पशु पक्षियों को जल उपलब्ध कराने वाले पहाड़ी नदियाँ अपने मूल्य स्रोत पर ही सूख रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने समय रहते ध्यान नहीं दिया जल के लिये जो हालात बुन्देलखण्ड में है वही रात हालात पूरे प्रदेश में हो जाएंगे।
राहुल गांधी के दौरों, केंद्र सरकार के पैकेज और उ.प्र. सरकार की घोषणाओं और कार्यों के बावजूद बुंदेलखंड के क्षेत्र में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। जीवन की प्राथमिक आवश्यकता, जल की स्थिति इतनी भयावह है कि रोंगटे खड़े हो जाते हैं। भूख से मौत को गले लगाते बुन्देलखण्ड के किसानों, मजदूरों के जीवन से हताशा निराशा और कुण्ठा को निकालने के लिऐ विशेष पहल करने की बात करने वाली सूबे की मुख्यमंत्री मायावती ने यहां की बदतर होती हालत को स्वीकार करते हुये बुन्देलखण्ड पैकेज के कार्यों को मानसून के पहले पूरा कराने का निर्णय करके मानवीय संवेदना का परिचय भले ही दिया है लेकिन राहत का झुनझुना के स्थान पर व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन के बिना यहां के बांशिदों के लिऐ आने वाले दिन अच्छे नहीं दिख रहे हैं क्योंकि जल संकट के चलते लगातार हालात बद से बदतर हो रहे है। रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून कहकर युगदृष्टा कवि रहीम ने भविष्य में पानी की उत्पन्न होने वाली कठिनाईयों के प्रति भले ही चेतावनी दे दी लेकिन स्वार्थ और हवस के चलते गंगा, यमुना, गोमती और बेतवा की भूमि उत्तर प्रदेश भीषण जल संकट के मुहाने पर खड़ा है। गंगा और यमुना भीषण प्रदूषण के चलते गंदे नाले के रूप में तब्दील होने को विवश है।
अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के संस्थापक गोपाल भाई कहते है असीमित संसाधनों पर सीमित लोगों ने अवैध, अनैतिक अधिकार जमा रखा है। याद रहे! सच यह है कि संसाधन असीमित हैं तथा आवश्यकताएं सीमित हैं। इस सच के बाद भी लोग भूख, अभाव, शोक, संताप से दम तोड़ रहे हैं। सत्ता पुत्र स्व-प्रसाद के कारण इस स्थिति को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। ब्रिटिश काल की अपसंस्कृति का दास जिलाधिकारी नाम का अधिकार सम्पन्न काल मानव? दानव? सत्ताधीशों का अन्तिम सत्य बन बैठा है? लोकमत मारा-मारा भटक रहा है। यदि जिलाधिकारी ने कह दिया, लिख दिया कि भूख से कोई नहीं मर रहा, कहीं कोई अकाल, दुकाल, सूखा नहीं है, तो फिर मुख्यमंत्री का यह अन्तिम सत्य होता है? सूबे का राजा फिर वही बोलता है जो मंत्र उसे जनता के सेवक किन्तु जिले के शेर खाल ओढ़े सियार मालिक से मिला है। यह कैसा दुर्भाग्य है? जिनके मत के सहारे सत्ता पुत्रों को राज सुख भोगने का अवसर मिलता है, उनके ही जीवन सच को मदमस्त होकर उनके द्वारा ठुकरया जाता है। दुर्योधन, रावण, कंस जैसे सत्ताधीशों ने लोकहितों की अवहेलना की थी, उस काल के दुष्परिणाम कौन नहीं जानता? क्या आज वैसा ही दृश्य नहीं है? बुन्देलखण्ड में पानी की कमी से उत्पन्न हालात के कारण कृषि तथा पशुपालन कार्यो में संकट किसान झेल रहा है। खेत सूखे पड़े हैं। गरीबों का गाँवों से पलायन हो चुका है तालाबों में पानी नहीं है। ट्रैक्टरों के मालिक किसानों की जमीनें बिक रही हैं, नीलाम हो रही हैं, लोग आत्महत्याएं कर रहे हैं, प्रदेश के 40 जनपदों के 88 ब्लॉक भूमिगत जल स्रोत नीचे खिसक जाने के कारण अर्धसंकट कालीन तथा 13 ब्लाक संकट कालीन स्थिति में पहुंच गए हैं। 37 ब्लॉक अत्याधिक जलस्रोत के दोहन के कारण शोषण की हालत में है। बुंदेलखण्ड के ललितपुर जनपद के चार तथा तालबेहट ब्लॉक अर्ध संकटकालीन स्थिति में है।
