भारत के पर्वतीय जल स्रोतों (स्प्रिंग्स) की स्थिति और इनके सतत प्रबंधन हेतु जल शक्ति मंत्रालय के प्रयास (भाग 2)

शैलेन्द्र पटेल, बावधन नौले-धारे के पास, पुणे (फोटो स्रोत: तुषार सरोदे)
शैलेन्द्र पटेल, बावधन नौले-धारे के पास, पुणे (फोटो स्रोत: तुषार सरोदे)

(पिछले से आगे)

अध्ययन से यह भी ज्ञात हुआ है कि भूजल विज्ञान दृष्टिकोण गतिमान है तथा इस क्षेत्र में कार्यरत लगभग आधे संगठन स्प्रिंगशेड या पुनर्भरण क्षेत्र को चित्रित करने के लिए इसका अनुसरण कर रहे हैं। भूजल वैज्ञानिक दृष्टिकोण में स्प्रिंगशेड को चित्रित करने के लिए भूवैज्ञानिक और जलविज्ञान संबंधी अन्वेषण सम्मिलित हैं और इसके लिए स्थानीय भूविज्ञान के ज्ञान की आवश्यकता होती है। कई संगठन जलग्रहण क्षेत्र दृष्टिकोण का पालन कर रहे हैं, जिसमें स्प्रिंगशेड को चित्रित करने के स्थान पर वृहत्त जलग्रहण क्षेत्र में आने वाले स्प्रिंग्स पर कार्य किया जाता है। एक परिष्कृत दृष्टिकोण में समस्थानिक तकनीकों के साथ जलग्रहण और भू-जलविज्ञानीय दृष्टिकोण का संयोजन सम्मिलित है जो एक जटिल, महंगी और दीर्घकालिक प्रक्रिया है और वृहत्त संख्या में उपलब्ध स्प्रिंग्स के अध्ययनार्थ व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। वर्तमान में, राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान स्प्रिंगशेड को चिन्हित करने हेतु इस तकनीक का उपयोग कर रहा है। स्प्रिंग पुनरुद्धार गतिविधियों के लिए, यह पाया गया कि अधिकांश स्थितियों में स्प्रिंगशेड को चिन्हित करने के बाद हस्तक्षेप किया जा रहा है, हालांकि कुछ स्थितियों में स्प्रिंगशेड को जलविभाजक का भाग माना जा रहा है और पारंपरिक उपचार तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है।

केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार द्वारा द्वारा पोषित अधिकांश योजनाओं के माध्यम से स्प्रिंगशेड प्रबंधन का कार्य सम्पादित किया जा रहा है। मात्र 03 संगठनों द्वारा ही स्प्रिंगशेड प्रबंधन के लिए कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व निधि (सी.एस.आर. फंडिंग) की जानकारी प्रदान की गयी, जो विशेष रूप से पर्वतीय राज्यों में परिचालित कॉर्पोरेट क्षेत्रों से अधिक समर्थन की आवश्यकता को दर्शाता है।

जल शक्ति मंत्रालय के प्रयास

जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग, जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा गठित संचालन समिति द्वारा पाया गया कि, देश में स्प्रिंग्स की कोई मानक परिभाषा उपलब्ध नहीं है, जिसके कारण संस्थानों को कभी-कभी इसे अन्य जल संरचनाओं से पृथक करने में समस्या का सामना करना पड़ता है, विशेषकर जब संस्थानों को पर्वतीय क्षेत्र में कार्य करने का अनुभव न हो। ऐसी परिस्थिति में इन जल स्रोतों पर मानक जानकारी की उपलब्धता सुनिश्चित करना अनिवार्य हो जाता है।

