दूर देश में नदी, भाग -1

यहां से सबने लिखा है
चिट्ठियों में
जहाँ वे ठहरे हैं, उसके सामने नदी है।
पेड़ हैं। हरियाली है।
सबने लिखा है।
मैंने भी लिखा है- घर पर, दोस्तों को-
‘यहाँ नदी है’

लिखकर खुश हुआ हूँ
कि नदी है।
देखों अगर पास से बहती है मंद-मंद।
देखो अगर ऊपर से
ठहरा हुआ पानी है।
शांत नदी
हलचल मचाती है मन में।
सूर्यास्त जाने किस क्षितिज पर होता है।
रात को अँधेरे में
लेटी हुई नदी है।

नदी है।
उड़ता मन
पन्नों पर
जीवन के अपने-जिनके रंग
स्याह औ’ सफेद औ’ सलेटी हैं।

स्वप्न और दुःस्वप्न।
सुख और दुःख।
सब पकड़ में नहीं आते।

दोनों किनारों बीच
लेटी हुई नदी है।
जानती अपनी जगह।
अपनी गति बहने की।
अपनी गति सहने की।

हम भी यदि जानते!

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