भूजल वैज्ञानिकों का कहना है कि भूमिगत जल स्तर में कमी आने के कारण है। प्रतिवर्ष बरसात में कमी आना, वर्षा जल का ठहराव नहीं होना, सिंचाई कार्यों के लिए अंधाधुंध कुंओं तथा बोरिंग की खुदाई जिले के तीन चौथाई चट्टानी भाग में संग्रहित जल का खनन कार्यों के कारण खाली हो जाना, अनियंत्रित जल दोहन है। इन भयावह होते हालात पर प्रदेश के पूर्व भूगर्भ जल निदेशक एम.एम.अन्सारी से जब इस संवादताता ने बात की तो उन्होंने अपनी विवशता को स्पष्ट करते हुए कहा कि 10-12 वर्षों में पानी के लिए छीना-झपटी से लेकर गृह युद्ध तक के हालात को कोई रोक नहीं पाएगा। ब्यूरोक्रेट और उद्योगपति जनहित के बारे में नहीं सोचते है। प्रदेश में 20 एकड़ भूमि में आवासीय कालोनी बनने पर एक एकड़ भूमि पर तालाब बनना अनिवार्य है लेकिन नगर विकास तथा आवास विकास विभाग अनुपालन नहीं करा रहा है। भूमिगत जल संग्रहण के लिए केन्द्र सरकार से मिलने वाला 25 प्रतिशत सीधे जिलाधिकारी खर्च करते हैं। उस राशि को जल संग्रहण की जगह खर्च किया जाना जरूरी है।
जल स्तर के अत्याधिक दोहन और प्राकृतिक वर्षों में आ रही निरन्तर गिरावट ने स्थिति और बिगाड़ दी है मई और जून माह में बुन्देलखण्ड के 50 प्रतिशत हैण्डपम्प जलस्तर नीचे चले जाने से बेकार हो जाते हैं। भूगर्भ जल के गिरते स्तर की रोकने के लिऐ नगर विकास, आवास विकास, जल निगम, ग्राम विकास, वन विभाग, भूमि विकास विभाग भी तैयार नहीं है। भूगर्भ जल विभाग को बीते वर्ष 175 लाख रूपए पीजो मीटर स्थापना के लिए मिले हैं। बुन्देलखण्ड के पठारी जनपद बांदा, चित्रकूट, महोबा और ललितपुर के हालात बदतर होते जा रहे हैं। बांदा तथा चित्रकूट जनपद में भूगर्भ जल स्तर बहुत तेजी से नीचे खिसक रहा है। कई विकास खण्डों को 'डार्क एरिया घोषित कर दिया गया है। केन्द्रीय भूगर्भ जल सर्वेक्षण आयोग की रिपोर्ट को यदि सच मानें तो बुन्देलखण्ड में खेती के लिए खतरे की घंटी बज गयी है। 1950-60 के दशक में इस क्षेत्र में जीवांश की मात्रा .52 थी जो आज .20 रह गयी है। जीवांश की कमी से उत्पादन कम हो रहा है। यहां के किसान फास्फोरस तत्व के लिए डी.ए.पी. खाद का छिड़काव करते हैं जिससे सल्फर की मात्रा घटती जा रही है। मई-जून में तापमान 53 डिग्री तक हो जाने से खेतों में जीवांश खत्म हो जाता है। वनों की कटान के कारण प्राकृतिक संतुलन बिगड़ गया है। वर्षों के लगातार धोखा देने से झांसी मंडल के ललितपुर और झांसी जनपद लगातार सूखा के शिकार हैं।
केन्द्रीय भूर्गभ जल सर्वेक्षण आयोग द्वारा किये गये सर्वे से स्पष्ट हुआ है कि विकास खण्ड मऊ, मानिकपुर, कर्वी, पहाड़ी, रामनगर 'डार्क एरिया में आते हैं। नरैनी जसपुरा 'ग्रे एरिया (चेतावनी स्तर) पर हैं। इन क्षेत्रों में यदि जल के रिचार्जिंग की व्यवस्था नहीं हुई तो धीरे-धीरे यहां भी जल स्तर मानक से नीचे खिसक जाएगा। बांदा मंडल के महुआ, कमासिन बबेरू, इलाके तथा झांसी मंडल के चार, महरौनी, तालबेहट, बबीना, मऊरानीपुर, बड़ागांव को 'व्हाइट माना गया है। ललितपुर जनपद के मडावरा तथा जखोरा ब्लाक के अनेक ग्रामों का भी भूमिगत जल स्तर मानक से नीचे है। शासन द्वारा जल स्तर बनाये रखने के लिए पिछले कुछ वर्षों में चेकडैमों का निर्माण कराया गया