स्प्रिंग की परिभाषा का मानकीकरण

संचालन समिति द्वारा स्प्रिंग की विविध प्रचलित परिभाषाओं का अध्ययन किया गया गया और देश की भौगोलिक परिस्थिति एवं अन्य जल संरचनाओं को दृष्टिगत रखते हुए यह सुनिश्चित किया गया कि "स्प्रिंग पृथ्वी की सतह पर भूजल का प्राकृतिक रूप से केंद्रित निर्वहन है।" अतः किसी भी जल संरचना को स्प्रिंग घोषित करने के लिए तीन मूलभूत शर्तें हैं: (i) यह भूजल हो, (ii) पृथ्वी की सतह पर प्राकृतिक रूप से अभिव्यक्त हो, और (iii) ये केंद्रित स्राव हो अर्थात इसके वाह्य रिसाव के स्रोत बिंदु का चयन किया जा सके।

सामान्यतः किसी भी स्प्रिंग से वाह्य रिसाव द्वारा जल के बाहर निकलने के व्यवहार के आधार पर क्षेत्र में दो तरह के दृश्य सामने आते हैंः (1) मुक्त प्रवाह वाला स्प्रिंग, जहां पानी एक निश्चित शीर्ष से गिरता है, (2) रिसने वाले स्प्रिंग, जहां मिट्टी चट्टानों के सूक्ष्म छिद्रों से रिसकर जल एक छोटे जल कुण्ड के रूप में एकत्रित होता हैं। इस आधार पर जल भराव, दलदल, आर्द्रभूमि, कुंआ, उत्युत कूप इत्यादि जल संरचनाओं को स्प्रिंग्स से पृथक किया जा सकता है। आम जनमानस स्प्रिंग्स की पहचान सरलता से कर सके, इसके लिए विभिन्न राज्यों में स्प्रिंग्स के स्थानीय प्रचलित नामों का संग्रह भी किया गया है।

प्रथम स्प्रिंग सेन्सस

विभिन्न संगठनों द्वारा मानचित्रित किये गए कुल स्प्रिंग्स की संख्या और नीति आयोग की रिपोर्ट में देश भर में संभावित स्प्रिंग्स की संख्या (लगभग 30 से 50 लाख) को संज्ञान में रखते हुए जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा स्प्रिंगशेड प्रबंधन हेतु गठित समिति द्वारा यह महसूस किया गया कि इनकी सम्पूर्ण देश में वास्तविक गणना अति आवश्यक है। इस क्रम में जल शक्ति मंत्रालय द्वारा देश के सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में प्रथम स्प्रिंग सेन्सस हेतु नोडल एजेंसियां चिन्हित कर अगस्त, 2023 में राष्ट्रीय स्तर का प्रशिक्षण नई दिल्ली में आयोजित किया गया।

स्प्रिंग डाटा एकत्रीकरण प्रपत्र का मानकीकरण

विभिन्न संस्थाओं द्वारा एकत्रित आंकड़ों में गैर एकरूपता को ध्यान में रखते हुए स्प्रिंग आंकड़े एकत्रित करने हेतु आवश्यक प्रपत्र के मानकीकरण की आवश्यकता महसूस की गयी। स्प्रिंग पर आवश्यक आंकड़े एकत्रित करने हेतु सबसे पहले आवश्यक था कि एक ऐसा प्रपत्र विकसित किया जाए, जो कि स्प्रिंगशेड प्रबंधन के लिए आवश्यक

मूलभूत आंकड़े दर्शाता हो और साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर आम जनमानस द्वारा ये आंकड़े सरलता से बिना किसी विशेष दूल के एकत्रित किये जा सकें। इसके लिए राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की द्वारा एक विचार मंचन कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें स्प्रिंग पर विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों में कार्यरत 20 से अधिक संस्थानों के 40 से अधिक क्षेत्रीय पदाधिकारियों, वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, एवं प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा प्रतिभाग किया गया। इस विचार मंथन कार्यशाला में प्रथम स्प्रिंग सेन्सस हेतु पहचान विवरण, स्प्रिंग सामान्य विवरण, स्प्रिंग की सामान्य भौतिक विशेषताएँ, अन्य जानकारी से सम्बंधित आवश्यक प्राचलों पर विचार विमर्श कर अल्पसूचित किया गया। इसके साथ-साथ यदि कोई संस्था विस्तृत अध्यनन करना चाहे तो उसके लिए भी प्रपत्र विकसित किया गया। इससे सम्पूर्ण देश में स्प्रिंग पर आधारित आंकड़ों में भविष्य में एकरूपता आ जाएगी और एक वेव आधरित पोर्टल भी विकसित कर पाना संभव होगा ताकि देश के सभी स्प्रिंग्स पर आधारित मूल एवं अद्यतन जानकारी सभी हितधारकों को सरलता से उपलबध हो सके।

