजल मिलने वाला है।
अब मध्य प्रदेश में केरल की तरह पानी को पर्यटन से जोड़ने पर जोर दिया जा रहा है। प्रदेश सरकार की योजना है कि खंडवा में हनुमंतिया में पर्यटन गतिविधियाँ विकसित करने के बाद अब मन्दसौर जिले में चम्बल नदी पर स्थित गाँधीसागर बाँध भी अब अपनी अथाह जलराशि के साथ पर्यटकों को लुभाएगा। रात में यहाँ पर्यटक रुककर इसके दिलकश नजारों का लुत्फ उठा सकेंगे। यहाँ बोट हाउस और रिसोर्ट के साथ बोटिंग की भी सुविधा होगी।
गाँधीसागर क्षेत्र को पर्यटन क्षेत्र से जुड़ने और इसे विश्वस्तरीय पर्यटन केन्द्र बनाने के लिये कवायद शुरू हो गई है। पर्यटन निगम द्वारा मन्दसौर और गाँधीसागर दोनों को टूरिस्ट सर्किट में शामिल किया गया है। गाँधीसागर बाँध पर स्थित विश्राम गृह को पर्यटन गतिविधियों के विकास तथा पर्यटकों की सुविधा की दृष्टि से रिसोर्ट के रूप में विकसित करने के लिये एक कन्सेप्ट प्लान तैयार किया गया है। मध्य प्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम लिमिटेड द्वारा तैयार किये गए इस कन्सेप्ट प्लान के प्रथम स्तरीय प्राक्कलन के कामों को पूरा करने के लिये करीब 15 करोड़ रुपए का व्यय होना अनुमानित है।
पर्यटन विकास निगम ने गाँधीसागर बाँध के विश्राम गृह और इसके ठीक सामने स्थित मालाश्री टापू के विकास का भी पूरा खाका तैयार कर लिया है। पर्यटन निगम ने गाँधीसागर के अलावा भानपुरा पुरातत्व संग्रहालय, हिंगलाजगढ़ किला, सूरजकुंड, चर्तुभुजनाथ नाला एवं धर्मराजेश्वर के पुरातन मन्दिर को भी पर्यटन के लिहाज से शामिल किया है। पर्यटन निगम फिलहाल गाँधीसागर के विश्राम गृह में बनाए जाने वाले रिसोर्ट में 20 कॉटेजेस, रिसोर्ट भवन, खुला एम्फिथियेटर, सुविधा केन्द्र, प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र स्पॉ सेंटर, नेचर वॉक सफारी, ट्री-हाउस, व्यू पाईंट्स, बोट क्लब एवं जल-खेल गतिविधियाँ, एडवेंचर जोन के अलावा स्टॉफ क्वाटर्स का निर्माण, एप्रोच रोड निर्माण भी प्रस्तावित है। रेस्टोरेंट, लाइब्रेरी, जिम व गेम लुभाएँगे रिसोर्ट के मुख्य भवन में रिसेप्शन कक्ष, प्रशासनिक ब्लॉक, कांफ्रेंस हॉल, रेस्टोरेंट, जिम, इन्डोर गेम्स हॉल, लाइब्रेरी के अलावा इंटरप्रटेशन हॉल भी रहेगा। गाँधीसागर बाँध क्षेत्र की पर्यटन गतिविधियों के विकास तथा गाँधीसागर वन अभयारण्य क्षेत्र में नेचर वॉक सफारी के लिये कुछ निजी व्यवसायिक समूहों ने रुचि दिखाई है। ये समूह यहाँ 30 से 35 करोड़ रुपए का निवेश करने की इच्छा रखते हैं। कुछ समूहों के अधिकारियों का दल गाँधीसागर बाँध एवं वन अभयारण्य क्षेत्र का फील्ड विजिट भी कर चुका है। निजी समूह प्रदेश सरकार के पर्यटन विकास निगम के साथ मिलकर इस क्षेत्र में पर्यटन विकास पर निवेश करेंगे।
इसमें करीब 7.7 किमी नहर जमीन के भीतर करीब 25 मीटर नीचे से और 1.2 किमी खुली नहर बनाई जा रही है। किसानों से करीब 4.3 किमी जमीन लीज पर ली है और उन्हें मिट्टी भरकर लौटा देंगे। इससे बड़े क्षेत्र में सिंचाई हो सकेगी। दो सालों में यह बनकर तैयार हो सकेगी... बनवारीलाल सैनी, डिप्टी प्रोजेक्ट मैनेजर, सदभाव इंजीनियरिंग कम्पनी, अहमदाबाद
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Post By: RuralWater