था, लेकिन यर्थाथ और सरकारी आंकड़ों में भारी अन्तर है। फर्जी चेक डैम निर्माण दिखाकर करोड़ों रुपयों की बन्दरबांट की गयी है। गैर सरकारी स्वंयसेवी संस्था जन कल्याण समिति द्वारा पठारी क्षेत्रों में जल स्तर के संबंध में जुटाये गये आंकड़े भयावह तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। जल स्तर के अत्याधिक दोहन और प्राकृतिक वर्षों में आ रही निरन्तर गिरावट ने स्थिति और बिगाड़ दी है मई और जून माह में बुन्देलखण्ड के 50 प्रतिशत हैण्डपम्प जलस्तर नीचे चले जाने से बेकार हो जाते हैं। भूगर्भ जल सर्वेक्षण विभाग सरकार को बुन्देलखण्ड में आगामी वर्षो में जल की कमी की भयावहता से अवगत करा चुका है।
जल का स्तर डार्क एरिया में चले जाने पर बोरिंग आदि का कार्य संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आ जाएगा, क्योंकि जब तक भूमिगत जल स्तर सामान्य नहीं होता, तब तक लघु सिंचाई योजना के अन्तर्गत बोरिंग (चाहे सरकारी हो या निजी) नहीं की जा सकती है। झांसी के स्थानीय विधायक प्रदीप जैन बताते हैं कि झांसी, ललितपुर जनपद पिछले पांच वर्षों से लगातार सूखे की मार झेल रहा है। जनपद के किसानों को भूमिगत जल स्रोतों को रिचार्ज करने का तकनीकी ज्ञान दिलाया जाना सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए अन्यथा बीहड़ और डाकुओं के लिए बदनाम बुन्देलखण्ड के किसानों को पेट की आग के लिए बीहड़ों का रास्ता तय करने को मजबूर होना पड़ेगा। बुन्देलखण्ड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष तथा फिल्म अभिनेता राजा बुन्देला कहते है कि भवंरा तोरा पानी गजब कर जाये, गगरी न फूटे खसम मर जाये यह शब्दो मे पिरोये बुन्देलखण्ड के उस सच की अभिव्यक्ति है कि पानी कितना अनमोल है।
ग्रामीण अर्थ व्यवस्था की धुरी जल स्रोतों के घटने कारण पूरी तरह चरमरा जाने की चिन्ता से परेशान वैज्ञानिक भूमिगत जल भण्डार में इजाफा करने के लिए तुरन्त उपाय अपनाने की भले ही चेतावनी दें लेकिन बुन्देलखण्ड में सिंचाई के परम्परागत साधन चन्देलकालीन तालाब पिछले दो दशकों में अतिक्रमण के चलते समाप्त होने की दशा में पहुंच गये हैं। पूर्ववर्ती सरकार के दौर में भूगर्भ जल स्तर बड़ाने के लिए बुन्देलखण्ड में चेकडैम निर्माण में व्यापक धांधली का नंगा नाच हुआ है पूर्व में बने चेकडैम को नया चेकडैम बताकर पूरी की पूरी राशि हड़प ली गई है। जल संकट संबंधी आंकड़े कितने भी भयावह क्यों न हो, अब हमें चौंकाते नहीं है, क्यों कि हम अपने समय के साथ जीते हैं तथा भविष्य की समस्या हमने आने वाली पीढ़ियों के लिए रख छोड़ी है। देश के बड़े भाग में गर्मी की शुरुआत के साथ ही भीषण सूखे की पदचाप सुनाई देने लगती हैं। कभी वर्षों होने में थोड़ी देर हुई नहीं कि देश में सूखा पड़ने का हाहाकर मच जाता है। विगत वर्षों से पड़ रहे सूखे से देश के सामने गंभीर स्थिति खड़ी कर दी है।
अगर लोग पानी के प्रति सचेत नहीं हुए तो स्थिति और भी हो सकती है। अग्निवेद समग्र विकास समिति के डॉ.