स्प्रिंगशेड प्रबंधन के लिए क्षमता निर्माण इस तथ्य के बावजूद कि स्प्रिंगशेड प्रबंधन के लिए वैज्ञानिक ज्ञान की आवश्यकता होती है, अधिकांश संगठनों ने विषय वस्तु विशेषज्ञ की अनुपलब्धता की सूचना दी। क्षेत्र के पदाधिकारियों के साथ-साथ हितधारकों के बीच क्षमता विकास सुनिश्चित करने के लिए स्प्रिंगशेड प्रबंधन के सभी आवश्यक तत्वों को शामिल करते हुए मानक प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित करना आवश्यक है। एकत्र किए गए आंकड़ों से यह पाया गया कि 'पुनःपूरण क्षेत्र की पहचान' प्रशिक्षण के लिए सबसे अधिक मांग वाले विषयों में से एक है। इसके बाद 'स्प्रिंगशेड में इंस्ट्रूमेंटेशन', 'पुनःपूरण उपाय का अभिकल्पन', 'सामाजिक और शासन के पहलू' और "स्प्रिंगशेड प्रबंधन गतिविधियों के प्रभाव का आंकलन" सम्मिलित है। यह भी पाया गया है कि उपर्युक्त विषयों पर एजेंसियों के बीच महत्वपूर्ण विशेषज्ञता उपलब्ध है जिसका सरलता से उपयोग किया जा सकता है। यह भारत के नाजुक पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र में स्थायी जल संसाधन प्रबंधन के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में प्रयास करते हुए एक-दूसरे से सीखने का मार्ग भी प्रशस्त करता है।

वर्तमान में, स्प्रिंगशेड प्रबंधन के लिए कोई समान दिशानिर्देश वा मानक संदर्भ सामग्री उपलब्ध नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न संगठनों द्वारा उत्पन्न जानकारी में असंगति है। इसलिए, स्प्रिंग मानचित्रण और प्रबंधन के लिए मानक प्रोटोकॉल और दिशानिर्देश विकसित करना आवश्यक है, जो विभिन्न संगठनों द्वारा उत्पन्न की जा रही जानकारी में एकरूपता सुनिश्चित कर सके। इसके अतिरिक्त, स्प्रिंग कायाकल्प के क्षेत्र में प्रभावी ढंग से काम करने के लिए अपने कौशल और ज्ञान में वृद्धि हेतु क्षेत्र के कार्यकर्ताओं और हितधारकों के लिए अनुरूप प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किए जाने चाहिए। इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों को विकसित करने के लिए विभिन्न संगठनों की विशेषज्ञता को एक साथ रखा जा सकता है, जिसे ग्रीष्मकालीन या शीतकालीन प्रशिक्षण कार्यक्रमों के रूप में आयोजित किया जा सकता है। इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम भारत के नाजुक पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र में जल स्रोतों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने और फिर से जीवंत करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल से क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं को लैस कर सकते हैं।

स्प्रिंगशेड प्रबंधन पर संसाधन सामग्री स्प्रिंगशेड प्रबंधन परियोजनाओं

को प्रभावी ढंग से पूर्ण करने के लिए, कार्यान्वयन एजेंसियों को व्यापक संसाधन सामग्री या मैनुअल की आवश्यकता होती है। इन सामग्रियों में जलविज्ञान पर वैज्ञानिक आंकड़े, संरक्षण के लिए सर्वोत्तम अभ्यास, सामुदायिक सहभागिता रणनीतियाँ और निगरानी प्रोटोकॉल सम्मिलित होने चाहिए। इसके अतिरिक्त, सफल स्प्रिंगशेड प्रबंधन पर विषय विशेष अध्ययन और व्यावहारिक उदाहरण समान परियोजनाओं में शामिल हितधारकों के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि और मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं। कार्यचन्न एजेंसियों को आवश्यक संसाधनों और ज्ञान से लैस करके, ये स्प्रिंगशेड प्रबंधन परियोजनाओं को कुशलतापूर्वक निष्पादित करने में सहायक होने के साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों में जल संसाधनों की दीर्घकालिक स्थिरता को बढ़ावा दे सकते हैं। जल संसाधन मंत्रालय की स्प्रिंगशेड प्रबंधन पर गठित कमेटी द्वारा 'भारत के पर्वतीय क्षेत्र में स्प्रिंगशेड प्रबंधन के लिए संसाधन पुस्तक' नामक एक व्यापक, तकनीकी लेकिन अत्यधिक उपयोगिता वाला दस्तावेज तैयार किया गया है। यह दस्तावेज स्प्रिंगशेड प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं को कवर करते हुए अपने विभिन्न अध्यायों के माध्यम से सभी हितधारकों को महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता हैं। इन अध्यायों में स्प्रिंग्स और उसके विभिन्न वर्गीकरण, व्यापक स्प्रिंग मानचित्रण और सर्वेक्षण के लिए अनुक्रमिक चरण, स्प्रिंगशेड निगरानी और आंकडा संग्रहण, स्प्रिंगशेड प्रबंधन पद्धति, स्प्रिंग के जल की गुणवत्ता की निगरानी और विश्लेषण, स्प्रिंग के भूजल विज्ञान में पर्यावरणीय समस्थानिकों का अनुप्रयोग, स्प्रिंगशेड प्रबंधन के लिए उपचार के उपाय, सतत प्रबंधन कार्यक्रम के लिए स्प्रिंग प्रवाह का जलवैज्ञानिक विश्लेषण, स्प्रिंगशेड प्रबंधन में प्रभाव मूल्यांकन, स्प्रिंगशेड प्रबंधन के क्षेत्र में क्षमता निर्माण आदि महत्वपूर्ण शीर्षकों पर विस्तृत रूप से चर्चा की गई है। स्प्रिंगशेड प्रबंधन पर संसाधन सामग्री प्रदान करना सतत जल प्रबंधन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है यह 

इसके अतिरिक्त, जल स्रोतों की रक्षा और पहल जल चुनौतियों के प्रभावी समाधान की सरकार की प्रतिवद्धता के रूप में दृष्टिगोचर होती है। यह पुस्तक, 'देश के पर्वतीय क्षेत्रों और स्प्रिंगशेड आधारित जलविभाजक प्रबंधन योजना सहित भारतीय हिमालय क्षेत्र के स्प्रिंगशेड मानचित्रण' के लिए गठित - संचालन समिति द्वारा की गई शोध और योजना का परिणाम है, जो स्प्रिंगशेड से संबंधित महत्वपूर्ण विषयों, चुनौतियों और समाधानों में मूल्यवान अंतदृष्टि प्रदान करती है। पर्वतीय जल स्रोतों की उपयोगिता को देखते हुए राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की द्वारा भी प्राकृतिक जल स्रोतों के पुनरुद्धार के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान किया जा रहा हैं। संस्थान द्वारा 'इनफार्मेशन सिस्टम फॉर हिमालयन स्प्रिंग्स फॉर वल्नरेबिलिटी असेसमेंट एंड रिजुवेनेशन' (ISHVAR, ईश्वर) नामक एक वेब-जी.आई.एस. पोर्टल विकसित किया गया है। पोर्टल के माध्यम से भारत के विभिन्न क्षेत्रों के प्राकृतिक जल स्रोतों की यथास्थिति एवं भूमिगत सर्वेक्षण के आंकड़ों को सूचीबद्ध किया जा रहा है, जिसकी सहायता से विश्व के किसी भी स्थान से हिमालयी जल स्रोतों की यथास्थिति के बारे में जानकारी एकत्र की जा सकती है।