- आशीष पटैरिया कहते है। प्रदेश में बढ़ती जनसंख्या के दबाव के कारण वनों को अंधाधुंध काटा जा रहा है जंगल हरियाली के बजाय कंक्रीट के जंगलों में तब्दील होने जा रहा है। गांवों और शहरों में पुराने तालाब, बावड़ियों को भर दिया गया है जो बरसात में पानी को एकत्रित कर शेष महीनों में भू-जल का स्तर बनाये रखते थे। फिर पानी का उपयोग भी गलत तरीकों से किया जा रहा है। लोग ब्रश करते हैं शेविंग बनाते वक्त कपड़े धोते समय नल को चालू रखते है जिससे पानी व्यर्थ फिकता है। यदि हम इन सब छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देंगे तो पानी की काफी बचत कर सकते है। आज कुओं, तालाबों के सूखने और हैडपंपों का पानी प्रदूषित होने के कारण गांवो तक में बोतल बंद पानी पहुंच गया है। राजधानी लखनऊ में तालाब भूमाफिया के शिकार होकर समाप्त हो रहे हैं। लखनऊ नगर निगम मुख्यालय पर भूगर्भ जल रीर्चज सिस्टम के पाईप जगह-जगह से टूट गये है। राजधानी में लगातार गिरते भूगर्भ जल भंडार आने वाले दिनों की चेतावनी दे रहे है।
भूगर्भ जल के घटते स्तर को ध्यान में रखकर प्रदेश की मायावती सरकार सार्थक पहल करते हुऐ बूँद-बूँद पानी का हिसाब लेने की तैयारी कर दी। जमीनी पानी के अंधाधुंध दोहन को रोकने के लिए प्रदेश में भू-जल प्राधिकरण बन गया है। इस कार्य हेतु भूगर्भ जल विभाग ने एक कार्य योजना बनाई है इस योजना के तहत सरकार उत्तर प्रदेश भू-जल संरक्षण सुरक्षा एवं विकास (प्रबंधन, नियंत्रण एवं नियमन) अधिनियम के रूप में कानून बनाने जा रही है। नए मसविदे को राज्य भू-गर्भ जल परिषद ने अपनी मंजूरी दे दी है। विभाग ने यह योजना केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय के 'मॉडल बी के आधार पर तैयार की है। जिसकी तर्ज पर गुजरात, गोवा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पं- बंगाल में कानून बन चुके है। प्रस्तावित अधिनियम का उद्देश्य तेजी से घटते भू-जल की सुरक्षा और उसका प्रबंधन करना है। भूगर्भ जल आयोग के बने एक साल से अधिक समय बीत गया है और आयोग के अध्यक्ष पद पर पूर्व नौकरशाह की तैनाती भी की जा चुकी है लेकिन अभी तक आयोग ने अपनी धमक उपस्थित नहीं की है। जिससे लगे कि प्रदेश में जल के अत्याधिक दोहन को रोकने के लिये पहल की जा रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कुछ वर्षों में समूचा पश्चिमी उत्तर प्रदेश 'डार्क एरिया बन जाएगा। इस क्षेत्र में खेती-किसानी में पानी की खपत अधिक है। कुछ वर्षों में पानी का संकट पैदा होने का अंदेशा है। ऐसे में कानून बनाना जरूरी है। विभाग ने साफ किया है कि कुछ प्रतिबंधों के साथ नया ट्यूबवेल लगाया जा सकता है। अगर वह क्षेत्र 'डार्क एरिया घोषित होता है तो कुछ दिनों तक वहां नए ट्यूबवेल नहीं लगाए जा सकते। जल स्तर बढ़ने पर पाबंदी हटा ली जाएगी। इस अधिनियम में यह भी व्यवस्था है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के उन इलाकों में टयूबवेल लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा जहाँ जल स्तर 5 मीटर से ऊपर है। राजधानी लखनऊ के एक-एक वार्ड में लगे 200 हैण्ड पम्पों में आधे से अधिक हैण्डपम्प जल स्तर नीचे सरक जाने के कारण बेकार साबित हो रहे है। बुन्देलखण्ड में नदी और तालाब को समाप्त करने के लिये जिस तरह के षड़यंत्र रचे जा रहे है उनपर तुरन्त ध्यान देने की आवश्यकता है। एक बूंद पानी के लिये लड़ते झगड़ते लोग सड़कों पर उतरने को मजबूर हो गये हैं। पशु पक्षियों को जल उपलब्ध कराने वाले पहाड़ी नदियाँ अपने मूल्य स्रोत पर ही सूख रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने समय रहते ध्यान नहीं दिया जल के लिये जो हालात बुन्देलखण्ड में है वही रात हालात पूरे प्रदेश में हो जाएंगे।
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