निष्कर्ष

भारतीय हिमालयी क्षेत्र एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र है जिसमें विविध प्रकार की वनस्पति और जीव पाए जाते हैं। यह भारत के उत्तरी मैदानों में कृषि और उद्योग के लिए महत्वपूर्ण कई प्रमुख नदियों का स्रोत है। स्प्रिंग्स सहित भारतीय हिमालयी क्षेत्र के जल संसाधनों के महत्व के बावजूद, जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, और सतत विकास प्रथाएं उन पर अत्यधिक दबाव डाल रही हैं। यह प्रपत्र स्प्रिंगशेड प्रबंधन से संबंधित तीन प्रमुख क्षेत्रोंः (1) देश में पर्वतीय जल स्रोतों पर आंकड़ों की उपलब्धता, (2) विभिन्न संगठनों द्वारा स्प्रिंगशेड प्रबंधन के लिए अपनाई गई पद्धतियां, और (3) स्प्रिंगशेड प्रबंधन के क्षेत्र में क्षमता निर्माण की आवश्यकताओं पर प्रकाश डालता है।

केंद्र और राज्य सरकार के संस्थान और विभिन्न गैर-सरकारी संगठन, विभिन्न योजनाओं के माध्यम से प्रिंग्स के बारे में जानकारी एकत्रित करने का कार्य कर रहे हैं। हालाँकि, यह जानकारी बिखरी हुई है, और इन जल स्रोतों पर कोई व्यवस्थित डेटाबेस उपलब्ध नहीं है। एकत्र किए गए आंकड़ों से जानकारी की उपलब्धता का पता चलता है लेकिन एक सामूहिक मंच के अभाव के कारण उसका सदुपयोग नहीं हो पा रहा है। अतः, आंकडा प्रबंधन और उपयोग के लिए एक केंद्रीकृत मंच स्थापित करना अनिवार्य है जो नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं और हितधारकों के लिए एक साझा स्थान प्रदान करके पर्वतीय जल स्रोतों के संरक्षण और कायाकल्प में सहायक सिद्ध हो सके। विभिन्न संगठनों द्वारा एकत्र की जा रही जानकारी में निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए स्प्रिंगशेड प्रबंधन और स्प्रिंग मानचित्रण के लिए मानक दिशानिर्देश और प्रोटोकॉल के सेट को विकसित करने की भी आवश्यकता है। इसके अलावा, क्षमता विकास के लिए, स्प्रिंगशेड प्रबंधन पर मानक नियमावली और संदर्भ सामग्री विकसित करते हुए प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण (टी.ओ.टी.) की दिशा में एक पहल शुरू की जा सकती है। इसके पहल शुरू की जा सकती है। इसके अतिरिक्त, जल स्रोतों की रक्षा और कायाकल्प करने के लिए विभिन्न संगठनों के बीच समन्वित प्रयासों को सुविधाजनक बनाने के लिए एक निश्चित क्रियाविधि स्थापित की जानी चाहिए। अंततः, आंकडा प्रबंधन और उपयोग के लिए एक केंद्रीकृत मंच, नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं और हितधारकों को भारतीय हिमालयी क्षेत्रों में स्प्रिंग जल स्रोतों की सुरक्षा और पुनरुद्धार में महती सहायता करेगा।

सम्पर्क करेंः

  • डॉ. सोवन सिंह रावत एवं डॉ. दीपक सिंह विष्ट
  • राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की।


स्रोत - जलचेतना, जनवरी 2024

Path Alias

/articles/bharat-ke-parvatiya-jal-sroton-springs-ki-sthiti-aur-inake-satat-prabandhan-hetu-jal-0

Post By: Kesar Singh
×